Author : Manoj Joshi

Published on Jun 10, 2022 Updated 0 Hours ago
#रूस-यूक्रेन युद्ध: हाइब्रिड युद्ध के माहौल के बीच यूक्रेन का साहसिक प्रतिरोध!

पिछले मंगलवार, एस्टोनिया के तालिन में, संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) साइबर कमांड और राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के प्रमुख जनरल पॉल नाकासोन ने एक ब्रिटिश टीवी चैनल को बताया कि रूसी हमले के ख़िलाफ़ अमेरिका यूक्रेन के समर्थन में आक्रामक हैकिंग अभियान चला रहा था. स्पेसएक्स, माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़ॅन और मेटा जैसी अमेरिकी निजी फ़र्मों की ज्ञात भूमिका के परिप्रेक्ष्य में अगर इसका अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि यह निरंतर रूसी सैन्य हमले के जवाब में यूक्रेन के प्रतिरोध को समझने में मदद करता है जो गतिशील और डिज़िटल दोनों तरह के हथियारों से संबंधित है.

संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) साइबर कमांड और राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के प्रमुख जनरल पॉल नाकासोन ने एक ब्रिटिश टीवी चैनल को बताया कि रूसी हमले के ख़िलाफ़ अमेरिका यूक्रेन के समर्थन में आक्रामक हैकिंग अभियान चला रहा था

लगभग सभी यह उम्मीद कर रहे थे कि यूक्रेन पर रूस के हमले में साइबर हथियारों का व्यापक इस्तेमाल होना तय है और हुआ भी यही, हालांकि यह अपेक्षित तरीक़ों के अनुरूप नहीं था. साइबर मामलों में, तथ्य को कल्पना से अलग करना बेहद मुश्किल होता है. इसलिए हम इस बारे में बहुत कुछ सुनते हैं कि कैसे अमेरिका की जेवलिन मिसाइलों से यूक्रेन की सेना ने रूसी टैंकों को नेस्तनाबूद  कर दिया, या तुर्की के बेयरेकतार ड्रोन ने कैसे पुतिन आर्मी की नाक में दम कर रखा है, लेकिन डिज़िटल युद्ध के बारे में बहुत अधिक विवरण हमें नहीं मिल पाता है जिसने इस जंग को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

हाल ही में एम.एल. सोंधी इंस्टीट्यूट फॉर एशिया पैसिफ़िक अफ़ेयर्स द्वारा आयोजित एक वेबिनार में हार्वर्ड कॉलेज के प्रोफेसर जिन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों में विशेषज्ञता हासिल है, उन्होंने बताया कि डिज़िटल ऑपरेशन कैसे एक या दूसरे पक्ष की सैन्य क्षमताओं को जोड़ने या उन्हें कमतर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि साइबर संचालन ने यूक्रेन और रूस दोनों की कमान और नियंत्रण प्रणाली को अलग-अलग तरीक़े से प्रभावित किया है. यूक्रेन के पास अपना कोई उपग्रह नहीं है. इसलिए यूक्रेन द्वारा इस्तेमाल किए गए वायासैट उपग्रह की हैकिंग के साथ इस संघर्ष की शुरुआत हुई. वायासैट एक वाणिज्यिक अमेरिकी संचार उपग्रह है जो वाणिज्यिक और सैन्य ग्राहकों को तेज़ रफ़्तार वाला उपग्रह ब्रॉडबैंड प्रदान करता है और यही वज़ह है कि रूसी हमले ने यूरोप के दूसरे देशों को भी प्रभावित किया है. हालांकि अब तक कोई सार्वजनिक आरोप नहीं लगा सका है कि इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है लेकिन मई की शुरुआत में, ब्रिटेन के राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा केंद्र ने रूस पर कार्रवाई का सीधा आरोप लगाया था.

