Author : Harsha Kakar

Published on Apr 23, 2018 Updated 0 Hours ago

निर्णायक हल आंतरिक स्तर पर वार्ता से ही निकलेगा, जब तक नरम रुख रखने वाले लोग कट्टरपंथियों पर हावी होंगे, तब तक बहुत से नौजवानों का जीवन बर्बाद हो चुका होगा।

चिंताजनक है कश्मीर में आतंकवाद में शामिल युवाओं की बढ़ती तादाद

कश्मीर के शोपियां में पिछले सप्ताहांत हुई मुठभेड़ में 13 आतंकवादी मारे गए, जिनमें से ज्यादातर स्थानीय थे। इस घटना पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया: “क्या दिल्ली में सत्तारूढ़ लोग इससे भयभीत नहीं हैं, क्योंकि मैं तो निश्चित तौर पर हूं।” हाल की रिपोर्टों में संकेत मिलता है कि वादी में आतंकवाद में शामिल होने वाले युवाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है। पुलिस की रिपोर्टों के अनुसार, हर तीसरे दिन एक युवक आतंकवाद में शामिल हो रहा है।

वर्ष 2016 में, आतंकवाद में शामिल होने वाले युवाओं की तादाद 88 थी, जो वर्ष 2017 में बेतहाशा बढ़कर 126 हो गई। यह पिछले सात साल में सबसे बड़ी संख्या है। बुरहान वानी का सफाया होने पर, 2016 के हिंसक गर्मियों के मौसम के बाद आतंकवाद में शामिल होने वाले युवाओं की तादाद बढ़नी शुरू हुई। वर्ष 2010 से 2015 तक, स्थानीय आतंकवादियों की संख्या बहुत कम थी और उन पर ज्यादातर पाकिस्तानी ही हावी थे और उन्हीं का नियत्रण था। स्थानीय आतंकवादियों की तादाद में यह वृद्धि इससे पहले नब्बे के दशक की शुरुआत में आतंकवाद का दौर आरंभ होने के समय देखी गई थी।

हाल ही में सयैद अली शाह गिलानी के स्थान पर तहरीक⎯ए⎯हुर्रियत पार्टी के अध्यक्ष का पदभार संभालने वाले शीर्ष अलगाववादी नेता मोहम्म्द अशरफ सहराई के पुत्र और मैनेजमेंट ग्रेजुएट जुनैद अशरफ खान के आतंकवाद में शामिल होने का व्यापक असर पड़ेगा। उसके पिता का दावा है कि वह आतंकवाद में इसलिए शामिल हुआ, क्योंकि उससे अब और ज्यादा अन्याय बर्दाश्त नहीं हो रहा और उन्होंने जुनैद को आत्मसमर्पण के लिए कहने से इंकार कर दिया।

हाल ही में सयैद अली शाह गिलानी के स्थान पर तहरीक⎯ए⎯हुर्रियत पार्टी के अध्यक्ष का पदभार संभालने वाले शीर्ष अलगाववादी नेता मोहम्म्द अशरफ सहराई के पुत्र और मैनेजमेंट ग्रेजुएट जुनैद अशरफ खान के आतंकवाद में शामिल होने का व्यापक असर पड़ेगा।

यह पहली बार है, जब हुर्रियत के किसी नेता के परिवार के करीबी सदस्य ने खुलेआम आतंकवाद का दामन थामा है। इससे वे लोग प्रेरित हो सकते हैं, जो हुर्रियत के नेतृत्व को स्वयंसेवी समझते हैं, जो अपने संबंधियों को शिक्षित बनाते हैं और सुरक्षित रोजगार में रखते हैं, जैसा कि पहले के हुर्रियत नेताओं के मामले में होता था। यहां तक कि जुनैद का सफाया भी, जो आने वाले कुछ समय में हो सकता है, हिंसक प्रदर्शनों का सबब बन सकता है।

