अंतरिक्ष शोध की दिशा में 2023 अहम साल साबित हुआ. इसी साल भारत का चंद्रयान-3 मिशन चांद पर पहुंचा. अमेरिका की जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने ये पता लगाया कि बृहस्पति ग्रह के चंद्रमा 'यूरोपा' के वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड है. अक्टूबर 2023 में ओसीरिस-रेक्स एक्सप्लोरर ने भी छोटे-छोटे ग्रहों (एस्टेरोइड)से नमूने इकट्ठा किए हैं, जिनसे ये खोज की जा सकती है कि वहां जीवन संभव है या नहीं?
अंतरिक्ष में शोध करने के अलावा नासा (NASA) समेत अलग-अलग देशों के अंतरिक्ष संगठन अपने कार्यक्रमों और नीतियों का लगातार विकास कर रहे हैं. ग्रहों की सुरक्षा पर बनी अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (COSPAR)की अप्रैल 2023 में एक बैठक हुई. इसमें ये चर्चा की गई कि भविष्य में अंतरिक्ष के क्षेत्र में शोध करने के साथ-साथ ग्रहों की सुरक्षा के लिए क्या नीतियां बनाई जाएं.
ग्रहों की सुरक्षा पर बनी अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (COSPAR)की अप्रैल 2023 में एक बैठक हुई. इसमें ये चर्चा की गई कि भविष्य में अंतरिक्ष के क्षेत्र में शोध करने के साथ-साथ ग्रहों की सुरक्षा के लिए क्या नीतियां बनाई जाएं.
इस कमेटी ने जून 2021 में ग्रहों की सुरक्षा के संबंध में एक नीति (पीपीपी) को मंजूरी दी. इस नीति में बायोबर्डन पर भी चर्चा हुई. बायोबर्डन का मतलब किसी सतह पर रहने वाले उन जीवाणुओं की संख्या से लगाया जाता है, जिन्हें निष्क्रिय नहीं किया गया है. अंतरिक्ष यात्रा से कई बार परीक्षण के लिए जो टुकड़े लाए जाते हैं, इनमें ये बायोबर्डन होता है. इस नीति पर नासा, इसरो और जापान की अंतरिक्ष एजेंसी (JAXA)ने भी दस्तखत किए हैं.
हर स्पेस एजेंसी को अपने अंतरिक्ष मिशन की पूरी जीवन अवधि तक इन नीतियों का पालन करना होता है. इसमें अंतरिक्ष मिशन का वर्गीकरण, जैविक और कार्बनिक सामग्री का संरक्षण करना भी शामिल है. अंतरिक्ष से जुड़ी सामग्री की जांच करने, इनके सम्पर्क में आकर दूषित होने के खतरे, रोबोटिक मिशन को जैविक दूषण से बचाने और अंतरिक्ष मिशन के खत्म होने के बाद क्या प्रक्रियाएं अपनाई जाएं, इन सबका जिक्र इस नीति में किया गया है.
पिछले कुछ साल से अंतरिक्ष पर शोध और वहां से लाए नमूनों का अध्ययन बहुत ज्यादा होने लगा है. ऐसे में ये जरूरी है कि अब जैविक तौर पर सुरक्षित प्रयोगशालाएं बनाई जाएं. इसका फायदा यह होगा कि अंतरिक्ष से जो सामग्री लाई जाएगी, वो ना तो धरती के वायुमंडल से दूषित होंगी, ना ही वो पृथ्वी के वातावरण को दूषित कर पाएंगी.
जैविक प्रयोगशालाएं और अंतरिक्ष से लाए गए नमूने
अंतरिक्ष मिशन की लॉन्चिंग और हादसे की जगह प्रदूषण रोकने के लिए यूरोपियन यूनियन साफ तंबुओं का एक घेरा बनाती है. ग्रहों की सुरक्षा को लेकर यूरोपियन यूनियन ने एक किताब भी जारी की है.
जापान के इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस एंड एस्ट्रोनॉटिकल साइंस (ISAS)और डिपार्टमेंट ऑफ सेफ्टी एंड मिशन एश्योरेंस की तरफ से भी इसे लेकर कुछ मापदंड बनाए गए हैं जिनका ध्यान जापान की अंतरिक्ष एजेंसी को रखना होता है.
नासा के पास अपना जैविक सुरक्षा समीक्षा बोर्ड है. अंतरिक्ष से लाई गई सामग्री की सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को दूषित होने से बचाना इसका काम है. अब एक नई संस्था की जरूरत महसूस हो रही है क्योंकि अमेरिका ने कार्बनिक सामग्री की खोज और धरती से बाहर जीवन संभावना तलाशनी शुरू कर दी है.
अब एक नई संस्था की जरूरत महसूस हो रही है क्योंकि अमेरिका ने कार्बनिक सामग्री की खोज और धरती से बाहर जीवन संभावना तलाशनी शुरू कर दी है.
