किसी भी देश की आर्थिक उन्नति में उसकी श्रम शक्ति को गुणवत्ता देने वाली शिक्षा ही सबसे अहम भूमिका अदा करती है. शिक्षा की वजह से ही बेहतर मानव पूंजी, विकास के अवसर और बेहतर मेहनताना सुनिश्चित होता है,[i] जिसकी वजह से उत्पादकता में उच्च स्तर की वृद्धि हासिल की जा सकती है. इन सभी का संबंध देश के विकास से है, जिसकी गणना सकल घरेलू उत्पाद (GDP).[ii] से की जाती है. इस बात के भी प्रमाण मिले हैं कि अच्छी शिक्षा की वजह से व्यक्तिगत और सामाजिक स्वास्थ्य भी बेहतर रहता है,[iii] और अपराध की दर में कमी आती है.[iv] अत: स्कूल में प्रवेश की दर को बढ़ाने के साथ ही शिक्षा की समग्र गुणवत्ता में सुधार भारत जैसे विकासशील देश की अर्थव्यवस्थाओं के लिए बेहद आवश्यक हो जाता है.
भारत में प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल तक की शिक्षा नि:शुल्क और अनिवार्य होने के बावजूद 6 से 14 वर्ष के आयु वर्ग के 80 प्रतिशत बच्चे ही स्कूल जाते हैं.[v] इसके बावजूद स्कूल तक पहुंच को लेकर असामान्यताएं हैं. जो स्कूल जाते हैं, उनमें भी शैक्षणिक सामग्री और सीखने की अवस्था की विभिन्नताएं हैं, जो जाति, लिंग, सामाजिक श्रेणी और भौगोलिक स्थिति की वजह से तय होती है. 2020-21 में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार प्राथमिक स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की दर एक प्रतिशत है, जबकि माध्यमिक स्कूल तक पहुंचते-पहुंचते यह दर बढ़कर 14 प्रतिशत से ज्यादा हो जाती है.[vi] कम आय वाले घरों के बच्चों को तो और ज्यादा चुनौतियों का सामना करना होता है. एनुअल स्टेटस ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) 2019,[vii] के अनुसार 26 ग्रामीण जिलों में हुए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि पहली कक्षा के केवल 16 प्रतिशत बच्चों को ही तय किए गए विशेष स्तर तक पाठ पढ़ना आता था, जबकि 40 प्रतिशत बच्चों के पास अक्षर पहचानने की मूलभूत गुणवत्ता भी नहीं थी. इसमें भी केवल 41 प्रतिशत बच्चे दो अंकों की संख्या को पहचान पाए थे.
सीखने के ठोस परिणामों पर आधारित शिक्षा प्रणाली के स्वास्थ्य की गणना करने वाला सूचकांक विभिन्न राज्यों के परिणामों की तुलना करने में अहम साधन साबित हो सकता है. चूंकि स्कूली शिक्षा समवर्ती सूची में शामिल विषय है, अत: राज्य स्तर पर शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए तैयार की जाने वाली नीतियां काफी महत्वपूर्ण हो जाती हैं. इसी कारण इस स्टडी का उद्देश्य सब-नेशनल एनालिसिस प्रस्तुत करना है.
स्कूल में दाखिले और स्कूलों के प्रकार या स्कूलों में मौजूद बुनियादी ढांचे जैसे वेरिएबल्स पर विचार नहीं किया गया. इसके अलावा, भारत को इस स्टडी में शामिल भी नहीं किया गया था. ऐसे में भारत के लिए इस तरह की एक स्टडी और उससे भी ज्यादा उसके राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए इस तरह की स्टडी किए जाने की ज्यादा आवश्यकता थी.
इसके परिणाम भारत के स्कूली शिक्षा के परिवेश की विविधता और जटिलताओं को समाहित करते हुए राज्यों और गैर सरकारी सेवा प्रदाताओं को डेटा आधारित निर्णय लेने की महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराएंगे. इसमें गुणवत्ता सुधार रणनीति तैयार होने के बाद बेहतर लक्ष्य निर्धारित करने का समावेश हो सकता है. सूचकांक का निर्माण परिणामों और प्रक्रियाओं दोनों के दृष्टिकोण से किया गया है. इसका उद्देश्य शैक्षणिक परिणामों को परफॉरमेंस, इंफ्रास्ट्रक्चर और इक्विटी की दृष्टि से अनुकूल करने में सहायता करना है, अत: इसे PIE इंडेक्स कहा गया है.
