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Published on Apr 15, 2024 Updated 0 Hours ago

चीन ने सीधे सैन्य टकराव के बिना ताइवान के लोगों की राय और सोच को प्रभावित करने के लिए कॉग्निटिव वॉरफेयर की रणनीति अपनाई है.

कॉग्निटिव वॉरफेयर का सारांश: चीन की रणनीतियों की तरफ केंद्रित ध्यान

युद्ध की गतिशील प्रकृति के कारण “कॉग्निटिव वॉरफेयर” नाम का एक नया शब्द सामने आया है. इस तरह के युद्ध के पीछे की रणनीति किसी लड़ाई को जीतने के लिए इंसानी दिमाग़ को बरगलाने पर ध्यान देती है. इस शब्द का उपयोग ज़्यादातर चीन-ताइवान दुश्मनी के संदर्भ में किया गया है जहां पिछले कुछ दशकों में चीन की रणनीति असर आधारित अभियानों की तरफ चली गई है. इसका कारण ये है कि चीन इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि ताइवान में तुरंत सैन्य दखल देना उसके लिए महंगा साबित होगा. ये लेख चीन की कॉग्निटिव वॉरफेयर की पद्धति पर नज़र डालता है और इस पर भी गौर करता है कि ये किस तरह उसके दुश्मनों, ख़ास तौर पर ताइवान, के ख़िलाफ़ काम आता है. 

कॉग्निटिव वॉरफेयर

कॉग्निटिव वॉरफेयर मुख्य रूप से इंसानी दिमाग़ को निशाना बनाता है. इसके लिए ऐसे तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है जो दिमाग़ को गुमराह करते हैं. इसमें दो प्रमुख किरदार शामिल हैं: अंजाम देने वाला जो हमले की शुरुआत करता है और लोग जिन्हें निशाना बनाया जाता है. ये लोगों के दिमाग़ को प्रभावित करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसे तरीकों और तकनीकों का इस्तेमाल करता है. कॉग्निटिव वॉरफेयर के विचार की शुरुआत छठी शताब्दी के चीनी सैन्य रणनीतिकार सन ज़ू ने की थी. युद्ध को लेकर उनकी सोच थी कि “दुश्मन के विरोध को बिना लड़ाई के ख़त्म किया जाए.” ये विचार किसी सक्रिय युद्ध से जुड़े बिना लड़ाई को जीतने के लिए इंसानी दिमाग़ की सोच-विचार की प्रक्रिया को निशाना बनाने पर ज़ोर देता है. युद्ध के इस विचार ने चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के जनरल्स की सोच पर महत्वपूर्ण असर डाला है. 

2003 में PLA ने अपनी राजनीतिक काम-काज की गाइडलाइन में फेरबदल करके “थ्री वॉरफेयर (तीन युद्ध)” की रणनीति शुरू की थी. ये तीन युद्ध थे: मीडिया या जनमत युद्ध, मनोवैज्ञानिक युद्ध और कानूनी युद्ध. 

PLA और कॉग्निटिव वॉरफेयर

2003 में PLA ने अपनी राजनीतिक काम-काज की गाइडलाइन में फेरबदल करके “थ्री वॉरफेयर (तीन युद्ध)” की रणनीति शुरू की थी. ये तीन युद्ध थे: मीडिया या जनमत युद्ध, मनोवैज्ञानिक युद्ध और कानूनी युद्ध. ये तीनों सीधे तौर पर कॉग्निटिव वॉरफेयर से जुड़े हैं. जनमत युद्ध (पब्लिक ओपिनियन वॉरफेयर) एक ख़ास नतीजा हासिल करने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जनमत को बरगलाने पर ध्यान देता है. इसके विपरीत मनोवैज्ञानिक युद्ध एक योजनाबद्ध रणनीति के ज़रिए धमकाने और भावनाओं को जगाने पर ध्यान देता है. अपनी सूचना युद्ध की रणनीति को आगे बढ़ाते हुए PLA की डॉक्ट्रिन “इंटेलिजेंटाइज़्ड वॉरफेयर (बुद्धिमान युद्ध)” पर ज़ोर देती है.

PLA के आधिकारिक अख़बार PLA डेली के मुताबिक चीन एक वियरेबल टेक्नोलॉजी विकसित कर रहा है जो एक मनोवैज्ञानिक समर्थन की प्रणाली के तौर पर काम करेगी और सैनिकों को असली युद्ध की मानसिक चुनौतियों के लिए तैयार करेगी. कई सैनिकों को इन स्मार्ट सेंसर ब्रेसलेट से लैस किया गया है जो रियल-टाइम में उनकी मनोवैज्ञानिक दशा की समीक्षा के लिए लगातार फेशियल डेटा इकट्ठा करते हैं. फिर फीडबैक मुहैया कराने के लिए इस डेटा को प्रोसेस और उनका विश्लेषण किया जाता है. इस तरह PLA अपने सैनिकों का मानसिक कल्याण और कॉग्निटिव क्षमता के महत्व को समझती है और युद्ध में जीत के लिए उन्हें एक बुनियाद की तरह देखती है. 

