Author : Manoj Joshi

Published on Sep 20, 2019 Updated 0 Hours ago

चौथे अधिवेशन में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना अहम सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर चर्चा करेगी.

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ चाइना के चौथे अधिवेशन से तय होगी चीन के भविष्य की राह

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हाल ही में कहा कि चीन आर्थिक, राजनीतिक और राजनयिक मामलों को लेकर जोख़िम के दौर में प्रवेश कर रहा है, जिनसे निपटने के लिए देश को तैयार रहना चाहिए. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाईना (सीपीसी) के सेंट्रल पार्टी स्कूल में युवा और प्रौढ़ अधिकारियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आने वाला वक्त इतना चुनौतीपूर्ण है कि उसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता. इन चुनौतियों से निपटने के लिए साहस और दमखम की जरूरत है. जिनपिंग के मुताबिक, आगे चलकर हालात और जटिल होते जाएंगे. उन्होंने इस मौके पर आर्थिक सुस्ती से लेकर अमेरिका से मिल रही चुनौतियों से संघर्ष के सीपीसी के इतिहास का जिक्र भी किया. उनके भाषण में युद्ध से जुड़ी शब्दावलियों का जमकर इस्तेमाल हुआ. इनमें ‘जंग के जज़्बे’, ‘अटल संघर्ष’, ‘विजय’, ‘योद्धाओं’ जैसे शब्द शामिल थे.

चीन के राष्ट्रपति ने कहा कि यह संघर्ष दशकों तक चल सकता है और शायद 2049 तक खींच जाए, जो पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) का शताब्दी वर्ष होगा. पीआरसी की स्थापना के 70 साल पूरे होने के मौके पर चीन में जल्द ही जश्न शुरू होने वाला है और इसी सिलसिले में हुए समारोह में उन्होंने यह बात कही. पीआरसी के 70 साल के जश्न के खत्म होने के बाद सीपीसी का चौथा अधिवेशन भी होगा. शी के बयान से उसमें होने वाली चर्चा की बुनियाद भी तैयार हो गई है. इसमें सेंट्रल कमेटी के सदस्य चर्चा करते हैं, जो पार्टी का शीर्ष मंच है. इसकी घोषणा इस साल अगस्त महीने के आख़िर में हुई थी. सेंट्रल कमेटी की पिछली बैठक फरवरी 2018 (तीसरा अधिवेशन) में हुई थी, जिसकी टाइमिंग को लेकर लोगों को काफी हैरानी हुई थी क्योंकि दूसरा अधिवेशन इससे एक महीना पहले हुआ था. फरवरी की बैठक खास थी क्योंकि यह देश के संविधान से राष्ट्रपति पद के लिए दो बार की सीमा हटाने से जुड़ी थी. इसका ऐलान मार्च 2018 में चीन की संसद, नेशनल पीपल्स कांग्रेस और सेंट्रल पीपल्स कंसल्टेटिव कमेटी के सालाना सत्रों में हुआ था. गौर करने की बात यह है कि सीपीसी के महासचिव और सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के चेयरमैन पद पर शी के बने रहने की कोई समयसीमा निर्धारित नहीं है.

गौर करने की बात यह है कि सीपीसी के महासचिव और सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के चेयरमैन पद पर शी के बने रहने की कोई समयसीमा निर्धारित नहीं है.

सीपीसी को हर साल पार्टी कांग्रेस की बैठक के बीच अधिवेशन बुलाना होता है. ऐसे में चौथे अधिवेशन के ऐलान में देरी की वजह पार्टी की अंदरूनी कलह बताई गई. इसी वजह से तीसरे और चौथे अधिवेशन के बीच गैप बढ़ गया, जो 1970 के दशक की शुरुआत के बाद से सबसे लंबा गैप है. जानकारों का कहना है कि इसकी टाइमिंग की जो भी वजह हो, इसमें कोई शक नहीं है कि शी जिनपिंग का पार्टी पर पूरा नियंत्रण बना हुआ है और उनके नेतृत्व के ख़िलाफ़ खिलाफ विरोध के भी शायद ही संकेत दिखे हैं. ऐसा भी नहीं है कि इस बीच शी ने पार्टी सहयोगियों के साथ उच्चस्तरीय वार्ता नहीं की है. जनवरी में देश भर के सेंट्रल पार्टी स्कूल के अधिकारियों को तलब किया गया था. शी ने तब कहा था कि पार्टी के लिए ‘निष्क्रयता और अक्षमता जोख़िम साबित हो सकते हैं और वह जनता से कटती जा रही है.’ उन्होंने अर्थव्यवस्था से जुड़े अप्रत्याशित चुनौतियों से निपटने में पार्टी की मदद भी मांगी थी. मई में उन्होंने पोलित ब्यूरो की अध्यक्षता की, जिसमें काउंटी लेवल से ऊपर के अधिकारियों के लिए एजुकेशन कैंपेन लॉन्च करने का फैसला लिया गया. इस अभियान का मकसद पार्टी को शी के पीछे खड़ा करना और उन चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार करना था, जिनका चीन आज सामना कर रहा है.

