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NFT के असर पर क़ाबू पाने के लिए सही नियम क़ायदे बनाए जाने की ज़रूरत है, जिनका ज़ोर न सिर्फ़ जलवायु के नज़रिए पर हो, बल्कि नैतिकता और बौद्धिक संपदा से जुड़े हुए क़ानून भी बनाने की ज़रूरत है.
जैसे जैसे क्रिप्टोकरेंसी की लोकप्रियता बढ़ने लगी थी, वैसे ही डिजिटल करेंसी के अलावा अन्य डिजिटल संपत्तियों का आग़ाज़ होना भी तय ही था, जो उसी तरह की डिस्ट्रीब्यूटेड लेजर तकनीक (DLT) पर आधारित थीं. नॉन फंजिबल टोकन (NFT) का मतलब किसी DLT या ब्लॉकचेन में किसी डिजिटल संपत्ति के मालिकाना हक़ या लाइसेंस होने का सुबूत है. NFT किसी भी डिजिटल संपत्ति या किसी संपत्ति के डिजिटल स्वरूप हो सकते हैं, जो नई तरह की कला के किसी भी प्रतिरूप की पहली (जैसे कि दुनिया का पहला ट्वीट) या असली चीज़ हो.
NFT ने नए युग या इस दौर के कलाकारों के लिए एक नए और आसानी से पहुंच वाले एक नए बाज़ार का निर्माण किया है. 2021 में एक नीलामघर ने मॉडर्न आर्ट के एक NFT कृति को, 6.9 करोड़ डॉलर की भारी क़ीमत पर बेचा था. कलाकृति के इस NFT स्वरूप की क़ीमत किसी भी अन्य मशहूर कलाकृति मसलन, विंसेंट वान गो की बनाई तस्वीर की क़ीमत की तुलना में दोगुना अधिक थी. NFT संग्रहालयों के लिए तो ख़ास तौर से मुफ़ीद साबित हुए हैं. बहुत से म्यूज़ियम दुनिया भर में मशहूर अपने यहां रखी कलाकृतियों को बेचने में कामयाबी हासिल की है. जबकि अब तक ये क्षेत्र निवेश की कमी का शिकार रहा था.
NFT किसी भी डिजिटल संपत्ति या किसी संपत्ति के डिजिटल स्वरूप हो सकते हैं, जो नई तरह की कला के किसी भी प्रतिरूप की पहली (जैसे कि दुनिया का पहला ट्वीट) या असली चीज़ हो.
NFT का नयापन इस बात में निहित है कि उनकी नक़ल नहीं की जा सकती है. इसका मतलब ये है कि किसी भी NFT के लिए जो ब्लॉकचेन उसके नाम की जाती है वो अनूठी होती है. इससे उसकी नक़ल कर पाना या फिर उसके नाम पर कोई झूठ-मूठ की डिजिटल कलाकृति को बाज़ार में उतार पाना नामुमकिन होता है. इसी वजह से NFT आज कला और तकनीक के मेल की ख़ूबसूरत मिसाल बन गए हैं.
बाज़ार में इज़ाफ़े, जुटाई जाने वाली क़ीमत बढ़ने और डिजिटल रूप से उनकी नक़ल करने की दिक़्क़त जैसी ख़ूबियों के बाद भी, NFT की दुनिया में कलाकारों, कलाकृतियां जमा करने वालों और इन्हें बेचने वालों को उम्मीद के मुताबिक़ सुरक्षा हासिल नहीं है.
