Published on Jul 28, 2021 Updated 0 Hours ago

पूरे देश में मुद्रास्फीति की बढ़ती दर की एक मुख्य वजह स्वास्थ्य क्षेत्र में ख़र्च भी है. हालांकि इस उप-घटक की मुद्रास्फीति की प्रवृति पूरी तरह से टिकाऊ नहीं लगती है. हालांकि यह प्रवृति अर्थव्यवस्था में बनी रहती है या नहीं यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आने वाले महीनों में कोविड के वैक्सीनेशन और कोरोना संक्रमण की रफ़्तार क्या रहती है.

सुर्ख़ियों में मुद्रास्फीति की बढ़ती दर: एक अस्थायी स्थिति
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लगातार दूसरे महीने सुर्ख़ियों में बनी रही मुद्रास्फीति दर, सीपीआई (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-संयुक्त), केंद्रीय बैंक की 6 प्रतिशत सीमा से ऊपर रही है.  इसे लेकर जून 2021 के लिए साल-दर-साल प्रतिशत परिवर्तन (YoY%) का जो आंकड़ा सामने आया है उसके मुताबिक़ मई 2021 में यह 6.30 दर्ज़ किया गया था जबकि जून 2021 में इसमें मामूली गिरावट दर्ज़ की गई और यह 6.26 फ़ीसदी दर्ज़ किया गया. यह मुख्य रूप से क्रमबद्ध गति को जून 2021 में 0.6 फ़ीसदी तक कम करने के कारण है जबकि मई 2021 में यह आंकड़ा 1.6 फ़ीसदी था.

दूसरे महीने भी मुद्रास्फीति की दर का स्वीकार्य स्तर से ऊंचे जाने की वजह से औसत उपभोक्ता मूल्य सूचकांक वित्तीय वर्ष 21-22 की पहली तिमाही में 5.6 फ़ीसदी दर्ज़ की गई. यह आंकड़ा रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के मौद्रिक नीति पर बनी कमेटी(एमपीसी) की पिछली बैठक में तय किए गए 5.2 फ़ीसदी के लक्ष्य से भी ज़्यादा था. बढ़ती मुद्रास्फीति की दर के चलते अब यह बहस छिड़ गई है कि क्या वाक़ई ऐसी स्थिति लंबी अवधि के लिए बनी रहेगी या फिर यह कुछ वक़्त के लिए है. बढ़ती मुद्रास्फीति की दर को कम करने के लिए नीतियों का निर्धारण इस बात पर निर्भर करता है कि इस विवाद का आकलन कौन किस ओर से करता है. अप्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का विश्लेषण इसके स्वरूप की ओर इशारा करता है.\

बढ़ती मुद्रास्फीति की दर के चलते अब यह बहस छिड़ गई है कि क्या वाक़ई ऐसी स्थिति लंबी अवधि के लिए बनी रहेगी या फिर यह कुछ वक़्त के लिए है. 

