Published on Mar 17, 2021 Updated 0 Hours ago

चीन में निजी क्षेत्र और सरकार नियंत्रित कंपनियों के बीच का फ़र्क़ लगातार मिटता जा रहा है

अलीबाबा के कारोबार में चल रही उथल-पुथल दूसरे कारोबारियों के लिए एक सबक़

पिक्चर कैप्शन: अलीबाबा के संस्थापक जैक मा शायद चीन की समाजवादी बाज़ारवादी अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े प्रतीक हैं. तस्वीर-小囧黑 — Flickr/CC BY-NC-ND 2.0

चीन में एक अप्रामाणिक कहावत कहती है कि एक चींटी में भी एक विशाल बांध को तबाह करने की ताक़त होती है. ऐसा लगता है कि चीन में कुछ लोग ऐसे हैं, जो शायद इस कहावत को बहुत गंभीरता से ले रहे हैं. पिछले साल दिसंबर महीने क मध्य में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं और चीन के बैंकिंग उद्योग के कारोबारियों के बीच बंद दरवाज़ों के पीछे एक बैठक हुई थी. इस बैठक का मक़सद चीन के वित्तीय क्षेत्र के विकास का एजेंडा तय करना था. चीन के नीति निर्माताओं ने प्रतिज्ञा ली कि वो वर्ष 2021 में बाज़ार में एकाधिकारवादी कारोबारी नीतियों पर क़ाबू करेंगे और पूंजी के बेतरतीब विस्तार को रोकने के लिए भी पूरी ताक़त लगाएंगे. ऐसा लगता है कि ये बयान चीन की बड़ी वित्तीय तकनीक से जुड़ी कंपनियों के लिए था.

इस बयान के जारी होने के बाद से ही चीन की कंपनी अलीबाबा, अपने देश की सरकार के निशाने पर है. बाज़ार के नियमन के सरकारी प्रशासन नाम की संस्था, जो चीन के बाज़ार में प्रतिद्वंदिता को नियमित करती है, उसने 24 दिसंबर से अलीबाबा ग्रुप होल्डिंग के ख़िलाफ़ एकाधिकार निरोधक जांच शुरू की है. स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन फॉर मार्केट रेग्यूलेशन ने अलीबाबा के ख़िलाफ़ जांच इसलिए शुरू की है क्योंकि अलीबाबा के ऊपर कुछ कंपनियों ने संगीन इल्ज़ाम लगाए हैं. इनके मुताबिक़ अलीबाबा ने उत्पाद बेचने वालों के सामने ये शर्त रखी है कि वो अपने उत्पाद केवल अलीबाबा समूह के ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर ही बेचें.

चीन के नीति निर्माताओं ने प्रतिज्ञा ली कि वो वर्ष 2021 में बाज़ार में एकाधिकारवादी कारोबारी नीतियों पर क़ाबू करेंगे और पूंजी के बेतरतीब विस्तार को रोकने के लिए भी पूरी ताक़त लगाएंगे. ऐसा लगता है कि ये बयान चीन की बड़ी वित्तीय तकनीक से जुड़ी कंपनियों के लिए था.

उधर, एक अन्य ख़बर के मुताबिक़, अलीबाबा समूह की वित्तीय सेवाओं की इकाई एंट ग्रुप के कार्यकारी अधिकारियों को चीन के केंद्रीय बैंक और अन्य नियामक संस्थाओं के अधिकारियों ने पूछताछ के लिए तलब किया. पीपुल्स बैंक ऑफ़ चाइना के अधिकारियों ने कहा कि एंट ग्रुप का कॉर्पोरेट प्रशासन, ‘मज़बूत नहीं’ है. पीपुल्स बैंक के अधिकारियों ने एंट ग्रुप को आदेश दिया कि वो पेमेंट सेवाओं के प्रदाता कंपनी के अपने पुराने स्वरूप की ओर लौट जाए. चीन के केंद्रीय बैंक के अधिकारियों ने साथ में ये भी कहा कि एंट को, ‘अपने अवैध क़र्ज़, बीमा और वेल्थ मैनेजमेंट के कारोबार  को सख़्ती से सुधारना होगा’. एंट ग्रुप की वो कंपनियां जो ये सेवाएं उपलब्ध कराती हैं, वो आज उसके कारोबार की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली और सबसे अधिक मुनाफ़ा कमाने वाली कंपनियां हैं.

