Published on Jul 22, 2022 Updated 0 Hours ago

डिजिटल कनेक्टिविटी किसी भी लिहाज से एक वरदान से कम नहीं हैं, इसके बावज़ूद कई देश पीआरसी यानी पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के उपग्रह कार्यक्रम से उत्पन्न ख़तरे को लेकर चिंतित हैं.

पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (PRC) का उपग्रह कार्यक्रम: एक बढ़ता ख़तरा

रूसी महासंघ ने जब अपने इंटरनेट को बंद कर दिया, तो स्टारलिंक ने यूक्रेन के लोगों को एक नई उम्मीद प्रदान की थी. इसने ना केवल यूक्रेन को दुनिया के बाकी हिस्सों से जुड़े रहने की सुविधा प्रदान की, बल्कि यूक्रेन को युद्ध की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपग्रह सेवाओं का उपयोग करने में भी सक्षम बनाया. इसमें बम ले जाने वाले ड्रोन्स का ऑपरेशन भी शामिल है. इन घटनाक्रमों को लेकर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (पीआरसी) की तरफ से भी चिंता जताई गई है. अमेरिकी सेना से कथित संबंधों की पड़ताल के लिए पीआरसी ने स्टारलिंक कंपनी की जांच शुरू कर दी है. पीआरसी द्वारा ऐसा तब किया जा रहा है, जबकि उसके पास भी इसी प्रकार का एक उपग्रह इंटरनेट कार्यक्रम है. पीआरसी का अंतरिक्ष इन्फ्रास्ट्रक्चर कार्यक्रम “स्पष्ट नागरिक-सैन्य एकीकरण दृष्टिकोण” के अनुरूप कार्य करता है. यह लेख पीआरसी की ज़मीनी डिजिटल बुनियादी ढांचा योजनाओं, 5जी एवं आईओटी में उपग्रह संचार की भूमिका और आधुनिक लड़ाई के बदलते स्वरूप के संदर्भ में पीआरसी के उपग्रह कार्यक्रम के ख़तरों की विस्तृत पड़ताल करता है.

यह लेख पीआरसी की ज़मीनी डिजिटल बुनियादी ढांचा योजनाओं, 5जी एवं आईओटी में उपग्रह संचार की भूमिका और आधुनिक लड़ाई के बदलते स्वरूप के संदर्भ में पीआरसी के उपग्रह कार्यक्रम के ख़तरों की विस्तृत पड़ताल करता है.

पीआरसी का डिजिटल कार्यक्रम

कई उद्योगों और व्यक्तियों के लिए डिजिटल कनेक्टिविटी एक वरदान के समान रही है. इस नई डिजिटल क्रांति के बढ़ते हुए प्रभाव ने इसकी पहुंच की स्वाभाविक असमानताओं को भी सामने लाया है. कहा जाता है कि पीआरसी की डिजिटल सिल्क रोड (डीएसआर) पहल ने इस मुश्किल के समाधान का प्रयास किया. दावा किया गया है कि इस पहल के तहत विकासशील क्षेत्रों, जैसे अफ्रीका में “6 मिलियन घरों में ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्शन पहुंचाया गया है,…900 मिलियन से अधिक स्थानीय लोगों तक इंटरनेट की सुविधा पहुंचाई है.” हालांकि, डीएसआर के तहत आने वाली परियोजनाओं को “डिजिटल उपनिवेशवाद” कहा गया है. इस तरह की परियोजनाएं पीआरसी को “अहम खुफ़िया और और बौद्धिक संपदा (आईपी) से जुड़ी सूचनाओं तक पहुंच प्रदान करती हैं, अगर मेजबान देश द्वारा इन सूचनाओं को रोकने के लिए कोई विशेष इंतज़ाम नहीं किए गए हों.”