यूक्रेन के पास अपना कोई उपग्रह नहीं है. इसलिए यूक्रेन द्वारा इस्तेमाल किए गए वायासैट उपग्रह की हैकिंग के साथ इस संघर्ष की शुरुआत हुई. वायासैट एक वाणिज्यिक अमेरिकी संचार उपग्रह है जो वाणिज्यिक और सैन्य ग्राहकों को तेज़ रफ़्तार वाला उपग्रह ब्रॉडबैंड प्रदान करता है और यही वज़ह है कि रूसी हमले ने यूरोप के दूसरे देशों को भी प्रभावित किया है.

सोचे-समझे फैसले लेता रूस 

हालांकि, यह आश्चर्य की बात थी कि जो रूस, जंग की शुरुआत में ही यूक्रेन के संचार व्यवस्था को प्रभावित कर सकता था उसने वैसा नहीं किया बल्कि अपने हमलों में बेहद चयनात्मक रूख़ अपनाया. जबकि उन्होंने सैन्य कमान और नियंत्रण प्रणाली को हैक कर लिया था लेकिन उन्होंने नागरिक बुनियादी ढांचे को काफी हद तक निशाना नहीं बनाया. इसे लेकर एक थ्योरी यह कहती है कि रूस ने यूक्रेन जंग में आसान और जल्द जीत की उम्मीद की थी और वो उस नेटवर्क को व्यवस्थित बनाए रखना चाहते थे जिससे कि वो इसका इस्तेमाल अपने हितों के लिए कर सकते.

पिछले महीने एक रिपोर्ट में माइक्रोसॉफ्ट ने कहा था कि सैन्य ऑपरेशन से एक साल पहले ही रूस ने “डिज़िटल हमला” शुरू कर दिया था. रूसी साइबर हमलावरों ने 2021 के अंत तक कई यूक्रेनी ऊर्जा और आईटी सेवा देने वाले संस्थानों तक सेंधमारी कर ली थी. जनवरी में रूसी आक्रमण से पहले, शोधकर्ताओं ने यूक्रेनी सिस्टम में व्हिस्परगेट नामक एक मालवेयर पाया था. यह 2017 के पहले के साइबर हमले को बताता है जिसने हज़ारों सिस्टम में डेटा को नष्ट कर दिया था. जंग के साथ ही इन टारगेट को विनाशकारी वायरस से निशाना बनाया गया. हालांकि, जब रूस का हमला 23 फरवरी से लेकर 8 अप्रैल के बीच तेज़ हुआ तब इस कंपनी ने पाया कि यूक्रेन के टारगेट पर 37 विनाशकारी साइबर हमले किए गए थे. रिपोर्ट में कहा गया है कि कई हमलों को रूसी सेना के काइनेटिक ऑपरेशन के साथ तालमेल बिठा कर किया गया था.

रोसेन का मानना था कि अमेरिकी सरकार ने इसे “रक्षात्मक” साइबर ऑपरेशन के रूप में इस्तेमाल किया और रूसी संचार प्रणाली पर निशाना साधा. रूस की 3 जी नेटवर्क को भी निशाना बनाया गया जिससे रूस की ज़मीनी सेना और उनके कमांड के बीच की बातचीत गोपनीय नहीं रह सकी. हालांकि जनरल नाकासोन ने यह ख़ुलासा करने से इंकार कर दिया कि यह अमेरिकी ऑपरेशन किस तरह का था लेकिन उन्होंने दावा किया कि फुल स्पेक्ट्रम ऑपरेशन, “आक्रामक, रक्षात्मक, और जानकारी” आख़िरकार अमेरिका की सुरक्षा हितों की रक्षा के उद्देश्य से किया गया था.

यूक्रेन की बाहरी दुनिया से संपर्क बनाने का एक महत्वपूर्ण परिणाम राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की की विश्व नेताओं के साथ संवाद कायम करने और रूसी हमले के बीच ख़ुद को यूक्रेन की एकता के प्रतीक के रूप में स्थापित करने की क्षमता में थी. ज़ेलेंस्की अपनी ऑलिव ग्रीन टी-शर्ट में वीडियो के ज़रिए विश्व नेताओं और संसदों से बात करते रहे और सोशल मीडिया पर निरंतर मैसेज भेजते रहे, जिसकी भूमिका यूक्रेन के लिए समर्थन जुटाने में काफी रही. एक रिपोर्ट के मुताबिक रूस के इन्फॉर्मेशन वारफ़ेयर का मुक़ाबला करने का एक बड़ा प्रयास यूक्रेन की सरकार द्वारा ही किया जा रहा है, जिसकी सहायता के लिए 3 लाख यूक्रेन के आईटी पेशेवर ख़ुद से दिन रात जुटे हुए हैं.

