2023 टेक्नोलॉजी, ख़ासतौर से इसके भू-राजनीतिक निहितार्थों के लिए एक शानदार साल रहा है. भविष्य की ओर उन्मुख टेक बबल्स से जेनेरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उभार हुआ और नए अनुप्रयोगों के ज़रिए इसने वैश्विक स्तर पर सार्वजनिक चेतना[i] तक पैठ बना ली; राजनीतिक और आर्थिक टकराव के उभार (दोबारा उभार) में अक्सर एक तकनीक़ी पहलू शामिल रहा है; और बाधाकारी उभरती प्रौद्योगिकियों के विनियमन को लेकर मल्टीस्टेकहोल्डर परिचर्चाओं में लगातार बढ़ोतरी हुई है. ये व्यापक रूप से स्वीकारा गया है कि तकनीक़, अंतर्निहित रूप से ना तो अच्छा और ना ही बुरा होता है, और ना ही ये तटस्थ है.[ii] पिछले साल नवाचार भरे तकनीक़ी समाधानों का एक घालमेल देखा गया, जिसमें नई तकनीक़ के विकास और तैनाती के साथ-साथ इसके संभावित नुक़सान को लेकर चिंताओं का उलझाव भी शामिल था.
अच्छाई: विकास के लिए तकनीक़ और विनियमन को लेकर सर्वसम्मति
2023 में सरकारों और उद्योग जगत ने विकास के लिए तकनीक़ में भारी-भरकम निवेश किया, और बिग डेटा के साथ-साथ AI जैसी प्रौद्योगिकियों को तमाम क्षेत्रों में क्रियान्वित किया गया. इनमें स्वास्थ्य सेवा[iii], कृषि[iv], शिक्षा[v], दूरसंचार और 5G,[vi] और हरित ऊर्जा[vii] शामिल हैं. जेनेरेटिव AI, कालांतर में तमाम क्षेत्रों में तेज़ी से और बड़े पैमाने पर लागू किए जाने वाले सबसे मूल्यवान प्रौद्योगिकियों में से एक बन गया. 2023 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में इसके द्वारा 44.89 अरब अमेरिकी डॉलर[viii] का योगदान किए जाने का अनुमान है. भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं द्वारा आगे बढ़ाई गई डिजिटल भुगतान प्रणालियों (जैसे डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे (DPI)) को भी अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिला है, इस तरह पश्चिमी बिग टेक के दबदबे की काट में संभावित संतुलनकारी शक्ति के संकेत मिले हैं.
अनेक देशों और समूहों ने भी ये समझा है कि AI जैसी नई तकनीक़ों का व्यापक और समयबद्ध विनियमन, उनके उपयोग से सामने आ सकने वाले संभावित नुक़सानों को पाटने या उन्हें न्यूनतम करने के लिए आवश्यक है.
अनेक देशों और समूहों ने भी ये समझा है कि AI जैसी नई तकनीक़ों का व्यापक और समयबद्ध विनियमन, उनके उपयोग से सामने आ सकने वाले संभावित नुक़सानों को पाटने या उन्हें न्यूनतम करने के लिए आवश्यक है. चीन ने जेनेरेटिव AI के इर्द-गिर्द राष्ट्रीय क़ानूनों[ix] का एक समूह जारी किया है जो अगस्त 2023 में अमल में आ गया. इसके बाद अमेरिका ने इसी रास्ते पर चलते हुए अक्टूबर में AI पर कार्यकारी आदेश[x] जारी किया, और यूनाइटेड किंगडम (यूके) ने नवंबर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर बहु-प्रचारित शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की.[xi] G7 और G20 जैसे समूहों ने भी तकनीक़ पर सर्वसम्मति तैयार करने पर मंथन किया है, और इस कड़ी में क्रमश: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए आचार संहिता[xii] और साझा डिजिटल भविष्य पर नेताओं के घोषणापत्र[xiii] पर सहमत हुए हैं. राष्ट्रीय सीमाओं और सरकारों से परे, यूरोपीय संघ (EU) ने यूरोपीय संघ AI अधिनियम[xiv] को अंतिम रूप देते हुए अस्थायी रूप से इस पर सहमति भी जताई है. साथ ही अलग मंचों ने अपनी ख़ुद की प्रक्रियाएं स्थापित की हैं. इनमें बहुपक्षीय स्तर पर AI पर संयुक्त राष्ट्र (UN) का उच्च स्तरीय सलाहकारी निकाय[xv] और AI पर मिनीलैटरल वैश्विक भागीदारी[xvi], और नीदरलैंड्स और कोरिया गणराज्य द्वारा सह-आयोजित सेना में ज़िम्मेदार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (REAIM) शिखर सम्मेलन शामिल है.[xvii]
बुराई: फ्रंटियर तकनीक़ के ख़तरे और भू-राजनीतिक टकराव
भले ही ज़िम्मेदार नवाचार इकोसिस्टम पर आधारित फंट्रियर टेक्नोलॉजी का विकास और प्रयोग ज़्यादातर राष्ट्रों के लिए एक विश्वसनीय परिकल्पना बनी हुई है, लेकिन भू-राजनीतिक रस्साकशियों की वास्तविकता ने एक अलग तस्वीर पेश की है. तकनीक़ रूपी हथियार की मौजूदा होड़ में इस साल एक नई परत जुड़ गई. रूस-यूक्रेन[xviii] और इज़रायल-फिलिस्तीन[xix] जैसे संघर्ष स्थलों में इसके उदाहरण देखे गए. आर्थिक प्रतिस्पर्धाओं ने भी तकनीक़ को अलग किए जाने के रूझान को गहरा किया है और आपूर्ति श्रृंखला के मसलों में योगदान दिया है. अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन द्वारा चीनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेमीकंडक्टर, और क्वॉन्टम विकास से जुड़ी क़वायदों में निवेश पर अंकुश लगाने से जुड़ा कार्यकारी आदेश[xx] इसकी मिसाल है.