मौजूदा दौर में आतंकवाद में शामिल होने वालों में ऐसे युवा शामिल हैं, जिन्होंने शिक्षा छोड़कर बंदूक उठा ली है। वे बखूबी जानते हैं कि उनके पास ज्यादा वक्त नहीं है। हाल की मुठभेड़ में मारे गए आतंकवादियों में से ज्यादातर ने महज साल भर पहले ही आतंकवाद की राह चुनी थी। पुलिस की रिपोर्टों के अनुसार, हाल ही में जहां एक ओर 16 आतंकवादियों ने आत्मसमर्पण किया है, वहीं उनसे कहीं ज्यादा युवा आतंकवाद में शामिल हो रहे हैं। यह नया रुझान आतंकवाद को एक स्थानीय स्वरूप दे सकता है। इसीलिए उमर अब्दुल्ला के ट्वीट पर विशेष तौर पर गौर करने की जरूरत है।

अनंतनाग में, हाल में हुई मुठभेड़ की घटना में माता⎯​पिता के बार⎯बार अपील करने के बावजूद रउफ खानडे ने आत्मसमर्पण करने से इंकार कर दिया और मारा गया। उसके पिता के मुताबिक, उनका परिवार हिंसा का खिलाफ है, लेकिन 2016 की अशांति के दौरान रउफ की गिरफ्तारी और उसके बाद 45 दिन की कैद ने उसे बदल डाला और आतंकवाद के गर्त में धकेल दिया।

आत्मसमर्पण से इंकार करने का यह अकेला मामला नहीं है, हाल ही में अन्य युवाओं के भी ऐसा करने की खबर है। माता⎯पिता बेबस हो जाते हैं, क्योंकि गुमराह नौजवान यह समझकर आतंकवाद का चोला पहन लेते हैं कि वे आजादी की जंग लड़ रहे हैं, जबकि वह इस हकीकत से अनजान होते हैं कि वे ऐसे मतलबी नेताओं के हाथ का खिलौना बन रहे हैं, जो इस बात से वाकिफ हैं कि आजादी केवल ख्वाब ही रह जाएगी। इन नेताओं को पाकिस्तानी डीप स्टेट यानी वहां की सेना और खुफिया एजेंसियों की ओर से शह मिल रही है, जो लगातार आतंकवाद के लिए धन मुहैया करा रहे हैं और रास्ता दिखा रहे हैं।

जम्मू कश्मीर के पुलिस महानिदेशक ने वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों और अन्य सुरक्षा अधिकारियों के साथ मिलकर अभिभावकों से अपील की कि वे अपने बच्चों को हिंसा का रास्ता छोड़ने के लिए राजी करें। उन्होंने कहा, “युवाओं की ऐसी मौतें देखना हम सभी के लिए पीड़ादायक है।” उन्होंने स्थानीय लोगों से भी यह अपील की कि वे मुठभेड़ वाली जगहों पर जाने से बचें, क्योंकि वहां हमेशा घायल होने या मारे जाने का अंदेशा रहता है। यहां तक कि जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी नियमित तौर पर ऐसी अपीलें करती रहती हैं। ऐसा नियमित अंतराल पर दोहराया जाता रहेगा, लेकिन इसका कोई असर होगा या नहीं, इस पर संदेह है, क्योंकि युवाओं को लगातार बरगलाया जा रहा है।

युवाओं के आतंकवाद में शामिल होने के पीछे कई कारण गिनाए जा रहे हैं। इनमें मुस्लिम राष्ट्रवाद का उदय, धार्मिक विचार और सुरक्षा बलों द्वारा अपनाई जाने वाली कड़ी सशस्त्र रणनीतियां शामिल हो सकती हैं। इनके अलावा, इसका मुख्य कारण हुर्रियत और उसके समर्थकों द्वारा आतंकवादियों को महिमामंडित करना भी हो सकता है। जनाजे में जुटने वाली भारी भीड़, नारेबाजी और समर्थन का प्रदर्शन अन्य युवाओं को भी इसी रास्ते पर चलने के लिए उकसाता है।

युवाओं के आतंकवाद में शामिल होने के पीछे कई कारण गिनाए जा रहे हैं। इनमें मुस्लिम राष्ट्रवाद का उदय, धार्मिक विचार और सुरक्षा बलों द्वारा अपनाई जाने वाली कड़ी सशस्त्र रणनीतियां शामिल हो सकती हैं।

