Expert Speak Raisina Debates
Published on Jul 22, 2025 Updated 9 Hours ago

अपनी परमाणु क्षमताओं में भारत जिन गंभीर चुनौतियों का सामना करता है और चीन के मुकाबले उसकी जो कमज़ोरियां है, उनसे पार पाने के लिए एक तेज़ और समर्पित प्रतिबद्धता की आवश्यकता है.

परमाणु शक्ति संतुलन की चुनौतियाँ: चीन की बढ़त और भारत की रणनीतिक ज़रूरतें

Image Source: Getty

भारत के उत्तरी पड़ोसी पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) की ओर से बढ़ता हुआ और गंभीर परमाणु ख़तरा लगातार बना हुआ है  और इसे चुनौती दिए बिना छोड़ा नहीं जा सकता है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार चीन तेज़ी से अपने परमाणु हथियार और उनके डिलीवरी सिस्टम को विकसित कर रहा है. SIPRI के आंकड़े परमाणु हथियारों के मामले में चीन की प्रगति को दिखाते हैं. ये आंकड़े बताते हैं कि चीन के परमाणु हथियार न केवल गुणवत्ता के मामले में अच्छे हैं, बल्कि संख्या के मामले में भी बहुत ज़्यादा हैं. SIPRI के ताज़ा आंकड़े से पता चलता है कि 2024-25 के बीच चीन के परमाणु भंडार में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई और परमाणु हथियार 500 से बढ़कर 600 हो गए. वास्तव में चीन जिस तेज़ी से अपने परमाणु हथियारों के भंडार में बढ़ोतरी कर रहा है वो किसी भी परमाणु संपन्न देश की तुलना में ज़्यादा है, चाहे वो नियमों के मुताबिक हो या नियमों के ख़िलाफ़ हो. कम-से-कम आंशिक रूप से ये हैरान करने वाला नहीं है क्योंकि चीन ने अपने मौजूदा परमाणु विस्तार से काफी पहले अमेरिका, रशियन फेडरेशन और चीन को शामिल करने वाले त्रिपक्षीय परमाणु हथियार नियंत्रण समझौते का ज़ोरदार विरोध किया था जिसके तहत तीनों देशों को अपने परमाणु हथियारों के भंडार में कटौती करनी थी. 2019 में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के वरिष्ठ कर्नल बो झाऊ ने इस समझौते को खारिज करते हुए कहा था: “ऐसे समझौते के सफल होने के लिए या तो अमेरिका और चीन को अपने परमाणु भंडार को चीन के स्तर पर लाना होगा या चीन को अपने परमाणु भंडार को बहुत ज़्यादा बढ़ाना होगा. दोनों में से कोई भी परिदृश्य यथार्थवादी नहीं है.” फिर भी, चीन के परमाणु हथियारों में तेज़ी से हो रही वृद्धि से यह स्पष्ट है कि कर्नल बो झाऊ की बात केवल आंशिक रूप से ही सही थी और यह स्पष्ट करता है कि चीन का परमाणु भंडार अमेरिका या रूस की बराबरी नहीं कर पाएगा.

बदलता परमाणु शक्ति संतुलन

इन घटनाक्रमों को साल 2023-24 के संदर्भ और पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए जब स्पष्ट रूप से चीन ने अपने नए फास्ट ब्रीडर रिएक्टर, जिसका नाम CFR-600 है, का विकास और उसके परिचालन का काम पूरा किया. इस रिएक्टर को रूस के ईंधन का समर्थन मिल रहा है जिससे चीन को अपने प्लूटोनियम का भंडार बहुत ज़्यादा बढ़ाने में मदद मिल रही है. ब्रीडर रिएक्टर इसलिए महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि वे जितना ईंधन उपयोग करते हैं, उससे अधिक मात्रा में प्लूटोनियम और विखंडनीय पदार्थ उत्पन्न करते हैं. मूल रूप से ये फैक्टर चीन के परमाणु हथियारों के भंडार में बढ़ोतरी की व्याख्या करते हैं. इन घटनाक्रमों के अलावा चीन ने पहले ही अपने लॉप नूर परमाणु परीक्षण स्थल का अधिकतर निर्माण पूरा कर लिया है. ये आने वाले दिनों के लक्षण हैं क्योंकि चीन अपने परमाणु हथियारों की विश्वसनीयता और प्रदर्शन में सुधार करने के लिए नए सिरे से परीक्षण का दौर शुरू कर सकता है.