जैक मा और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी

इस बुरी ख़बर से अलीबाबा समूह के शेयरों को भारी नुक़सान पहुंचा है. अलीबाबा के सह-संस्थापक जैक मा शायद चीन की ‘समाजवादी नीतियों पर चलने वाले बाज़ारवाद’ के पोस्टर ब्वॉय हैं. इसकी शुरुआत उन्होंने सामान बेचने से की थी. बाद में उन्होंने वो ई-कॉमर्स की विशाल कंपनी अलीबाबा की स्थापना की. जैक मां जिनकी कुल संपत्ति लगभग 65 अरब डॉलर बताई जाती है, वो चीन में बाज़ारवाद की शुरुआत करने वाले नेता देंग शाओपिंग की उस कहावत का जीता-जागता सुबूत हैं, जिसके अनुसार: अमीर होना बेहद शानदार अनुभव है. जैक मा ने अलीबाबा की स्थापना वर्ष 1999 में हैंगझोऊ के एक फ्लैट में कुछ दोस्तों के साथ की थी. बाद में कंपनी ने चीन में ई-कॉमर्स के कारोबार की शुरुआत की. ये भी माना जाता है कि जैक मा, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के वफ़ादार कारोबारी थे. एंट समूह की कामयाबी के बाद उसमें चीन के पूर्व राष्ट्रपति जियांग ज़ेमिन के रिश्तेदार द्वारा स्थापित की गई निजी इक्विटी कंपनी से भी निवेश किया गया था.

एंट ग्रुप ने इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट सेवाओं की शुरुआत वर्ष 2004 में की थी. लेकिन, उसके बाद के वर्षों में ये ऑनलाइन वित्तीय सेवाओं के मॉल के रूप में विकसित होती गई. आज ये कंपनी क़रीब 73 करोड़ लोगों को हर महीने बैंकों, बीमा कंपनियों और वेल्थ मैनेजमेंट करने वाली कंपनियों से जोड़ती है. इसके ज़रिए चीन के नागरिक क़र्ज़, बीमा पॉलिसी और वित्तीय निवेश के अन्य उत्पाद हासिल करते हैं. वैसे तो वर्ष 2020 के बारे में यही कहा जाता है कि इसने अर्थव्यवस्था पर क़यामत का असर डाला. लेकिन, इसके उलट एंट ग्रुप ने तो वर्ष 2020 में कामयाबी की नई उड़ान भरनी शुरू करनी चाही थी. एंट को उम्मीद थी कि वो अपने IPO से 35 अरब डॉलर की रक़म जुटाएगा और इस तरह वो सऊदी अरब की कंपनी अरामको के वर्ष 2019 में शेयर बाज़ार में कारोबार शुरू करने के रिकॉर्ड को ध्वस्त कर देगा. एंट ग्रुप उस सोच से आगे बढ़ रहा था कि इक्कीसवीं सदी में डेटा की हैसियत वही है, जो बीसवीं सदी में तेल की थी. लेकिन, एंट को अपने IPO को जारी करने की योजना को रोकना पड़ा. जबकि उसे ये IPO शंघाई और हॉन्ग कॉन्ग के शेयर बाज़ारों में जारी करना था.

माना जाता है कि जैक मा के ख़िलाफ़ चीन की सरकार की ये कार्रवाई, उनके एक भाषण के चलते शुरू हुई. जैक मा ने ये भाषण पिछले साल अक्टूबर में शंघाई में हुए बंड शिखर सम्मेलन में दिया था. कहा जाता है कि इस सम्मेलन में जैक मा ने कहा था कि, ‘हमें किसी रेलवे स्टेशन के प्रबंधन की नीतियों को एयरपोर्ट के संचालन में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए…किसी छोटी मोटी दुकान की मानसिकता के साथ हम उस वित्तीय मांग को पूरा नहीं कर सकते, जो अगले तीस वर्षो में वैश्विक विकास से उत्पन्न होने वाली है.’ चीन के उपराष्ट्रपति वैंग क़िशान भी उस सम्मेलन में शामिल थे. उनके साथ ची के केंद्रीय बैंक के प्रमुख यी गैंग और वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे. आम तौर पर ऐसे मसलों पर ख़ोश रहने वाले चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने इस मसले पर खुलकर अपने विचार व्यक्त किए. इसे जैक मा के बयान पर पलटवार के तौर पर देखा गया. उस सम्मेलन में ही चीन के उपराष्ट्रपति वैंग क़िशान ने वित्तीय क्षेत्र को चेतावनी दी कि वो चिट फंड योजनाओं और अपनी ताक़त से वित्तीय क्षेत्र के विस्तार की हरकतों से बाज़ आए. इसके बजाय, उन्होंने कहा कि वित्तीय उद्योग को वित्तीय जोख़िम रोकने के लिए काम करना चाहिए.

