अमेरिका के इंडो-पैसिफिक कमांड के नए प्रमुख एडमिरल सैमुअल पापारो ने पिछले दिनों बयान दिया कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) के हमले से ताइवान को बचाने की अमेरिका की रणनीति ‘हेलस्केप’ नाम के एक सिद्धांत के इर्द-गिर्द घूमती है. ये सिद्धांत पूरे ताइवान स्ट्रेट में मल्टी-डोमेन एट्रिटेबल ड्रोन की व्यापक तैनाती की बात करता है. एडमिरल पापारो का बयान नौसैनिक युद्ध में ड्रोन के एक महत्वपूर्ण हथियार बनने के मौजूदा रुझान के बारे में बताता है. यूरोप और मिडिल ईस्ट में चल रहे संघर्षों में ध्यान देने योग्य सामरिक सफलता प्राप्त करने के लिए गैर-बराबरी वाली ताकतों ने ड्रोन का इस्तेमाल किया है. वैसे तो नौसैनिक अभियानों के लिए पिछले कुछ समय से ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है लेकिन एक तरफा कामिकेज़ (आत्मघाती) की तरह के हमलों में ड्रोन का उपयोग मौजूदा समय का घटनाक्रम है. इसके अलावा पारंपरिक नौसैनिक बल हाइब्रिड बेड़ों, जिनमें पारंपरिक युद्ध पोत और ड्रोन होते हैं, को एकीकृत और संचालित करना शुरू कर रहे हैं. मानव ऑपरेटर और ड्रोन के साथ कभी-कभी ड्रोन के बीच बिना किसी बाधा के मल्टी-डोमेन कमांड और कंट्रोल की सुविधा देने के लिए नेटवर्क कम्युनिकेशन भी बदल रहा है. चूंकि ये घटनाक्रम आधुनिक नौसैनिक युद्ध की गतिशीलता को नया आकार दे रहे हैं, ऐसे में ये लेख ड्रोन के विकास और नौसैनिक रणनीति पर उसके असर के बारे में मौजूदा संवाद को समझने की कोशिश कर रहा है.
वैसे तो नौसैनिक अभियानों के लिए पिछले कुछ समय से ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है लेकिन एक तरफा कामिकेज़ (आत्मघाती) की तरह के हमलों में ड्रोन का उपयोग मौजूदा समय का घटनाक्रम है.
ड्रोन के विकास में मौजूदा रुझान
दुनिया भर के मज़बूत नौसैनिक बलों ने बेहद टिकाऊ अनमैन्ड एरियल व्हीकल (UAV), अनमैन्ड सरफेस व्हीकल (USV) और अनमैन्ड अंडरवॉटर व्हीकल (UUV) को विकसित करने के लिए कार्यक्रमों में निवेश किया है. इन मानवरहित सिस्टम के विकास की रणनीति का लक्ष्य अंतत: ऐसे प्लैटफॉर्म तैयार करना है जो मौजूदा समय में पेट्रोल एयरक्राफ्ट, डेस्ट्रॉयर और पनडुब्बी जैसे परंपरागत नौसैनिक एसेट को सौंपे गए मुश्किल मिशन को पूरा कर सकते हैं. UAV ने जहां घातक टक्कर के लिए महाद्वीपीय युद्ध के माहौल में अभियान से जुड़ी तैनाती का अनुभव किया है वहीं समुद्री क्षेत्र में अनमैन्ड मिशन ओशन फ्लोर मैपिंग, महत्वपूर्ण समुद्री इंफ्रास्ट्रक्चर की निगरानी, इंटेलिजेंस, निगरानी एवं टोह, माहौल की खुफिया तैयारी और बारूदी सुरंग के ख़िलाफ़ कदमों जैसे गैर-घातक मिशन तक सीमित रहे हैं.