भारत को चीन के द्वारा इनर मंगोलिया में इंटरमीडिएट रेंज बैलिस्टिक मिसाइल (IRBM) डोंग फेंग-26 (DF-26) की तैनाती पर विशेष ध्यान देना चाहिए और अगर वो इसके जवाब में पहले से तैयारी नहीं कर रहा है तो तैयारी करनी चाहिए क्योंकि ये मिसाइल युद्ध क्षेत्र के मिशन के लिए अपने चालक दल को प्रशिक्षित करने में सक्षम बनाती है 

वैसे तो चीन ने लॉप नूर परीक्षण स्थल में व्यापक परमाणु परीक्षण की तैयारी को हल्की-फुल्की औद्योगिक गतिविधि के रूप में पेश करने की कोशिश की है लेकिन अर्थ ऑब्ज़र्वेशन (EO) और सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) सैटेलाइट से प्राप्त भू-स्थानिक खुफिया जानकारी (जियोस्पेशियल इंटेलिजेंस) पुष्टि करते हैं या कम-से-कम इस बात का सबूत देते हैं कि नए हथियारों के लिए चीन परीक्षण की तैयारी कर रहा है. चीन के द्वारा बड़े पैमाने पर परमाणु परीक्षणों की शुरुआत करने की बहुत अधिक संभावना के अलावा पूरे विश्वास के साथ ये कहा जा सकता है कि फिसाइल मैटेरियल की छोटी मात्रा का उपयोग करके चीन सब-क्रिटिकल टेस्टिंग कर रहा है. दरअसल 2020 में सबूतों से खुलासा हुआ कि चीन ने लॉप नूर के उत्तरी सुरंग परीक्षण क्षेत्र में कम क्षमता वाले परमाणु विस्फोट किए थे और हाल के दिनों में इसे शुद्ध (डिकंटेमिनेट) किया गया है. ये परीक्षण प्रयोगशाला आधारित परिस्थितियों के तहत सीमित विस्फोटक चैंबर में किए गए हैं जो छोटे स्तर पर परीक्षण की अनुमति देते हैं. ये सभी प्रगति न केवल चीन के परमाणु बल के आकार और गुणवत्ता में बहुत अधिक बढ़ोतरी की तरफ बल्कि उतनी ही प्रभावशाली गति से चीन के द्वारा परमाणु हथियार दागने की क्षमताओं की तरफ भी इशारा करती हैं. वास्तव में, अगर चीन के नए परमाणु हथियारों के डिज़ाइन को विश्वसनीयता और प्रदर्शन के किसी भी मानक को पूरा करना है तो उन्हें आधुनिक वेक्टर की गुणवत्ता की भी बराबरी करनी होगी जो उनके डिलीवरी सिस्टम के रूप में काम करेगा.

इन डिलीवरी सिस्टम में डोंग फेंग-17 (DF-17) की तैनाती शामिल है जो हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (HGV) से लैस एक इंटरमीडिएटरेंज (मध्यम दूरी) रोड मोबाइल बैलिस्टिक मिसाइल है. HGV को इस तरह बनाया गया है कि वो रडार की पहचान और मिसाइल रक्षा प्रणाली को चकमा दे सके. इसके अलावा भारत को चीन के द्वारा इनर मंगोलिया में इंटरमीडिएट रेंज बैलिस्टिक मिसाइल (IRBM) डोंग फेंग-26 (DF-26) की तैनाती पर विशेष ध्यान देना चाहिए और अगर वो इसके जवाब में पहले से तैयारी नहीं कर रहा है तो तैयारी करनी चाहिए क्योंकि ये मिसाइल युद्ध क्षेत्र के मिशन के लिए अपने चालक दल को प्रशिक्षित करने में सक्षम बनाती है जिससे उन्हें “परमाणु और पारंपरिक हथियारों के बीच अदला-बदली” करने की अनुमति मिलती है. दूसरी बात ये है कि चीन ने पिछले साल अपने H6-KN बमवर्षक विमानों का उपयोग करके डुअल-यूज़ एयर लॉन्च्ड बैलिस्टिक मिसाइल (ALBM) की झलक दिखाई थी.

 यदि भारत अपने परमाणु हथियारों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि नहीं करता, तो यह एक रणनीतिक कमजोरी बन सकती है — ख़ासतौर पर इस पृष्ठभूमि में कि भारत 1998 से परमाणु परीक्षण पर स्वैच्छिक रोक का पालन कर रहा है. यह रोक ‘हॉट टेस्टिंग’ की अनुमति नहीं देती, जो नए हथियार डिज़ाइन के परीक्षण के लिए आवश्यक होती है — और जिसकी तैयारी चीन कर रहा है. 