NFT के मौजूदा नियमों की एक ख़ामी तो ख़रीदने, बेचने और यहां तक कि बौद्धिक संपदा के अधिकारों (IP) के तहत इन कलाकृतियों को डिजिटल रूप से दोबारा तैयार करने को लेकर है. इस वक़्त किसी कला को NFT के तौर पर ही दोबारा तैयार करने का मतलब किसी तस्वीर का एक ख़ास कोड बनाना होता है, और इसीलिए ये काम बौद्धिक संपदा से जुड़े मौजूदा क़ानूनों के दायरे में नहीं आता है. नियम क़ायदों की ये कमी कलाकारों और कलाकृतियां जमा करने वालों के सामने अनैतिकता का सवाल लेकर आई है. एक मामले में किसी मेज़बान संग्रहालय ने अपने यहां के कलाकारों को शिल्पकारी के लिए क़र्ज़ देने से ही इनकार कर दिया था. इसके बाद उन कलाकारों ने अपनी मूर्ति के लिए एक NFT बनाई और अपना बौद्धिक संपदा का अधिकार दोबारा हासिल करने के लिए उस NFT को बेच दिया. इससे किसी हालिया कलाकृति को बनाने के मालिकाना हक़ को लेकर एक क़ानूनी लड़ाई शुरू हो गई.
इस वक़्त किसी कला को NFT के तौर पर ही दोबारा तैयार करने का मतलब किसी तस्वीर का एक ख़ास कोड बनाना होता है, और इसीलिए ये काम बौद्धिक संपदा से जुड़े मौजूदा क़ानूनों के दायरे में नहीं आता है.
कलाकृति के क़ानूनी पचड़ों और बौद्धिक संपदा के अधिकारों के अलावा NFT को लेकर होने वाली परिचर्चाओं में कुछ ख़ास नैतिकता के मुद्दे भी हावी हैं. ऐसा ही एक नैतिक विवाद, NFT के जलवायु पर पड़ने वाले असर को लेकर है. आज के दौर में NFT की ख़रीद फ़रोख़्त का कारोबार ज़्यादातर इथीरियम के ज़रिए होता है. वैसे तो इथीरियम हरित तकनीकों का इस्तेमाल करती है और इस वक़्त जलवायु को सबसे कम नुक़सान पहुंचाने वाली क्रिप्टोकरेंसी मानी जाती है. लेकिन, कार्बन उत्सर्जन की बात करें, तो इससे पर्यावरण पर पड़ने वाले असर की अनदेखी नहीं की जा सकती है. मिसाल के तौरा पर हमने जिस कलाकृति का पहले ज़िक्र किया था, महज़ उसकी ख़रीद- फ़रोख़्त से इतना कार्बन उत्सर्जन होने का अंदाज़ा लगाया गया था, जितना अमेरिका का कोई औसत घर लगभग छह दिनों में कर पाता है.
फास्ट फैशन के नाम पर आलोचना झेल रहे फैशन उद्योग ने अपना खोया हुआ दर्जा दोबारा हासिल करने के लिए अपने यहां मज़दूरी कराने के नियमों, महंगे दाम और ग्रीनवाशिंग के नाम पर जलवायु परिवर्तन को नुक़सान पहुंचाने को लेकर होने वाले विवादों से ख़ुद का पीछा छुड़ाने की कोशिश की है. हालांकि, आज भी हाई फैशन कहे जाने वाले बड़े ब्रैंड्स के मामलों में भी पूरी तरह नहीं तो कुछ हद तक नैतिकता के मसले बने हुए हैं. NFT के आग़ाज़ के वक़्त से ही फैशन उद्योग ने भी अपने उत्पादों में इन नए आविष्कारों को शामिल करना शुरू कर दिया है. इसकी शुरुआत डिजिटल फैशन से हुई थी, जो अब ऑग्यूमेंटेड रियालिटी (AR) तक जा पहुंची है. श्रमिकों पर कम निर्भरता के चलते, फैशन उद्योग ने नए युग की इन परिकल्पनाओं को अधिक नैतिकता वाला बनाकर पेश किया है. फैशन उद्योग ने ग्राहकों की वफ़ादारी हासिल करने के लिए NFT में भी अपना निवेश बढ़ा दिया है. बदक़िस्मती से AR फैशन का इस्तेमाल और NFT के रूप में डिजिटल फैशन की ख़रीदारी भी जलवायु पर बहुत बड़ा बोझ बन गई है. सिर्फ़ इथीरियम (जो दूसरी क्रिप्टोकरेंसी की तुलना में जलवायु के लिए कम नुक़सानदेह है) का महज़ एक लेन-देन किसी वीज़ा क्रेडिट कार्ड से होने वाले 149,893 लेन-देन के बराबर कार्बन उत्सर्जन करता है.