धीरे-धीरे नौसेनाएं ड्रोन को ऑटोनोमस क्षमताओं से लैस करके बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के पहले से तय मिशन को अंजाम देने के लिए सक्षम बनाना चाहती हैं. इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए नौसैनिक बल मददगार तकनीकों जैसे कि AI सक्षम मशीन लर्निंग एल्गोरिदम, क्वॉन्टम-एनक्रिप्टेड कम्युनिकेशन नेटवर्क और वाइड बैंडविड्थ अकाउस्टिक (ध्वनिक) एंड विज़ुअल सेंसर में निवेश कर रहे हैं. नौसेनाएं मल्टी-डोमेन स्वार्मिंग की अवधारणा पर भी काम कर रही हैं जहां अलग-अलग क्षेत्रों- हवाई, ज़मीन और अंडरग्राउंड - में कई अनमैन्ड एसेट एक एनक्रिप्टेड बैटलस्पेस नेटवर्क के ज़रिए जुड़ेंगे ताकि निर्धारित मिशन के लिए ऑटोनोमस कोऑर्डिनेशन यानी स्वतंत्र तालमेल कर उसे पूरा किया जा सके. इसी तरह युद्ध के मैदान में असर को बढ़ाने के लिए कमांड, कंट्रोल, कम्प्यूटिंग, कम्युनिकेशन, साइबर, इंटेलिजेंस, सर्विलांस, रिकॉनेसा (टोह) और टारगेटिंग (C5ISRT) सिस्टम की खोज की जा रही है. इसका लक्ष्य तेज़, मज़बूत, बंटी हुई मारक श्रृंखला तैयार करना है जो विवादित समुद्री माहौल में युद्ध के मैदान में अपनी श्रेष्ठता लगातार बरकरार रख सके.
कामिकेज़ ड्रोन की बढ़ती संख्या
अमीर देशों के द्वारा किए जा रहे उच्च-स्तरीय विकास कार्यक्रमों के विपरीत यूक्रेन और यमन के गैर-बराबरी वाले बल तेज़ी से कम लागत वाले एट्रिटेबल ड्रोन बना रहे हैं. कमर्शियल UAV और USV में विस्फोटक पेलोड जोड़कर अनमैन्ड सिस्टम को कामिकेज़ ड्रोन में बदला जा रहा है जो हमले को घातक बनाने के लिए अपने लक्ष्य के साथ तेज़ असर का उपयोग करते हैं. चूंकि ये ड्रोन इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग और स्पूफिंग (धोखा देना) के मामले में असुरक्षित हैं और इनके ख़राब होने की दर ज़्यादा है, इसलिए ये अपने मिशन को पूरा करने के लिए बड़ी संख्या में काम करते हैं. उनकी रेंज भी सीमित होती है और आम तौर पर इन्हें एक सैटेलाइट या रेडियो लिंक के ज़रिए ऑनशोर (तटवर्ती) प्लैटफॉर्म से रिमोट के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है. हालांकि कई कामिकेज़ ड्रोन में ऑपरेटर के साथ संपर्क टूटने के बाद भी लक्ष्य की पहचान करने और उन पर हमला करने की क्षमता हो सकती है.
बेहद टिकाऊ ड्रोन के तेज़ विकास और सीखने की स्थिति की तुलना में कामिकेज़ ड्रोन ज़्यादातर पहले से तैयार कमर्शियल सिस्टम होते हैं जिन्हें आसानी से बनाया और ऑपरेट किया जा सकता है. इन्हें चलाने वाली यूक्रेन की सेना और हूती के लड़ाके युद्ध के मैदान से हासिल फीडबैक के आधार पर इनमें लगातार बदलाव कर रहे हैं.
बेहद टिकाऊ ड्रोन के तेज़ विकास और सीखने की स्थिति की तुलना में कामिकेज़ ड्रोन ज़्यादातर पहले से तैयार कमर्शियल सिस्टम होते हैं जिन्हें आसानी से बनाया और ऑपरेट किया जा सकता है. इन्हें चलाने वाली यूक्रेन की सेना और हूती के लड़ाके युद्ध के मैदान से हासिल फीडबैक के आधार पर इनमें लगातार बदलाव कर रहे हैं. युद्ध से प्रेरित ये खोज ज़्यादा दूरी और बड़े पेलोड के साथ बहुउद्देशीय USV के विकास की तरफ ले गई है जैसे कि यूक्रेन में मगूरा V5 और सी बेबी और यमन में तूफान-1. ख़बरों से पता चलता है कि UUV के लिए भी इसी तरह की खोज चल रही है. इन कामिकेज़ प्लैटफॉर्म का बुनियादी स्वरूप आसानी से बड़ी मात्रा में उत्पादन की सुविधा प्रदान करता है जो कि एक तरह से हर किसी के ड्रोन युद्ध में सक्षम होने का प्रतिनिधित्व करता है.