जैक मा ने अपने बयान से चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को नाराज़ कर लिया है, ये बात उस वक़्त साफ़ हो गई जब उन्हें और एंट ग्रुप के बड़े अधिकारियों को नियामक संस्थाओं ने तलब कर लिया. 31 अक्टूबर 2020 को उप प्रधानमंत्री लियू हे ने एक विशेष बैठक की. जिसमें वित्तीय क्षेत्र से जुड़े जोखिमों पर क़ाबू पाने के लिए पर्याप्त निगरानी रखने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई. चीन के नियामक अधिकारियों ने वित्तीय तकनीक के उद्योग पर पाबंदियों और नियंत्रण को बढ़ाना शुरू कर दिया. चीन की सरकार के अधिकारी चाहते थे कि किसी एक नागरिक को तीन लाख युआन या 45 हज़ार अमेरिकी डॉलर से अधिक का क़र्ज़ नहीं दिया जाना चाहिए. इन अधिकारियों ने ये मांग भी की कि जो कंपनियां ऑनलाइन लोन का कारोबार कर रही हैं उन्हें सख़्त नियमों का पालन करना होगा. चीन के केंद्रीय बैंक ने चेतावनी दी कि वित्तीय तकनीक के क्षेत्र की एक कंपनी कुछ ज़्यादा ही बड़ी हो गई है, जिससे चीन के वित्तीय क्षेत्र को संस्थागत ख़तरे उत्पन्न हो गए हैं. हालत ये हो गई कि बहुत ज़्यादा सरकारी निगरानी वाले सोशल मीडिया पर जैक मा के ख़िलाफ़ भी ट्रोल की सेना ने धावा बोल दिया. जानकारों ने इसका अर्थ ये निकाला कि इन ट्रोल्स को चीन की सरकार से शह मिली हुई है. इसीलिए, कहा गया कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अपने यहां के अरबपतियों पर लगाम लगाने में जुट गई है.

निजी क्षेत्र पर चीन की की पकड़

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने जब से अपने यहां कारोबारियों को शामिल करना शुरू किया था, तब से ही नेताओं के बीच असहजता का माहौल था. चीन के नए दौर के वो उद्यमी, जिन्हें पूरी दुनिया सलाम करती थी, वो अक्सर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के निशाने पर आ जाते थे. चीन में अब वो दिन बीत चुके थे, जब सत्ता में बैठे लोगों से नज़दीकी से रईसों को क़ानून के पंजों से राहत मिल जाती थी. वो क़ानूनी कार्रवाई से बच जाते थे. एक कारोबारी वू शियाओहुई, जो कभी एक विशाल बीमा और वित्तीय कंपनी अनबांग के मालिक हुआ करते थे, उन्हें 2018 में 18 साल क़ैद की सज़ा सुनाई गई थी. वू के बारे में कहा गया था कि वो सबसे ज़्यादा राजनीतिक रिश्ते रखने वाले चीनी कारोबारी थे. उन्होंने देंग शाओपिंग की पोती से ब्याह किया था. इसी तरह, चाइना टेलीकॉम कंपनी के चैंग शाओबिंग को मई 2017 में रिश्वत देने के जुर्म में छह साल क़ैद की सज़ा सुनाई गई थी. चीन में सरकार नियंत्रित कारोबार और निजी क्षेत्र के बीच फ़र्क़ बड़ी तेज़ी से मिट रहा है. बहुत से उद्योग जैसे कि बड़ी तकनीक से जुड़े कारोबारियों को सरकारी संरक्षण में तरक़्क़ी हासिल होती है. उन्हें सस्ती दरों पर ज़मीन या रियायती दरों पर क़र्ज़ मुहैया कराया जाता है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान ये मांग बार बार उठी है कि चीन की अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए इसके निजी क्षेत्र पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की पकड़ और भी मज़बूत किए जाने की ज़रूरत है.

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अपने यहां के अरबपतियों पर लगाम लगाने में जुट गई है.

ऐसा लगता है कि चीन के बड़े उद्योगपति जिसतरह की शाहाना ज़िंदगी जी रहे हैं, उससे कम्युनिस्ट पार्टी असहज महसूस करती है. उसे लगता है कि चीन में अमीर और ग़रीब के बीच फ़ासला बढ़ रहा है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग चाहते हैं कि चीन के अरबपति उद्योगपति देश के प्रति भी एक ज़िम्मेदारी का भाव रखें और अपने तेज़ी से बढ़ते कारोबार का एक हिस्सा देश की समृद्धि बढ़ाने में भी लगाएं. शी जिनपिंग ने आधुनिक चीन के निर्माण में इन उद्यमियों की भूमिका की सराहना तो की है. लेकिन, उन्होंने रोंग यिरेन और वैंग गुआंगयिंग भी उदाहरण भी दिए हैं. चीन में कम्युनिस्ट शासन की स्थापना के बाद, वामपंथ समर्थक रोंग और वैंग जैसे इन उद्योगपतियों ने अपने परिवार की संपत्ति और कारोबार को राष्ट्र के नाम समर्पित कर दिया था. जैक मा की कामयाबी के बाद चीन के बहुत से उद्यमियों ने उनके दिखाए रास्ते पर चलते हुए तकनीक और वित्त से पैसे कमाए हैं. शी जिनपिंग चाहते हैंकि वो रोंग और वैंग जैसे राष्ट्रवादी उद्योगपतियों से भी सबक़ लें और उनकी राह पर चलें, न कि जैक मा जैसे उद्मी का अनुगमन करें. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने देश के उद्मियों को एहसास कराया है कि वो कभी भी उनके पांव तले से ज़मीन खींच सकने का माद्दा रखती है.