फैशन उद्योग में जलवायु परिवर्तन को लेकर हो रही परिचर्चा से आगे बौद्धिक संपदा को लेकर भी बहुत बहस चल रही है. वास्तविक दुनिया में बौद्धिक संपदा के मौजूदा क़ानून फ़ैशन को ‘कला का कोई रूप’ नहीं बल्कि ‘उपयोगी वस्तुएं’ मानते हैं. इस तरह से बौद्धिक संपदा के मौजूदा अधिकार फैशन और कपड़ा उद्योग पर लागू नहीं होते हैं. लेकिन NFT का इस्तेमाल शुरू होने के बाद फैशन के उत्पादन बनाने को लेकर नज़रियों में बदलाव आने लगा है.
2022 में मैसन रोथ्सचाइल्ज ने हर्मीस के विशेष मेटाबिर्किन्स बैग्स के लिए NFT का निर्माण किया था. हर्मीस ने मैसन को ऐसा करना बंद करने और इससे बाज़ आने की चिट्ठी भेजी थी, और उसके बाद से ही दोनों के बीच क़ानूनी लड़ाई चल रही है. इस मुक़दमे के दौरान इन सवालों पर भी बहस हो रही है कि क्या NFT को भी कला की अभिव्यक्ति कहा जा सकता है; NFT के उत्पादन और पुनरुत्पादन के लिए कैसी मंज़ूरी लेने की दरकार होगी; क्या NFT किसी वस्तु का ही एक विकल्प है या फिर ये उससे बिल्कुल अलग होता है. ये मुक़दमा और इसका नतीजा ही अन्य डिजिटल संपत्तियों के लिए एक क़ानूनी मिसाल बनेगा. फैशन उद्योग को इस मुक़दमे के नतीजे की जो उम्मीद है, उसकी अपेक्षा में उसने अपने NFT बनाने शुरू कर दिए हैं. या फिर वो अपनी वर्चुअल संपत्तियां बना रहे हैं ताकि वेब 2.0 और वेब 3.0 में अपने बौद्धिक संपदा के अधिकारों की हिफ़ाज़त कर सकें.
फैशन उद्योग ने ग्राहकों की वफ़ादारी हासिल करने के लिए NFT में भी अपना निवेश बढ़ा दिया है. बदक़िस्मती से AR फैशन का इस्तेमाल और NFT के रूप में डिजिटल फैशन की ख़रीदारी भी जलवायु पर बहुत बड़ा बोझ बन गई है.
NFT को लेकर नैतिकता का एक और मुद्दा क्रिप्टोकरैंसियों के साथ उनकी क़ीमतों में उतार- चढ़ाव का और ख़रीदारों और जमा करने वालों के शोषण का भी है. NFT के पीछे जो ज़रूरत से ज़्यादा उत्साह देखा जा रहा है, अब उसे स्वीकार किया जा रहा है. ख़ास तौर से तब से जब से केवल एक महीने के भीतर ही इसके कुल मूल्य में 85 फ़ीसद की गिरावट दर्ज की गई. जिससे ये पता चला कि इसे लेकर उत्साह का ग़ुब्बारा बड़ी ख़ामोशी से फ़ुस्स हो गया था. इसके बाद भी निवेशक NFT बनाने में इस्तेमाल होने वाली तकनीक को लेकर ज़बरदस्त उत्साह में हैं. फैशन उद्योग में गुच्ची और टिफनी ऐंड कंपनी ने DLTs की दुनिया में अपना विस्तार जारी रखा है. गुच्ची ने क्रिप्टो पर आधारित भुगतान लेने शुरू कर दिए हैं, और टिफनी तो NFT पर आधारित उत्पाद बाज़ार में उतार रही है.
