Author : Ramanath Jha

Published on Jun 12, 2023 Updated 0 Hours ago
खारघर त्रासदी: सबक जो सीखे जाने चाहिए

16 अप्रैल 2023 को, एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, डी. एन. धर्माधिकारी को प्रतिष्ठित महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार से सम्मानित करने के लिए मुंबई के खारघर में एक खुले मैदान में कई लाख लोग एकत्रित हुए थे. महाराष्ट्र सरकार द्वारा आयोजित यह सम्मान समारोह सुबह देरी से शुरू हुआ और दोपहर करीब 1:15 बजे तक चला था. जैसे-जैसे सम्मान समारोह आगे बढ़ा तापमान, मौसम विभाग (IMD) के 34 से 35 डिग्री सेल्सियस के पूर्वानुमान से चार डिग्री सेल्सियस अधिक हो गया था. वीआईपी उपस्थिति को देखते हुए, अनेक निकास द्वार सुरक्षा कारणों से बंद कर दिए गए थे, जबकि पानी के टैंकरों को भी सभा से काफी दूरी पर उपलब्ध कराया गया था. पानी के टैंकरों के आसपास मौजूद भीड़भाड़ ने पानी के टैंकरों तक वृद्धों की पहुंच को ख़त्म कर दिया था. इसी प्रकार दूर खड़ी अपनी बसों में तक लौटने के दौरान अनेक लोग बेहोश हो गए. इन लोगों को काफ़ी देर के बाद पास के अस्पतालों में ले जाया गया. अनेक लोग, विशेष रूप से वृद्ध महिलाएं और पुरुष, भीषण गर्मी और उमस में खुद को बचाए नहीं रख सके. पीने के पानी और चिकित्सा सहायता प्रदान करने से पहले ही तेरह लोगों की मृत्यु हो गई थी. खारघर त्रासदी को भारत की हाल की मानव निर्मित आपदाओं में उच्च स्थान दिया जाना चाहिए.

वीआईपी उपस्थिति को देखते हुए, अनेक निकास द्वार सुरक्षा कारणों से बंद कर दिए गए थे, जबकि पानी के टैंकरों को भी सभा से काफी दूरी पर उपलब्ध कराया गया था. 

यह वार्षिक सम्मान समारोह अब तक मुंबई में ही छोटे स्तर पर एक सभागार में कुछ सौ लोगों की उपस्थिति में आयोजित किया जाता था. इसे खुले में एक मेगा शो में परिवर्तित करने के निर्णय के कारण अभी भी निर्धारित किए जा रहे हैं. यह एक भव्य उत्सव बनने के बजाय, एक भयानक त्रासदी में बदल गया. स्थानीय प्रशासन ने दलील दी है कि पुरस्कार विजेता ने स्थल का चयन किया, और स्थानीय प्रशासन ने सिर्फ़ उनके अनुरोध को स्वीकार किया था. राज्य सरकार ने इस त्रासदी की एक अतिरिक्त मुख्य सचिव से जांच करवाने की घोषणा की है. दोष दूसरों पर डालने और कोई ज़िम्मेदारी स्वीकार नहीं करने का यह रवैया असहज करने वाला है. यह इस बात की गारंटी नहीं देता कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होगी.

बढ़ती लू 

वैश्विक स्तर पर, साल-दर-साल रिकॉर्ड की गई चेतावनी से साफ़ है कि दुनिया ख़तरनाक रूप से गर्म हो रही है. सरकारों और अन्य हितधारकों द्वारा संशोधित पर्यावरणीय व्यवहार की दिशा में प्रयास असफ़ल साबित हो रहे है. ऐसे में और अधिक भयानक भविष्यवाणियां करने से बचने के लिए देशों ने ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने पर ध्यान केंद्रित किया है.  दुनिया का कोई भी हिस्सा ग्लोबल वार्मिंग से अछूता नहीं है; खारघर भी इसका अपवाद नहीं है. भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि लू के कारण मृत्यु दर किसी भी अन्य प्राकृतिक ख़तरे से अधिक है. बच्चे और बुजुर्ग, विशेष रूप से हृदय और श्वसन रोग, गुर्दे की बीमारी और मानसिक विकार जैसी बीमारियों से पीड़ित लोग इसके प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं.

भारत के लिए भीषण गर्मी कोई नई बात नहीं है. लेकिन, हाल के वर्षों में, देश के अनेक हिस्सों में गर्मी के अनेक दिनों में असामान्य रूप से उच्च तापमान – 4oC-5 oC (39.2 oF-41 oF) सामान्य से अधिक देखा गया है. इसकी वज़ह से लू चलती है. वैश्विक स्तर पर, ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में निर्मित शहरी क्षेत्र हीटवेव यानी लू के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं. घटते प्राकृतिक परिदृश्य- उदाहरण के लिए, जंगलों और जल निकायों- ने शहरी क्षेत्रों में अनुभव की जाने वाली गर्मी में इज़ाफ़ा किया है. कंक्रीट (और तेज़ी से कांच) संरचनाएं, सड़कें, और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे सूर्य की गर्मी को प्राकृतिक वातावरण में प्रतिबिंबित यानी रिफ्लेक्ट करते हैं. गर्मी-अवशोषित बुनियादी ढांचे और सीमित हरियाली की उच्च सांद्रता वाले शहरों ने तेज़ी से ‘हीट आइलैंड इफेक्ट’ का अनुभव किया है. इसका कारण यह है कि निर्मित शहरी क्षेत्रों में तापमान परिधीय और ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में दिन के दौरान 7oF अधिक और रात के दौरान दर्ज़ किए गए तापमान से 5oF अधिक होता है.