डीएसआर और दूसरे प्रयासों के बावज़ूद डिजिटल असमानता बनी हुई है. 2.9 बिलियन लोगों को पास इंटरनेट का उपयोग करने की सुविधा नहीं है. 5G के वादे को हक़ीकत में बदलने के लिए, ज़मीन पर बिछाई जाने वाली फाइबर ऑप्टिक पर आधारित प्रणालियां “पर्याप्त नहीं होंगी“. उपग्रह ब्रॉडबैंड के रूप में स्थलीय इन्फ्रास्ट्रक्चर का एक बेहतर विकल्प आज उपलब्ध है. वैसे तो टेलीकॉम नेटवर्क में जियोस्टेशनरी ऑर्बिट (GSO) का उपयोग लगभग तीन दशकों से किया जा रहा है. उल्लेखनीय है कि GSOs की बैंडविड्थ क्षमता बहुत ज़्यादा होती है, लेकिन इसके लिए छोटी-बड़ी तमाम तरह की ढांचागत सुविधाओं की ज़रूरत होती है और बहुत देरी भी इसकी एक बड़ी समस्या है. दूसरी ओर, लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) उपग्रह का समूह, जमीन पर बिछाई जाने वाली ऑप्टिकल फाइबर विकल्पों की तुलना में अधिक तेज़ सर्विस देता है. LEO समूह “विश्व स्तर पर उपग्रह बैंडविड्थ की लागत में तेज़ी से कमी कर सकता है.” सैटेलाइट ब्रॉडबैंड भी “आधारभूत ढांचा खड़ा करने की चुनौतियों को दरकिनार” कर सकता है. ये चुनौतियां स्थलीय कनेक्टिविटी विकल्पों को प्रभावित कर रही हैं. हालांकि, 5G नेटवर्क में LEO सिस्टम के एक बड़ी भूमिका निभाने की उम्मीद है.

इस तरह की परियोजनाएं पीआरसी को “अहम खुफ़िया और और बौद्धिक संपदा (आईपी) से जुड़ी सूचनाओं तक पहुंच प्रदान करती हैं, अगर मेजबान देश द्वारा इन सूचनाओं को रोकने के लिए कोई विशेष इंतज़ाम नहीं किए गए हों.”

LEO इंटरनेट का इस्तेमाल कई अहम उद्योगों द्वारा किया जा रहा है. उदाहरण के तौर पर खनन उद्योग के कुछ हिस्सों में अंतरिक्ष द्वारा प्रदान किए गए स्थानीयकरण और संचार क्षमताओं पर आधारित स्वचालित उपकरणों का उपयोग करना शुरू कर दिया है. क्षेत्रों और राष्ट्रों की सीमाओं में आईओटी कनेक्टिविटी के बदलाव में सैटेलाइट इंटरनेट को एक “प्रमुख शक्ति” देने वाले के रूप में कार्य करने वाला माना जाता है. इनमें “तेल और गैस, खनन और परिवहन” जैसे महत्वपूर्ण उद्योग शामिल हैं.

इन्हीं सब ख़ूबियों की वजह से सैटेलाइट इंटरनेट मार्केट के वर्ष 2025 तक 126 बिलियन यूरो तक पहुंचने की संभावना है. कई और कंपनियां भी “सस्ती हाई-स्पीड इंटरनेट सेवाएं” देने के लिए बड़े उपग्रह समूहों की स्थापना की तरफ कार्य कर रही हैं. इसमें स्पेस-एक्स, अमेज़न और वनवेब जैसी कंपनियां भी शामिल हैं. हाल के दिनों में, पीआरसी की कंपनियां भी इस उद्योग की ओर रुख़ कर रही हैं.

पीआरसी की कंपनियां LEO उपग्रह समूह विकसित करने में अपनी “महत्वाकांक्षाओं” को  दिखा रही हैं. कथित तौर पर ये परियोजनाएं पीआरसी की सरकार के स्तर पर “समर्थित और यहां तक कि संचालित” भी हैं. चीनी सरकार के स्वामित्व वाली CASIC एक वैश्विक नेटवर्क विकसित कर रही है. इसी प्रकार दूसरे सरकारी स्वामित्व वाले निगम, जैसे CASC ने “Hongyan” नाम की इसी तरह की परियोजना की योजना बनाई है. गैलेक्सी स्पेस 2025 तक 140+ 5G सक्षम उपग्रहों के एक समूह की योजना बना रहा है. उन्होंने अपने मिनी-स्पाइडर उपग्रह समूह के लिए सात उपग्रहों को अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित किया है. 2022 तक GW 13,000 से अधिक उपग्रहों का एक नेटवर्क विकसित करने में जुटा हुआ है.