चौथे अधिवेशन के करीब आने के साथ सीपीसी के सामने तीन बड़ी चुनौतियां हैं. इनमें पहली चुनौती इकॉनमी से जुड़ी है. पारंपरिक तौर पर ऐसे एक अधिवेशन में आर्थिक मुद्दों पर चर्चा होती आई है. मिसाल के लिए, 2018 में 18वीं सीपीसी कांग्रेस के तीसरे अधिवेशन में चीन की अर्थव्यवस्था में मार्केट को निर्णायक भूमिका देने का फैसला लिया गया था. यह और बात है कि चीन की अर्थव्यवस्था ने इसका प्रतिरोध किया है. कई पश्चिमी विश्लेषकों ने 2020 में चीन की जीडीपी ग्रोथ के 6 प्रतिशत से कम रहने का अनुमान लगाया है. अगस्त के आधिकारिक परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स से पता चला कि लगातार चौथे महीने इस सेक्टर की ग्रोथ माइनस में रही है. इसके बावजूद चीन ने नीतिगत दरों में कटौती या राहत पैकेज देने का फैसला नहीं किया है. उधर, अमेरिका के चीन के निर्यात पर सीमा शुल्क बढ़ाने से शी की मुश्किलें और बढ़ गई हैं.

दूसरी चुनौती हांगकांग में जारी संघर्ष है. ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि हांगकांग में विरोध को कुचलने के लिए चीन ताकत का इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन शी सरकार की दिलचस्पी इस आग को बुझाने में है. वह इसके लिए थियानमेन जैसा सख़्त कदम नहीं उठाना चाहती. हांगकांग की सीईओ कैरी लिम का प्रत्यर्पण विधेयक को वापस लेने का फैसला इस दिशा में पहला कदम हो सकता है, जिसे लेकर यह विरोध शुरू हुआ था. प्रदर्शनकारियों की पांच मुख्य मांगों में यह भी शामिल था. यह देखना बाकी है कि क्या इससे सबसे मुखर विरोधी अलग-थलग पड़ेंगे और अभी तक ख़ामोशी ओढ़कर बैठे ज्यादातर लोगों का समर्थन उसे हासिल हो जाएगा?

व्यापार युद्ध का चीन पर अधिक असर हुआ है और अमेरिका उससे अपनी मांगें मनवाने की स्थिति में है. ट्रंप ने यह भी कहा है कि अगर वह दोबारा अमेरिका के राष्ट्रपति बनते हैं तो चीन के लिए डील करना और मुश्किल हो जाएगा.

ये सारी चीजें अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध के बीच हो रही हैं, जो एक स्थापित और उभरती हुई शक्ति के बीच बड़े संघर्ष में बदल गया है. रविवार को चीन के सामानों पर अमेरिकी टैरिफ का चौथा दौर शुरू हुआ. इसमें चीन से आने वाले मीट प्रॉडक्ट्स से लेकर म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स पर 15 प्रतिशत का सीमा शुल्क लगाया गया. जवाबी कार्रवाई मं चीन ने भी अमेरिकी ऑयल सहित कई सामानों पर सीमा शुल्क में 5 से 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है. अभी तक अमेरिका 360 अरब डॉलर के चीन के सामानों पर टैरिफ लगा चुका है और चीन ने भी 110 अरब डॉलर के अमेरिकी गुड्स पर टैरिफ में बढ़ोतरी की है. डॉनल्ड ट्रंप ने हाल ही में कहा था कि अमेरिका के टैरिफ के जरिये दबाव बनाए रखने से चीन की मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री बिखर जाएगी. हालांकि, जानकारों का कहना है कि इस युद्ध में अमेरिका को भी नुकसान हो रहा है, लेकिन ट्रंप ऐसा नहीं मानते. उनका कहना है कि व्यापार युद्ध का चीन पर अधिक असर हुआ है और अमेरिका उससे अपनी मांगें मनवाने की स्थिति में है. ट्रंप ने यह भी कहा है कि अगर वह दोबारा अमेरिका के राष्ट्रपति बनते हैं तो चीन के लिए डील करना और मुश्किल हो जाएगा. अभी तक जो संकेत मिले हैं, उनसे पता चलता है कि इस मामले में चीन ने भी सख़्त रुख़ अपनाया हुआ है. अभी तक वाइस प्रीमियर लीउ हे और उनकी टीम के अगले दौरे की तारीख की घोषणा नहीं हुई है. इस बीच, चीन के फ़ाइनेंशियल स्टेबिलिटी एंड डिवेलपमेंट कमीशन की मीटिंग के बाद जारी एक बयान से संकेत मिला है कि शी का देश लंबे व्यापार युद्ध के लिए तैयार हो रहा है. कमीशन के बयान के मुताबिक, व्यापार युद्ध के असर को कम करने के लिए चीन मौद्रिक नीति में ढील देने के साथ सरकारी खर्च बढ़ाएगा. दिलचस्प बात यह है कि इस मीटिंग की अध्यक्षता लीउ ने की थी. उसने स्थानीय सरकारों के निवेश को बढ़ावा देने को लेकर वित्तीय संस्थानों को कई सुझाव दिए हैं. हालांकि, इसे राहत पैकेज नहीं कहा जा सकता और कमीशन के बयान में व्यापार युद्ध का जिक्र भी नहीं किया गया.

कई जानकारों ने बताया कि अधिकारी शीर्ष स्तर से नीतियों पर निर्देश मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं. इस लिहाज से चौथा अधिवेशन महत्वपूर्ण है, जिसमें आगे की राह तय की जा सकती है. वैसे, यह बताना मुश्किल है कि ऐसा होगा या नहीं. अधिवेशन की आधिकारिक घोषणा में यह भी बताया गया कि सेंट्रल कमेटी को पीबी के काम की जानकारी दी जाएगी और इसमें ‘चीन की समाजवादी व्यवस्था को बेहतर बनाने रखने पर’ चर्चा होगी. चीन के गवर्नेंस सिस्टम के आधुनिकीकरण और उसे मजबूत बनाने जैसे मुद्दों पर भी सेंट्रल कमेटी में बातचीत करने का जिक्र इसमें किया गया था. हालांकि, इस बयान का साफ-साफ मतलब निकालना मुश्किल है.

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