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Published on Apr 26, 2024 Updated 0 Hours ago

बांग्लादेश में हाल ही में संपन्न हुए संसदीय चुनावों के बाद जिस प्रकार से वहां विपक्ष की ओर से "इंडिया आउट" अभियान को हवा दी जा रही है, वो कहीं न कहीं विपक्षी दलों द्वारा देश में अपनी खोई हुई राजनीति ज़मीन को हासिल करने की कोशिश लग रही है. 

जानिए, क्या है बांग्लादेश में विपक्ष के "इंडिया आउट" अभियान के पीछे की राजनीति और इसका भू-राजनीति पर असर!

बांग्लादेश में "इंडिया आउट" अभियान ज़ोर पकड़ रहा है. मीडिया में छपी खबरों की मानें तो इस बार बांग्लादेश में रमजान के महीने में इंडिया आउट अभियान की वजह से भारतीय सामानों की बिक्री और मांग में गिरावट दर्ज़ की गई थी. ज़ाहिर है कि इस साल जनवरी में शेख हसीना के चौथी बार देश का प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद से ही वहां के प्रमुख विपक्षी दल बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी (BNP) की अगुवाई में इंडिया आउट अभियान शुरू किया गया था और देखते-देखते बीएनपी का यह भारत विरोधी अभियान पूरे देश में अपनी जड़ें जमाने लगा. बांग्लादेश में हुए चुनावों के दौरान सत्तारूढ़ अवामी लीग (AL) पर व्यापक स्तर पर गड़बड़ियां करने के आरोपों के बावज़ूद भारत ने जो रुख अपनाया, उसको लेकर बांग्लादेश में कई हलकों में असंतोष व्याप्त है. बताया जा रहा है कि बांग्लादेश में लोकतांत्रिक वातावरण को कथित तौर पर कमज़ोर करने और देश के आंतरिक मामलों में दख़ल देने को लेकर, वहां भारत के लोग निशाने पर हैं. जिस प्रकार से मालदीव में इंडिया आउट अभियान चलाया गया था, उससे सीख लेते हुए बांग्लादेश में भी सोशल मीडिया पर अपनी पकड़ रखने वाले लोगों द्वारा #IndiaOut और #BoycottIndia जैसे हैशटैग चलाए जा रहे हैं और इसके ज़रिए भारत के विरुद्ध लोगों को भड़काया जा रहा है एवं एकजुट किया जा रहा है. निसंदेह तौर पर भारत विरोधी इस अभियान के पीछे वहां का प्रमुख विपक्षी दल यानी बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी है और कहीं न कहीं यह अपने राजनीतिक मंसूबों को पूरा करने के लिए उसकी एक आख़िरी कोशिश दिखाई पड़ती है.

 

“इंडिया आउट” अभियान का राजनीतिकरण

 

बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी के भारत के साथ कभी भी अच्छे संबंध नहीं रहे हैं. पूर्व के घटनाक्रमों पर नज़र डालने से पता चलता है कि भारत के हितों को चोट पहुंचाने और घरेलू राजनीति में अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिए बीएनपी ने हमेशा भारत के ख़िलाफ़ जहर उगला है और भारत विरोधी नीतियों को हवा देने का काम किया है. जहां तक वर्तमान में बीएनपी द्वारा बांग्लादेश में ज़ोर-शोर से चलाए जा रहे "इंडिया आउट" अभियान की बात है, तो उसे इसकी प्रेरणा मालदीव में चलाए गए इसी प्रकार के भारत विरोधी अभियान से मिली है. ज़ाहिर है कि मालदीव में सत्ता पर काबिज प्रोग्रेशिव अलायंस, जब वहां विपक्ष में था, तब उसके द्वारा इसी प्रकार का इंडिया आउट आंदोलन चलाया गया था. मालदीव की तरह ही बांग्लादेश में भी विपक्षी पार्टियां लोकतंत्र को तहस-नहस करने के आरोप लगाकर सरकार पर हमलावर हैं और भारत के साथ नज़दीकी के लिए उसे कटघरे में खड़ा कर रही हैं. इतना ही नहीं, बांग्लादेश के विपक्षी दल देश में हुए चुनावों में कथित तौर पर हुई गड़बड़ी, देश की घरेलू राजनीति एवं देश के संस्थानों में दख़ल देने और दोनों देशों के बीच लंबे वक़्त से लटके द्विपक्षीय मुद्दों का हल नहीं निकालने को लेकर भारत पर आरोप मढ़ रहे हैं और उसकी अलोचना कर रहे हैं. इसके अलावा भारत और उसकी नीतियों की आलोचना की आड़ में धर्म का भी जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है.

