Published on Oct 21, 2021 Updated 0 Hours ago

घरेलू और अंतरराष्ट्रीय इनोवेशन के लिए निवेश करने में सॉवरेन फंड बड़ी भूमिका निभाने जा रहे हैं

टेक यूनिकॉर्न की तलाशः कैसे डिजिटल इकोनॉमी को स्वतंत्र फंड से मिल रहा रफ्त़ार

जुलाई 2021 में फूड डिलीवरी कंपनी जोमैटो तय योजना के मुताबिक बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज पर अपना इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग (आईपीओ) लेकर आई. यह देश का सातवां सबसे बड़ा आईपीओ था. जोमैटो ने निवेशकों को कंपनी के शेयर बेचकर 56.4 करोड़ डॉलर जुटाए. इस कंपनी के एंकर इन्वेस्टरों में एडीआईए (यूएई), सीपीपी (कनाडा), ओएमईआरएस (कनाडा) और जीआईसी (सिंगापुर) जैसे सॉवरेन फंड भी शामिल थे. सॉवरेन फंड (एसडब्ल्यूएफ) यानी किसी देश की सरकार का फंड. इस आईपीओ से पहले जोमैटो ने प्राइवेट फाइनेंसिंग यानी निजी निवेशकों से भी 2.1 अरब डॉलर की रकम जुटाई थी. अनुमान के मुताबिक, तब सिंगापुर सरकार के फंड टेमासेक ने इस कंपनी में 10 करोड़ डॉलर का निवेश किया था. 

जोमैटो देश की अकेली ई-कॉमर्स कंपनी नहीं है, जिस पर दुनिया के बड़े सॉवरेन फंडों ने भरोसा किया है. जिस महीने जोमैटो का आईपीओ आया, उसी महीने निवेश के एक नए राउंड में फ्लिपकार्ट ने भी 3.6 अरब डॉलर जुटाए. इसमें भी एडीक्यू (यूएई), सीपीपी, जीआईसी, खजाना (मलेशिया) और क्यूआईए (कतर) जैसे सॉवरेन फंडों ने निवेश किया था. ग्लोबल सॉवरेन फंड डेटा के मुताबिक, इस निवेश के बाद देश की सबसे बड़ी टेक स्टार्टअप के तौर पर फ्लिपकार्ट की स्थिति और मजबूत हुई, जब कंपनी की वैल्यू 37.6 अरब डॉलर पहुंच गई. 

जोमैटो देश की अकेली ई-कॉमर्स कंपनी नहीं है, जिस पर दुनिया के बड़े सॉवरेन फंडों ने भरोसा किया है. जिस महीने जोमैटो का आईपीओ आया, उसी महीने निवेश के एक नए राउंड में फ्लिपकार्ट ने भी 3.6 अरब डॉलर जुटाए.

कोरोना महामारी के दौरान कई ताकतवर रुझानों ने रफ्त़ार पकड़ी, जिनका उभार काफी पहले से शुरू हो गया था. जोमैटो और फ्लिपकार्ट में होने वाले निवेश इसी की गवाही देते हैं. आज इन रुझानों पर सबकी नज़र है. महामारी के दौरान जो रुझान दिखे हैं, उनमें से एक यह है कि उभरते हुए देशों में ई-कॉमर्स का दायरा तेज़ी से बढ़ रहा है, और इसका फायदा उठाने के लिए सॉवरेन वेल्थ फंड आगे आ रहे हैं. वे इन कंपनियों के लिए नए वेंचर कैपिटलिस्ट बन गए हैं. यह एक ताकतवर ट्रेंड है. अगर इस बात को अच्छी तरह समझना हो तो पहले इस सवाल का जवाब दीजिए कि ‘भारत के वित्त बाज़ार में ताकतवर कौन है?’ कई लोग इस सवाल के जवाब में कह सकते हैं कि बड़े इन्वेस्टमेंट बैंक, बड़ी एसेट मैनेजमेंट कंपनियां और हेज फंड ताकतवर हैं, जिन्हें लेकर अक्सर मीडिया में चर्चा होती रहती है. लेकिन सच तो यह है कि देश में सॉवरेन इन्वेस्टरों का नया ग्रुप उभरा है, जिसमें दुनिया के कुछ जाने-माने सॉवरेन वेल्थ फंड, सरकारी पेंशन फंड, सेंट्रल बैंकों के रिज़र्व फंड और सरकारी निवेश वाली अन्य इकाईयां शामिल हैं. ये आज वित्तीय बाज़ार में सबसे प्रभावशाली ताकतें और इन्वेस्टमेंट कंपनियां बन चुकी हैं. ये फंड 30 लाख करोड़ डॉलर से अधिक रकम मैनेज करते हैं. 