वे, खासतौर पर युवाओं को भड़काने वाले लोग इस बात को समझने में विफल रहे हैं कि उनकी कारगुजारियों से भी कभी भी कुछ भी हासिल नहीं होगा। कोई भी देश, खासतौर पर भारत, चाहे कितना ही अंतर्राष्ट्रीय या राष्ट्रीय दबाव क्यों न पड़े, कभी भी किसी हिस्से को अलग होने या स्वयं को स्वतंत्र घोषित करने की इजाजत नहीं देगा, भले ही आतंकवाद कितना ही प्रबल क्यों न हो और उसे कितनी ही अंतर्राष्ट्रीय सहायता मिलती हो। अंतर केवल इतना ही है कश्मीर का मामला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित है, वह भी केवल पाकिस्तान के समर्थन की वजह से और वह ऐसा लगातार करता रहेगा।

भारत ने दशकों तक नागा उग्रवाद का मुकाबला किया है, जिसके कारण बड़ी तादाद में लोग मारे गए, और अंत में संघर्षविराम हुआ। उसे अं​तिम रूप देने के लिए बातचीत अब तक जारी है। मिजो उग्रवाद पर भी काबू पाया गया और उसका अंत भी संघर्ष​विराम से हुआ। दोनों ही मामलों में, नेताओं की मौजूदगी थी, जिनसे केंद्र विचार विमर्श कर सकता था, जबकि कश्मीर में हुर्रियत नेतृत्व अड़ियल रुख बरकरार रखे हुए है। ऐसा ही रुख, नागा और मिजो नेताओं ने उग्रवाद के आरंभिक दौर में अपना रखा था। पंजाब में, पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का फन कुचल दिया गया। भले ही हालात हर एक मामले के अलग थे, लेकिन वास्तविकता यही रही कि भारत सरकार ने सफलता पाने का दृढ़ निश्चय किया।

शोपियां की मुठभेड़ के बाद पर्यटकों पर पथराव की घटना से राज्य की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा और सीधे तौर पर इसके पीछे राष्ट्र विरोधी ताकतों का हाथ है, जिनका हित हिंसा को बढ़ावा देने और जनता से वास्तविकता छुपाने में है। इसका लक्ष्य शान्ति की कोशिशें करने वालों से उनकी रोज़ी रोटी छीनना, उन्हें भी हताश होकर सड़कों पर उतरने को मजबूर करना है।

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जैसा कि दुनिया भर के हिंसक विद्रोहों से साबित हो चुका है, कोई परिवर्तनकारी मोड़ अवश्य आएगा। | फोटो: एस. इरफान/पीटीआई

स्थानीय स्तर पर प्रबल आतंकवाद की परिणति जम्मू कश्मीर में विकास ​में कमी, जान के नुकसान और स्थानीय लोगों के लिए मुश्किल समय के रूप में होगी, क्योंकि सुरक्षा बलों को कार्रवाई करने के लिए मजबूर होना होगा। आतंकवादियों के समर्थन में पथराव करने तथा सुरक्षा बलों को कामयाब न होने देने की बढ़ती घटनाओं से हालात और ​बिगड़ेंगे, जिससे हताहतों की तादाद और अलगाव बढ़ने की आशंका है।

हुर्रियत और उसके पाकिस्तानी समर्थक भारतीय सुरक्षा बलों की ताकत से बखूबी वाकिफ़ हैं। उन्हें इस बात का भी अहसास है कि हिंसा से कोई हल नहीं निकलेगा। वे इस बात से भी अवगत हैं कि बन्दूक के साये में पाकिस्तान के साथ कभी भी वार्ता नहीं हो सकती। हालांकि पाकिस्तान के मार्गदर्शन में तथा भारत को लहूलुहान करने की कोशिश करने की उसकी रणनीति का वे आंखें मूंद कर पालन कर रहे हैं। इसी गलत विश्वास के कारण, युवा उनके आदर्शों की ओर खिंचे चले जा रहे हैं, जिसका अंजाम त्रासद होता है। नरम रुख अपनाने वाले, जो समझ चुके हैं कि यह हिंसा उन्हें कहीं का नहीं छोड़ेगी, इसलिए वे खामोश रहने के लिए बाध्य हैं, क्योंकि फिलहाल यह आंदोलन कट्टरपंथियों के शिकंजे में है।