 बताया जा रहा है कि बांग्लादेश में लोकतांत्रिक वातावरण को कथित तौर पर कमज़ोर करने और देश के आंतरिक मामलों में दख़ल देने को लेकर, वहां भारत के लोग निशाने पर हैं. 

बांग्लादेश की राजनीति देखा जाए तो दो ध्रुवों में बंटी है और बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी के नेताओं की मंशा प्रधानमंत्री शेख हसीना एवं भारत के विरुद्ध देशवासियों की राष्ट्रवादी भावनाओं को भड़काकर देश के राजनीतिक माहौल का फायदा उठाने की है. बीएनपी ने वर्ष 2014 के चुनावों एवं 2023 में हुए संसदीय चुनावों का बहिष्कार किया था, इसके अलावा वर्ष 2018 के चुनावों में उसका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं था. ऐसे में लगता है कि बीएनपी भारत के ख़िलाफ़ इंडिया आउट अभियान चलाकर अगले चुनावों की तैयारी कर रही है और अपनी स्थिति मज़बूत करने में जुटी है. बीएनपी द्वारा इंडिया आउट अभियान में धर्मिक भावनाओं को उकसाया जा रहा है, साथ ही राष्ट्रवाद का मुद्दा उछालकर भारत विरोधी एवं सत्ता विरोधी लहर को मज़बूत किया जा रहा है. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ऐसा करके बीएनपी सत्ता पर काबिज शेख हसीना सरकार के ख़िलाफ़ माहौल बनाकर उसे कमज़ोर करने की कोशिश कर रही है. उल्लेखनीय है कि बीएनपी का यह प्रयास न केवल उसके कट्टर समर्थकों को फिर से एकजुट करने का काम करेगा, बल्कि हसीना सरकार से निराश लोगों को भी लामबंद करने का काम करेगा. इसके अलावा बीएनपी की यह कोशिशें प्रधानमंत्री शेख हसीना का विरोध करने वाले एवं भारत विरोधी हिंसा में शामिल रहे, जैसा की वर्ष 2021 में देखा गया था, जमात-ए-इस्लामी और हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम जैसे कट्टरपंथी संगठनों को भी संतुष्ट करने का काम करेंगी.

 

“इंडिया आउट” अभियान के आर्थिक पहलू

 

इंडिया आउट अभियान के अंतर्गत बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी द्वारा जिस प्रकार से देशवासियों से भारतीय से आयात होने वाले सामानों का बहिष्कार करने का अह्वान किया गया है और बांग्लादेश एवं भारत के प्रगाढ़ द्विपक्षीय आर्थिक रिश्तों पर निशाना साधा गया है, साफ तौर पर उसका मकसद देश की आर्थिक तरक़्क़ी को पटरी से उतारना है. गौरतलब है कि बांग्लादेश की आर्थिक प्रगति सत्तारूढ़ अवामी लीग की राजनीतिक सफलता की सबसे बड़ी वजह है. पिछले पांच दशकों के दौरान बांग्लादेश के आर्थिक हालातों में उल्लेखनीय बदलाव देखने को मिला है. वर्ष 1971 में बांग्लादेश की गिनती दुनिया के सबसे ग़रीब देशों में होती थी, लेकिन धीरे-धीरे प्रगति करते हुए 2015 तक बांग्लादेश निम्न-मध्यम-आय वाले राष्ट्रों की सूची में शामिल हो गया. इतना ही नहीं, वर्ष 2026 तक बांग्लादेश संयुक्त राष्ट्र की सबसे कम विकसित देशों (LDC) की सूची से भी बाहर निकलने के लिए कमर कस चुका है. बांग्लादेश की सरकार द्वारा राष्ट्रीय रणनीतिक योजना ‘विज़न 2041’ तैयार की गई है. विज़न 2041 के तहत सरकार का लक्ष्य अत्यधिक ग़रीबी को देश से पूरी तरह समाप्त करना है, साथ ही वर्ष 2030 तक बांग्लादेश को उच्च-मध्यम वर्ग राष्ट्र का दर्ज़ा दिलाना और वर्ष 2041 तक उच्च आर्थिक राष्ट्र का दर्जा हासिल कराना है.

