Expert Speak Raisina Debates
Published on Sep 19, 2024 Updated 0 Hours ago

जिस प्रकार से मंगोलिया ने अपनी राष्ट्रीय कार्य योजना में सोयुज वोस्तोक पाइपलाइन परियोजना को शामिल नहीं किया है, उसने कहीं कहीं रूस द्वारा पूर्व में तेल और गैस का निर्यात करने की कोशिशों को झटका लगा है, साथ ही इसने रूस को चिंता में डाल दिया है.

रूस की साइबेरिया-2 पाइपलाइन: चीन की ओर ऊर्जा आपूर्ति में रुकावटें

मंगोलिया की सरकार ने अगस्त के महीने में वर्ष 2024 से 2028 के लिए अपना नेशनल एक्शन प्रोग्राम जारी किया था. मंगोलिया सरकार की इस व्यापक विकास रणनीति योजना का मकसद देश में चल रही विकास परियोजनाओं को आगे बढ़ाने में आने वाली दिक़्क़तों को दूर करना और उन परियोजनाओं को ज़ल्द से ज़ल्द पूरा करने के लिए गंभीरता से प्रयास करना है. सरकार की इस राष्ट्रीय कार्य योजना में चार लक्ष्य और कुल 593 नियोजित गतिविधियां शामिल हैं. हैरानी की बात यह है कि सरकार की इस राष्ट्रीय कार्य योजना की प्राथमिकताओं में से देश की प्रमुख परियोजना यानी सोयुज वोस्तोक पाइपलाइन का निर्माण शामिल नहीं है. ज़ाहिर है कि 962 किलोमीटर लंबी यह गैस पाइपलाइन परियोजना पावर ऑफ साइबेरिया -2 पाइपलाइन का हिस्सा है, जो कि पश्चिमी साइबेरिया के यमल में स्थित गैस क्षेत्रों को मंगोलिया से होते हुए चीन से जोड़ती है. पावर ऑफ साइबेरिया -2 पाइपलाइन परियोजना कुल 2,594 किलोमीटर लंबी है और इसके ज़रिए रूस की प्राकृतिक गैस निर्यात क्षमता में 50 बिलियन क्यूबिक मीटर (bcm) की वृद्धि होगी. रूस द्वारा पहले से ही पावर ऑफ साइबेरिया-1 पाइपलाइन के माध्यम से 38 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस का निर्यात चीन को किया जा रहा है. पावर ऑफ साइबेरिया-1 पाइपलाइन याकुतिया से प्रारंभ होती है और रूस-चीन सीमा पर स्थित ब्लागोवेशचेन्स्क से होते हुए चीन में दाखिल होती है. (चित्र 1.1 देखें) मंगोलिया सरकार द्वारा जो व्यापक राष्ट्रीय कार्य योजना बनाई गई है, उसमें इस अहम पाइपलाइन के निर्माण को शामिल नहीं करने से इस बात की चिंता बहुत बढ़ गई है कि कहीं रूस की पावर ऑफ साइबेरिया -2 परियोजना बंद न हो जाए. जिस तरह से मास्को व बीजिंग के बीच पिछले एक साल से इस प्रमुख पाइपलाइन का निर्माण शुरू करने को लेकर सहमति नहीं बन पाई है और दोनों देश इससे जुड़े कई मुद्दों पर उलझे हुए हैं, तब यह चिंता और भी गहरी हो जाती है.

 

चित्र 1.1: पावर ऑफ साइबेरिया-2 पाइपलाइन परियोजना का प्रस्तावित मार्ग

Source: Financial Times

 

यह पाइपलाइन इतनी महत्वपूर्ण क्यों है?

 

