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फरवरी 2024 में रिपब्लिकन पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रपति उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन या NATO) के यूरोपीय सदस्यों के द्वारा निर्धारित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 2 प्रतिशत रक्षा खर्च के लक्ष्य को लेकर असंतोष जताया और उनसे अनुरोध किया कि इसे बढ़ाकर 3 प्रतिशत किया जाए. उन्होंने ये धमकी भी दी कि जो सदस्य देश इस आवश्यकता को पूरा करने की इच्छा नहीं रखते हैं, उन्हें सुरक्षा के दायरे में नहीं रखा जाएगा.
ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका केंद्रित दृष्टिकोण का दबदबा था और उनके आने वाले दूसरे कार्यकाल के दौरान भी इसी तरह का रवैया रहने की उम्मीद है.
ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका केंद्रित दृष्टिकोण का दबदबा था और उनके आने वाले दूसरे कार्यकाल के दौरान भी इसी तरह का रवैया रहने की उम्मीद है. रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान ट्रंप ने बाइडेन प्रशासन की भागीदारी के स्तर की बार-बार आलोचना की. फरवरी 2024 में अपने भाषण के दौरान ट्रंप ने NATO के रक्षा खर्च के मुद्दे का इस्तेमाल यूक्रेन के प्रमुख समर्थक के रूप में अमेरिका के हट जाने की अपनी दलील को मज़बूत करने में किया.
पुराने युद्ध, पुराने राष्ट्रपति
नवंबर 2024 में ट्रंप का भाषण न केवल उनके पिछले कार्यकाल के दौरान उठाए गए कदमों की संभावना के बारे में बता रहा था बल्कि उसकी याद दिला रहा था. 2019 में ट्रंप प्रशासन 1987 की INF ट्रीटी (इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्सेज़ ट्रीटी) से पीछे हट गया. इस तरह परमाणु हथियारों की तैनाती पर अमेरिका-रूस समझौतों का समाधान करने के लिए केवल न्यू START (स्ट्रैटजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी) संधि बच गई. कई विशेषज्ञों और ख़ुद ट्रंप, जो कि पूरी तरह से एक नई संधि पर बातचीत चाहते हैं, ने न्यू START संधि की भी आलोचना की है. उनकी दलील है कि परमाणु हथियारों के उपयोग को सीमित करने के लिए केवल न्यू START संधि अपर्याप्त है. पिछले साल रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दावा किया था कि लंबी दूरी की मिसाइल के रूप में यूक्रेन को पश्चिमी देशों के समर्थन के ख़िलाफ़ जवाब देने के लिए रूस परमाणु हथियार का इस्तेमाल कर सकता है. वैसे तो अमेरिका के कई नीतिगत विशेषज्ञों ने इसे लगभग असंभव परिणाम बताते हुए इसकी आलोचना की है लेकिन ये हो सकता है कि पुतिन की बयानबाज़ी ने युद्ध से पीछे हटने की अमेरिकी भावना को तय किया हो.
यूरोप की सेना को लेकर अधिक आक्रामक रवैये के लिए ट्रंप का समर्थन सैन्य सहायता के उद्देश्य से अमेरिका पर यूरोप की निर्भरता की फिर से समीक्षा को प्रेरित कर सकता है.