पीआरसी की अंतरिक्ष इंटरनेट कंपनियों ने भी भविष्य में आईओटी-आधारित उपग्रह इंटरनेट एप्लीकेशन्स की मांग को स्वीकार किया है. CASIC, एक 80-उपग्रह वाला मजबूत आईओटी- विशिष्ट उपग्रह इंटरनेट समूह विकसित कर रहा है. सरकारी स्वामित्व वाले उद्यम के पूर्व कर्मचारियों द्वारा स्थापित कंपनी गुओडिअन गाओके, 38 LEO उपग्रहों द्वारा गठित आईओटी- केंद्रित नैरोबैंड उपग्रह समूह विकसित कर रही है.

बढ़ती चिंताएं 

पीआरसी के स्थलीय नेटवर्क आधारभूत ढांचे के बारे में जो भी चिंताएं जताई जाती थीं, वे अब उसके अंतरिक्ष इंटरनेट कार्यक्रम को लेकर भी जताई जाने लगी हैं. पीआरसी विशेषज्ञ इस “नए  सूचना इन्फ्रास्ट्रक्चर” के दोहरे उपयोग की संभावनाओं और इसके “अत्यंत महत्वपूर्ण सैन्य उपयोग” पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. इसका मकसद “अंतरिक्ष-ज़मीन एकीकृत त्रि-आयामी संरचना” का निर्माण करना है. इस प्रकार की संरचना, उपग्रह इंटरनेट प्रयासों के साथ 5G संचार और आईओटी जैसी टेक्नोलॉजी को जोड़ती है. पीआरसी की राज्य परिषद ने “संचार उपग्रहों और अन्य संचार आधारभूत ढांचे के निर्माण” और अंतरिक्ष-स्थलीय एकीकरण सूचना नेटवर्क परियोजनाओं को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से “राष्ट्रीय रक्षा के लिए विज्ञान, प्रौद्योगिकी और उद्योग को प्राथमिकता वाले क्षेत्रों” के रूप में चिन्हित किया है.

सैटेलाइट ब्रॉडबैंड प्रौद्योगिकी “राष्ट्रीय नियमन और निगरानी को बाईपास” कर सकती है. इसका अर्थ यह है कि दुनियाभर में सरकारों की “इंटरनेट उपयोग को सीमित करने या उसे प्रतिबंधित करने” की शक्ति या अधिकार पर ही एक प्रकार से रोक लगा देना.

सैटेलाइट ब्रॉडबैंड प्रौद्योगिकी “राष्ट्रीय नियमन और निगरानी को बाईपास” कर सकती है. इसका अर्थ यह है कि दुनियाभर में सरकारों की “इंटरनेट उपयोग को सीमित करने या उसे प्रतिबंधित करने” की शक्ति या अधिकार पर ही एक प्रकार से रोक लगा देना. इस प्रकार की क्षमता हासिल करने को एक प्रकार से सत्तावादी शासनों के लिए बेहद नुकसानदेह माना जाता है. हालांकि, इससे सत्तावादी शासनों के “सूचना नियंत्रण” के अधिकार के विरुद्ध, प्रौद्योगिकी का उपयोग कर लोकतंत्र को आगे बढ़ाने और उसे मज़बूत करने की भी संभावना है.

इसी प्रकार से सैटेलाइट ब्रॉडबैंड उद्योग में पश्चिमी कंपनियों का उतरना और तेज़ी से आगे बढ़ना, पीआरसी के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. एक तरह से बिना जांची-परखी यानी अनफिल्टर्ड सूचनाएं “चीनी नागरिकों को न सिर्फ प्रभावित कर सकती हैं, बल्कि सीसीपी की सत्ता पर पकड़ को भी ढीली कर सकती हैं”. इन्हीं सब बातों ने पीआरसी को अपना स्वदेशी उपग्रह ब्रॉडबैंड नेटवर्क विकसित करने के लिए प्रेरित किया है. चीन की यह पहल अब केवल घरेलू नहीं है, बल्कि इस नियंत्रण को देश के बाहर भी अपने हित में इस्तेमाल किया जा रहा है. NIL 2017  सभी पीआरसी की कंपनियों को विदेशी ख़ुफिया कार्यों में मदद करने के लिए बाध्य करता है. इस प्रकार सरकारें पीआरसी की दुष्प्रचार और प्रोपेगंडा में लिप्त वेबसाइटों को प्रतिबंधित करने की शक्ति खो देंगे. यानी कि यह पीआरसी अंतरिक्ष इंटरनेट सेवा का लाभ प्राप्त करने के लिए दिए जा रहे “मुफ्त इंटरनेट” के विपरीत होगा.