मास्को सोवियत संघ के समय से ही पूर्वी और मध्य यूरोप के लिए ऊर्जा का एक अहम स्रोत रहा है. सोवियत संघ के जमाने में तेल आपूर्ति करने वाली ड्रूज़बा पाइपलाइन और गैस आपूर्ति करने वाली उरेंगॉय-पोमरी-उज़होरोड पाइपलाइन पूर्वी व मध्य यूरोप की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करती थी. यूएसएसआर के टूटने के बाद पश्चिमी यूरोप के साथ रूस के रिश्तों में काफ़ी प्रगाढ़ता आई है. इतना ही नहीं, यूरोपियन यूनियन (EU) रूस के प्राकृतिक संसाधनों यानी तेल और गैस के लिए एक प्रमुख बाज़ार बनकर सामने आया है. वर्ष 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले तक रूस के पश्चिमी यूरोपीय देशों के साथ संबंध बहुत मज़बूत थे और ये देश रूसी तेल व गैस के बड़े मार्केट बने हुए थे. लेकिन 2010 के दशक के अंत में चीन का तेज़ी से उभार हुआ और उसकी ऊर्जा की मांग में इज़ाफा हुआ. इसके बाद पूर्व में ऊर्जा के नए बाज़ार उभरे. ऐसे में मास्को अपने तेल और गैस की बिक्री के लिए यूरोप पर निर्भरता कम करने और दूसरे ऊर्जा बाज़ारों तक अपनी पहुंच सुनिश्चित करने के मकसद से पूर्व तक गैस व तेल की आपूर्ति के लिए नई पाइपलाइन बनाने की कोशिश कर रहा था. इसी को देखते हुए मास्को ने याकुतिया-खाबरोवस्क-व्लादिवोस्तोक पाइपलाइन का निर्माण करने की ओर क़दम आगे बढ़ाए. 2012 में रूस की इस पाइपलाइन परियोजना को पावर ऑफ साइबेरिया (PoS) पाइपलाइन का नाम दिया गया था. पॉवर ऑफ साइबेरिया पाइपलाइन का संचालन रूसी की गैस आपूर्ति सेक्टर की बड़ी कंपनी गैज़प्रोम द्वारा किया जाता है, जो रूस में स्थित याकुतिया के कोविक्ता और चायंदा गैस फील्ड से प्राकृतिक गैस की आपूर्ति चीन के होइहे तक करती है. वहां से चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन द्वारा संचालित हेइहे-शंघाई पाइपलाइन शुरू होती है, जो चीन में आगे के इलाक़ों में गैस की आपूर्ति करती है.

2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले तक रूस के पश्चिमी यूरोपीय देशों के साथ संबंध बहुत मज़बूत थे और ये देश रूसी तेल व गैस के बड़े मार्केट बने हुए थे. लेकिन 2010 के दशक के अंत में चीन का तेज़ी से उभार हुआ और उसकी ऊर्जा की मांग में इज़ाफा हुआ.

रूस और चीन के बीच वर्ष 2014 में 30 वर्षों के लिए गैस की आपूर्ति के लिए 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. पावर ऑफ साइबेरिया पाइपलाइन का निर्माण वर्ष 2015 में शुरू हुआ था. इसके चार वर्षों के बाद इस पाइपलाइन के ज़रिए रूस से चीन को गैस की आपूर्ति शुरू हुई. गौरतलब है कि वर्ष 2014 में जब रूस ने क्रीमिया पर हमला कर उस पर अपना अधिकार जमा लिया था, उसके पश्चात रूस के यूरोपीय संघ से रिश्तों में खटास पड़ गई. इसके बाद रूसी ऊर्जा पर निर्भर यूरोपीय देश सावधान हो गए और उससे दूरी बनाने लगे. बावज़ूद इसके जर्मनी और रूस के बीच समुद्र के भीतर नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन बनाने के लिए एक समझौता हुआ था. इस पाइपलाइन के निर्माण का मकसद नॉर्ड स्ट्रीम 1 के साथ-साथ गैस की आपूर्ति को 110 बीसीएम तक बढ़ाना था. नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन बनाने का काम हालांकि, वर्ष 2021 में पूरा हो गया था, इसके बावज़ूद यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के चलते जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ ने 22 फरवरी 2022 को इसका सर्टिफिकेशन प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी. ज़ाहिर है कि यूरोप रूसी ऊर्जा आपूर्ति पर निर्भरता समाप्त करने की कोशिशों में जुटा है और वर्ष 2027 तक रूस से ख़रीदी जाने वाली ऊर्जा को धीरे-धीरे समाप्त करने की योजना पर काम कर रहा है. गौरतलब है कि रूस का यूक्रेन के साथ पांच साल का गैस ट्रांज़िट एग्रीमेंट भी इस साल ख़त्म हो रहा है. इसी समझौते के ज़रिए रूस से यूक्रेन के भू-भाग से होते हुए यूरोप को गैस की आपूर्ति की जाती है. कुल मिलाकर रूस जिन देशों को अपनी प्राकृतिक ऊर्जा की बिक्री करता है, उनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है, ऐसे में मास्को को अपनी प्राकृतिक गैस को बेचने के लिए चीनी बाज़ार की बहुत अधिक ज़रूरत है. इन्हीं सब बातों के चलते रूस ने नवंबर 2014 में चीन के साथ ऊर्जा की आपूर्ति बढ़ाने के लिए एक व्यापक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. रूस से चीन तक पाइपलाइन के ज़रिए ऊर्जा की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए काफ़ी माथापच्ची की गई और इसके लिए कई मार्गों के बारे में विचार किया गया. इसी माथापच्ची के दौरान अल्टाई रीज़न में पाइपलाइन बनाने की योजना बनाई गई, जिसमें कज़ाकिस्तान में एक संभावित पाइपलाइन संयंत्र बनाने की योजना भी शामिल थी. काफ़ी विचार-विमर्श करने के बाद रूस से चीन तक गैस पाइपलाइन बनाने के लिए मंगोलिया पर ध्यान केंद्रित किया गया. इसकी वजह यह थी कि मंगोलिया की भौगोलिक स्थिति इस पाइपलाइन निर्माण के लिए सबसे बेहतर थी.

