बांग्लादेश इस वक़्त राजनीतिक संक्रमण के एक ऐसे अभूतपूर्व दौर से गुज़र रहा है, जिसकी वजह से भविष्य में उसकी प्रगति की राह को लेकर अनिश्चितता के बादल छाए दिखाई देते हैं. पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के अबाधित 15 वर्षीय सत्ता के दौर में देश ने स्थिरता का एक दौर देखा था. इस दौर में परिवहन, ऊर्जा तथा डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर विकास में बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश को आकर्षित किया था. इस दौरान बांग्लादेश के अधिकांश विकास सहयोगियों ने परियोजना सहायता मुहैया करवाने का रास्ता अपनाया था. ऐसे में बांग्लादेश को मिली कुल विदेशी सहायता में परियोजना सहायता को मिली राशि का ही योगदान सबसे अधिक था. शेख हसीना की सत्ता वाले दौर में भारत ही बांग्लादेश का सबसे प्रमुख साझेदार बनकर उभरा था. भारत की ओर से बांग्लादेश को 8 बिलियन अमेरिकी डालर की विकास सहायता की गई थी. यह सहायता द्विपक्षीय तथा क्षेत्रीय कनेक्टिविटी लिंकेजेस अथवा कड़ियों का निर्माण करने में दी गई थी, ताकि बांग्लादेश अपनी आर्थिक विकास क्षमता का पूर्ण तरीके से दोहन कर सके. लेकिन पांच अगस्त को बांग्लादेश से हसीना का अचानक रवानगी से वह देश थम सा गया है. मुहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली ढाका में बनी अंतरिम सरकार स्थितियां सामान्य करते हुए अपने संस्थानों को पुन: खड़ा करने की तैयारी कर रही है. ऐसे में दोनों देशों के बीच चल रही ऐसी द्विपक्षीय कनेक्टिविटी परियोजनाओं पर सवालिया निशान लग गया है, जो अभी पूर्ण होनी बाकी हैं.
भारत की ओर से बांग्लादेश को 8 बिलियन अमेरिकी डालर की विकास सहायता की गई थी. यह सहायता द्विपक्षीय तथा क्षेत्रीय कनेक्टिविटी लिंकेजेस अथवा कड़ियों का निर्माण करने में दी गई थी, ताकि बांग्लादेश अपनी आर्थिक विकास क्षमता का पूर्ण तरीके से दोहन कर सके.
भारत-बांग्लादेश कनेक्टिविटी परिदृश्य
भारत और बांग्लादेश के बीच भौगोलिक नजदीकियां और इंटर-लिंकेजेस् को देखते हुए दोनों देशों में द्विपक्षीय सहयोग के केंद्र में कनेक्टिविटी सहयोग ही सबसे अहम बिंदु बन जाता है. बांग्लादेश और भारत दुनिया की पांचवीं सबसे लंबी सीमा (4,096 km) साझा करते हैं. भारत के उत्तरपूर्वी राज्य और पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश की सीमा से सटे हुए हैं. कनेक्टिविटी को लेकर सहयोग द्विपक्षीय सहयोगियों के लिए दोतरफा लाभदायक होता है. तीन दिशाओं में भारतीय क्षेत्र से घिरे हुए बांग्लादेश को ‘इंडिया लॉक्ड’ यानी ‘भारतबद्ध’ कहा जाता है. ऐसे में उसके लिए भारत के साथ पुख़्ता कनेक्टिविटी रखना ज़रूरी हो जाता है. नई दिल्ली के लिए भी बांग्लादेश के साथ कनेक्टिविटी बेहद अहम है. यह उसे अपने उत्तरपूर्वी क्षेत्रों की बंगाल की खाड़ी तक पहुंच सुनिश्चित करते हुए इन क्षेत्रों की समुद्रिक कारोबार के अवसरों में वृद्धि करने में सहायक साबित होती है. इसके अलावा बांग्लादेश, भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ और ‘एक्ट ईस्ट’ नीतियों के लिए बेहद अहम है. इसका कारण यह है कि वह उसका तत्कालिक पूर्वी पड़ोसी है और दक्षिणपूर्व एशिया के लिए भूमिगत संपर्क मार्ग की भूमिका अदा करता है.