वैसे तो चीन आधिकारिक तौर पर ये कहता है कि वो अपने हथियारों और डिलीवरी क्षमताओं को अलग-अलग करके रखता है और उन्हें किसी संकट के दौरान ही आपस में जोड़ता है लेकिन सबूत कुछ और ही कहते हैं. मौजूदा समय में चीन उस रवैये से दूरी बना रहा है, अगर पहले ही दूरी नहीं बना चुका है तो, जो उसके हथियारों को डिलीवरी सिस्टम से अलग करता है. इसके अलावा, चीन का मानना है कि लॉन्च ऑन वॉर्निंग (दुश्मन के द्वारा परमाणु हमले की चेतावनी के बाद जवाबी परमाणु हमले की रणनीति) रवैये की तरफ उसका कदम, जो 2023 से ही स्पष्ट है, उसके घोषित नो फर्स्ट यूज़ (NFU) नीति से पूरी तरह मेल खाता है. भारत के रणनीतिक प्रबंधकों को इस पर गंभीरता से चिंता करनी चाहिए और चीन का मुकाबला करने के लिए भारत को भी ऐसा ही रवैया अपनाने के लिए बाध्य होना चाहिए.

भारत के लिए चुनौतियां जटिल

भारत के लिए चुनौतियां और भी जटिल हैं क्योंकि उसे न केवल हर कदम पर चीन की बराबरी करनी है बल्कि लंबे समय में देश को सुरक्षित रखने के लिए चीन के सैकड़ों परमाणु बमों से भी ख़ुद को बचाना होगा. मौजूदा समय में भारत केवल 10 हथियार हर साल बना रहा है जो अपर्याप्त है. लेकिन धीमी गति से हथियार के निर्माण के लिए घातक डिलीवरी सिस्टम की कमी भी ज़िम्मेदार है जिनमें से कुछ या तो तैयार हो रहे हैं या पूरी तरह हैं ही नहीं. यदि भारत अपने परमाणु हथियारों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि नहीं करता, तो यह एक रणनीतिक कमजोरी बन सकती है — ख़ासतौर पर इस पृष्ठभूमि में कि भारत 1998 से परमाणु परीक्षण पर स्वैच्छिक रोक का पालन कर रहा है. यह रोक ‘हॉट टेस्टिंग’ की अनुमति नहीं देती, जो नए हथियार डिज़ाइन के परीक्षण के लिए आवश्यक होती है — और जिसकी तैयारी चीन कर रहा है. ऐसे में भारत को अपने कुछ प्रमुख डिलीवरी सिस्टम में सुधार और उन्हें तेजी से संचित करने के लिए दोगुने जोश और गति से काम करना होगा. हालांकि INS अरिहंत और INS अरिघात जैसे दो SSBN सक्रिय हैं और अगले कुछ वर्षों में दो और पनडुब्बियाँ जुड़ने की संभावना है, फिर भी भारत की ‘न्यूक्लियर ट्रायड’ की पनडुब्बी शाखा (subsurface leg) को अभी भी स्टेल्थ, रेंज और पेलोड में भारी सुधार की आवश्यकता है. भारतीय नौसेना अपने SSBN के साथ चलने और उसकी रक्षा के लिए SSN (सबमर्सिबल शिप न्यूक्लियर) बेड़े की पूरी तरह अनुपस्थिति से भी जूझ रही है. अंत में, भारत के परमाणु ट्राएड के आसमानी हिस्से में दो गंभीर खामियां हैं: लंबी दूरी के रणनीतिक बमवर्षक विमान की कमी और दो लंबी दूरी के मिसाइल सिस्टम, एयर लॉन्च्ड बैलिस्टिक मिसाइल (ALBM) एवं एयर लॉन्च्ड क्रूज़ मिसाइल (ALCM), की कमी जिन्हें छोड़ने के लिए बमवर्षक को कॉन्फ़िगर किया जा सकता है. चीन पहले से ही अपने H6-KN बमवर्षक एयरक्राफ्ट पर लंबी दूरी की ALCM और ALBM तैनात कर रहा है. संक्षेप में, चीन की परमाणु ताकत के मुकाबले भारत की रणनीतिक कमज़ोरियाँ स्पष्ट हैं, और इन्हें दूर करने के लिए तेज़, सतत और नीतिगत प्रतिबद्धता ज़रूरी है.


कार्तिक बोम्माकांति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में सीनियर फेलो हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.