यूक्रेन में स्टारलिंक

इस डिज़िटल जंग का सबसे आकर्षक पहलू एलन मस्क और उनके स्टारलिंक उपग्रह द्वारा निभाई गई भूमिका रही है. वायासैट के हैक होने के दो दिन बाद मस्क ने कहा कि यूक्रेन में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए स्टारलिंक को सेवा में लगाया जाएगा. तब से इसने देश में बुनियादी संचार व्यवस्था को बहाल करने में मदद की है. इसके अलावा यूक्रेन के सैन्य ड्रोन को उनके टारगेट पर सटीक हमला करने में भी इसका भारी योगदान रहा है. एक या दो महीने के भीतर ही यूक्रेन में 10,000 स्टारलिंक टर्मिनल भेजे गए थे. ट्रांसमिशन टावरों के विपरीत स्टारलिंक सैटेलाइट डिश लगभग 60 सेंटीमीटर चौड़ा और छोटा होता है. रूस ने इस सिस्टम को जाम करने की तमाम कोशिश की लेकिन स्टारलिंक के तकनीक से जुड़े लोगों ने इस कोशिश को नाकाम कर दिया. स्टारलिंक सिस्टम पर शुरू किए गए साइबर हमलों पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करने के लिए मानवीय तकनीकी संसाधनों को डायवर्ट करने के अलावा मस्क ने टर्मिनलों को चलाने के लिए जेनसेट और सौर पैनल भी यूक्रेन को सप्लाई किए. स्पेसएक्स और माइक्रोसॉफ्ट के अलावा, अमेज़ॅन, मेटा, एप्पल और ट्विटर जैसी अन्य अमेरिकी कंपनियां भी रूस के ख़िलाफ़ साइबर युद्ध लड़ने के लिए अमेरिकी सरकार के साथ जुड़ी हुई हैं. इस अर्थ में उन्होंने रूसी हैकरों के साइबर हमलों के लिए ख़ुद को जोख़िम के बीच ला खड़ा किया जिससे अमेरिका के महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को रूस की जवाबी कार्रवाई में हमलों का सामना करना पड़ सकता है.

संचार माध्यमों की ऐसी तबाही का असर दोनों ही विरोधी सेनाओं की कमान और नियंत्रण पर पड़ा. हालांकि वायासैट की हैकिंग का ख़ामियाज़ा यूक्रेन ने कैसे भुगता यह अभी तक साफ नहीं है लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि अमेरिका और ब्रिटेन ने इससे उबरने में यूक्रेन की काफी मदद की.

लेकिन रूस के लिए इससे सबसे बड़ी समस्याएं पैदा हुईं, जिन्होंने 3 जी और 4 जी नेटवर्क पर आधारित कथित रूप से सुरक्षित ईआरए क्रिप्टोफ़ोन इस्तेमाल युद्ध में किया था. इसने उनके हवा-से-ज़मीन के समन्वय के साथ-साथ मैदान पर उनके सैनिकों की कमान और नियंत्रण की जानकारी सार्वजनिक होने के जोख़िम को कई गुना बढ़ा दिया. इस सिस्टम की एक बड़ी कमज़ोरी यह थी कि एक ही मंच पर यह सुरक्षित और गैर-सुरक्षित संचार प्रणाली को जोड़ती थी. अमेरिका और ब्रिटेन की मदद से, यूक्रेन ने इसकी ख़ामियों का भरपूर फायदा उठाया और संवेदनशील सैन्य टारगेट जैसे जहाज, सेना के हथियारों और मुख्यालयों की भौगोलिक स्थिति का पता लगा लिया. रूस यूक्रेन जंग में बड़ी तादाद में वरिष्ठ रूसी अधिकारियों की मौत का कारण भी अमेरिका द्वारा यूक्रेन को दी गई युद्धक्षेत्र की रियल टाइम ख़ुफ़िया जानकारी थी. सेल फोन के व्यापक इस्तेमाल को देखते हुए दोनों पक्ष के सैनिकों ने बड़ी ही लापरवाही के साथ अपने मित्रों और परिवार को कॉल करने के लिए सेल फोन का इस्तेमाल किया था. लेकिन यहां यह जानना ज़रूरी है कि सिम कार्ड का इस्तेमाल करने वाले ऐसे फोन बंद हो जाने के बाद भी खोजे जा सकते हैं.