रणनीतिक रूप से इन कामिकेज़ ड्रोन ने इस्तेमाल करने वालों को बड़े पैमाने पर नतीजे मुहैया कराए हैं. काला सागर में इन समुद्री ड्रोन ने बेहद सक्षम रूसी नौसेना के ख़िलाफ़ यूक्रेन की रणनीति को मदद पहुंचाई है जिसकी वजह से रूस की तरफ से नौसैनिक नाकाबंदी का प्रभावी ढंग से मुकाबला किया जा सका है. वहीं लाल सागर में हूती बलों ने गज़ा में इज़रायल के सैन्य अभियान की प्रतिक्रिया के रूप में बाब अल-मंदेब स्ट्रेट के ज़रिए लाल सागर से गुज़रने वाले वाणिज्यिक जहाज़ों को निशाना बनाने में इन कामिकेज़ ड्रोन का इस्तेमाल किया है. लाल सागर में मालवाहक जहाज़ों को सुरक्षित करने की कई देशों की कोशिशों के बावजूद हूती बल वैश्विक समुद्री वाणिज्य के लिए महत्वपूर्ण शिपिंग रूट से जहाजों को जाने से लगातार रोक रहे हैं. यूक्रेन और हूती- दोनों ने दिखाया है कि देश में निर्मित कम लागत के ड्रोन असमान नौसैनिक युद्ध के लिए एक शानदार प्लैटफॉर्म हैं.
‘हेलस्केप’ जैसी स्थिति
‘हेलस्केप’ वास्तव में अमेरिकी नौसेना के द्वारा ताइवान स्ट्रेट में चीन की नौसैनिक बढ़त को ख़त्म करने के लिए नेटवर्क केंद्रित मल्टी-डोमेन एट्रिटेबल ड्रोन के झुंड को तैनात करने की एक रणनीति है. अमेरिकी नौसेना का मानना है कि असमान सिस्टम की ये व्यापक तैनाती चीन के आक्रमण को रोकेगी जिससे अमेरिका और उसके साझेदार बलों को पूरी तरह से जवाबी आक्रमण तैयार करने के लिए समय मिल जाएगा. इस रणनीति के समर्थन में अमेरिका की रक्षा राज्य मंत्री कैथलीन हिक्स ने सितंबर 2023 में ‘रेप्लिकेटर इनिशिएटिव’ का एलान किया जिसका लक्ष्य 18 से 24 महीनों की समय-सीमा के भीतर “कई हज़ार के पैमाने पर और अनेक क्षेत्रों में एट्रिटेबल, ऑटोनोमस सिस्टम की तैनाती” है. जून 2024 में अमेरिका के रक्षा विभाग ने USV के लिए 49 अलग-अलग कंपनियों को 984 मिलियन अमेरिकी डॉलर की कीमत का ठेका दिया. ये इस बात का संकेत है कि ‘हेलस्केप’ रोकथाम के संदेश से कहीं ज़्यादा है.
रेप्लिकेटर इनिशिएटिव अमेरिका की ड्रोन उत्पादन क्षमता, जो चीन से काफी पीछे है, के लिए बेहद ज़रूरी रफ्तार मुहैया कराती है. वर्तमान में चीन कमर्शियल और मिलिट्री ड्रोन के उत्पादन में दुनिया में सबसे आगे है और वो ताइवान की नाकेबंदी के लिए ड्रोन के अपने झुंडों को तैनात करने की रणनीति तैयार कर रहा है.