 

वर्तमान में बांग्लादेश 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था है. जैसे-जैसे बांग्लादेश की इकोनॉमी परवान चढ़ेगी, भारत के साथ इसका व्यापार भी रफ़्तार पकड़ेगा. फिलहाल भारत और बांग्लादेश के बीच जो प्रगाढ़ आर्थिक रिश्ते हैं, उसमें इंडिया आउट अभियान के माध्यम से भारत पर निशाना साधाना और उसकी निंदा करना देखा जाए तो अवामी लीग की नीतियों को कटघरे में खड़ा करना है. उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश की आर्थिक तरक़्क़ी का श्रेय अवामी लीग सरकार की नीतियों को ही दिया जाता है. बीएनपी द्वारा इंडिया आउट अभियान के ज़रिए भारत और बांग्लादेश के आर्थिक रिश्तों का राजनीतिकरण किया जा रहा है. बीते 27 वर्षों के दौरान भारत द्वारा बांग्लादेश को किए जाने वाले निर्यात में 10 प्रतिशत की दर से वार्षिक वृद्धि देखी गई है. वर्ष 1995 में भारत द्वारा बांग्लादेश को किया जाने वाला निर्यात 1.05 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो वर्ष 2022 में बढ़कर 13.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया.

 बांग्लादेश की राजनीति देखा जाए तो दो ध्रुवों में बंटी है और बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी के नेताओं की मंशा प्रधानमंत्री शेख हसीना एवं भारत के विरुद्ध देशवासियों की राष्ट्रवादी भावनाओं को भड़काकर देश के राजनीतिक माहौल का फायदा उठाने की है. 

बांग्लादेश भौगोलिक नज़रिए से भारत का निकटतम पड़ोसी है और निश्चित रूप से इस वजह से दोनों देशों के बीच व्यापारिक गतिविधियां बहुत सहज हैं. बांग्लादेश दक्षिण एशिया में नई दिल्ली का प्रमुख व्यापारिक भागीदार देश है, जबकि ढाका के लिए भारत एशिया में दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश है. जहां तक बांग्लादेश से होने वाले निर्यात की बात है, तो भारत उसके शीर्ष निर्यातक देशों में शामिल है. वित्तीय वर्ष 2022-23 में बांग्लादेश द्वारा भारत को लगभग 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात किया गया था. 2022-23 में दोनों देशों के बीच कुल द्विपक्षीय व्यापार 15.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था. भारत से आयात होने वाली वस्तुओं पर बांग्लादेश की निर्भरता बहुत अधिक है. वर्ष 2022 में भारत द्वारा बांग्लादेश को 13.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का सामान निर्यात किया गया था.

 

भारत और बांग्लादेश अपनी आर्थिक वृद्धि को आगे बढ़ाने के लिए कनेक्टिविटी की मज़बूती पर भी गंभीरता से कार्य कर रहे हैं. दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने 1 नवंबर 2023 को वर्चुअल तरीक़े से बांग्लादेश में भारत की सहायता से निर्मित तीन परियोजनाओं का उद्घाटन किया था. इनमें से एक अगरतला-अखौरा रेल लिंक परियोजना है. यह रेल लिंक परियोजना भारत और बांग्लादेश के बीच न सिर्फ़ कनेक्टिविटी बढ़ाने का काम करेगी, बल्कि दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ाने वाली भी साबित होगी. नई दिल्ली और ढाका ने रेलवे सेक्टर में भी पारस्परिक सहयोग को सशक्त किया है. इसके अलावा बिजली और एनर्जी सेक्टर में भारत और बांग्लादेश के बीच मज़बूत सहयोग दोनों देशों के प्रगाढ़ होते आपसी रिश्तों की मिसाल बन चुका है. वर्ष 2023 में ही भारत-बांग्लादेश मैत्री पाइपलाइन परियोजना का उद्घाटन किया गया था. इसके अतिरिक्त भारत, नेपाल और बांग्लादेश पहली बार एक त्रिपक्षीय बिजली व्यापार समझौते की दिशा में भी आगे बढ़ रहे हैं. इस समझौते के अंतर्गत भारत की ट्रांसमिशन लाइनों का उपयोग करते हुए नेपाल द्वारा बांग्लादेश को 500 मेगावाट (MW) तक पनबिजली की आपूर्ति की जानी है.

 फिलहाल भारत और बांग्लादेश के बीच जो प्रगाढ़ आर्थिक रिश्ते हैं, उसमें इंडिया आउट अभियान के माध्यम से भारत पर निशाना साधाना और उसकी निंदा करना देखा जाए तो अवामी लीग की नीतियों को कटघरे में खड़ा करना है.

