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छोटे उपग्रह (सेटेलाइट) प्लेटफार्मों की प्रगति ने सेटेलाइट अर्थ ऑब्जर्वेशन (ईओ) कारोबार संचालन के तरीकों में आधारभूत बदलाव ला दिए हैं।
छोटे सेटेलाइट प्लेटफार्मों की प्रगति ने सेटेलाइट अर्थ ऑब्जर्वेशन (ईओ) कारोबार संचालन के तरीकों में आधारभूत बदलाव ला दिए हैं, क्योंकि सेवा और मूल्य के मॉडल लगातार बदल रहे हैं। उपग्रहों के तारामंडल, उद्योग के कंसोलिडेशन और विश्लेषण के आंकड़े (एनलाइजिंग डेटा जिन्हें अक्सर बिग डेटा कहा जाता है) की उपलब्धता में वृद्धि की वजह से व्यावसायिक उपग्रह ईओ कारोबार में बदलाव आ रहे हैं। हालांकि सेटेलाइट ईओ सेवाओं के कारोबार का मामला उद्योग जगत के लिए अब भी विभिन्न कारणों से उलझा हुआ ही है। इसी वजह से सरकारी प्रयासों से आगे बढ़ कर इसका व्यापक स्तर पर कारोबार मुमकिन नहीं हो सका है। लेकिन प्लानेट, टेरा बेला, स्पायर और ब्लैक स्काय ग्लोबल जैसे छोटे सेटेलाइट ऑपरेटर इस अवधारणा को बदल रहे हैं कि बड़े उपग्रह में निवेश करना ही जरूरी है और इनके बिना किराए पर सेवा लेने वाले भरोसेमंद ग्राहक हासिल कर उद्योग जगत में सफल होना मुमकिन नहीं हो सकता।
एनएसआर के सेटेलाइट बेस्ड अर्थ ऑब्जर्वेशन के 8वें संस्करण की रिपोर्ट में आकलन पेश किया गया है कि डेटा, मूल्य आधारित सेवाएं, इंफोर्मेशन प्रोडक्ट्स और उपग्रह आधारित ईओ से हासिल होने वाले बिग डेटा एनालिटिक्स अगले दशक में 43 अरब डॉलर के कारोबार का मौका दिलाएंगे। सेटेलाइट ईओ बाजार का हिस्सा तेजी से बढ़ने वाला है क्योंकि डाउनस्ट्रीम सेवाओं और उनमें भी खास तौर पर हाई रिजोल्यूशन डेटा जिनके रीविजिट भी ज्यादा हों, की वजह से सभी वर्टिकल्स में ईओ डेटा और सेवाओं की मांग बढ़ रही है। लेकिन उपग्रह संचालकों का शुद्ध डेटा बिक्री से होने वाला मुनाफा कम होता जाएगा, क्योंकि इन सस्ते छोटे सेटेलाइट प्लेटफार्मों के कारण आपूर्ति की अधिकता की वजह से मुकाबला बढ़ता जाएगा। इससे पूरे इंडस्ट्री चेन में इंडस्ट्री वर्टिकलाइजेशन या विलय और अधिग्रहण का दौर शुरू हो सकता है।
चुनिंदा योजनाबद्ध छोटे सेटेलाइट ईओ कंस्टलेशंस की सूची
कंपनी | देश | इन-ऑर्बिट सेटेलाइट | सेटेलाइट की योजनाबद्ध # | सेंसर का प्रकार | पूरे कंस्टलेशन की तैनाती |
हेरा सिस्टम्स | यूएस | 0 | 48 | ऑप्टिकल | 2020 |
प्लैनेट | यूएस | 51 | 150 | ऑप्टिकल | 2017 |
ब्लैकस्काय ग्लोबल | यूएस | 0 | 60 | ऑप्टिकल | 2019 |
ओम्नीअर्थ | यूएस | 0 | 18 | मल्टीस्पेक्ट्रल (एमएस) | 2018 |
प्लैनेट्री रिसोर्सेज | यूएस | 0 | 10 | हाइपरस्पेक्ट्रल | 2020+ |
एक्सेलस्पेस | जापान | 0 | 50 | ऑप्टिकल | 2020+ |
आइसआई | नार्वे | 0 | 40 | एसएआर | 2020 |
एस्ट्रो डिजिटल | यूएसए | 0 | 16 | ऑप्टिकल /एमएस | 2019-20 |