चीन में कारोबार करने को लेकर दुनिया का भरोसा

हालांकि, ऐसे अस्थिर बर्ताव से चीन के बारे में अच्छी राय नहीं बनेगी. इससे चीन की सरकार और वहां के कारोबारियों के बीच रिश्तों पर भी सवाल उठेंगे. मिसाल के तौर पर, चीन की सरकार से बहस के बाद जैक मा जैसे बड़े उद्योगपति के मंज़र से ‘ग़ायब’ हो जाने से चीन में कारोबार करने को लेकर दुनिया का भरोसा बढ़ने के बजाय घटेगा ही. शी जिनिपिंग ने वर्ष 2025 तक नियमों पर आधारित प्रशासन का एक ढांचा तैयार करने को अपनी सबसे बड़ी प्राथमिकता बनाया है. माना जाता है कि ऐसी किसी व्यवस्था से हर नागरिक के वाजिब वैधानिक अधिकारों का संरक्षण हो सकेगा और इससे चीन में एक ऐसी क़ानूनी व्यवस्था विकसित होगी, जो कारोबारियों और बाज़ार के नियमों के अनुकूल होगी. उन्हें आसान बनाएगी. लेकिन, जैसा जैक मा के साथ हुआ उससे तो चीन को ये संदेश देने में मुश्किल होगी कि वो अपने यहां एक मज़बूत क़ानूनी व्यवस्था बनाने में जुटी है.

पिछले कुछ वर्षों के दौरान ये मांग बार बार उठी है कि चीन की अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए इसके निजी क्षेत्र पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की पकड़ और भी मज़बूत किए जाने की ज़रूरत है.

इस साल से चीन अपने आर्थिक विकास के मॉडल में व्यापक बदलाव लाने की योजना पर काम कर रहा है. जिसके तहत वो घरेलू खपत को बढ़ावा देकर उसे अपने आर्थिक विकास का अगुवा बनाना चाहता है. चीन का मक़सद ये है कि वो वैश्विक व्यापार के बजाय घरेलू खपत को बढ़ावा देकर अपनी उन कंपनियों में निवेश को और बढ़ावा दे सकेगा, जो ग्राहकों के इस्तेमाल के उत्पाद बनाती हैं. चीन के इस लक्ष्य को निर्धारित करने की बुनियाद उसकी विशाल मध्यम वर्ग वाली आबादी है. चीन का मानना है कि आने वाले समय में इनोवेशन आधारित इकोसिस्टम को बढ़ावा देकर वो अपनी तकनीक आधारित कंपनियों के लिए भी पूंजी जुटा सकेगा. हालांकि, चीन की निजी कंपनियों को सरकारी कंपनियों से मुक़ाबला करने के लिए जो ‘प्रतिद्वंदात्मक निरपेक्षता’ हासिल होनी चाहिए, वो किसी भी विदेशी पूंजी निवेश की पहली शर्त है. अब जबकि चीन की सरकार अपनी डिजिटल करेंसी को बढ़ावा देने में जुटी है तो डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में निजी और सरकारी कंपनियों के बीच मुक़ाबले में पलड़ा सरकारी कंपनियों का ही भारी रहने वाला है. निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए तो हालात अहितकर ही हो जाएंगे.

आज जब अमेरिका और चीन के बीच आर्थिक प्रतिद्वंद्विता बढ़ रही है, तो चीन दूसरे देशों से निवेश को हासिल करने के लिए नए नए रास्ते तलाश कर रहा है. विदेशी पूंजी को हासिल करने के लिए चीन दूसरे देशों की कंपनियों को अपने यहां के शेयर बाज़ार में अधिक आज़ादी भी दे रहा है. वर्ष 2020 में हॉन्ग कॉन्ग और चीन की मुख्य भूमि के बाज़ारों में विदेशी निवेशकों से चीन ने रिकॉर्ड 119 अरब डॉलर की पूंजी जुटाई थी. हालांकि, एंट ग्रुप के विवाद को देखते हुए चीन में विदेशी निवेश की सुरक्षा को लेकर सवाल तो फिर भी क़ायम रहेंगे.

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