हाल के महीनों में NFT के बाज़ार में मांग में गिरावट देखी जा रही है और फिर से बिक्री की क़ीमतों में तो इतनी गिरावट आई है कि क्रिप्टो क्षेत्र के कुल मूल्य में लगभग 10 अरब डॉलर की कमी आ गई है. इसके बावुजूद बड़ी ग्राहक कंपनियां NFT और वेब 3.0 की तकनीकों को मेटावर्स की दुनिया में ग्राहकों से संपर्क बनाने के एक उम्मीद भरे विकल्प के तौर पर देख रही हैं. ये उठापटक अक्सर उन निवेशकों के शोषण का कारण बन जाती है, जो उन क्षेत्रों में निवेश करते हैं, जिनके नियम अभी नहीं बने हैं और इनसे मनी लॉन्ड्रिंग की राह भी निकलती है.
NFT के कई तरह के अनैतिक और ग़ैरक़ानूनी मुद्दों के शिकार होने का डर है. ग्राहकों के किसी ख़ास समूह को NFT बेचना यानी वाश ट्रेडिंग से अक्सर, असल ग्राहकों को बेचने से पहले क़ीमतों में इज़ाफ़ा किया जाता है. ये एक ऐसा मसला है जो कला के क्षेत्र में बार-बार उठ रहा है. इससे फ़र्ज़ीवाड़े और मनी लॉन्ड्रिंग को बढ़ावा मिलता है. NFT के मुरीदों के बीच एक और मुद्दा रग पुल (पहले किसी उत्पाद या घटना के लिए बाज़ार में ज़बरदस्त माहौल बनाना और ख़रीदारों से पैसे जमा करके वो सामान न देने) का भी है. NFT के बाज़ार में अगर कोई बिक्री हो जाती है तो, कई बार बाद में लेन-देन पर रोक लगाना के लिए उसकी फिर से बिक्री करने की इजाज़त रोक दी जाती है.
कई और तरह की सोशल इंजीनियरिंग और घोटालेबाज़ी भी बहुत चल रही है, जहां फ़र्ज़ीवाड़ा करने वाले लोग NFT के प्रतिनिधियों की नक़ल करते हैं और क्रिप्टो वालेट के आंकड़े हासिल कर लेते हैं और फिर उसका इस्तेमाल क्रिप्टोकरेंसी की चोरी में करते हैं. फैशन उद्योग के नैतिकता से जुड़े मौजूदा विवादों (ग्रीनवाशिंग, श्रमिकों को कम या बिल्कुल भी मज़दूरी न देने और दूसरे का हक़ मारने) जैसे मसलों से निपटने के लिए बौद्धिक संपदा के अधिकारों के अलावा अन्य नियामक सहयोग की ज़रूरतों की तरफ़ इशारा करते हैं.
कई और तरह की सोशल इंजीनियरिंग और घोटालेबाज़ी भी बहुत चल रही है, जहां फ़र्ज़ीवाड़ा करने वाले लोग NFT के प्रतिनिधियों की नक़ल करते हैं और क्रिप्टो वालेट के आंकड़े हासिल कर लेते हैं और फिर उसका इस्तेमाल क्रिप्टोकरेंसी की चोरी में करते हैं.
इसीलिए, कला के एक वास्तविक और पहुंच वाले स्वरूप के तौर पर फैशन उद्योग, नैतिक इस्तेमाल, उत्पादन और NFT के फिर से उत्पादन को लेकर तमाम तरह की दुविधाओं की एक मिसाल है.
ये मुद्दे तो उन चुनौतियों की महज़ मिसाल भर हैं, जिनसे हमारा सामना उस वक़्त होगा, जब ग्राहकों के अवतार के रूप में हमारा सामना मेटावर्स और AR और डिजिटल फ़ैशन के पूरी तरह से छा जाने पर होगा. NFT के जलवायु परिवर्तन पर असर ही नहीं बल्कि नैतिकता और बौद्धिक संपदा से जुड़े क़ानूनों और अन्य कमियों से निपटने के लिए पूरे फैशन उद्योग को एकजुट होकर क़दम उठाना होगा, तभी उन कमियों को दूर किया जा सकेगा, जो अब तक कमज़ोर लोगों के शोषण का ज़रिया बनते आए हैं.
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Shravishtha Ajaykumar is Associate Fellow at the Centre for Security, Strategy and Technology. Her fields of research include geospatial technology, data privacy, cybersecurity, and strategic ...
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