ताकतवर वेंचर कैपिलटल कंपनियों का दौर

2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद सॉवरेन इन्वेस्टर लंबा सफर तय कर चुके हैं. तब उन्होंने सिटीबैंक, मॉर्गन स्टेनली, बैंक ऑफ अमेरिका जैसी दिग्गज वित्तीय कंपनियों में अरबों डॉलर का निवेश किया था. बाद में साबित हुआ कि उन्होंने यह निवेश कुछ ज्य़ादा ही जल्दी में कर दिया था. उस वक्त इन फंडों को पूंजीवाद का रक्षक भी बताया गया था. सॉवरेन वेल्थ फंडों ने उस वक्त भले ही बड़ी गलती की, लेकिन उससे मिले सबक से आगे चलकर उन्होंने समझदारी भरे निवेश किए. डिजिटल तकनीक से वर्ल्ड इकोनॉमी में जो बदलाव आया, उसके शुरुआती निवेशकों में ये फंड शामिल रहे हैं. डिजिटल वर्ल्ड में उनके निवेश का बहुत असर भी हुआ. असल में, सॉवरेन इन्वेस्टमेंट फंड, नई और ताकतवर वेंचर कैपिटल कंपनियां हैं. उनके पास अकूत पैसा है. वे लंबे समय के लिए दुनिया भर में और अलग-अलग क्षेत्र की कंपनियों में निवेश करते हैं. इससे डिजिटल कंपनियों के लिए प्राइवेट वेंचर कैपिटल मार्केट भी बदला है. पारंपरिक तौर पर ये फंड पैसिव इन्वेस्टर हुआ करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है. आज हम वैश्विक अर्थव्यवस्था में जो डिजिटल बदलाव देख रहे हैं, उसमें इन फंडों की अग्रणी भूमिका है. बड़ी रकम और उनके स्मार्ट इन्वेस्टमेंट के कारण आज ‘यूनिकॉर्न्स’ यानी एक अरब डॉलर से अधिक वैल्यू वाली कंपनियों का उभार हो रहा है. इनमें निजी क्षेत्र की कंपनियां, डिजिटल स्टार्टअप शामिल हैं. 

सच तो यह है कि देश में सॉवरेन इन्वेस्टरों का नया ग्रुप उभरा है, जिसमें दुनिया के कुछ जाने-माने सॉवरेन वेल्थ फंड, सरकारी पेंशन फंड, सेंट्रल बैंकों के रिज़र्व फंड और सरकारी निवेश वाली अन्य इकाईयां शामिल हैं. ये आज वित्तीय बाज़ार में सबसे प्रभावशाली ताकतें और इन्वेस्टमेंट कंपनियां बन चुकी हैं.

अलग-अलग देशों के ये सरकारी फंड जितनी बड़ी रकम लगाते हैं, उसे देखते हुए इन्हें ‘यूनिकॉर्न मेकर्स’ यानी एक अरब डॉलर से अधिक वैल्यू वाली कंपनियां बनाने वाला कहना गलत नहीं होगा. उनकी पूंजी से अलीबाबा, एयरबीएनबी, जेडीडॉटकॉम, टेस्ला, उबर, वीवर्क और 100 अरब डॉलर के सॉफ्टबैंक विजन फंड (जो खुद ही यूनिकॉर्न मेकर है) जैसी कंपनियों का उभार हुआ है. असल में महामारी के दस्तक देने के बाद लोगों की जिंदगी घरों तक सिमट कर रह गई और इसके साथ सामाजिक दूरी जैसे रुझान सामने आए. इससे लोग घर बैठे ऑर्डर्स देने लगे, जिससे हमारे जीवन में डिजिटल तकनीक का दख़ल बढ़ा. महामारी के इस संकट से हमारी जिंदगी में जो बदलाव आए, उसने यूनिकॉर्न को सफ़लता के एक अलग मुकाम पर पहुंचा दिया. 