श्रेणीवार मुद्रास्फीति विश्लेषण

  • फूड एंड बिवरेज इंडेक्स जिसकी सीपीआई में सबसे  86 फ़ीसदी की हिस्सेदारी है, मई 2021 के 5.24 फ़ीसदी के मुकाबले यह जून 2021 में 5.58 फ़ीसदी तक पहुंच गई. सीपीआई के आंकड़े में यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से पहले तेल फिर फैट, अंडे, फल और दाल की क़ीमतों में वृद्धि की वजह से दर्ज़ की गई. खाने पीने की चीजों की क़ीमत में यह बढ़ोतरी जून 2021 में सीपीआई की बढ़ी हुई दर को 41 फ़ीसदी तक बढ़ाने में मदद किया.
  • फुटकर आइटम इंडेक्स जिसकी सीपीआई में32 फ़ीसदी हिस्सेदारी है, साल दर साल इसके आंकड़े में कोई बदलाव नहीं हुआ. हालांकि बीते 12 महीनों से 6 फ़ीसदी की इसकी तय सीमा से यह हमेशा ऊपर ही रही है. इस इंडेक्स में लगातार बढ़ोतरी की वजह स्वास्थ्य और ट्रांसपोर्ट पर बढ़ता हुआ ख़र्च है. शायद इन आंकड़ों में कोरोना महामारी के चलते अचानक हुई ख़र्च में बढ़ोतरी की ओर यहां इशारा किया गया है. इसकी सबसे बड़ी वजह कोरोना महामारी के बाद स्वास्थ्य और यातायात में भारी ख़र्च है. जून 2021 के सीपीआई मुद्रास्फीति की बढ़ी हुई दर में इसकी हिस्सेदारी 31.6 फ़ीसदी रही.
  • सीपीआई में फ्यूल और लाइट मुद्रास्फीति इंडेक्स की हिस्सेदारी84 की है, जो मई 2021 के साल दर साल के 11.86 फ़ीसदी के आंकड़े से बढ़कर जून 2021 में 12.68 फ़ीसदी हो गया. इसके साथ ही पेट्रोल और डीजल की क़ीमतों में बढ़ोतरी भी इसके लिए ज़िम्मेदार है. क्रूड ऑयल की अंतर्राष्ट्रीय क़ीमतों में लगातार बढ़ोतरी की वजह से कई शहरों में पेट्रोल की क़ीमत 100 रु. के पार चली गई. इसे लेकर भविष्य में एक प्रणालीगत जोख़िम बना रहता है क्योंकि सरकार के लिए ऊंचे उत्पाद शुल्क से अतिरिक्त आय की मांग और मुद्रास्फीति के बढ़ते दर के बीच संतुलन बना पाना बेहद मुश्किल होता है. बीते तीन महीने से सीपीआई में फ्यूल और लाइट इंडेक्स की हिस्सेदारी बढ़ती जा रही है, और जून 2021 के जारी आंकड़ों के मुताबिक बढ़ी हुई सीपीआई में इसकी हिस्सेदारी 12.9 फ़ीसदी की है.
  • सीपीआई में कपड़े और फुटवियर की हिस्सेदारी53 फ़ीसदी है जो साल दर साल जून 2021 में 6.21 फ़ीसदी तक बढ़ गई. मई 2021 में साल दर साल यह आंकड़ा 5.3 फ़ीसदी था. बीते छह महीनों में सीपीआई में कपड़े और फुटवियर इंडेक्स की हिस्सेदारी 5 से 6 फ़ीसदी थी लेकिन जून 2021 में जारी किए गए आंकड़े के मुताबिक सीपीआई में बढोतरी में इसकी हिस्सेदारी 6.4 फ़ीसदी की थी.
  • हाउसिंग प्राइस इंडेक्स जिसकी सीपीआई में हिस्सेदारी 07 फ़ीसदी है वह साल दर साल जून 2021 के आंकड़े के मुताबिक 3.75 दर्ज़ की गई जबकि साल दर साल मई 2021 में यह 3.86 फ़ीसदी थी. बीते तीन महीने से सीपीआई में हाउसिंग प्राइस इंडेक्स की हिस्सेदारी लगातार घट रही है और जून 2021 में सीपीआई में बढ़ोतरी में इसकी हिस्सेदारी 6.1 रही.
  • पान, तंबाकू और दूसरे नशीले उत्पादों की सीपीआई में 38 फ़ीसदी हिस्सेदारी है जो मई के 3.86 फ़ीसदी के आंकड़े के मुक़ाबले जून 2021 में 3.75 फ़ीसदी दर्ज़ की गई.

सीपीआई आंकड़ों का स्थानिक पहलू

सीपीआई के स्थानिक विश्लेषण के लिए हमने साल दर साल जून 2021 की 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की मुद्रास्फीति दर को जोड़ा है. जिसके बाद जो साल दर साल सीपीआई के आंकड़े सामने आए उसमें मई 2021 के 6.5 फ़ीसदी के मुक़ाबले इसमें जून 2021 में थोड़ी गिरावट दर्ज़ की गई और यह आंकड़ा 6.2 फ़ीसदी तक पहुंच गया. इसी दौरान शहरी क्षेत्र में सीपीआई 5.9 फ़ीसदी के मुकाबले 6.4 फ़ीसदी तक पहुंच गई.

हालांकि जून 2021 में ग्रामीण क्षेत्र में सीपीआई के आंकड़ों में गिरावट देखी गई बावज़ूद इसके ग्रामीण क्षेत्रों में मुद्रास्फीति की बढ़ती दर चिंता का विषय बनी हुई है. देश भर के स्थानिक मानचित्र के विश्लेषण के आंकड़े अगर देखें तो इससे पता चलता है कि ज़्यादा आबादी वाले राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में मुद्रास्फीति की दर ना सिर्फ 6 फ़ीसदी के स्तर से ऊपर है बल्कि यह शहरी क्षेत्रों के मुकाबले भी ज़्यादा है.\

शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में तेजी आने की मुख्य वजह खाने (अंडा, तेल और फैट), फ्यूल, स्वास्थ्य और यातायात के साधनों की कीमतों में बढ़ोतरी है. हालांकि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सीपीआई इंडेक्स के बढ़ने के वही कारण हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इसका असर ज़्यादा हुआ. 

शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में तेजी आने की मुख्य वजह खाने (अंडा, तेल और फैट), फ्यूल, स्वास्थ्य और यातायात के साधनों की कीमतों में बढ़ोतरी है. हालांकि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सीपीआई इंडेक्स के बढ़ने के वही कारण हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इसका असर ज़्यादा हुआ. इसकी वजह यह है कि सीपीआई की गणना में शहरी क्षेत्र के मुकाबले ग्रामीण इलाक़ों की हिस्सेदारी ज़्यादा होती है.

मुद्रास्फीति: क्षणिक या स्थायी ?

ऐसा लगता है कि मुद्रास्फीति क्षणिक और स्थायी कारकों के संयुक्त असर का नतीजा होता है. आपूर्ति की ओर से बने दबाव का नतीजा होता है कि खाने पीने की चीज़ों की क़ीमतें बढ़ जाती है और फिर  दक्षिण पश्चिम मॉनसून के सामान्य होते ही इसमें गिरावट दर्ज़ की जाती है. इसके साथ ही सरकार द्वारा दालों के बफर स्टॉक के प्रबंधन में हस्तक्षेप करने से भी इनकी कीमतों में कमी दर्ज़ होती है. हालांकि खाद्य तेलों की क़ीमतों में बढ़ोतरी चिंता का विषय बनी हुई है जो कि अंतर्राष्ट्रीय क़ीमतों की ओर इशारा करती है. इसलिए खाद्य पदार्थों की क़ीमतों में आई तेजी एक क्षणिक पहलू है.

हालांकि क्रूड और बेस मटेरियल की अंतर्राष्ट्रीय कमोडिटी प्राइस के लगातार बढ़ने से कुछ जोख़िम जरूर पैदा हो रहे हैं. ख़ास कर भारत जैसे देश जो ज़्यादातर आयात पर आधारित हैं इस वजह से यहां प्रणालीगत जोख़िम ज़्यादा बढ़ जाता है. लगातार पूर्ति में कटौती का नतीजा है कि क्रूड तेल की क़ीमतों में तेजी देखी जा रही है तो कोरोना के बाद पाबंदियां हटने से दुनिया की अर्थव्यवस्था में धातु की कीमतों में भी बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है. इसमें दो राय नहीं कि इन दोनों के चलते दीर्घकालीन मुद्रास्फीति दर बढ़ने का ख़तरा बढ़ गया. तेल बाज़ार भी तब तक परिवर्तनशील बनी रहेगी जब तक तेल उत्पादक देशों की तेल उत्पादन को लेकर रणनीति साफ नहीं हो जाती है. और जब तक यह साफ नहीं हो जाता है तब तक घरेलू मुद्रास्फीति के दर के बारे में कुछ साफ नहीं कहा जा सकेगा.

अगर सरकार इस साल के अंत तक हमारी आबादी के एक बड़े हिस्से का वैक्सीनेशन करवा लेती है तो वित्तीय वर्ष 2021-22 की चौथी तिमाही में इस उप घटक का दबाव घट सकता है.

इसके अलावा पूरे देश में मुद्रास्फीति की बढ़ती दर की एक मुख्य वजह स्वास्थ्य क्षेत्र में ख़र्च भी है. हालांकि, इस उप-घटक की मुद्रास्फीति की प्रवृति पूरी तरह से टिकाऊ नहीं लगती है. हालांकि यह प्रवृति अर्थव्यवस्था में बनी रहती है या नहीं यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आने वाले महीनों में कोविड के वैक्सीनेशन और कोरोना संक्रमण की रफ़्तार क्या रहती है. अगर सरकार इस साल के अंत तक हमारी आबादी के एक बड़े हिस्से का वैक्सीनेशन करवा लेती है तो वित्तीय वर्ष 2021-22 की चौथी तिमाही में इस उप घटक का दबाव घट सकता है.

आरबीआई की मौद्रिक नीति बनाने वाली कमेटी के सामने यह बेहद चुनौतीपूर्ण होगा कि वो कैसे पारंपरिक विकास बनाम मुद्रास्फीति के विवाद को सुलझा सकेंगे. इसमें दो राय नहीं कि आर्थिक विकास पहली प्राथमिकता होगी लेकिन मुद्रास्फीति की बढ़ती दर पर भी ध्यान देना ज़रूरी होगा. आरबीआई ने पॉलिसी रेट को 4 फ़ीसदी से कम रखा है और महामारी से अर्थव्यवस्था के उबरने के लिए एक उदार रूख़ अपनाया हुआ है. आगे बढ़ते हुए आरबीआई एक उदार रूख़ बनाए रखने का विकल्प चुन सकती है जिससे परिवार की मुद्रास्फीति दर को कम करने की अपेक्षाओं को पूरा किया जा सके और क़ीमतों में स्थिरता देखने के लिए इंतज़ार कर सके.

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