ताइवान के ख़िलाफ़ चीन की रणनीति को समझिए

ताइवान की तरफ चीन का कॉग्निटिव ऑपरेशन किसी एक विभाग के द्वारा निर्देशित नहीं किया जाता है बल्कि उसका तालमेल अलग-अलग सरकारी विभागों और चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी की एजेंसियों के द्वारा किया जाता है. उनका लक्ष्य ताइवान के भीतर आंतरिक बंटवारे को बढ़ाना है. इन अभियानों में ऑनलाइन और मीडिया की प्रणाली के ज़रिए दुष्प्रचार फैलाना और ताइवान की निगरानी को धोखा देने के लिए सैनिकों की टुकड़ी की तैनाती के माध्यम से धमकाने की चाल का उपयोग करना शामिल है. 

चीन और ताइवान के बीच तनाव की जड़ बहुत गहरी है जो 20वीं शताब्दी के अनसुलझे चीनी गृह युद्ध से पैदा हुई है. इस संघर्ष की वजह से 1949 में मेनलैंड में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना हुई. चीन मानता है कि ये ‘वन चाइना’ नीति के तहत चीन की इकलौती सरकार है और ज़ोर देकर ताइवान को ‘विद्रोही’ प्रांत कहता है. हालांकि ताइवान एक स्वशासन वाले देश में विकसित हो गया है जहां उसके अपने लोकतांत्रिक संस्थान हैं जिसमें सेना और संविधान शामिल हैं. फिर भी ताइवान की घरेलू भावना उन लोगों के बीच बंटी हुई है जो चीन के साथ एकीकरण का समर्थन करते हैं और जो इस बात पर ज़ोर देते हैं कि ताइवान को एक स्वतंत्र देश बने रहना चाहिए. 

इसी को ध्यान में रखते हुए चीन ने ताइवान के ख़िलाफ़ कॉग्निटिव वॉरफेयर की रणनीति का इस्तेमाल किया है. हाल के वर्षों में इस रणनीति में मुख्य रूप से चार प्रमुख तत्व शामिल किए गए हैं: 

ताइवान के ठिकानों पर साइबर हमलों को अंजाम देना: अगस्त 2022 में जब अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान के दौरे पर थीं तो चीन ने ताइवान के कंप्यूटर नेटवर्क और वेबसाइट को निशाना बनाकर कई साइबर हमले किए. ऐसे ही एक मामले में 7-इलेवन स्टोर के डिजिटल साइनेज को हैक करके “युद्ध को उकसाने वाली पेलोसी, ताइवान से बाहर जाओ” जैसे संदेश दिखाए गए. इन हमलों का मक़सद ताइवान के लोगों को बरगलाना और धमकाना था. 

ताइवान में लोगों की राय बदलने के उद्देश्य से दुष्प्रचार फैलाने के लिए सोशल मीडिया और डीप फेक समेत अन्य तरीकों का इस्तेमाल: यहां ताइवान के लिए मुख्य चुनौती ये है कि उसने चीन के सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म जैसे कि टिकटॉक पर पाबंदी नहीं लगाई है. इससे गंभीर ख़तरा पैदा हो गया है क्योंकि चीन ने इस प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल अपने पक्ष में संदेशों को बढ़ावा देने में किया है. इसी तरह चीन ने फर्ज़ी वीडियो फैलाने के लिए डीपफेक जैसे AI टूल्स का भी उपयोग किया है. कुछ वीडियो तो ताइवान की चुनाव प्रक्रिया में दखल देने और ताइवान के लोगों और वहां की सरकार के बीच अविश्वास की भावना पैदा करने के लिए टूल के तौर पर बनाए गए हैं. 

सक्रिय कार्रवाई किए बिना सैन्य धमकी: मिसाल के तौर पर, 2022 की गर्मियों में PLA ने एक सैन्य अभ्यास के हिस्से के रूप में ताइवान की नाकाबंदी दिखाने के लिए क्यूमॉय द्वीप के ऊपर 100 से ज़्यादा लड़ाकू विमान भेजे. जानकारों ने इस तरह की डराने की चाल को “ग्रे ज़ोन” रणनीति का नाम दिया है. 