रेप्लिकेटर इनिशिएटिव अमेरिका की ड्रोन उत्पादन क्षमता, जो चीन से काफी पीछे है, के लिए बेहद ज़रूरी रफ्तार मुहैया कराती है. वर्तमान में चीन कमर्शियल और मिलिट्री ड्रोन के उत्पादन में दुनिया में सबसे आगे है और वो ताइवान की नाकेबंदी के लिए ड्रोन के अपने झुंडों को तैनात करने की रणनीति तैयार कर रहा है. चीन की सेना अक्सर ताइवान के इर्द-गिर्द वायुसेना के लड़ाकू जहाजों के साथ ड्रोन तैनात करती है और इसे वो लड़ाई की तैयारी के लिए साझा गश्त बताती है. इसके अलावा जनवरी 2023 में चीन ने दुनिया के पहले समुद्री ड्रोन करियर झू हाई यून के लॉन्च का एलान किया. चीन के द्वारा एक ऑटोनोमस ड्रोन करियर की तैनाती से पता चलता है कि महत्वपूर्ण तकनीकों में अमेरिका और चीन के बीच क्षमता का अंतर कम हो रहा है. कुछ प्रमुख क्षेत्रों में तो चीन रिसर्च और डेवलपमेंट के मामले में आगे भी है. ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच ड्रोन युद्ध की स्थिति में क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी, साइबर टेक्नोलॉजी, स्वार्मिंग टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोनोमी में प्रगति युद्ध के मैदान में सफलता तय करेगी.
भविष्य के मुद्दे: नौसैनिक बेड़े की संरचना और सामरिक स्थिरता
जैसे-जैसे अलग-अलग देश विभिन्न नौसैनिक अभियानों के लिए परंपरागत हथियारों के साथ तेज़ी से UAV, USV और UUV की तैनाती कर रहे हैं, वैसे-वैसे नौसैनिक बल की संरचना को मानव और मानवरहित प्लैटफॉर्म के बीच संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता होगी. इसके साथ-साथ मैन-मशीन को जोड़ने वाले प्रोटोकॉल की ज़रूरत होती है. ‘डिस्ट्रीब्यूटेड मेरिटाइम ऑपरेशन’ की अमेरिकी नौसेना की अवधारणा में पहले से ही अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए ज़मीनी कार्रवाई वाले ग्रुप की तरफ कदम बढ़ाने की परिकल्पना की गई है जो कि करियर स्ट्राइक ग्रुप के आसपास नौसैनिक ताकत केंद्रित करने की उसकी पुरानी रणनीति से अलग है. अगर नौसैनिक बल की संरचना में एयरक्राफ्ट करियर और पनडुब्बी जैसे महत्वपूर्ण एसेट की तुलना में AI सक्षम अलग-अलग मानवरहित प्लैटफॉर्म को ज़्यादा अहमियत मिलती है तो बेड़ों की फंडिंग, विकास, निर्माण, ट्रेनिंग, तैनाती, संचालन, रख-रखाव और कमांड के मामले में बहुत अधिक बदलाव होंगे.
मानवरहित सिस्टम से भरपूर भविष्य में नौसेनाओं को काउंटर-ड्रोन और काउंटर-ड्रोन तकनीकों का मुकाबला करने वाले तकनीकों को विकसित करने पर ध्यान देने की ज़रूरत होगी. समुद्री माहौल में कामिकेज़ ड्रोन से पैदा ख़तरे ने पारंपरिक रूप से तैयार नौसैनिक बलों की श्रेष्ठता को समाप्त कर दिया है और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक जैमिंग या उच्च-शक्तिशाली माइक्रोवेव और डायरेक्टेड एनर्जी वेपन के ज़रिए इन ड्रोन का मुकाबला नौसैनिक बलों के लिए महत्वपूर्ण हो जाएगा. इसके अलावा व्यापक दबदबा हासिल करने के लिए हवाई ड्रोन के साथ इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर पेलोड भी फिट किया जा सकता है. साइबर हमलों के मामले में भी ड्रोन असुरक्षित होते हैं जो कि नेटवर्क से जुड़े झुंड के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जहां एक ड्रोन को हैक करने से पूरा युद्ध क्षेत्र ख़तरे में पड़ सकता है. इसके उलट ड्रोन बनाने वालों को ऐसी तकनीकों को शामिल करने की आवश्यकता है जो साइबर और इलेक्ट्रॉनिक हमलों से बचाने में मदद करती हैं.