 

पावर ऑफ साइबेरिया-2 गैस पाइपलाइन

 

रूस के प्रधानमंत्री दिमित्री मेदवेदेव ने वर्ष 2019 में मंगोलिया की यात्रा की थी और उसी दौरान पावर ऑफ साइबेरिया-2 (PoS-2) पाइपलाइन को शुरू करने का ऐलान किया गया था. पहले इसे अल्टाई पाइपलाइन के नाम से जाना जाता था. रूसी गैस कंपनी गज़प्रोम और मंगोलिया की सरकार के बीच इस गैस पाइपलाइन की व्यावहारिकता का आकलन करने के लिए एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए थे. इसके अगले साल ही गज़प्रोम कंपनी ने PoS-2 पाइपलाइन की रूपरेखा और सर्वेक्षण का कार्य शुरू कर दिया. PoS-2 के लिए सर्वेक्षण आदि का कार्य जनवरी 2022 में पूरा हो गया था. इसके बाद मंगोलिया में यह पाइपलाइन किस जगह से दाख़िल होगी और कहां-कहां से गुजरेगी इसके बारे में ऐलान किया गया. मंगोलिया में स्थानीय निकायों या क्षेत्रों (aimags) को इस गैस पाइपलाइन के निर्माण के दौरान समन्वय करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी. इतना ही नहीं, जुलाई 2022 में मंगोलिया के प्रधानमंत्री एल. ओयुन-एर्डीन ने कहा था कि सोयुज वोस्तोक पाइपलाइन का निर्माण 2024 में शुरू हो सकता है. देखा जाए तो, मंगोलिया की सरकार में इस गैस पाइपलाइन परियोजना के लेकर ज़बरदस्त उत्साह था और वहां की सरकार ने जमकर इसका प्रचार भी किया. बावज़ूद इसके जिस प्रकार से मंगोलिया की सरकार ने अपनी ताज़ा राष्ट्रीय कार्य योजना में इस पाइपलाइन परियोजना को शामिल नहीं किया है, वो रूस के लिए निश्चित तौर पर बड़ा झटका है.

PoS-2 के लिए सर्वेक्षण आदि का कार्य जनवरी 2022 में पूरा हो गया था. इसके बाद मंगोलिया में यह पाइपलाइन किस जगह से दाख़िल होगी और कहां-कहां से गुजरेगी इसके बारे में ऐलान किया गया. 