सॉफ्ट पावर का इस्तेमाल करना: चीन ने द्विपक्षीय आदान-प्रदान के कार्यक्रमों (एक्सचेंज प्रोग्राम) का उपयोग ताइवान के छात्रों को लुभाने और उन्हें आर्थिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक लाभ की पेशकश देने के लिए किया है. उदाहरण के लिए, चीन ताइवान से अपने यहां आने वालों के लिए यात्रा और खाने-पीने की मुफ्त सेवा या यात्रा पर बड़ी छूट की पेशकश करता है. ख़बरों के मुताबिक चीन ने पेकिंग यूनिवर्सिटी, जो कि चीन में सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित रिसर्च यूनिवर्सिटी में से एक है, में ताइवान के छात्रों के लिए अतिरिक्त सीट का भी प्रस्ताव दिया है. चीन का लक्ष्य ताइवान के प्रोफेशनल्स को चीन की तरक्की के बारे में अपने विचारों को नया रूप देने के लिए बताना, उनकी दिलचस्पी बनाए रखना और चीन के असर को स्वीकार करने की तरफ रास्ता तैयार करना है. 

ताइवान का जवाब

चीन के कॉग्निटिव वॉरफेयर के जवाब में ताइवान ने मुख्य रूप से दुष्प्रचार से निपटने पर ध्यान दिया है. 18 जनवरी को ही ताइवान ने अपना पहला कॉग्निटिव वॉरफेयर रिसर्च सेंटर खोला. स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक सेंटर के तीन डिवीज़न हैं: डेटा कंपाइलेशन (संग्रह) एंड रिसर्च, ताइवान पर निशाना बनाने वाले कॉग्निटिव वॉरफेयर का विश्लेषण और फेक न्यूज़ का मुकाबला करने के लिए एक त्वरित प्रतिक्रिया यूनिट. इसका उद्देश्य फेक अकाउंट और फेक न्यूज़ से निपटना और लोगों के बीच जागरूकता पैदा करना है. सेंटर का लक्ष्य साइबर एक्सपर्ट्स के ज़रिए रियल-टाइम में ज़ॉम्बी अकाउंट का मुकाबला करना है. ये साइबर एक्सपर्ट्स फर्ज़ी अकाउंट को ख़त्म करने के लिए लगातार डेटा पर निगरानी रखेंगे. नये सेंटर का मिनिस्ट्री ऑफ जस्टिस इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (न्याय जांच ब्यूरो का मंत्रालय) के संसाधनों और पेशेवर विशेषज्ञता के साथ विलय हो गया है. ताइवान के केंद्रीय चुनाव आयोग ने टिकटॉक के साथ एक कम्युनिकेशन चैनल भी स्थापित किया है और ताइवान के चुनाव से जुड़े मनगढ़ंत वीडियो के बारे में बताया है. 

जिस समय ताइवान चीन के कॉग्निटिव वॉरफेयर को लेकर अपना जवाब तैयार कर रहा है, इसका भारत पर भी असर हो सकता है. हिमालय में मौजूदा भू-राजनीतिक मुकाबले और अनसुलझे सीमा तनाव को देखते हुए एक संभावना ये है कि चीन भारत के ख़िलाफ़ भी इसी तरह की रणनीति का इस्तेमाल कर सकता है. 

जिस समय ताइवान चीन के कॉग्निटिव वॉरफेयर को लेकर अपना जवाब तैयार कर रहा है, इसका भारत पर भी असर हो सकता है. हिमालय में मौजूदा भू-राजनीतिक मुकाबले और अनसुलझे सीमा तनाव को देखते हुए एक संभावना ये है कि चीन भारत के ख़िलाफ़ भी इसी तरह की रणनीति का इस्तेमाल कर सकता है. उदाहरण के लिए, लद्दाख जैसे क्षेत्र में कॉग्निटिव रणनीति के तहत सीमा विवाद के मुद्दे पर स्थानीय लोगों के रवैये पर असर डालने वाली सोच तय करना या नैरेटिव को काबू करना शामिल हो सकता है. चीन ट्विटर का उपयोग भी एक टूल के तौर पर कर रहा है ताकि जून 2020 के गलवान घाटी के संघर्ष के बारे में गुमराह करने वाले नैरेटिव को आगे बढ़ाया जा सके और भारतीय सेना की ख़राब छवि पेश की जा सके. इसलिए भारत विरोधी प्रोपगैंडा के लिए चीन के एजेंडे और उस पर अमल को देखते हुए भारतीय नीति निर्माताओं को चीन की कॉग्निटिव वॉरफेयर रणनीति के ख़िलाफ़ एकजुट होकर अपनी कार्रवाई करने के लिए सतर्क रहने की ज़रूरत है. 


भैरबी कश्यप डेका ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं. 

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