यूक्रेन से अमेरिका की संभावित वापसी सीधे तौर पर यूरोपीय ताकतों को प्रभावित करेगी. इसकी वजह से जर्मनी जैसे देशों को ज़्यादा बड़ी भूमिका अपनाने और अपने रक्षा बजट में अधिक योगदान देने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. ये ऐसा कदम है जिसको उठाने से ये देश अभी तक हिचक रहे हैं. इससे यूरोप के भीतर गठबंधन और NATO के भीतर एकजुटता में तनाव पैदा होगा. रूस के परमाणु धमकी वाले तेवर से NATO के भीतर और यूरोपियन यूनियन एवं अमेरिका के बीच तनाव बढ़ेगा. पिछले ट्रंप प्रशासन ने NATO से बाहर होने की धमकी दी थी. वैसे तो ये धमकी पूरी नहीं हुई लेकिन अमेरिका के हटने को लेकर डर ने चीन और रूस जैसी विरोधी वैश्विक ताकतों को ये संकेत दिया कि NATO और अमेरिका स्वतंत्र रूप से काम नहीं करते हैं. EU और NATO पर अपनी सेनाओं को मज़बूत करने का दबाव बढ़ सकता है जो यूरोप के भीतर और अमेरिका के साथ भू-राजनीतिक मतभेदों को बढ़ा सकता है. जुलाई 2024 में अपने 75वें सालाना शिखर सम्मेलन के दौरान NATO ने रूस के ख़िलाफ़ अपने रुख़ को साफ करने की कोशिश की. लेकिन अमेरिका पर उसकी निरंतर निर्भरता और यूक्रेन को पूर्ण सदस्य बनाने की हिचकिचाहट ने इन प्रयासों को कमज़ोर कर दिया है.
परमाणु तेवर और NATO
वॉशिंगटन डीसी में आयोजित 2024 के शिखर सम्मेलन के दौरान NATO ने परमाणु हथियारों और विकास पर अपने रवैये की फिर से पुष्टि की. NATO ने परमाणु हथियारों को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और निवारण (डेटरेंस) के साधन के रूप में बताया, विशेष रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध की प्रतिक्रिया में. जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, रूस ने भी परमाणु हथियारों के उपयोग की अपनी इच्छा की फिर से पुष्टि की है. रूस और NATO के देशों- दोनों की तरफ से परमाणु हथियारों के संभावित इस्तेमाल का इशारा ये संकेत देता है कि परमाणु अप्रसार संधि (NPT) और परमाणु प्रसार को नियंत्रित करने का इसका प्रयास सफलता से बहुत दूर है. इसके अलावा, फिनलैंड और स्वीडन का NATO में शामिल होना भी NPT को प्रभावित कर सकता है. अभी तक ये देश परमाणु हथियारों से लैस गठबंधनों से बाहर रहे हैं. वैसे तो दोनों में से किसी भी देश के पास परमाणु हथियार नहीं है लेकिन अब वो NATO का हिस्सा हैं और उसकी व्यापक परमाणु सुरक्षा के तहत आते हैं. उनके NATO में शामिल होने की वजह से उन्हें सख्ती से GDP का 2 प्रतिशत रक्षा पर खर्च करने के नियम का पालन करना होगा.
ट्रंप के द्वारा NATO और यूरोप के सैन्य खर्च की लंबे समय से आलोचना का अटलांटिक पार संबंधों पर स्थायी असर पड़ा है. फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों को स्वायत्त रूप से संचालित सैन्य प्रणालियों को और विकसित करना पड़ सकता है जिसका प्रभाव सुरक्षा ख़तरों को लेकर NATO के जवाब में अलग-अलग दृष्टिकोण के रूप में पड़ सकता है. इसके अलावा, यूरोप की सेना को लेकर अधिक आक्रामक रवैये के लिए ट्रंप का समर्थन सैन्य सहायता के उद्देश्य से अमेरिका पर यूरोप की निर्भरता की फिर से समीक्षा को प्रेरित कर सकता है.
NATO की फिर से पुष्टि और परमाणु सुरक्षा में मज़बूती
NATO से हटने या अपनी भागीदारी कम करने के बदले अमेरिका गठबंधन के रक्षा रवैये को फिर से मज़बूत करने के लिए इस क्षेत्र की तरफ अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपना सकता है. इस तरह वो ये सुनिश्चित कर सकता है कि उसकी परमाणु निवारक क्षमताएं मज़बूत और आधुनिक सुरक्षा माहौल के हिसाब से महत्वपूर्ण बनी रहे. राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप का अगला कार्यकाल उन्हें NATO के साझेदारों के साथ संबंध फिर से मज़बूत बनाने और सामूहिक रक्षा एवं परमाणु सुरक्षा की गारंटी दोहराने का अवसर देता है.