बताया जा रहा है कि मौज़ूदा वक़्त में बांग्लादेश बढ़ती मुद्रास्फ़ीति, ऊर्जा की कमी, भुगतान संतुलन में घाटा और राजस्व में कमी जैसी गंभीर आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है. इतना ही नहीं, देश की आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले रेडीमेड गार्मेंट उद्योग में उपयोग होने वाले कच्चे कपास और नॉन-रिटेल शुद्ध कॉटन यार्न के लिए बांग्लादेश भारत पर निर्भर है और इन चीज़ों का ज़्यादातर आयात भारत से ही किया जाता है. बांग्लादेश से निर्यात होने वाले सामान में रेडीमेड गार्मेंट्स का योगदान सबसे अधिक है और इसके अलावा दूसरे सामानों के निर्यात को बढ़ावा देना बांग्लादेश के लिए एक बड़ी आर्थिक चुनौती है. इसके साथ ही बुनियादी ढांचा क्षेत्र को रफ़्तार देना भी सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती है. इसके अतिरिक, बांग्लादेश में जिस प्रकार से आयात को कम करने के लिए क़दम उठाए जा रहे हैं और आर्थिक गतिविधियों में बाधाएं आ रही हैं, उनसे जो संकेत मिल रहे हैं, उनके मुताबिक़ वित्तीय वर्ष 2024 में वास्तविक जीडीपी वृद्धि में कमी आने की संभावना है. बांग्लादेश को वर्ष 2031 तक उच्च-मध्यम-आय वाले राष्ट्र का दर्ज़ा हासिल करने की अपनी कोशिशों को अमली जामा पहनाने के लिए कई रणनीतिक पहलों को प्रमुखता देनी होगी और इसके लिए भारत की सहायता लेनी होगी. बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी को इन हालातों के बीच अपनी राजनीतिक को चमकाने के लिए मौक़ा दिखाई देता है. ज़ाहिर है कि भारत - बांग्लादेश के आर्थिक रिश्तों और द्विपक्षीय व्यापार पर राजनीतिक मकसद से कीचड़ उछालकर, जहां बांग्लादेश की प्रगति में रुकावट पैदा की जा सकता ही, वहीं सत्तारूढ़ अवामी लीग सरकार की साख पर भी सवाल उठाया जा सकता है.

 

नए साझीदारों की तलाश

 

बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी इंडिया आउट अभियान का इस्तेमाल देश के बाहर अपने सहयोगी बनाने के लिए भी कर रही है, यानी इसके ज़रिए ऐसे सहयोगियों को तलाश रही है, जो अगले चुनावों में उसके लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं. बांग्लादेश में इस साल जनवरी में हुए चुनावों के दौरान भारत और चीन ने स्पष्ट रूप से कहा था कि चुनाव बांग्लादेश का आंतरिक मामला है. इससे ऐसा महसूस होता है कि प्रधानमंत्री शेख हसीना की इन दोनों देशों के साथ संतुलन क़ायम रखने की रणनीति और "सभी से दोस्ती, किसी से दुश्मनी नहीं" की नीति ने बीजिंग एवं दिल्ली दोनों को ही उनके पाले में रखा है. हालांकि, चुनाव के दौरान बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी द्वारा अमेरिका पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए प्रधानमंत्री हसीना पर दबाव बनाने के लिए लामबंदी की जा रही थी. ऐसा करने से बीएनपी और उसके इस्लामी कट्टरपंथी सहयोगियों को फायदा हो सकता था. शेख हसीना की जीत के बाद, उन्हें बधाई देने वालों में भारत और चीन पहले देश थे. हालांकि, बांग्लादेश में चुनाव प्रक्रिया की आलोचना करने के बावज़ूद अमेरिका ने शेख हसीना को पीएम बनने पर देर से ही सही, लेकिन बधाई ज़रूर दी.

 