ये उम्मीद जताई जा रही है कि साल 2033 तक नासा का मंगल मिशन वहां से कुछ नमूने लेकर लौट सकता है. ऐसे में जैविक सुरक्षा वाली प्रयोगशाला बनाना और भी जरूरी हो जाता है, जिससे मंगल ग्रह से लाई गई खतरनाक जैविक सामग्री का इंसानों और धरती के वातावरण पर बुरा असर ना पड़े. मंगल ग्रह से लाए गए नमूनों की जांच करने के लिए नासा ने 2023 में ही जैविक तौर पर सुरक्षा वाली प्रयोगशाला बनानी शुरू कर दी थी. नासा को उम्मीद है कि मंगल ग्रह से जो नमूने लाए जाएंगे, उनमें विषाणु, जीवाणु और दूसरे कार्बनिक सामग्री हो सकती है. हालांकि 1970 के दशक में नासा के वाइकिंग एक्सपेरिमेंट में मंगल ग्रह में जीवन होने के ठोस सबूत नहीं मिले थे लेकिन वहां जीवन होने की संभावना को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता.
अगर ये साबित हो जाता है कि मंगल ग्रह या दूसरे ग्रहों पर जीवन है तो फिर इससे अंतरिक्ष यात्रियों को सेहत सम्बंधी या दूसरी तरह के खतरे हो सकते हैं. जैविक खतरों की भी अनदेखी नहीं की जा सकती. संभावित खतरों का आकलन करने लिए ये जरूरी है कि मंगल ग्रह में मौजूद नुकसान पहुंचाने वाले सूक्ष्मजीवों का पूर्व अनुभवों के आधार पर विश्लेषण किया जाए. धरती पर मौजूद उसी तरह के जीवों की रोग पैदा करने की क्षमता की उनके साथ तुलना की जाए. इसके लिए उन अध्ययनों की मदद ली जा सकती है जो अपोलो मिशन के बाद किए गए थी. ज्यादा जानकारी के लिए अंतरिक्ष के अध्ययन पर राष्ट्रीय शोध परिषद की सिफारिशें भी मददगार साबित हो सकती हैं.
इसके साथ ही ये भी जरूरी है कि मंगल ग्रह को लेकर शोध कर रहे लोगों के लिए वैसे ही सुरक्षा नियमों का पालन किया जाए जैसा जैविक सुरक्षा प्रयोगशाला के स्तर-2 पर काम कर रहे लोगों के लिए किया जाता है. मंगल मिशन पर काम कर रहे अंतरिक्ष यात्रियों और वहां से मिली सामग्री को भी कुछ समय के लिए सबसे अलग-थलग रखना चाहिए. जैविक सुरक्षा के इन नियमों को मंगल मिशन की शुरुआत से ही लागू कर देना चाहिए.
भारत के लिए क्या अहमियत?
चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारत अपने अंतरिक्ष मिशन में विस्तार कर रहा रहा है. इसरो ने सौरमंडल के दूसरे ग्रहों में खोजी मिशन भेजने की इच्छा जताई है. इसरो अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का सदस्य है और वो उसके नियमों का पालन करता है. लेकिन भारत ने अभी तक ग्रहों की सुरक्षा और इससे जुड़ी जैविक सुरक्षा प्रयोगशालाओं को लेकर कोई नीति नहीं बनाई है. अंतरिक्ष अनुसंधान समिति की कई बार इस बात के लिए आलोचना की जाती है कि ग्रहों की सुरक्षा के लिए बनाई गई इसकी नीतियां अपर्याप्त हैं. पारदर्शिता की कमी और इसके अधिकार क्षेत्र को लेकर भी कई बार विवाद होता है. भारत को ग्रहों की सुरक्षा को लेकर एक राष्ट्रीय नीति बनानी चाहिए. इसका फायदा यह होगा कि भारत स्वतंत्र तरीके से अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में काम कर सकेगा. इतना ही नहीं जैविक सुरक्षा प्रयोगशाला के लिए भी उसे किसी दूसरे देश या संस्था पर निर्भर नहीं रहना होगा.
निष्कर्ष
साल 2023 में अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में कई बड़ी सफलता मिली. इन उपलब्धियों के साथ इन्हें लेकर नई नीतियां बनानी जरूरी हैं जिससे धरती और अंतरिक्ष के वातावरण को नुकसान ना पहुंचे. अंतरिक्ष मिशन और वहां से मिलने वाली सामग्री के अध्ययन के काम में जिस तरह की तेज़ी आई है, उसे देखते हुए जैविक तौर पर सुरक्षित प्रयोगशालाएं जरूरी हो गई हैं. भारत को स्वतंत्र तौर पर इनका विकास करना चाहिए. नासा ने मंगल ग्रह से मिलने वाली संभावित सामग्री से होने वाले नुकसान से बचने के लिए जैविक सुरक्षा प्रयोगशाला का निर्माण शुरू कर दिया है. भारत को भी ऐसा करना चाहिए.
भारत को ग्रहों की सुरक्षा को लेकर एक राष्ट्रीय नीति बनानी चाहिए. इसका फायदा यह होगा कि भारत स्वतंत्र तरीके से अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में काम कर सकेगा.
अंतरिक्ष मिशन में लगे सभी देशों ने ये वादा किया है कि अंतरिक्ष अनुसंधान का काम करते हुए वो इस बात का भी ध्यान रखेंगे कि वातावरण को कोई नुकसान ना पहुंचे. इसके लिए कुछ नियम बनाने जरूरी हैं. इससे हमारा सौरमंडल भी सुरक्षित रहेगा और ब्रह्मांड के रहस्यों को खोलने का काम भी जारी रखा जा सकेगा.
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