दोनों देशों के मजबूत कारोबारी संबंधों के लिए भी भारत और बांग्लादेश के बीच कनेक्टिविटी समान रूप से फ़ायदेमंद साबित होती है. भारत ही बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय कारोबार ऊर्जा, खाद्यान्न और कपड़ों के धागे से लेकर इलेक्ट्रिक उपकरण और प्लास्टिक्स तक फ़ैला हुआ है. इसके साथ ही दोनों देशों के बीच कनेक्टिविटी के अनेक चैनल्स स्थापित किए गए हैं. इसमें रेल लिंक्स, बस रुट्स, आंतरिक जलमार्ग और समुद्री बंदरगाहों का समावेश है, जो कारोबार और परिवहन में सहायक साबित होते हैं.
भारत और बांग्लादेश दोनों ही आमतौर पर कनेक्टिविटी की व्यापक व्याख्या को भौगोलिक कनेक्टिविटी से आगे ले जाते हैं और इसमें ऊर्जा तथा डिजिटल लिंक्स यानी कड़ियों को भी शामिल करते हैं. यह बात दोनों देशों की ओर से जारी संयुक्त बयान में स्पष्ट दिखाई देती है. यह संयुक्त बयान जून 2024 में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की पिछली भारत यात्रा के बाद जारी किया गया था. इस बयान में ऊपर दी गई तीन श्रेणियों में अनेक संयुक्त परियोजनाओं पर काम करने के लिए उनकी शिनाख़्त की गई थी. वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में, जब इन परियोजनाओं का भविष्य अनिश्चित दिखाई देता है, यह अहम है कि इन पहलों पर एक नज़र डाली जाए और उनकी वर्तमान स्थिति तथा इसकी अहमियत को समझा जाए.
टेबल : बांग्लादेश के साथ भारत की कनेक्टिविटी परियोजनाओं की स्थिति
सब-सेक्टर
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परियोजना
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पूर्णता वर्ष
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स्थिति
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ऊर्जा
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SASEC 1000MW-HVDC बांग्लादेश इंडिया इलेक्ट्रिकल ग्रिड इंटरकनेक्शन प्रोजेक्ट I
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2016
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पूर्ण
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परिवहन
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राधिकापुर-बिरौल रेल लिंक की बहाली
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2017
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पूर्ण
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ऊर्जा
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SASEC 500MW-HVDC बांग्लादेश भारत विद्युत ग्रिड इंटरकनेक्शन परियोजना II
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2017
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पूर्ण
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परिवहन
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हल्दीबाड़ी-चिल्हाटी रेल लिंक की बहाली
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2020
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पूर्ण
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परिवहन
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गेडे-दर्शना रेल लिंक की बहाली
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2021
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पूर्ण
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परिवहन
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पेट्रापोल-बेनापोल रेल लिंक की बहाली
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2022
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पूर्ण
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परिवहन
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अखौरा-अगरतला रेल लिंक I
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2023
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पूर्ण*
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परिवहन
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खुलना-मोंगला पोर्ट रेल
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2023
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पूर्ण
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ऊर्जा
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मैत्री ताप विद्युत संयंत्र I, II
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2023
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पूर्ण*
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ऊर्जा
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भारत-बांग्लादेश मैत्री पाइपलाइन
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2023
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पूर्ण
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ऊर्जा
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रूपपुर परमाणु संयंत्र I