सरकार भी इस बात से अवगत है कि दुनियाभर में होने वाले हिंसक विद्रोहों से यह साबित हो चुका है कि कोई न कोई क्रांतिकारी मोड़ आता है। ऐसा तब होता है, जब यह बात समझ में आती है कि चुने गए हिंसक मार्ग से कभी कोई समाधान नहीं निकलेगा। चाहे फौरन हो या बाद में, लेकिन ऐसा होगा अवश्य। कोई भी देश खुद को बांटने की इजाजत नहीं दे सकता, चाहे उसके कितने ही लोग स्थानीय आतंकवादियों के साथ जा शामिल हों।

नरम रुख अपनाने वाले, जो समझ चुके हैं कि यह हिंसा उन्हें कहीं का नहीं छोड़ेगी, इसलिए वे खामोश रहने के लिए बाध्य हैं, क्योंकि फिलहाल यह आंदोलन कट्टरपंथियों के शिकंजे में है.. कोई भी देश खुद को बांटने की इजाजत नहीं दे सकता, चाहे उसके कितने ही लोग स्थानीय आतंकवादियों के साथ जा शामिल हों।

निर्णायक हल आंतरिक स्तर पर वार्ता से ही निकलेगा, जब तक नरम रुख रखने वाले लोग कट्टरपंथियों पर हावी होंगे, तब तक बहुत से नौजवानों का जीवन सिर्फ इसलिए बर्बाद हो चुका होगा, क्योंकि वे ऐसे एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं, जो कभी कामयाब नहीं होगा।

दरअसल जिन बड़े⎯बुजुर्गों ने दशकों से हिंसा होते देखी है, उन्हें इसकी व्यर्थता समझ में आ चुकी है, लेकिन वे युवाओं के दबाव में आकर खामोश रहने के लिए विवश हैं। उन्हें अगुवाई करने के लिए प्रेरित करना होगा, जिससे युवाओं को भड़काने की कोशिश कर रहे लोगों को पीछे हटने के लिए विवश होना होगा और भारतीय संविधान के दायरे में रहते हुए हल निकालने के लिए वार्ता का बीच का रास्ता निकालना होगा। उन्हें ऐसा करना ही होगा, क्योंकि आगे बढ़ने का यही एकमात्र रास्ता है।

इस बीच, सरकार इस बात पर विचार कर सकती है कि क्या स्थानीय आतंकवादियों को दफनाने का कार्य उसके परिजनों के हाथों कराना जारी रखना चाहिए, या फिर सरकार द्वारा किया जाना चाहिए, जैसा कि पाकिस्तानी आतंकवादियों के मामले में होता है। इसके पीछे यह दलील दी जाती है कि एक बार बंदूक हाथ में थामते ही वह युवक देश का दुश्मन बन जाता है और उसके साथ वैसा ही सलूक होना चाहिए। इससे आतंकवादियों के महिमामंडन में कमी आएगी, जिसके उकसावे में आकर मासूम नौजवान उनके जैसा बनना चाहते हैं।

कश्मीर से ज्यादा हिंसक संघर्षों का हल निकल चुका है। इसका भी निकल जाएगा। यह समाधान एक दिन में या फौरन नहीं निकलेगा, लेकिन आखिरकार निकलेगा जरूर। इस बीच, सुरक्षा बलों को अनावश्यक हादसों से बचने का प्रयास करने के लिए सावधानी बरतने, जब भी जरूरत पड़े स्थानीय लोगों की मदद करने की जरूरत है, जबकि सरकार को विकास के साथ⎯साथ स्वच्छ और ईमानदार शासन मुहैया कराने और साथ ही ऐसे अवसरों को सीमित करने की कोशिश करनी चाहिए, जहां मासूमों को भड़काने के लिए आतंकवादियों का महिमामंडन किया जा रहा हो।

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