पीआरसी के उपग्रह इंटरनेट कार्यक्रम का पहला उद्देश्य सूचना को नियंत्रित करना है, जिसे “21वीं सदी की शक्ति का आधार” कहा जाता है. इस प्रकार से पीआरसी की सैटेलाइट ब्रॉडबैंड पहल को “वैश्विक डेटा संग्रह इकोसिस्टम” विकसित करने के पीआरसी के प्रयासों के विस्तार की ओर एक सशक्त कदम समझा जा सकता है. पीआरसी का मानना है कि “सूचनाओं से भरे युद्ध के मैदान में” “डेटा (数据)” एक प्रकार से “खून (血液)” की तरह कार्य करता है. पीआरसी की “याओगन [遥感] डेटा नीति” साफ तौर पर “सैन्य और नागरिक क्षेत्रों के मध्य उपग्रह के संसाधनों और डेटा को साझा करने” के महत्त्व पर जोर डालती है. विदेशी निगरानी को लेकर बने कानून को अमल में लाने के लिए सरकार द्वारा संचालित उपग्रह प्रदाताओं का लाभ उठाया जा सकता है. ज़ाहिर है कि पीआरसी के सरकारी स्वामित्व वाले उद्यमों का पहले भी विदेशी डेटा निगरानी को कानूनी रूप प्रदान करने के लिए लाभ उठाया जा चुका है. NIL 2017 का इस्तेमाल समान उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए निजी ऑपरेटरों को बाध्य करने के लिए भी किया जा सकता है.

पीआरसी की उपग्रह इंटरनेट कंपनियां बाहरी ग्राहकों के लिए इंटरनेट सेवा प्रदाता (आईएसपी) के रूप में काम करती हैं. इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के पास विशाल और “अत्यधिक-उपयोगी” यूजर डेटा संग्रहित करने की क्षमता होती है. आईएसपी “अपने ग्राहकों द्वारा देखी गई वेबसाइटों, उनके द्वारा देखे जाने वाले शो, उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले ऐप, उनकी ऑनलाइन गतिविधियों, उनके रियल-टाइम स्थानों और ऐतिहासिक स्थानों, उनके द्वारा सर्च किए गए सवालों और उनके द्वारा किए गए ईमेल की सामग्री को ट्रैक कर सकते हैं”. इसमें “क्रॉस-डिवाइस ट्रैकिंग” के अलावा, उपयोगकर्ताओं के “स्वभाव से जुड़े प्रोफाइल बनाना” भी शामिल हैं. पीआरसी के आईएसपी पहले भी सेंसरशिप के लिए झूठी सामग्री सिस्टम में डाल चुके हैं और ट्रैकर्स को यूजर नेटवर्क ट्रैफ़िक में शामिल कर चुके हैं. यह डेटा पीआरसी के सूचना संचालन गतिविधि को बढ़ावा देगा. पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का राजनयिक तंत्र “दूसरे पक्ष की बातचीत की रणनीति और तरीकों” को समझने के लिए भी इस तरह के डेटा का फायदा उठाता है. यह सब कूटनीतिक वार्ताओं में बढ़त हासलि करने की नीयत से किया जाता है.

अधिकतर पारंपरिक आईएसपी के पास इस प्रकार की डेटा निगरानी से बचने के लिए कई प्रकार के तरीके होते हैं. इनमें हाइपरटेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल सिक्योर (HTTPS) कूट लेखन, DoH और वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (VPN) शामिल हैं. हालांकि, पीआरसी ने इनमें के कई तकनीकों पर पाबंदी लगा दी है. उदाहरण के लिए, पीआरसी ने उन्नत प्रोटोकॉल पर निर्भर कूट लिखित HTTPS कनेक्शनों को ब्लॉक कर दिया है.

पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का राजनयिक तंत्र “दूसरे पक्ष की बातचीत की रणनीति और तरीकों” को समझने के लिए भी इस तरह के डेटा का फायदा उठाता है. यह सब कूटनीतिक वार्ताओं में बढ़त हासलि करने की नीयत से किया जाता है.