बांग्लादेश में चुनाव के दौरान हुए इन तमाम घटनाक्रमों के बाद वहां इंडिया आउट अभियान की शुरुआत से कुछ अहम संकेत मिलते हैं. पहला, विपक्षी दल बीएनपी द्वारा सत्तारूढ़ अवामी लीग को भारत के प्रमुख रणनीतिक सहयोगी के तौर पर देखा जाता है. ज़ाहिर है कि घरेलू राजनीति में अपनी मज़बूरियों और प्राथमिकताओं के चलते बीएनपी भारतीय हितों के संरक्षण और भारत की चिंताओं को दूर करने में नाक़ाम रही है. यानी बीएनपी यह साबित नहीं कर पाई है कि वो बांग्लादेश में भारतीय हितों पर आंच नहीं आने देगी. चुनाव में शेख हसीना की जीत और उसके बाद बीएनपी द्वारा जिस प्रकार से इंडिया आउट अभियान की शुरूआत की गई, वो कहीं न कहीं भारत और बीएनपी के बीच की इस दूरी को और बढ़ाने का काम करेगी. दूसरा, ऐसा लगता है कि बीएनपी को इस बात का पता चल चुका है कि बांग्लादेश में भारतीय हितों और चिंताओं के विरुद्ध क़दम उठाने को लेकर अमेरिका कतई सहज नहीं है और वो किसी भी सूरत में ऐसा नहीं चाहता है. इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि बीएनपी चाहे लाख कोशिश कर ले, लेकिन उसे अगले पांच वर्षों के दौरान अमेरिका के ज़रिए शेख हसीना सरकार को घेरने में बहुत क़ामयाबी नहीं मिलने वाली है.

 बांग्लादेश के विपक्ष को “इंडिया आउट” अभियान के माध्यम से भले ही वहां सत्तारूढ़ अवामी लीग सरकार के समक्ष चुनौती खड़ी करने का और भारत - बांग्लादेश के बीच मज़बूत साझेदारी को कमज़ोर करने का अवसर मिल रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि इससे बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के डंवाडोल होने का ख़तरा है.

तीसरा, चीन के शेख हसीना सरकार के साथ बहुत प्रगाढ़ संबंध क़ायम हैं, लेकिन बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी के नेताओं को लगता है कि जिस प्रकार मालदीव में इंडिया आउट अभियान सफल रहा है, उसी प्रकार से बांग्लादेश में यह अभियान चलाकर वो चीन को अपने पाले में ला सकते हैं. यही वजह है कि बीएनपी की विदेशी संबंधों की कमेटी (FRC) और स्टैंडिंग कमेटी ने अपने रुख में बदलाव लाते हुए चीन के साथ संबंधों को प्रमुखता देने के संकेत दिए हैं. बीएनपी के आला नेताओं ने चीन के साथ फिर से संपर्क स्थापित करने का निर्णय लिया है और पार्टी के एक वरिष्ठ नेता को इसकी ज़िम्मेदारी सौंपी है. बीएनपी द्वारा जिस प्रकार से एक ओर भारत के विरुद्ध अभियान चलाया जा रहा है और दूसरी ओर उस चीन के साथ गलबहियां करने की कोशिश की जा रही है, जिसके भारत के साथ संबंध बहुत अच्छे नहीं हैं, यह सब कहीं न कहीं उसकी चीन को प्रसन्न करने की क़वायद में सहायक सिद्ध हो सकता है और साथ ही चीनी नेताओं को बीएनपी के साथ संबंध बढ़ाने के लिए रज़ामंद करने में मदद कर सकता है. चौथी बात यह है कि बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी इंडिया आउट अभियान के माध्यम से देश की कट्टरपंथी ताक़तों का समर्थन हासिल कर रही है और ऐसा करके वो पाकिस्तान के लिए बांग्लादेश में मुनासिब ज़मीन तैयार कर रही है. भविष्य में इसका इस्तेमाल भारत के सुरक्षा हितों को हानि पहुंचाने के लिए किया जा सकता है.

 

कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि बांग्लादेश में हाल ही में हुए आम चुनाव में अवामी लीग की जीत के बाद वहां जिस तरह से विपक्ष द्वारा "इंडिया आउट" अभियान शुरू किया गया है, उसने यह बताने का काम किया है कि राजनीति, अर्थनीति और भू-राजनीति किस प्रकार से आपस में जुड़े हुए हैं. ऐसा लगता है कि बांग्लादेश में इंडिया आउट अभियान का पूरी तरह से राजनीतिकरण हो चुका है और जिस प्रकार से मालदीव में इसी तरह के अभियान के ज़रिए विपक्ष ने भारत विरोधी जन भावनाओं को भड़काया था और लाभ उठाया था, बांग्लादेश के विपक्षी दल भी उसी प्रकार का फायदा उठाना चाहते हैं. बांग्लादेश के विपक्ष को “इंडिया आउट” अभियान के माध्यम से भले ही वहां सत्तारूढ़ अवामी लीग सरकार के समक्ष चुनौती खड़ी करने का और भारत - बांग्लादेश के बीच मज़बूत साझेदारी को कमज़ोर करने का अवसर मिल रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि इससे बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के डंवाडोल होने का ख़तरा है.


आदित्य गोदारा शिवमूर्ति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

 श्रुति सक्सेना ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं.

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