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2024
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निर्माणाधीन
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ऊर्जा
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कटिहार-पार्वतीपुर-बोरनगर 765 केवी बिजली पारेषण लाइन
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2025
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निर्माणाधीन
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ऊर्जा
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रूपपुर परमाणु संयंत्र II
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2027
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निर्माणाधीन
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डिजिटल
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इसरो-बांग्लादेश उपग्रह प्रक्षेपण
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उपलब्ध नहीं
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समझौते पर हस्ताक्षर किए गए
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डिजिटल
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भारतीय कंपनियों द्वारा 4जी/5जी कनेक्टिविटी परियोजनाएं
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उपलब्ध नहीं
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समझौते पर हस्ताक्षर किए गए
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कवर किए गए क्षेत्रों की कुल संख्याः 3
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कुल परियोजनाएंः 16
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स्रोत : MEA डैशबोर्ड, भारत का विदेश मंत्रालय (*इन परियोजनाओं में केवल कुछ चरणों में ही पूरा काम हुआ है)
भौगोलिक कनेक्टिविटी: भारत और बांग्लादेश दोनों का यह साझा दृष्टिकोण है कि वे वैश्विक दक्षिण के साथ क्षेत्रीय तथा उप-क्षेत्रीय एकीकरण के लिए अपने व्यापक द्विपक्षीय सहयोग का उपयोग करें. ऐसा करने के लिए वे साझा मंच जैसे बे-ऑफ-बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्नीकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन (BIMSTEC), साऊथ एशियन एसोसिएशन फॉर रिजनल कोऑपरेशन (SAARC), तथा इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) को माध्यम बनाना चाहते हैं. इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए दोनों ने सब-रिजनल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने वाले बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (BBIN) मोटर व्हीकल एग्रीमेंट पर जल्द क्रियान्वयन को प्राथमिकता दी है. तेजी से बढ़ रहे भारत-बांग्लादेश व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए सड़क तथा हाईवे कनेक्टिविटी में इज़ाफ़ा बेहद आवश्यक है. दोनों देशों के बीच 2014 से 2024 के बीच व्यापार लगभग दोगुना हो गया है.
रेलवे क्षेत्र में भी रेल कनेक्टिविटी को लेकर एक MoU पर हस्ताक्षर किए गए. इस MoU में गेदे (भारत)-दर्शन (बांग्लादेश) के बीच मालगाड़ी सेवाओं को शुरू करना तय किया गया है. ये मालगाड़ी चिलाहाटी (बांग्लादेश) से हल्दीबाड़ी (भारत) के बीच चलेंगी. ये मालगाड़ी भारत-भूटान सीमा पर भूटान के करीब भारतीय सीमा पर बसे हासीमारा तक भारत के ही असम के दलगांव से होकर पहुंचेंगी.
गेदे-दर्शन तथा चिलाहाटी- हल्दीबाड़ी रेल लिंक के माध्यम से भूटान की सीमा पर सामान का परिवहन आसान हो जाएगा. इसकी वजह से भारत को भूटान और बांग्लादेश के बीच होने वाले ट्रांजिट ट्रेड का लाभ मिलेगा. अंतत: इस सुविधा को नेपाल तक विस्तारित करते हुए क्षेत्रीय कारोबार में वृद्धि को प्रोत्साहित किया जाएगा. इस मार्ग पर यात्री सेवाएं आरंभ होने से पर्यटन सुगम होगा और बांग्लादेश के पर्यटकों के लिए हिमालयन देशों तथा उत्तरपूर्वी भारत की यात्रा आसान हो जाएगी. लेकिन यह योजना अभी कागजों तक ही सीमित है. इसे पूर्ण करने की समय सीमा ही तय नहीं की गई है.
भारत और बांग्लादेश दोनों का यह साझा दृष्टिकोण है कि वे वैश्विक दक्षिण के साथ क्षेत्रीय तथा उप-क्षेत्रीय एकीकरण के लिए अपने व्यापक द्विपक्षीय सहयोग का उपयोग करें.
ऊर्जा कनेक्टिविटी: भारत-बांग्लादेश सहयोग में ऊर्जा सहयोग एक और आधारशिला है. इसमें हुई उल्लेखनीय पहलों में भारत-बांग्लादेश मैत्री पाइपलाइन शामिल है. इस पाइपलाइन की वजह से बांग्लादेश में पॉवर कट्स और डीजल आपूर्ति की लागत में कमी देखी गई है. इसके तहत ही बांग्लादेश में मैत्री थर्मल पॉवर प्लांट को संयुक्त रूप से विकसित किया जाएगा, ताकि बिजली आपूर्ति में वृद्धि सुनिश्चित की जा सकें. (देखें टेबल-1) इसके अलावा भारत-रूस के बीच तीसरे देशों में परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में सहयोग करने को लेकर हुए समझौते के तहत भारत बांग्लादेश के पहले परमाणु ऊर्जा केंद्र को स्थापित करने में सहायता कर रहा है. रूपपुर में स्थापित होने वाला यह केंद्र बांग्लादेश को ‘न्यूक्लीयर क्लब’ में प्रवेश दिलवा देगा.