देखा जाए तो फरवरी 2022 के बाद चीन रूसी ऊर्जा का एक प्रमुख ख़रीदार बनकर सामने आया है. गौरतलब है कि चीन में प्रतिवर्ष गैस की खपत क़रीब 400 बीसीएम है और समय से साथ इसके बढ़ने की उम्मीद है. चीन अपनी ज़रूरत की ज़्यादातर गैस तुर्कमेनिस्तान से आयात करता है. उम्मीद है कि वर्ष 2025 तक रूस से PoS-1 पाइपलाइन के ज़रिए चीन को आपूर्ति की जाने वाली गैस की मात्रा 38 बीसीएम तक पहुंच जाएगी, वहीं PoS-2 पाइपलाइन बनने के बाद रूस से चीन को आपूर्ति की जाने वाली गैस में 50 बीसीएम की और बढ़ोतरी होगी. इतना ही नहीं, रूस के सखालिन से चीन तक पावर ऑफ साइबेरिया-3 नाम की तीसरी पाइपलाइन बनने के बाद चीन को 10 बीसीएम गैस की अतिरिक्त आपूर्ति भी होने लगेगी. चीन को इन पाइपलाइन के ज़रिए इतनी गैस की बिक्री करने के बावज़ूद, यह कुल मिलाकर वर्ष 2021 में यूरोप को रूस द्वारा बेची गई 155 बीसीएम गैस से बहुत कम है. ज़ाहिर है कि अगर चीन को गैस की सप्लाई करने वाली इन पाइपलाइन परियोजनाओं के निर्माण में देरी होती है, तो रूस की आय पर ज़बरदस्त असर पड़ेगा. जब से यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ है, उसके बाद से कई यूरोपीय देशों ने रूस से पाइप्ड नेचुरल गैस का आयात कम दिया है, जबकि रूस से एलएनजी के आयात को जारी रखा है. (चित्र 1.2 देखें) रूस से आयात की जाने वाली एलएनजी पर यूरोपीय संघ द्वारा 14वें दौर के प्रतिबंध लगाने के बाद, अब तमाम यूरोपीय देशों ने रूस से ख़रीदी जाने वाली एलएनजी की मात्रा को कम कर दिया है. इसी सब के चलते रूसी गैस कंपनी गज़प्रोम को वर्ष 2023 में 7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुक़सान झेलना पड़ा था. रूस का यूक्रेन के साथ गैस ट्रांज़िट समझौता इस साल आगे बढ़ने की उम्मीद न के बराबर है, ऐसे में रूस को अपनी गैस बेचने के लिए यूरोप से अलग दूसरे बाज़ारों की आवश्यकता है. इन्हीं सब वजहों से PoS-2 रूस के लिए एक बेहद अहम परियोजना है.

 

चित्र 1.2: रूस से होने वाला प्राकृतिक गैस का निर्यात

 

स्रोत: वैश्विक ऊर्जा नीति केंद्र, एनर्जी इंस्टीट्यूट, एस एंड पी ग्लोबल ENTSOG, इंटरफैक्स

 

गैस पाइपलाइन परियोजना ठप क्यों हो गई?

 

रूस द्वारा चीन को गैस आपूर्ति करने से संबंधित यह पाइपलाइन परियोजना काफ़ी आगे बढ़ चुकी है. रूसी गैस कंपनी गज़प्रोम और चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन के बीच इस परियोजना को लेकर सहमति बन चुकी है और दोनों के बीच गैस की कीमत, आपूर्ति की जाने वाली गैस की मात्रा, परियोजना के निर्माण में होने वाले ख़र्च के बंटवारे और तमाम दूसरे ज़रूरी मसलों पर बातचीत अभी चल रही है. चीन चाहता है कि गज़प्रोम उसे उसी क़ीमत पर गैस बेचे, जिस पर रूस में बेचती है, यानी 60 अमेरिकी डॉलर प्रति 1000 क्यूबिक मीटर के रेट पर. वहीं दूसरी तरफ देखा जाए तो PoS-1 पाइपलाइन के माध्यम से रूस जो गैस बेचता है, उसके दाम 257 अमेरिकी डॉलर प्रति 1,000 क्यूबिक मीटर हैं. (तालिका 1 देखें) एक और मुद्दा है, जिसको लेकर बीजिंग काफ़ी परेशान है, वो यह है कि गज़प्रोम कंपनी मंगोलिया में इस पाइपलाइन परियोजना पर अपना पूरा नियंत्रण चाहती है. चीन ऐसा नहीं होने देना चाहता है, क्योंकि उसे डर है कि ऐसा होने पर मंगोलिया में रूस का दबदबा बढ़ जाएगा.

चीन कहीं न कहीं लाभप्रद स्थिति में है और इसकी वजह से रूस के साथ गैस ख़रीद और अन्य मुद्दों पर पुख्ता बातचीत नहीं हो पा रही है. ज़ाहिर है कि इस साल मई के महीने में रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने बीजिंग की यात्रा की थी और अगस्त में चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग मास्को के दौरे पर गए थे