साहित्य समीक्षा
यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) ने 1990 में एक बहुचर्चित एजुकेशन इंडेक्स बनाया था, जिसकी गणना स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्षो [a] और स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों के मध्यमान मूल्यों का उपयोग करके की गई थी. इसमें फाइनल इंडेक्स स्कूली शिक्षा के अपेक्षित और औसत वर्षो के मध्यमान का जियोमेट्रिक मध्यमान है. यह ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स (HDI).[b],[viii] बनाने में उपयोग किए जाने वाले तीन उप-सूचकांकों में से एक है.
UN एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल आर्गेनाईजेशन (UNESCO) ने इंडीकेटर्स (निदेशक) को प्रतिनिधित्व के रूप में इस्तेमाल करते हुए एजुकेशन फॉर ऑल डेवलपमेंट इंडेक्स (EFA डेवलपमेंट इंडेक्स – EDI) भी विकसित किया है, EDI के वेरिएबल्स – प्राथमिक समायोजित शुद्ध नामांकन अनुपात (सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा की गणना के लिए); 15 वर्षो से ऊपर के बच्चों में साक्षरता की दर (वयस्क साक्षरता की गणना के लिए), पांचवीं कक्षा तक शिक्षा प्रणाली में बने रहने की दर (शिक्षा की गुणवत्ता की गणना के लिए) और लिंग समानता इंडेक्स हैं.
इसका उपयोग 115 देशों के लिए किया गया और बाद में उन्हें उच्च, मध्यम और निचली श्रेणी में रखा गया.[ix] यह दोनों सूचकांक देशों को समग्र रूप में देखते हैं. अत: उनकी रैंकिंग देश विशेष की खासियत को नहीं दर्शाती है.
2013 में कल्याणकारी अर्थशास्त्री एंटोनियो विलार[x] ने आर्गेनाईजेशन फॉर इकनोमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD) की एक विश्वव्यापी स्टडी, प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट असेसमेंट (PISA) के डेटा का उपयोग कर एक और एजुकेशनल डेवलपमेंट इंडेक्स (EDI) को विकसित किया. इस सूचकांक में शैक्षणिक उपलब्धियों को लेकर बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया गया है, जिसमें तीन पहलुओं पर विचार किया गया. इसमें प्रदर्शन (भाषा और गणित), समान हिस्सा और गुणवत्ता का समावेश है. इन तीनों पहलुओं की सामान्य वैल्यूज का जियोमेट्रिक मध्यमान ही EDI है. इन तीन पहलुओं के साथ अंतिम सूचकांक के वितरण का OECD देशों के मध्यमान से समतुल्य विश्लेषण किया गया. इस स्टडी से पता चला कि EDI के माध्यम से जो रैंक हासिल की गई वह रैंक PISA के तहत मिले औसत स्कोर को ध्यान में रखकर मिली रैंकिंग से महत्वपूर्ण रूप से ज्यादा अलग नहीं थी. लेकिन इसकी वजह से विभिन्न देशों की शैक्षणिक प्रणालियों के महत्वपूर्ण पहलुओं को लेकर भिन्नताओं को उजगार जरूर कर दिया. उदाहरण के तौर पर यह साफ दिखाई दिया कि शिक्षा पर ज्यादा खर्च करने का अर्थ यह नहीं निकाला जा सकता कि इससे आपको बेहतर शैक्षणिक परिणाम मिलेंगे.