अंतर क्षेत्रीय बिजली को विकसित करने और सहयोग को बढ़ाने के लिए दोनों देशों ने कटिहार (भारत)-पार्बतीपुर (नेपाल)-बोरनगर (बांग्लादेश) के बीच एक 765 kV क्षमता वाले हाई-कैपेसिटी इंटरकनेक्शन के काम को गति देने के का फ़ैसला किया है. इस काम में भारत वित्तीय सहायता दे रहा है. इससे दोनों देशों के बीच इलेक्ट्रिसिटी ग्रीड मजबूत होगी. इसे लेकर एक त्रिपक्षीय समझौते पर इसी वर्ष 28 जुलाई को हस्ताक्षर होने थे. इसमें नेपाल, बांग्लादेश तथा भारत शामिल है. यह समझौता होने से नेपाल को भारतीय पावर ग्रीड का उपयोग करते हुए बांग्लादेश तक बिजली का निर्यात करने की सुविधा मिलने वाली थी. दक्षिण एशिया में यह अपनी तरह का पहला समझौता होता लेकिन इसे लेकर आगे की जानकारी उपलब्ध नहीं है.
डिजिटल कनेक्टिविटी: PM हसीना की पिछली भारत यात्रा के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके साथ अनेक MoUs पर हस्ताक्षर किए. ये MoUs भारत-बांग्लादेश डिजिटल साझेदारी को लेकर किए गए थे. इनका उद्देश्य डिजिटल तकनीकों का उपयोग करते हुए आर्थिक उन्नति को प्रोत्सहित करना,सीमा-पार डिजिटल इंटरचेंज यानी आदान-प्रदान करते हुए क्षेत्रीय संपन्नता में वृद्धि करने पर ध्यान केंद्रीत करना था. भारत-बांग्लादेश डिजिटल साझेदारी इस बात पर निर्भर है कि भारतीय डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर विकास सहयोग और 2041 स्मार्ट बांग्लादेश प्लान के बीच कैसे तालमेल बैठता है यानी समन्वय कैसे रहता है. इसका उद्देश्य सूचना और संचार के बुनियादी ढांचे को विकसित करते हुए चार लक्ष्य हासिल करना है. इन चार लक्ष्यों में स्मार्ट सिटीजंस, स्मार्ट गर्वनमेंट, स्मार्ट इकोनॉमी तथा स्मार्ट सोसायटी शामिल हैं. इसकी आरंभिक साझेदारी में द्विपक्षीय कारोबार के लिए सीमा-पार BBIN-MVA लाइसेंसों का डिजिटलीकरण और भारतीय कंपनियों भारती एयरटेल तथा जियो इंफोकॉम की ओर से 4G/5G का रोलआउट शामिल था.
कनेक्टिविटी सहयोग से सतत संबंधों का विकास
बांग्लादेश में हुए तख़्तापलट के बाद भारत ने भारत एवं बांग्लादेश के बीच छह प्रमुख लैंड पोर्ट को बंद करते हुए अपनी सीमा पर सुरक्षा बलों की संख्या में इज़ाफ़ा किया है. इसके साथ ही भारत ने रेल कनेक्टिविटी को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया है. हालांकि कुछ हफ्तों के बाद पेट्रोपोल (भारत) तथा बेनापोल (बांग्लादेश) को जोड़ने वाले सबसे बड़े लैंड पोर्ट को पुन: खोल दिया गया है. इसका उद्देश्य कारोबार को सामान्य बनाना है. आर्थिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भरता तथा बहुसंख्य कनेक्टिविटी कड़ियों की वजह से स्थितियों को तेजी से सामान्य करना संभव हो सका है. इस घटना को नई दिल्ली को दक्षिण एशिया में मिली एक ऐसी जीत के रूप में देखा जा रहा है, जिसका वह लंबे वक़्त से इंतजार कर रहा था. यह अर्थव्यवस्थाओं को पारस्परिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भर बनाते हुए भौगोलिक कड़ियों को जोड़ते हुए कुल मिलाकर क्षेत्र में स्थिरता तथा सुरक्षा को प्रोत्साहित करने के उसके प्रयासों का फ़ल है. एक ओर जहां स्थितियों को सामान्य करने में आर्थिक और बुनियादी सुविधाओं में परस्पर निर्भरता ही एकमात्र कारण नहीं था, लेकिन यह महत्वपूर्ण कारणों में से एक था. बांग्लादेश के साथ अपने द्विपक्षीय कारोबार को सहजता के साथ निर्णायक रूप से सामान्य करने में भारत की सफ़लता यह दिखाती है कि वह अपने पास-पड़ोस को कितनी अहमियत देता है.