इसके अलावा भी चीन और रूस के सामने कई दूसरे मुद्दे भी हैं. जैसे कि रूस को कई प्रकार के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे में उनकी अनदेखी करते हुए रूस से गैस ख़रीदने के एवज में उसे भुगतान किस प्रकार किया जाए. रूस से ख़रीदी जाने वाली गैस सबसे सस्ती है, बावज़ूद इसके चीन ने सेंट्रल एशिया-चाइना पाइपलाइ के माध्यम से मध्य एशियाई देशों से गैस आयात कर रहा है. इसमें से चीन द्वारा ख़रीदी जाने वाली गैस में सबसे अधिक हिस्सेदारी तुर्कमेनिस्तान की है. ज़ाहिर है कि लाइन डी नाम की सेंट्रल एशिया-चाइना पाइपलाइन की चौथी लाइन का निर्माण भी किया जा रहा है. इसके निर्माण के बाद तुर्कमेनिस्तान द्वारा चीन को अतिरिक्त 30 बीसीएम नेचुरल गैस का निर्यात किया जाने लगेगा. ऐसा होने पर चीन द्वारा तुर्कमेनिस्तान से आयात की जाने वाली गैस की मात्रा 85 बीसीएम हो जाएगी. गौरतलब है कि प्राकृतिक गैस की अपनी ज़रूरत को पूरा करने के लिए बीजिंग के पास कई स्रोत हैं और इस प्रकार से चीन पर गैस ख़रीदने के लिए कोई दबाव नहीं बन पाता है. यानी चीन कहीं न कहीं लाभप्रद स्थिति में है और इसकी वजह से रूस के साथ गैस ख़रीद और अन्य मुद्दों पर पुख्ता बातचीत नहीं हो पा रही है. ज़ाहिर है कि इस साल मई के महीने में रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने बीजिंग की यात्रा की थी और अगस्त में चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग मास्को के दौरे पर गए थे, इसके बावज़ूद PoS-2 पाइपलाइन परियोजना पर कोई मुकम्मल समझौता परवान नहीं चढ़ पाया है. इतना ही नहीं, जिस तह से मंगोलिया की सरकार ने अपनी राष्ट्रीय कार्य योजना से सोयुज वोस्तोक पाइपलाइन प्रोजेक्ट को बाहर कर दिया है, वो भी इस परियोजना की सफलता की राह में एक बड़ी अड़चन बनकर उभरा है.

 

तालिका 1: रूसी प्राकृतिक गैस निर्यात का औसत मूल्य

देश 

2024 में गैस का प्रति हजार क्यूबिक मीटर रूसी निर्यात मूल्य (औसत) (अमेरिकी डॉलर में)

घरेलू मूल्य

$60

यूरोपियन यूनियन

$320.3

चीन

$257

तुर्किये

$320.3

बेलारूस

$127.52

उजबेकिस्तान

$160

कज़ाकिस्तान

$180

किर्गिस्तान

$150

नोट: मूल्य निर्धारण अलग-अलग हो सकता है

स्रोत: लेखक का अपना शोध

 

रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने सितंबर के पहले सप्ताह में मंगोलिया की यात्रा की थी और उनका यह दौरा न केवल इस पाइपलाइन परियोजना से जुड़े तमाम मसलों को सुलझाने, बल्कि इस परियोजना को मंगोलियाई सरकार की राष्ट्रीय कार्य योजना में दोबारा शामिल कराने के लिहाज़ से अहम साबित हो सकता है. ज़ाहिर है कि रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग की वजह से रूसी गैस कंपनी गज़प्रोम पहले ही ज़बरदस्त घाटे में चल रही है, ऐसे में अगर इस पाइपलाइन परियोजना के निर्माण में देरी होती है, तो इससे रूसी गैस के निर्यात में काफ़ी कमी आएगी. जिस तरह से मास्को PoS-2 परियोजना को ज़ल्द से ज़ल्द पूरा करना चाहता है, उससे प्रतीत होता है कि वो अपने फायदे के लिए चीन को हर हाल में गैस का निर्यात करना चाहता है. इसके साथ ही मास्को की PoS-2 परियोजना को लेकर ज़ल्दबाजी यह भी बताती है कि यूरोप के ऊर्जा बाज़ारों में उसकी पहुंच लगातार घट रही है और वो अपनी ऊर्जा बिक्री से होने वाली कमाई में आ रही कमी को लेकर बेहद चिंतित है, साथ ही नए ऊर्जा बाज़ारों के लिए पूर्व की ओर टकटकी लगाकर देख रहा है. जहां तक नई दिल्ली की बात है, तो वैश्विक स्तर पर मची भू-राजनीतिक उठापटक के बावज़ूद फिलहाल भारत और रूस के रिश्तों पर कोई आंच नहीं आई है, लेकिन जिस प्रकार से रूस और चीन की नज़दीकी लगातार बढ़ रही है, उससे संभावना है कि भविष्य में रूस का झुकाव भारत के बजाए चीन की ओर अधिक हो सकता है और वो भारतीय हितों को दरकिनार भी कर सकता है. अगर ऐसा होता है, तो आने वाले वर्षों में भारत के लिए यह बड़ी चिंता का सबब बन सकता है.


राजोली सिद्धार्थ जयप्रकाश ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च असिस्टेंट हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.