यह प्रोजेक्ट पीआरसी की कार्रवाई की धारदार बनाता है, साथ ही उसके प्रभाव को भी बढ़ाता है. कुछ उपग्रह समूहों की आईओटी-केंद्रित प्रकृति, संबंधित बुनियादी ढांचे को ख़तरे में डालती है. पीआरसी के “सूचना से भरे युद्ध और खुफिया युद्ध [झिनेंगुआ झान झेंग, 智能化战争]” की “एकीकृत” प्रकृति “आईओटी सूचना प्रणाली द्वारा रेखांकित” है. यह ख़तरा सबसे पहले साधारण सेवा में गंभीर गड़बड़ी के रूप में सामने आता है. जहां तक नाजुक बुनियादी ढांचे की बात है तो, “यदि अंतरिक्ष पर निर्भर कोई भी सेवा बाधित हो जाती है, तो अफरा-तफरी फैलना निश्चित है.

दूसरा, पीआरसी मैलवेयर डिलीवरी की सुविधा प्रदान कर सकता है. पीआरसी आधारित आईएसपी पहले भी अपने उपयोगकर्ताओं को मैलवेयर डिलीवरी कर चुके हैं. यह ख़तरा सिर्फ़ इन सेवाओं के ग्राहकों तक ही सीमित नहीं हैं. पीआरसी के सुरक्षा-खुफिया तंत्र के कुछ लोग पहले से ही “सैन्य-नागरिक एकीकरण प्रयोग परिदृश्य” को अपनाने की मांग कर रहे हैं. समायोजित करने योग्य और अपडेट करने योग्य “सॉफ्टवेयर-परिभाषित उपग्रहों” को शामिल करने जैसी पहलें इसी मकसद को लेकर हैं. सॉफ्टवेयर परिभाषित उपग्रह ऑपरेटरों को “आरएफ आवृत्ति योजनाओं को परिभाषित करने” की अनुमति दे सकते हैं. रोडियो दृढ़ीकरण की कमी वाले पीआरसी से बाहर के सैटेलाइट ब्रॉडबैंड ऑपरेटर समग्र हमले के ख़तरे में हैं. अक्सर इस तरह के हमलों को एक नक्षत्रमंडल में सैटेलाइट अर्थ स्टेशनों या उपग्रहों को हाईजैक कर अंजाम दिया जाता है. पीआरसी इसी तर्ज पर अन्य उपग्रह ब्रॉडबैंड प्रदाताओं पर हमला करने के लिए अपने सॉफ्टवेयर-परिभाषित नेटवर्क का लाभ उठा सकता है.

इस पूरे विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाता है कि पीआरसी का उपग्रह ब्रॉडबैंड किस प्रकार अपने प्रतिद्वंदियों के लिए ख़तरे पैदा करता है. यही कारण है कि अधिकतर देश इस तरह की सेवाओं पर एक “किल स्विच” की मांग करते हैं. भारत को भी इस विकल्प का उपयोग करना चाहिए. 

इस पूरे विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाता है कि पीआरसी का उपग्रह ब्रॉडबैंड किस प्रकार अपने प्रतिद्वंदियों के लिए ख़तरे पैदा करता है. यही कारण है कि अधिकतर देश इस तरह की सेवाओं पर एक “किल स्विच” की मांग करते हैं. भारत को भी इस विकल्प का उपयोग करना चाहिए. इसके अलावा भारत और उसके सहयोगियों को पीआरसी की सेवाओं के जवाब में एक विश्वसनीय विकल्प की पेशकश करनी चाहिए. यह बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में शामिल देशों के लिए विशेष रूप से एक सच्चाई है, जो इससे खास तौर पर कमज़ोर होंगे. पीआरसी के उपग्रह इंटरनेट कार्यक्रम का आगे बढ़ना, अंतरिक्ष संचार के शस्त्रीकरण बढ़ने की वजह बनता है. अगर देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर संचार की बड़ी प्रणालियां, एक देश की सरकारी और सैन्य क्षमताओं में वृद्धि की अगुवाई करती हैं, इसके साथ ही सरकारों के लिए “जबरदस्त आर्थिक” लाभ का भी साधन बनती हैं. ऐसे में यह आवश्यक है कि भारत को इस सूचना इन्फ्रास्ट्रक्चर के रणनीतिक महत्त्व को, इसकी क़मीत को समझना चाहिए. भारत को अपने उपग्रह ब्रॉडबैंड ऑपरेटरों द्वारा एकत्र किए गए डेटा का फायदा उठाने के लिए विशेष नीतियां बनानी चाहिए.

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