अन्य देशों में राजनीतिक दल भले ही भारत विरोधी भाषणों का सहारा लेकर सत्ता हासिल करने की कोशिश करते हो, लेकिन वे भी यह जानते है कि क्षेत्रीय विकास में आर्थिक और भौतिक लिंकेजेस् को लेकर नई दिल्ली की भूमिका कितनी अहम है.
क्षेत्रीय विकास और आर्थिक उन्नति में भारत की भूमिका के पीछे क्षेत्र में चहूं ओर विकसित की गई कनेक्टिविटी परियोजनाओं ने छोटी, लेकिन अहम भूमिका अदा की है. अन्य देशों में राजनीतिक दल भले ही भारत विरोधी भाषणों का सहारा लेकर सत्ता हासिल करने की कोशिश करते हो, लेकिन वे भी यह जानते है कि क्षेत्रीय विकास में आर्थिक और भौतिक लिंकेजेस् को लेकर नई दिल्ली की भूमिका कितनी अहम है. यह बात बांग्लादेश के मामले में विशेष रूप से सही साबित होती है. बांग्लादेश एक ऐसा देश है जो 2026 तक UN से विकासशील देश का दर्जा पाने की कोशिश कर रहा है. ऐसे में उसे यह दर्जा हासिल करने के लिए बहुसंख्य विकास साझेदारियों की ज़रूरत भी है. नई दिल्ली तथा ढाका की सरकारों को द्विपक्षीय सहयोग में निरंतरता बनाए रखनी होगी. इसका कारण यह है कि यह निरंतरता सीमा के दोनों ओर समग्र आर्थिक उन्नति हासिल करने के साथ-साथ दक्षिण एशिया की भूराजनीति में मची उथलपुथल को शांत करने के लिए आवश्यक है.
निष्कर्ष
इस इलाके में नई दिल्ली को अपना रुतबा बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयास करना होगा. क्षेत्र का विकास और उस पर भारत का प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि वह अपने पड़ोसी देशों के साथ सक्रिय होकर बातचीत करें. भारत को मुहैया करवाई गई अनुपयुक्त क्रेडिट लाइन यानी संबंधों को बनाने का मौका, चुनौती के साथ ही अवसर भी उपलब्ध करवाती है. अंतरिम सरकार की ओर से भारत के साथ संबंधों को लेकर अपनाया गया सतर्कतापूर्ण दृष्टिकोण दीर्घावधि में उसके विकास की राह में बाधा बन सकता है. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के साथ बातचीत में दोहरा दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए. इसमें पहला दृष्टिकोण वर्तमान परियोजनाओं को बनाए रखने का होना चाहिए, जबकि सहयोग करने के लिए नए क्षेत्रों की ख़ोज भी की जानी चाहिए. नवीकरणीय ऊर्जा, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और क्लायमेट रेजिलियंस जैसे कुछ क्षेत्र सहयोग की अपार संभावनाएं रखते हैं. भारत के द्विपक्षीय संबंधों का भविष्य इस बात से तय होगा कि भारत में क्षेत्रीय उन्नति को लेकर अपनी भूमिका को निभाने के लिए किस हद तक जाने की क्षमता है.
सोहिनी बोस, ऑर्ब्जवर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.
पृथ्वी गुप्ता, ऑर्ब्जवर रिसर्च फाउंडेशन में जूनियर फेलो हैं.
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