युद्ध से सबक

पहले से ही रूस यूक्रेन युद्ध का अनुभव आधुनिक सेनाओं के लिए महत्वपूर्ण सबक देने वाला रहा है. ड्रोन, टैंक रोधी मिसाइलों और सटीक हमला करने वाले हथियारों के बीच प्रतियोगिता वाले मामलों के अलावा, यह जंग असल में साइबर युद्ध से संबंधित है. अपने तमाम प्रभावशाली आधुनिकीकरण और इलेक्ट्रॉनिक और साइबर युद्ध की ज्ञात क्षमताओं के बावज़ूद, रूस के लिए साइबर युद्ध लड़ना मुश्किल होने जा रहा है. बेशक हम यह नहीं जानते कि किस हद तक यूक्रेन को अमेरिका और ब्रिटेन जैसे साइबर जंग में महारथ रखने वाली ताक़तें फिलहाल मदद कर रही हैं.

युद्ध के मैदान में कमांड और नियंत्रण के विकेंद्रीकरण के साथ-साथ तेज़ी से हथियारों और सैनिकों के मूवमेंट को सुनिश्चित करना कोई नई बात नहीं है लेकिन यूक्रेन जंग के अनुभव से यह पता चलता है कि इन क्षेत्रों में कोशिशों को और मज़बूत बनाने की ज़रूरत है. दूसरा डिज़िटल सिस्टम को दुरूस्त करने से जुड़ा है जिससे साइबर क्षेत्र में खड़े होने वाले दुश्मन से सीधा मुक़ाबला करने की पर्याप्त क्षमता हो. इसके साथ ही ईडब्ल्यू कर्मियों की गुणवत्ता का भी महत्व है, क्योंकि साइबर युद्ध के मैदान में ग़लतियों के लिए बेहद कम जगह है, ख़ासकर तब जब आप नियंत्रण वाले इलाक़े में आगे बढ़ना चाहते हैं. ऐसा करने के लिए अगली पीढ़ी के सिस्टम में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीक को भी शामिल करना होगा.

साइबर युद्ध के मैदान में ग़लतियों के लिए बेहद कम जगह है, ख़ासकर तब जब आप नियंत्रण वाले इलाक़े में आगे बढ़ना चाहते हैं. ऐसा करने के लिए अगली पीढ़ी के सिस्टम में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीक को भी शामिल करना होगा.

एक और महत्वपूर्ण सबक यह है कि निजी क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका है, ख़ासकर साइबर युद्ध के क्षेत्र में. इसके अलावा स्पेसएक्स जैसी कंपनियां जिनके पास स्टारलिंक उपग्रह है, उसमें आम नागरिक सॉफ्टवेयर पेशेवर काम करते हैं, जिन्हें रियल टाइम के आधार पर अपने नेटवर्क पर डिज़िटल हमलों से लड़ने की ज़रूरत होती है. निजी क्षेत्र की कंपनियों ने पहले ही चीन में एक ख़ास मुक़ाम हासिल कर ली है जिसकी शुरुआत व्यावसायिक मक़सद से हुई थी और अब वे दो उपग्रह स्थापित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ में सितंबर 2020 के आवेदन के साथ निजी इंटरनेट के क्षेत्र में दाख़िल हो रही हैं, जिसके तहत एलईओ में कुल 13,000 उपग्रह के समूह स्थापित किए जाने हैं.

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