भारत में नीति आयोग के मार्गदर्शन में सामान्य वैल्यूज सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन एंड कार्तिक मुरलीधरन ने 2019 में स्कूल एजुकेशन क्वालिटी इंडेक्स (SEQI) विकसित किया. इसमें सीखने, पहुंच, इंफ्रास्ट्रक्चर, इक्विटी और सरकारी प्रक्रियाओं के परिणामों का संज्ञान लिया गया था.[c] इस सूचकांक का उद्देश्य शिक्षा नीति की ताकत और कमजोरी की पहचान करना था, ताकि आवश्यकता पड़ने पर उसमें नीतिगत हस्तेक्षप से सहायता की जा सके. राज्यों को बड़े एवं छोटे राज्यों की श्रेणी में बांटा गया, जबकि केंद्र शासित प्रदेशों की तीसरी श्रेणी बनाई गई. इन श्रेणियों के तहत ही संकेतक मूल्यों को बढ़ाया गया, सामान्य किया गया और उसमें भार ओवरऑल परफॉरमेंस स्कोर एंड रैंकिंग तैयार की गई. हालांकि SEQI ने सीखने के परिणामों को समग्र माना और उदाहरण के तौर पर भाषा तथा गणित के बीच कोई स्पष्ट अंतर नहीं देखा गया. हालांकि 2013 में ही विलार ने यह दिखा दिया था कि यह अंतर एक विशेष शैक्षणिक प्रणाली की कमजोरी और ताकत को समझने के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है.[xi]
हाल ही में, 2020 में IIS जयपुर की अंजलि मीणा और अनिमा वैश्य ने 2016-17 के लिए डिस्ट्रिक्ट इनफार्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (DISE)[d] की ओर से संकलित किए गए आंकड़ों का उपयोग करते हुए भारत में शिक्षा के विकास की पड़ताल की थी. उनका सूचकांक कुल 22 संकेतकों, जिसमें पहुंच, बुनियादी ढांचे, शिक्षकों, परिणामों का समावेश था, का अध्ययन करने के बाद तैयार किया गया था. उनकी पद्धति PCA का उपयोग करती थी, ठीक वैसे, जैसे SEQI में किया गया था.
सीमित डेटा स्त्रोतों के कारण यह स्टडी छात्रों के सीखने के परिणामों पर विचार नहीं कर सकी थी. हालांकि, इस स्टडी ने दर्शाया कि अधिकांश राज्यों ने प्राथमिक शिक्षा की तुलना में उच्च माध्यमिक शिक्षा ज्यादा विकसित की थी. इस स्टडी ने पाया कि तमिलनाडु और पंजाब जैसे राज्यों के EDI स्कोर्स बिहार और अरुणाचल प्रदेश जैसे अन्य राज्यों की तुलना में उच्च थे. इस स्टडी के परिणामों ने PCA[xii] की उपयोगिता पर भी पुन: मुहर लगा दी.
कुल मिलाकर, विलार (2013) द्वारा विकसित सूचकांक के उप-सूचकांक और कार्यप्रणाली ने उत्साहजनक परिणाम दिए. हालांकि स्कूल में दाखिले और स्कूलों के प्रकार या स्कूलों में मौजूद बुनियादी ढांचे जैसे वेरिएबल्स पर विचार नहीं किया गया. इसके अलावा, भारत को इस स्टडी में शामिल भी नहीं किया गया था. ऐसे में भारत के लिए इस तरह की एक स्टडी और उससे भी ज्यादा उसके राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए इस तरह की स्टडी किए जाने की ज्यादा आवश्यकता थी.
वर्तमान सूचकांक का विकास PCA का उपयोग करके किया गया था. इसके तहत सीखने के परिणामों जैसे वेरिएबल्स को शामिल किया गया था, जो अन्य शिक्षा सूचकांकों को विकसित करने में शामिल नहीं था. इस विश्लेषण के निष्कर्ष भारत को शिक्षा प्रणाली के स्वास्थ्य को मजबूत करने के लिए बनाई जा रही नीति के बारे में विशेष सिफारिशें करते हैं.
इस पेपर का उद्देश्य भारत में राज्य स्तर पर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के स्वास्थ्य की गणना करने के लिए PIE इंडेक्स विकसित करना है, ताकि इसमें सुधार के लिए कुछ नीतियां प्रस्तावित की जा सकें.
कार्य प्रणाली
PIE इंडेक्स को तीन श्रेणियों के आधार पर तैयार किया गया : परफॉरमेंस (सीखने के परिणाम); इंफ्रास्ट्रक्चर और इक्विटी. इन उप-सूचकांकों की स्वतंत्र और व्यक्तिगत गणना कर उनके मूल्यों का उपयोग सूचकांक बनाने के लिए किया गया.
डेटा विवरण
इस सूचकांक के लिए नेशनल कॉउन्सिल ऑफ़ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (NCERT) की ओर से किए गए नेशनल अचीवमेंट सर्वे (NAS) 2021 और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ एजुकेशनल प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन (NIEPA) की ओर से तैयार किए गए U-DISE फ़्लैश स्टेटिस्टिक्स (2020-21) से लिया गया था. NAS के डेटा का उपयोग प्रदर्शन और समान हिस्सेदारी उप-सूचकांक की गणना के लिए किया गया, जबकि बुनियादी ढांचे के उप-सूचकांक की गणना के लिए U-DISE के डेटा का उपयोग किया गया.
