Published on Feb 03, 2024 Updated 0 Hours ago

इजराइल द्वारा हेब्रोन शहर में अपने नियंत्रण वाले इलाक़ों में स्थापित जांच चौकियों का उपयोग जिस मनमाने ढंग से फिलिस्तीनी नागरिकों की निगरानी के लिए किया जा रहा है, वैसा किसी ऑरवेलियन कल्पना में भी नहीं दिखाई देता है.

इजराइली निगरानी के घेरे में पवित्र शहर हेब्रोन!

हेब्रोन एक बहुत ही पवित्र धार्मिक स्थल है. यहां पैगंबर इब्राहिम का मकबरा स्थित है. यहूदियों की मान्यता है कि हेब्रोन शहर में उपने धार्मिक पूर्वजों की गुफा है, जबकि मुसलमानों द्वारा इसे अल खलील भी कहा जाता है. कुल मिलाकर हेब्रोन शहर इब्राहीमिक धर्म के अनुयायियों के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण शहर है. हेब्रोन के पुराने शहर के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को देखते हुए, साथ ही उसके प्रमुख आर्थिक केंद्र होने की वजह से फिलिस्तीनी हेब्रोन शहर को अत्यधिक आदर व सम्मान देते हैं.

इजराइल की ओर से हेब्रोन में हालात को काबू करने के लिए न सिर्फ़ निगरानी बढ़ानी पड़ी है, बल्कि पुलिस ने भी वहां अपनी गतिविधियां बढ़ाई हैं.

हेब्रोन का यही धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व यहां बढ़ते तनाव की वजह बन गया है. उल्लेखनीय है कि हेब्रोन कहीं न कहीं अवैध तरीक़े से बसने वालों का एक प्रमुख केंद्र बनता जा रहा है और इस कारण से इजराइल की ओर से हेब्रोन में हालात को काबू करने के लिए न सिर्फ़ निगरानी बढ़ानी पड़ी है, बल्कि पुलिस ने भी वहां अपनी गतिविधियां बढ़ाई हैं. हेब्रोन में वर्ष 1967 में एट्ज़िओन ब्लॉक स्थापित किया गया था और यह वेस्ट बैंक की पहली गैरक़ानूनी बसावटों में से एक था. यह ऐसी जगह है, जहां अलग-अलग विचारधाराओं और धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं और उनकी यह नज़दीकी अक्सर सांप्रदायिक तनाव एवं हिंसा का कारण बनती रही है. सांप्रदायिक हिंसा और तनाव के ऐसे ही उदाहरणों में 1994 का चर्चित इब्राहिमी मस्जिद नरसंहार था. इस नरसंहार को इसी अवैध बस्ती में रहने वाले बारूच गोल्डस्टीन नाम के एक अमेरिकी-इजरायली व्यक्ति ने अंज़ाम दिया था. इस व्यक्ति ने रमजान के पवित्र महीने में हरम अल-इब्राहिमी मस्जिद में नमाज अता कर रहे 29 फिलिस्तीनियों की सामूहिक हत्या कर दी थी. एक तरफ ज़्यादातर इजरायलियों द्वारा इस नरसंहार की निंदा की गई थी, वहीं दूसरी तरफ इजाराइल में रहने वाले कुछ लोगों ने इस नरसंहार का समर्थन किया था और गोल्डस्टीन को एक नायक के तौर पर पेश किया गया. ख़ास तौर पर हेब्रोन सिटी में रहने वाले इजराइलियों द्वारा ऐसा किया गया था. इस नरसंहार की वजह से वहां फिलिस्तीनियों के बीच विरोध प्रदर्शन और दंगे शुरू हो गए थे, जिसे काबू करने के लिए इजराइली सुरक्षा बलों की ओर से ज़बरदस्त हिंसक कार्रवाई की गई थी. इजराइली कार्रवाई में 11 नागरिकों की मौत हो गई थी, इतना ही नहीं वहां रहने वाले फिलिस्तीनियों को उनके घरों में बंद कर दिया गया था और उनकी दुकानों को भी बंद करा दिया गया था. इस नरसंहार के बाद इजराइल द्वारा इब्राहिमी मस्जिद के पवित्र स्थल को दो हिस्सों में बांट दिया गया और इसके ज़्यादातर हिस्से में इजराइलियों व यहूदियों को जाने की अनुमति दी गई. नरसंहार की इस घटना के बाद हेब्रोन शहर में इजराइली सैनिकों की मौज़ूदगी बढ़ गई, साथ ही इजराइल को वहां निगरानी बढ़ाने के नाम पर दख़लंदाज़ी का बहाना मिल गया. तब से लेकर आज तक इजराइली सरकार की ओर से हेब्रोन शहर में लगातार अपनी सैन्य मौज़ूदगी बढ़ाई जाती रही है एवं निगरानी तंत्र मज़बूत किया गया है.