इसके अलावा अमेरिका हथियारों की होड़ पर नियंत्रण का समर्थन करने के मोर्चे पर सबसे आगे रह सकता है और रहना भी चाहिए. यूरोप और पश्चिम एशिया में परमाणु ख़तरे को देखते हुए ये ज़रूरी है. ईरान के ख़िलाफ़ ट्रंप के “अधिकतम दबाव” के अभियान की वजह से काफी तनाव की स्थिति, विशेष रूप से तुर्किए के साथ, बनी है लेकिन निरोध को कूटनीति के साथ जोड़ने वाला अधिक संतुलित दृष्टिकोण ज़्यादा कामयाब होगा. इस तरह ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के साथ अपने संबंधों को बनाए रखकर अमेरिका ईरान की तरफ से पेश परमाणु ख़तरे से निपट सकता है क्योंकि ये देश पहले से समस्या के समाधान में लगे हुए हैं जिससे क्षेत्र में स्थिरता बहाल करने में मदद मिलेगी. अमेरिका को हथियारों पर नियंत्रण की संधियों का पालन जारी रखना चाहिए जिनमें अमेरिका और रूस के बीच ऊपर उल्लेख की गई न्यू START संधि शामिल है. साथ ही अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय तौर-तरीकों के ज़रिए परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के लिए प्रयासों को आगे बढ़ाना जारी रखना चाहिए.
अमेरिका को NATO और उसके सहयोगियों के साथ जुड़ना जारी रखना चाहिए. इस तरह सामूहिक रक्षा और परमाणु निरोध के महत्व को फिर से दोहराना चाहिए और इसके साथ-साथ आगे परमाणु प्रसार को रोकने और विनाशकारी संघर्ष के ख़तरे को कम करने के प्रयासों को आगे बढ़ाना चाहिए.
बदले हुए भू-राजनीतिक परिदृश्य में, जहां नई परमाणु ताकतों का उदय हो रहा है और सरकारी एवं गैर-सरकारी किरदार गठबंधनों को चुनौती दे रहे हैं, NATO को न केवल अपना परमाणु रवैया फिर से शुरू करना चाहिए बल्कि साझा सुरक्षा, कूटनीति और हथियारों के नियंत्रण के आधार पर अपने सदस्य देशों को एकजुट भी करना चाहिए. अमेरिका को NATO और उसके सहयोगियों के साथ जुड़ना जारी रखना चाहिए. इस तरह सामूहिक रक्षा और परमाणु निरोध के महत्व को फिर से दोहराना चाहिए और इसके साथ-साथ आगे परमाणु प्रसार को रोकने और विनाशकारी संघर्ष के ख़तरे को कम करने के प्रयासों को आगे बढ़ाना चाहिए. पहले कार्यकाल के दौरान ट्रंप की नीतियों ने NATO गठबंधन को अनिवार्य रूप से कमज़ोर करके रक्षा और परमाणु सुरक्षा के लिए उसकी रणनीति को साफ तौर पर बदल दिया. स्थिर, सुरक्षित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की बुनियाद के लिए NATO का दृढ़, विश्वसनीय और पारंपरिक एवं परमाणु ख़तरों का जवाब देने में सक्षम बना रहना आवश्यक है. अमेरिका को अलग होने के बदले NATO को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को फिर से दोहराना चाहिए, परमाणु सुरक्षा के प्रयासों को बढ़ाना चाहिए और उभरते ख़तरों का समाधान करने के लिए अपने सहयोगियों के साथ सामूहिक रूप से काम करना चाहिए.
श्राविष्ठा अजय कुमार ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्युरिटी, स्ट्रैटजी एंड टेक्नोलॉजी में एसोसिएट फेलो हैं.
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