नेशनल अचीवमेंट सर्वे
यह सर्वेक्षण सर्व शिक्षा अभियान (SSA) के तहत सरकारी और अनुदानित स्कूलों में शिक्षा के प्रारंभिक और माध्यमिक चरणों में छात्रों की सीखने की उपलब्धियों का निरीक्षण करने के लिए किया गया था. तीसरी, पांचवीं, आठवीं और दसवीं के विद्यार्थियों के मानकीकृत परीक्षण किए गए, उनके स्कूल के माहौल, सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि और शिक्षकों के प्रशिक्षण संबंधी निर्देशों की प्रणाली और योग्यता की जानकारी को भी एकत्रित किया गया. इसके परिणाम का भविष्य में शिक्षा में होने वाली प्रगति का मूल्यांकन करने के लिए आधार रेखा के रूप में उपयोग किया जा सकता है.[xiii]
U-DISE फ़्लैश स्टेटिस्टिक्स
U-DISE[xiv] मान्यता और गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों की वार्षिक गणना है, जिसमें 4,000 से अधिक वेरिएबल्स यानी कारकों पर डेटा की जानकारी दी जाती है. इसमें स्कूल के प्रोफाइल, बुनियादी ढांचे, सीखने और सिखाने की सामग्री-साहित्य, उपकरण, इन्सेंटिव, दाखिले और शिक्षकों पर डेटा एकत्रित किया जाता है. U-DISE की वैधता और विश्वसनीयता को क्लस्टर संसाधन केंद्रों, ब्लॉक संसाधन केंद्रों और जिला राज्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (MIS) यूनिट्स के माध्यम से निरंतर जांच के साथ-साथ लगभग 5 प्रतिशत स्कूलों के सैंपलों की संभवत: थर्ड पार्टी की ओर से की गई जांच की सहायता से परखा और सुनिश्चित किया जाता है. U-DISE डेटाबेस, NIEPA, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की सरकारों तथा केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के संयुक्त प्रयासों का परिणाम होता है.
अनुसंधान वक्तव्य
इस पेपर का उद्देश्य भारत में राज्य स्तर पर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के स्वास्थ्य की गणना करने के लिए PIE इंडेक्स विकसित करना है, ताकि इसमें सुधार के लिए कुछ नीतियां प्रस्तावित की जा सकें.
मॉडलिंग दृष्टिकोण
PIE इंडेक्स के वेरिएबल्स
PIE इंडेक्स की गणना के लिए निम्नलिखित वेरिएबल्स का उपयोग किया गया.परफॉरमेंस इंडेक्स : यह छात्रों के सीखने के परिणामों को दर्शाता है.
- इंफ्रास्ट्रक्चरइंडेक्स : स्कूल के बुनियादी ढांचे की स्थिति को दर्शाता है.
- इक्विटी इंडेक्स : लिंग, स्कूल के प्रकार और जाति के आधार पर शैक्षणिक प्रदर्शन में अंतर को दिखाता है.
वर्णनात्मक आंकड़े टेबल 1 में दिए गए हैं. उनका उपयोग प्रत्येक उप-सूचकांक की गणना करने, नमूने का सारांश प्रदान करने, सेंट्रल टेंडेंसी के मध्यमान की गणना के मानक तय करने और वेरिएबल्स की गणना (मानक विचलन) के उपायों को निर्धारित करने के लिए किया जाएगा. वैल्यू अर्थात मूल्य की रेंज भी उपलब्ध करवाई गई है, ताकि इस बात का निरीक्षण किया जा सके कि मूल्यों का अर्थ क्या दर्शाता है. हालांकि इन मूल्यों का उपयोग वास्तविक सूचकांक की गणना में सीधे तौर पर नहीं किया जाएगा, लेकिन यह डेटासेट में उपलब्ध कारकों के बारे में बुनियादी जानकारी प्रदान करने और कारक के बीच के संभावित संबंधों को उजागर करने में उपयोगी हैं.
नोट: ये लेख RHEA SHAH, TANMAY DEVI और VANSHIKA SURANA द्वारा लिखे गये ओआरएफ़ हिंदी के लॉन्ग फॉर्म सामयिक रिसर्च पेपर “THE PIE इंडेक्स 2020-21: भारत में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा प्रणाली के स्वास्थ्य की गणना” से लिया गया एक छोटा सा हिस्सा है. इस पेपर को विस्तार से पढ़ने के लिये आगे दिये गये occasional paper के हिंदी लिंक को क्लिक करें, जिसका शीर्षक है- THE PIE इंडेक्स 2020-21: भारत में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा प्रणाली के स्वास्थ्य की गणना!
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