 

इजराइल की सुरक्षा व्यवस्था

 

कुल मिलाकर इजराइल कहीं न कहीं हेब्रोन में अपना सशक्त निगरानी नेटवर्क स्थापित करने में सफल रहा है और तमाम अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों ने भी इजराइल के इस "प्रतिरोधहीन कब्ज़े" को अपनी स्वीकार्यता प्रदान की है. जिस प्रकार से इजराइल द्वारा वेस्ट बैंक के अपने नियंत्रण वाले इलाक़ों में, ख़ास तौर पर हेब्रोन में सुनियोजित तरीक़े से तकनीक़ का उपयोग कर व्यापक निगरानी तंत्र स्थापित किया गया है, वो देखा जाए तो ऑरवेलियन कल्पना को भी पीछे छोड़ देता है. ज़ाहिर है कि ऑरवेलियन विचारधारा के हिसाब से ज़बरन नागरिकों की स्वतंत्रता पर पहरा लगाया जाता है, जबकि हेब्रोन शहर में इजराइल द्वारा सुरक्षा निगरानी के नाम पर जो किया जा रहा है, वो इससे भी ज़्यादा ख़तरनाक व आक्रामक है. ज़ाहिर है कि हेब्रोन शहर को दो इलाक़ों में बांटा गया है. इनमें से एक इलाक़ा एच2 है, जिसमें ऐसी बस्तियां शामिल हैं, जिन्हें इजराइली सेना का संरक्षण मिला हुआ है. जबकि दूसरा इलाक़ा एच 1 है, जिस पर फिलिस्तीनी सरकार का नियंत्रण है. ऐतिहासिक शहर हेब्रोन के एच 2 इलाक़े, यानी इजराइल के नियंत्रण वाले क्षेत्र में 33,750 फिलिस्तीनी नागरिक निवास करते हैं, उन्हें इजराइल द्वारा की जा रही लगातार निगरानी का सामना करना पड़ता है. एच 2 इलाक़े में रहने वाले 800 इजराइलियों की सुरक्षा के नाम पर बड़ी संख्या में जांच चौकियां स्थापित की गई हैं. इन जांच चौकियों ने वहां रहने वाले फिलिस्तीनियों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी को प्रभावित किया है और पग-पग पर रुकावटें पैदा करने का काम किया है.

हेब्रोन शहर में इजराइल द्वारा सुरक्षा निगरानी के नाम पर जो किया जा रहा है, वो इससे भी ज़्यादा ख़तरनाक व आक्रामक है. ज़ाहिर है कि हेब्रोन शहर को दो इलाक़ों में बांटा गया है.