समुद्री क्षेत्र में ड्रोन का तेज़ी से इस्तेमाल महत्वपूर्ण रूप से सामरिक स्थिरता पर असर डालेगा. अप्रैल 2024 में ईरान ने अभी तक का सबसे बड़ा ड्रोन हमला शुरू किया. इस दौरान इज़रायल में एक से अधिक टारगेट पर एक साथ हमले के लिए सैकड़ों ड्रोन और युद्ध सामग्रियां तैनात की गईं. अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और जॉर्डन के बलों की मदद से इज़रायल अपने अत्याधुनिक एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस के ज़रिए ईरान के हमले से ख़ुद को बचाने में सफल रहा लेकिन फिर भी वो सभी हवाई हथियारों को इंटरसेप्ट करने में नाकाम रहा. ये हमला एक नमूना है कि कैसे मानवरहित प्रणालियां गैर-परंपरागत युद्ध में धुरी बन सकती हैं. अलग-अलग देश मानवरहित हथियारों को तैनात कर सकते हैं, उनका मुकाबला कर सकते हैं और उन पर निशाना साध सकते हैं. इस दौरान वो ये मानकर चल सकते हैं कि उनकी कार्रवाई युद्ध की पारंपरिक सीमाओं के नीचे होगी. लेकिन किसी दुर्घटना या गलत अनुमान से तनाव बढ़ सकता है जिसके कारण पारंपरिक और सामरिक हथियारों का इस्तेमाल किया जा सकता है.
वैसे तो जटिल मानवरहित प्रणालियों को शामिल करने वाले युद्ध अभ्यासों और रणनीतियों को नौसैनिक अभ्यासों और प्रदर्शनियों में दिखाया गया है लेकिन वास्तविक समय में उन्हें अंजाम देना अभी भी बाकी है.
नौसैनिक युद्ध में लगातार बदलाव हो रहा है और मानवरहित प्लैटफॉर्म और उससे जुड़ी नुकसानदेह तकनीकों ने इस क्षेत्र में नए आयामों को जोड़ा है लेकिन समुद्री सुरक्षा का बुनियादी स्वरूप पहले जैसा ही बना हुआ है. वैसे तो जटिल मानवरहित प्रणालियों को शामिल करने वाले युद्ध अभ्यासों और रणनीतियों को नौसैनिक अभ्यासों और प्रदर्शनियों में दिखाया गया है लेकिन वास्तविक समय में उन्हें अंजाम देना अभी भी बाकी है. दुनिया भर के नौसैनिक रणनीतिकारों को नौसैनिक युद्ध में इस विकास पर बारीकी से नज़र रखने की ज़रूरत है क्योंकि भू-राजनीतिक और तकनीकी विकास एक महत्वपूर्ण चरण के शुरू होने का इशारा करते हैं. अमीर नौसैनिक बलों और गैर-बराबरी वाले उद्देश्यों की तलाश करने वाले बलों के बीच विरोधाभासी विकास के दृष्टिकोण दिखाते हैं कि निकट भविष्य में ख़रीद की रणनीतियों को लचीला बनाने और नियोजित एवं सामरिक मानवरहित प्लैटफॉर्म के बीच संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता होगी. चाहे अलग-अलग देशों की नौसेनाएं कम टिकाऊ कामिकेज़ ड्रोन या एग्नोस्टिक पेलोड के साथ अधिक टिकाऊ ड्रोन को विकसित करने का फैसला लें लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि मानवरहित नौसैनिक युद्ध का ज़माना आ गया है.
तुनीर मुखर्जी एशियाई सुरक्षा के विषय पर रिसर्चर हैं और उनकी विशेषज्ञता दक्षिण एशिया में नौसैनिक आधुनिकीकरण पर है.
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