इन छोटे सेटेलाइटों का प्रभाव अधिकांश रूप से एंड-टू-एंड सोल्यूशंस के आसान प्रावधानों के जरिए एडोप्शन रेट पर पड़ा है। कारोबार का ढांचा खड़ा करने और उसके संचालन का खर्च कम होने की वजह से उत्पाद की बजाय अब सेवा पर ध्यान है। एंटरप्राइज सेवाओं को बिग डेटा एनालिटिक्स और उनसे संबद्ध इमेज, मौसम, लोकेशन और अन्य डेटासेट उपलब्ध करवाने की शुरुआत के साथ सेटेलाइट ईओ उद्योग और आगे बढ़ रहा है और इससे अमेरिकी महाद्वीप के उत्तरी हिस्से और यूरोप की फर्म जहां हाल के दिनों में काफी मजबूत हुई हैं वहीं भारत विकास की इस कहानी से दूर ही रहा है। वैश्विक ग्राहकों को सेवा प्रदान कर रहे भारत के इतने बड़े आईटी उद्योग की मौजूदगी के बावजूद इसरो और क्रॉपइन तथा सायनेट जैसी जीआईएस आधारित गिनी-चुनी कंपनियों को छोड़ कर भारत की कोई उल्लेखनीय सेटेलाइट ईओ फर्म नहीं है।
अगर इसरो के सेटेलाइट ईओ कार्यक्रम की कामयाबी को बड़े व्यावसायिक उद्योग में नहीं बदला जा सका तो यह भारत के लिए हाथ में आए मौके को गंवा देने जैसा होगा। जबकि वह भविष्य के इस बड़े उद्योग में नेतृत्व की भूमिका में आ सकता था और सरकार भी सेटेलाइट को डिजिटल अर्थव्यवस्था में शामिल करने की बेहद आक्रामक अंदाज में कोशिश कर रही है। इसरो ने विभिन्न नागरिक एजेंसियों के साथ ढांचागत संसाधनों की निगरानी, फसल बीमा, वाटरशेड विकास, परिसंपत्तियों के प्रबंधन और मैपिंग जैसी सेवाओं के लिए 170 समझौते (एमओयू) किए हैं और भारतीय बाजार में अभी सेटेलाइट ईओ सेवा के लिए प्रचूर क्षमताएं हैं। लेकिन इसरो और सरकार को यह सवाल जरूर पूछना चाहिए कि– क्या इसरो अकेले सभी ग्राहकों को समय पर सारी सेवाएं दे सकता है?
एनएसआर उम्मीद जताता है कि छोटे सेटेलाइट प्लेटफार्मों और डेटा एनालिटिक्स जैसे ट्रेंड सेटेलाइट इमेज आधारित विश्लेषण को सर्वसुलभ करवाने में अहम भूमिका निभाएंगे और अगले दशक तक सामान्य कारोबार प्रक्रिया का अहम हिस्सा बन जाएंगे। वैश्विक सेटेलाइट ईओ बाजार में बहुत व्यापक अवसर हैं, अगर भारत को इसका लाभ उठाना है, तो पहले कदम के तौर पर ईएसए के कॉपरनिकस प्रोग्राम से प्रेरणा लेनी होगी जिसने व्यावसायिक कंपनियों के लिए एक ईको-सिस्टम तैयार किया जहां वे घरेलू और वैश्विक बाजार में मुकाबले का साफ-सुथरे तरीके से सामना कर सकती हैं। भारत की स्थानीय कंपनियों के लिहाज से सबसे बड़ी चुनौती नियमों को ले कर अनिश्चितता है और बेहतर घरेलू व्यावसायिक सेटेलाइट ईओ उद्योग को खड़ा करने के लिए रिमोट सेंसिंग डेटा पॉलिसी, 2011 में संशोधन कर शुरुआती प्रेरणा उपलब्ध करवाई जा सकती है।
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Prateep Basu is an analyst at Northern Sky Research (NSR). He has worked as a liquid propulsion engineer in ISRO at Sriharikota prior to joining ...
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