हेब्रोन में इजारइल की तरफ से जो निगरानी तंत्र स्थापित किया गया है, मुख्य रूप से उसमें तीन तरह की प्रणालियां हैं, यानी कि रेड वुल्फ सॉफ्टवेयर, इजराइली डिफेंस फोर्सेज के लिए ब्लू वुल्फ ऐप और वहां अवैध रूप से रहने वालों के लिए व्हाइट वुल्फ ऐप. इसमें से रेड वुल्फ सॉफ्टवेयर इजराइल के व्यापक निगरानी सिस्टम का मूल आधार है. फिलिस्तीनी नागरिक जब हेब्रोन शहर में फैले इजराइल के 21 जांच केंद्रों में से किसी भी चेकप्वाइंट्स से गुजरते हैं, तो यह सॉफ्टवेयर उनकी हर जानकारी को एकत्र करता है. फिलिस्तीनी नागरिकों से जुड़े जो आंकड़े एकत्र किए जाते हैं, उनमें नाम, उम्र, वैवाहिक स्थिति, परिवार की जानकारी, चिकित्सा संबंधी इतिहास, पहले कभी गिरफ़्तार किया गया है, या फिर पहले कभी हिरासत में लिया गया है, आदि शामिल है. अगर ब्लू वुल्फ ऐप की बात की जाए, तो इसके माध्यम से हेब्रोन में रहने वाले फिलिस्तीनी नागरिकों से जुड़े उपरोक्त आंकड़ों का उपयोग किया जाता है. एक और बात यह है कि इजराइल के निगरानी से जुड़े जो भी तकनीक़ी माध्यम हैं, उनमें से ब्लू वुल्फ एक ऐसा ऐप है, जिसके बारे में लोगों को ज़्यादा मालूम नहीं है. ब्लू वुल्फ ऐप के ज़रिए फिलिस्तीनी नागरिकों की गहनता से जांच की जाती है और गिरफ्तारी एवं मतभेद से जुड़े पुराने मामलों से, इन आंकड़ों का मिलान किया जाता है. इसी के आधार में फिलिस्तीनी नागरिकों को तीन समूहों यानी रेड, यलो और ग्रीन में वर्गीकृत किया जाता है. इन अलग-अलग रंगों के वर्गीकरण से यह पता चलता है कि वे कथित तौर पर कितने ख़तरनाक हैं. फिलिस्तीनी नागरिक जब सुरक्षा निगरानी चौकियों से गुजरते हैं, तब तकनीक़ी विश्लेषण के आधार पर एक-एक नागरिक की जानकारी को सुरक्षा बलों के साथ साझा किया जाता है. इसी आधार पर अक्सर फिलिस्तीनी नागरिकों को अनिश्चितकाल के लिए हिरासत में ले लिया जाता है. इसी प्रकार से इजराइली निगरानी प्रणाली के अंतर्गत व्हाइट वुल्फ ऐप को भी हेब्रोन शहर के H2 इलाक़े में रहने वाले नागरिकों के लिहाज़ से बनाया गया है. इस व्हाइट वुल्फ ऐप के ज़रिए भी सुरक्षा बलों द्वारा जुटाई गई जानकारी का विश्लेषण किया जाता है और पूर्व में एकत्र किए जा चुके आंकड़ों के साथ मिलान किया जाता है. इस प्रकार से फिलिस्तीनी नागरिकों को एक और श्रेणी की जांच-पड़ताल का सामना करना पड़ता है. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने नागरिकों की निगरानी और जांच-पड़ताल की इस पूरी प्रक्रिया को जहां "स्वचालित रंगभेद" या भेदभाव वाला बताया है, वहीं इजराइली सरकार का कहना है कि नागरिकों की यह गहन जांच-पड़ताल हेब्रोन में "स्मार्ट सिटी" स्थापित करने की उसकी पहल का महत्वपूर्ण अंग है. देखा जाए तो निगरानी चौकियों का मनमाने तरीक़े से उपयोग करके फिलिस्तीनी नागरिकों पर पैनी नज़र रखी जाती है, ताकि हेब्रोन में इजराइल के गैरक़ानूनी सेटेलमेंट प्रोजेक्ट की मदद की जा सके और उसे निर्बाध रूप से संचालित किया जा सके. ज़ाहिर है कि इजराइल की राइट टू रिटर्न पॉलिसी के अंतर्गत पांच लाख से अधिक निवासियों ने वेस्ट बैंक में अपना आशियाना बना लिया है. देखा जाए तो इन लोगों ने कहीं न कहीं वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी नागरिकों से उनकी ज़मीन छीन ली है, इतना ही नहीं इन लोगों को इजराइली सेना का संरक्षण मिला हुआ है.

हेब्रोन में अपने नियंत्रण वाले इलाक़ों में स्थापित सुरक्षा जांच चौकियों पर इजराइल द्वारा जहां निगरानी तकनीक़ के तौर पर कई प्रकार के वुल्फ ऐप का उपयोग किया जा रहा है, वहीं इसके साथ ही इन चेक प्वाइंट्स को रिमोट से नियंत्रित होने वाले तंत्र से भी लैस किया गया है

हेब्रोन में इजराइल सरकार और सुरक्षा बलों द्वारा की गई इस तरह की अतिवादी कार्रवाई की हर स्तर पर आलोचना की गई है. अंतर्राष्ट्रीय समुदायों एवं तमाम नागरिक व मानवाधिकार संगठनों के साथ-साथ इजराइली नागरिकों के एक वर्ग ने भी इसे ग़लत बताया है और इसे भड़काने वाली कार्रवाई बताया है. उल्लेखनीय है कि वेस्ट बैंक और ख़ास तौर पर हेब्रोन का इलाक़ा, जहां बड़ी संख्या में सुरक्षाबलों की तैनाती की गई है, वो इजराइल के लिए एक सुरक्षित प्रयोगशाला की तरह बन गया है. अर्थात एक ऐसी प्रयोगशाला बन गया है, जहां पर इजराइल का रक्षा उद्योग अपनी जटिल और आक्रामक टेक्नोलॉजी एवं उपकरणों का परीक्षण करता है, ताकि कमियों को दूर कर उन्हें दुनिया के तमाम देशों में निर्यात किया जा सके. हेब्रोन में अपने नियंत्रण वाले इलाक़ों में स्थापित सुरक्षा जांच चौकियों पर इजराइल द्वारा जहां निगरानी तकनीक़ के तौर पर कई प्रकार के वुल्फ ऐप का उपयोग किया जा रहा है, वहीं इसके साथ ही इन चेक प्वाइंट्स को रिमोट से नियंत्रित होने वाले तंत्र से भी लैस किया गया है, जो ज़रूरत पड़ने पर स्टन ग्रेनेड अर्थात अचेत करने वाले गोले और आंसू गैस के गोले दागते हैं. इस रिमोट नियंत्रित प्रणाली को स्मार्ट शूटर नाम की इजराइली रक्षा कंपनी द्वारा विकसित किया गया है. इस प्रणाली को हेब्रोन में घनी आबादी के बीच स्थित जांच चौकियों पर तैनात किया गया है. रक्षा आधुनिकीकरण के नाम पर इस प्रकार की रिमोट नियंत्रित तकनीक़ की तैनाती की लंबे समय से पर्यवेक्षकों द्वारा आलोचना की जाती रही है. गौरतलब है कि इस तरह की टेक्नोलॉजी में लड़ाई के मैदान में वास्तविकता में अधिक सैनिकों की ज़रूरत नहीं होती है, बल्कि तकनीक़ का उपयोग कर दुश्मन को अधिक से अधिक नुक़सान पहुंचाया जाता है.