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि लू के कारण मृत्यु दर किसी भी अन्य प्राकृतिक ख़तरे से अधिक है.


केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के एक अध्ययन के अनुसार, 1901 और 2018 के बीच भारत का औसत तापमान 0.67 सेल्सियस बढ़ा है. इस अध्ययन का अनुमान है कि 2100 तक पूरे भारत में तापमान 4.3 सेल्सियस बढ़ जाएगा. इसके अलावा लू में दो या तीन के फैक्टर से वृद्धि होगी. इतना ही नहीं लू की अवधि 1976-2005 की अवधि की तुलना में दोगुनी हो जाएगी. मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट ने भी इसी तरह की भविष्यवाणी की है. और इस तरह के अनुमानों के अनुसार, पूरे भारत में चल रही गर्मी बेहद गंभीर रही है. उत्तर, मध्य और पूर्वी भारत-विशेष रूप से महाराष्ट्र, बिहार, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और दिल्ली-एनसीआर- ने अप्रैल की शुरुआत से तीव्र गर्मी का अनुभव किया है. IMD ने भी इसे लेकर चेतावनी दी थी.

इस तरह की गंभीर भविष्यवाणियों के बावजूद, भारत अभी भी कानूनी रूप से हीटवेव को एक आपदा के रूप में मान्यता नहीं दे पाया है. हालांकि, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने हीटवेव को रोकने और प्रबंधित करने के लिए डिस्ट्रिक्ट हीट एक्शन प्लान (HAPs) तैयार करने के लिए दिशानिर्देश प्रकाशित किए हैं. इन दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए, रायगढ़ जिला प्रशासन ने एक HAP तैयार किया, जिसमें जिले को “मध्यम” श्रेणी की लू की स्थिति में रखा गया था. हालांकि, जैसा कि खारघर त्रासदी से पता चला है, योजना बनाना ही लू की रोकथाम के लिए पर्याप्त पूर्व शर्त नहीं है; बल्कि योजनाओं को क्रियान्वित करना होगा. खारघर त्रासदी में इवेंट मैनेजमेंट और आपदा प्रबंधन की अनेक ख़ामियां और विफ़लताएं स्पष्ट थीं.

सरकारों को इस बात को समझना चाहिए कि प्राकृतिक और भौतिक वातावरण में काफ़ी बदलाव आया है, और अब पुराने, व्यवस्थित तरीकों का उपयोग करके काम नहीं किया जा सकता है. गर्मी के गर्म महीनों के अलावा, जलवायु की स्थिति व्यापक और लगातार उतार-चढ़ाव के साथ बहुत अप्रत्याशित हो गई है.

सीखे जाने वाले सबक


भारत में सभी स्तरों पर प्रशासन को खारघर त्रासदी से सबक लेकर लू के प्रभाव से निपटने के लिए तैयारी करने और उससे निपटने के लिए अनेक उपायों को अपनाना चाहिए. पहला कदम आपदा प्रबंधन अधिनियम (2005) में संशोधन किया जाना चाहिए, ताकि लू को एक प्राकृतिक आपदा के रूप में मान्यता दी जा सके. ऐसा होने पर ही केंद्र, राज्यों और शहरी स्थानीय निकायों को लू की स्थिति से निपटने और विफ़लताओं के मामले में जवाबदेही तय करने के लिए वैधानिक शक्तियों से लैस किया जा सकेगा. ऐसा वैधानिक प्रावधान ही राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय नीतियों के माध्यम से शमन उपायों और स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप हीटवेव के अनुकूलन प्रतिक्रियाओं में भी मदद करेगा.

खारघर त्रासदी से पता चला है, योजना बनाना ही लू की रोकथाम के लिए पर्याप्त पूर्व शर्त नहीं है; बल्कि योजनाओं को क्रियान्वित करना होगा. खारघर त्रासदी में इवेंट मैनेजमेंट और आपदा प्रबंधन की अनेक ख़ामियां और विफ़लताएं स्पष्ट थीं.


विशेष रूप से, आमतौर पर इस तरह के बड़े पैमाने पर सार्वजनिक समारोहों का आयोजन करने वाले राजनीतिक दलों और धार्मिक संगठनों को यह समझना चाहिए कि आज की डिजिटल दुनिया में लाइव स्ट्रीमिंग के माध्यम से लाखों लोगों तक प्रत्यक्ष और वास्तविक समय में पहुंचा जा सकता है. केवल तकनीक को अपनाने और इस मानसिकता से बाहर आने की आवश्यकता है कि किसी कार्यक्रम की सफ़लता का आकलन वहां एकत्रित होने वाले लोगों की संख्या से किया जाना चाहिए. यही बात अकेले यह सुनिश्चित करेगी कि खारघर में देखी गई त्रासदी को न दोहराया जाएं, जिसमें लोगों को अपने बहुमूल्य जीवन से हाथ धोना पड़ा था.

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