ख़ुद तकनीक़ भी अपने दोहरे-इस्तेमाल वाली संभावना के चलते चिंताओं का सबब बन गई है. ख़ासतौर से राज्यसत्ता से इतर शैतानी किरदारों द्वारा और अंतर्निहित असंशोधित ख़ामियों के चलते ऐसी चिंताएं पैदा हुई हैं. डीपफेक के साथ-साथ झूठे प्रचार और दुष्प्रचार परिदृश्य में योगदान देने की उनकी प्रवृति या झुकाव पिछले साल बढ़ा है, जिसके अस्थिरकारी राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव हैं. इतना ही नहीं, लिंग और नस्ल के आधार पर एल्गोरिदम में पूर्वाग्रह[xxi] के साथ-साथ शिक्षा और/या कौशल के अभाव में तकनीक़ी और नीतिगत संवादों से बाहर रखे जाने की प्रवृति प्रमुख व्यवस्थागत मसले हैं, जो बदस्तूर जारी हैं और गंभीर होते चले गए हैं.
अज्ञात: भविष्य बीता हुआ कल था, तो आने वाला कल क्या होगा?
2023 में ये साफ़ हो गया कि उभरती तकनीक़ों का अंधाधुंध गति से विकास हुआ है और ये क़वायद आगे भी जारी रहने वाली है. तकनीक़ के इर्द-गिर्द होने वाले संवाद उन अनिश्चितताओं को प्रदर्शित करते हैं जो इस तेज़ रफ़्तार के साथ आते हैं. स्टेकहोल्डर्स कई अनिश्चितताओं से जूझ रहे हैं, जिनमें से एक प्रमुख अनिश्चितता ये है कि टेक को यथार्थवादी तरीक़े से विनियमित किए जाने की ज़रूरत है ताकि नवाचार बाधित ना हो, और उसी वक़्त बिग टेक, देशों और ग़ैर-राज्य किरदारों द्वारा तकनीक़ के बेलगाम विकास और उपयोग को रोका जा सके. नई प्रौद्योगिकियों का विकास भी विकेंद्रीकृत कर दिया गया है और ये देशों की रणनीतिक स्वायत्तता के दायरे के बाहर है. इसने सरकारों और टेक कंपनियों के बीच और उनके भीतर विभाजन पैदा कर दिया है, जिससे देशों के भीतर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एकाधिकार पैदा हुए हैं. साथ ही जुर्मानों और एंटी-ट्रस्ट क़ानूनों का वातावरण बना है. इस तरह राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास और व्यक्तिगत निजता के सवाल एक-दूसरे के ख़िलाफ़ खड़े हो गए हैं.
नई प्रौद्योगिकियों का विकास भी विकेंद्रीकृत कर दिया गया है और ये देशों की रणनीतिक स्वायत्तता के दायरे के बाहर है. इसने सरकारों और टेक कंपनियों के बीच और उनके भीतर विभाजन पैदा कर दिया है, जिससे देशों के भीतर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एकाधिकार पैदा हुए हैं.
इस बदलाव के इर्द-गिर्द एक कम स्थापित लेकिन तेज़ी से उभरता विचार है कपटपूर्ण तकनीक़ी प्रहार (टेकलैश)[xxii] जिसमें पिछले साल बढ़ोतरी देखी गई. कल्पनात्मक आदर्शवादी और/या भयानक और मनहूसियत भरी कथाओं के समान तकनीक़ी परिदृश्यों- जैसे डिजिटल नेक्रोमेंसी[xxiii], ग्रीफ बॉट्स[xxiv], ट्रांसलेशन ऑफ एनिमल स्पीच[xxv] और सोशल मीडिया के ज़रिए सैन्य मनोवैज्ञानक परिचालनों[xxvi]- के उभार ने असीमित नवाचार की व्यवहार्यता और सुसंगतता के बारे में व्यापक बहस छेड़ दी है. ये तकनीक़ और भू-राजनीति के इस विशाल खेल में खिलाड़ियों की पहचान करने से भी जुड़ता है, जिन्हें
Endnotes
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.