 

निष्कर्ष

 

इजराइल में घरेलू स्तर पर कई वर्षों से तनाव का माहौल बना हुआ है और इस वजह से लोगों का वहां की वर्तमान सरकार पर भरोसा कम हुआ है. यहां तक कि वेस्ट बैंक और गाजा में फिलिस्तीनी समुदाय के ख़िलाफ़ अत्यधिक सैन्य ताक़त का उपयोग करने के विरोध में इजराइल की सरकार में शामिल लोगों द्वारा चेतावनी तक दी जा चुकी है. इजराइली सरकार के प्रति लोगों की निराशा और मायूसी की एक प्रमुख वजह गाजा में सैन्य ताक़त का अत्यधिक इस्तेमाल करने की रणनीति तो रही ही है, इसके साथ ही वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी नागरिकों के विस्थापन की उसकी रणनीति ने भी लोगों को हताश किया है. लोगों की यह नापसंदगी प्रधानमंत्री नेतन्याहू की अप्रूवल रेटिंग यानी अनुमोदन रेटिंग में भी साफ तौर पर दिखाई देती है. ज़ाहिर है कि इजराइल पर हाल में हुए आतंकवादी हमले के बाद प्रधानमंत्री नेतन्याहू की लोकप्रियता अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है.

 

फिलहाल इजराइल और फिलिस्तीन के बीच तनाव अपने चरम पर है. लेकिन यह कहना उचित होगा कि इजराइल पर हुआ यह आतंकी हमला अत्याधुनिक और बेहद आक्रामक मानी जाने वाली इजलाइली डिफेंस फोर्सेज की वास्तविक क्षमता का परीक्षण था. गौरतलब है कि इस हमले के दौरान इजराइली डिफेंस फोर्सेज के आधुनिक निगरानी और जांच उपकरण नाकाम साबित हुए और इतने विनाशकारी आतंकी हमले की पूर्व सूचना नहीं दे पाए. सेना के निगरानी तंत्र की यह नाकामी काफ़ी महंगी साबित हुई और इसकी वजह से भीषण युद्ध की शुरुआत हुई, जिसमें हज़ारों लोग मारे जा चुके हैं. गाजा पर किए गए ज़बरदस्त हमलों ने यह सवाल फिर से सामने ला दिया है कि आख़िर इजराइल की प्राथमिकताएं क्या हैं. साथ ही यह भी सवाल पैदा किया है कि क्या वेस्ट बैंक के अपने एजेंडे की वजह से इजराइल के नज़रिए में बदलाव आया है. कहीं ऐसा तो नहीं कि अपने इसी एजेंडे को पूरा करने के लिए इजराइल की सरकार ने गाजा पर भीषण हमला शुरू किया है, जिसमें उसने अपनी हर उस तकनीक़ और हथियार का इस्तेमाल किया है, जो उसके पास उपलब्ध हैं. हालांकि, सच्चाई यह है कि इतना बड़ा हमला करने बाद भी वहां ज़मीनी हक़ीकत में कोई बदलाव नहीं आया है. अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू, दोनों की स्तर पर लोगों द्वारा प्रधानमंत्री नेतन्याहू सरकार की पकड़ और दबदबे पर सवाल उठाए गए हैं और बिगड़ी परिस्थितियों की ज़िम्मेदारी लेने की मांग की गई है. गाजा में इजराइल की तरफ से की गई आक्रामक कार्रवाई ने देखा जाए तो लोगों को अंदर तक हिलाकर रख दिया है. निसंदेह तौर पर गाजा में इजराइल द्वारा किया गया व्यापक विनाश इस पूरे क्षेत्र में एक ऐसा महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है, जो या तो पश्चिम एशिया को स्थिरता की ओर ले जाएगा, या फिर पूरे क्षेत्र में व्यापक स्तर पर अस्थिरता फैलाने का काम करेगा.


देविका अजीत पनिकर ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिचर्स इंटर्न हैं. 

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