500 अरब डॉलर के पीआईएफ ने तो भविष्य को ध्यान में रखकर बन रहे नियोम शहर की स्थापना तक में सहयोग का वादा किया है. इस शहर में फ्लाइंग टैक्सियां चलेंगी और रात में कृत्रिम चांद का उदय होगा. यह शहर न्यूयॉर्क सिटी से 33 गुना बड़ा होगा

स्वतंत्र पूंजी से नवाचार को बढ़ावा

सॉवरेन वेल्थ फंड इसके साथ नियोजित तरीके से अपने देश में इनोवेशन या नवाचार को भी बढ़ावा दे रहे हैं. यह एक जबरदस्त रुझान है, जो पूरे के पूरे महादेश तक में दिख रहा है. ये फंड अपने देश में तकनीकी कंपनियों में निवेश को आर्थिक गतिविधियों को समर्थन देने और रोजगार पैदा करने का जरिया मानते हैं. इस नेक काम के साथ उन्हें ऐसे नए बिजनेस से वाजिब रिटर्न भी मिल रहा है. उदाहरण के लिए, तुर्की सरकार के फंड का एक मकसद देश में उद्यमिता आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है. उसका इरादा ‘इन्वेस्टमेंट गेट ऑफ तुर्की यानी तुर्की में निवेश का दरवाजा’ बनने का है. सऊदी अरब के पब्लिक इन्वेस्टमेंट फंड (पीआईएफ), यूएई के मुबादला फंड ने विजन फंड में काफी पैसा लगाया है. इस ट्रेंड के ये सबसे जाने-माने उदाहरण हैं. 500 अरब डॉलर के पीआईएफ ने तो भविष्य को ध्यान में रखकर बन रहे नियोम शहर की स्थापना तक में सहयोग का वादा किया है. इस शहर में फ्लाइंग टैक्सियां चलेंगी और रात में कृत्रिम चांद का उदय होगा. यह शहर न्यूयॉर्क सिटी से 33 गुना बड़ा होगा. कुछ सॉवरेन फंड तो ऐसे हैं कि उनमें दूसरे देशों के सॉवरेन फंड निवेश करते हैं. इंडोनेशिया की सरकार नया सॉवरेन वेल्थ फंड  बना रही है, जिसका नाम इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी इंडोनेशिया (आईएआई) होगा. सरकार ने इसमें 5 अरब डॉलर के निवेश का वादा किया है. उसे उम्मीद है कि विदेश से इसमें 15 अरब डॉलर का निवेश होगा. इंडोनेशिया के अधिकारियों ने दावा किया कि यूएई, जापान के सॉफ्टबैंक, यूएस इंटरनेशनल डिवेलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन (डीएफसी) पहले ही इसमें पैसा लगाने की तैयारी कर चुके हैं. आईएआई शुरुआती दौर में देश के इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करेगा. यह फिजिकल के साथ डिजिटल सेग्मेंट में भी होगा. इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो में मुताबिक, इस क्षेत्र में निवेश के लिए देश में फंड की जो कमी है, उसकी भरपाई आईएआई से हो जाएगी. 

आज हम वैश्विक अर्थव्यवस्था में जो डिजिटल बदलाव देख रहे हैं, उसमें इन फंडों की अग्रणी भूमिका है. बड़ी रकम और उनके स्मार्ट इन्वेस्टमेंट के कारण आज ‘यूनिकॉर्न्स’ यानी एक अरब डॉलर से अधिक वैल्यू वाली कंपनियों का उभार हो रहा है.  

भविष्य में डिजिटल इकोनॉमी में दो शक्तिशाली रुझान दिखेंगे. एक तरफ तो वैश्विक सॉवरेन वेल्थ फंड सिलिकॉन वैली, चीन और भारत जैसे इनोवेशन के दूसरे ठिकानों में पैसा लगाते रहेंगे. वे यहां यूनिकॉर्न की तलाश जारी रखेंगे, जिससे कि भविष्य में उनमें होने वाली ग्रोथ से उन्हें अच्छा मुनाफा हो सके. दूसरी तरफ, और भी अधिक सॉवरेन फंड घरेलू अर्थव्यवस्था के विकास में सहयोग करेंगे. यह रुझान ख़ासतौर पर अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, दक्षिण एशिया और पूर्वी यूरोप में दिख सकता है. दुनिया भर में यूनिकॉर्न में निवेश का उन्हें तजुर्बा हासिल हो चुका है. इसलिए अब ये फंड अपने देश में टेक्नोलॉजी स्टार्टअप्स को सहयोग देंगे. 

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