ताज़ा उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि भारत ने कोविड-19 वैक्सीन की 73.63 करोड़ पहली डोज़ और 33.67 करोड़ दूसरी डोज़ (3 नवंबर 2021 को) अपनी वयस्क आबादी को लगाई है. वैक्सीनेशन की रफ़्तार 45+ आबादी में ख़ास तौर पर ज़्यादा है (पहला ग्राफ) जहां 80 प्रतिशत से ज़्यादा लोगों को कम-से-कम वैक्सीन की पहली डोज़ लग चुकी है और 40 प्रतिशत से ज़्यादा लोगों का पूरी तरह टीकाकरण हो चुका है. भारत सरकार का लक्ष्य कोविड-19 से बचने के लिए सभी वयस्कों को 31 दिसंबर 2021 तक वैक्सीन लगाने का है और इसलिए साल की आख़िरी तिमाही में टीकाकरण की गति महत्वपूर्ण बन जाती है.
लेकिन पिछले कुछ हफ़्तों के दौरान वैक्सीन लगाने की रफ़्तार निराशाजनक है. हर रोज़ 1.10 करोड़ वैक्सीन डोज लगाने के लक्ष्य (1 अक्टूबर के मुताबिक़) की जगह रोज़ाना वैक्सीन डोज़ लगाने का आंकड़ा ठहर सा गया है. वास्तव में इसमें गिरावट आ गई है. 8 अक्टूबर को 82 लाख डोज़ से ये आंकड़ा काफ़ी हद तक गिर गया है. सात दिनों में 60 लाख वैक्सीन डोज़ के औसत से घटकर ये आंकड़ा 18 अक्टूबर को 39 लाख पर पहुंच गया. टीकाकरण की रफ़्तार कम होने की एक वजह त्योहारों को बताया जा सकता है लेकिन साफ़ तौर पर इसके कई और कारण हैं जो 31 दिसंबर तक सभी को वैक्सीन लगाने के सरकार के लक्ष्य को कमज़ोर कर सकते हैं. इसलिए इस मामले में गहराई से खोजबीन की ज़रूरत है. टीकाकरण की गति में इस आश्चर्यजनक कमी के पीछे की वजह को जानना होगा और इसका समाधान तलाशने की ज़रूरत है.
क्या वैक्सीनेशन के आंकड़ों में कमी सप्लाई की मजबूरी की वजह से है?
वैसे तो ये पूछने के लिए वाजिब सवाल है क्योंकि भारत में अलग-अलग वैक्सीन के उत्पादन की क्षमता को बढ़ाने में देरी का एक इतिहास है लेकिन लगता नहीं कि टीकाकरण की धीमी रफ़्तार की फिलहाल ये वजह है. वैक्सीन की कोल्ड चेन के भीतर उपलब्ध वैक्सीन डोज़ यानी सप्लाई की गई वैक्सीन और इस्तेमाल की गई वैक्सीन के बीच का अंतर मज़बूती से इसका संकेत देता है. राज्यों के पास उपलब्ध वैक्सीन की डोज़ (तीसरा ग्राफ) का विश्लेषण दिखाता है कि राज्य स्तर पर वैक्सीन का अच्छा स्टॉक उपलब्ध है. 15 सितंबर से 14 अक्टूबर के बीच राज्यों के पास उपलब्ध वैक्सीन की डोज़ 4 करोड़ 63 लाख से बढ़कर क़रीब-क़रीब दोगुनी यानी 8 करोड़ 89 लाख हो गई. 18 अक्टूबर को उपलब्ध आंकड़ा बताता है कि उस दिन 10 करोड़ 72 लाख वैक्सीन डोज़ लोगों को लगाने के लिए राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के पास मौजूद थी. ये रुझ़ान एक संभावना का संकेत देता है और वो ये है कि कोविड-19 वैक्सीन की मांग काफ़ी कमज़ोर पड़ गई है.
इस साल के शुरुआती महीनों में जब टीकाकरण अभियान प्रारंभ हुआ यानी जिस वक़्त कोविड-19 के मरीज़ों की संख्या और मौत कम थी, तब वैक्सीन की मांग काफ़ी कम थी. इसमें तेज़ी तब आई जब कोविड-19 के मामलों की संख्या में उछाल आया. लेकिन 70 प्रतिशत से ज़्यादा वयस्क भारतीयों को एक डोज़ लग जाने के साथ वैक्सीन की मांग में कमी आ गई है. कई भारतीय राज्य तो अपने सभी “इच्छुक” वयस्कों को कम-से-कम वैक्सीन की एक डोज़ लगा चुके हैं. शायद अब वही लोग बचे हैं जो वैक्सीन लगवाने को लेकर अनिर्णय की स्थिति में हैं या जिनके मन में वैक्सीन को लेकर झिझक है. वैक्सीन लगवाने वालों की संख्या में कमी इसका नतीजा हो सकता है.
1 सितंबर से आगे (चौथा ग्राफ) अलग-अलग डोज़ के मुताबिक टीकाकरण का आंकड़ा इस संभावना पर ज़ोर डालता है. साप्ताहिक डोज़ के अनुपात में पहली डोज़ के आंकड़े में छह हफ़्तों के दौरान साफ़ तौर पर कमी आई है. सितंबर के पहले हफ़्ते में कुल टीकाकरण में पहली डोज़ का हिस्सा लगभग 70 प्रतिशत था लेकिन अक्टूबर के दूसरे हफ़्ते में पहली डोज़ का हिस्सा गिरकर 50 प्रतिशत से थोड़ा ही ज्यादा रह गया. इसका सिर्फ़ ये मतलब हो सकता है कि देश के कई हिस्सों में टीकाकरण अभियान आसानी से पहुंच वाली आबादी तक फैल चुका है. बाक़ी बचे 30 प्रतिशत के क़रीब वयस्क भारतीयों को टीका लगाने के लिए सरकार, स्थानीय नेताओं और सिविल सोसायटी की तरफ़ से अतिरिक्त कोशिश की ज़रूरत होगी.
हर्ड इम्युनिटी की तरफ़: आख़िरी मील सबसे मुश्किल होगा
अक्टूबर के तीसरे हफ़्ते में (18 अक्टूबर तक) वैक्सीन की दूसरी डोज़ की संख्या पहली डोज़ से काफ़ी ज़्यादा है. 14 से 18 अक्टूबर के बीच भारत में 1 करोड़ 48 लाख वैक्सीन डोज़ लगाई गई जिनमें से सिर्फ़ 63 लाख (42 प्रतिशत) पहली डोज़ थी जो साफ़ तौर पर दिखाता है कि दूसरी डोज़ की वजह से ही टीकाकरण आगे बढ़ रहा है. सभी वयस्क नागरिकों के लिए मुफ़्त वैक्सीन की पेशकश के साथ भारत सरकार ने पैसे की दिक़्क़त को पूरी तरह ख़त्म कर दिया है. लेकिन कई तरह के जनसंख्या समूहों के लिए वैक्सीन केंद्रों तक शारीरिक तौर पर पहुंच कुछ कारणों से मुश्किल हो सकती है. वैक्सीन के लिए झिझक भी एक छोटे लेकिन आबादी के महत्वपूर्ण हिस्से के लिए दिक़्क़त होगी. इन दिक़्क़तों से पार पाने के लिए सरकार को निश्चित रूप से सक्रिय अभियान चलाना होगा जिसमें संचार पर ध्यान देना होगा, सामुदायिक भागीदारी बढ़ानी होगी और उन लोगों तक जाना होगा जिनके पास पहुंचना मुश्किल है. कई राज्य पहले ही मोबाइल वैक्सीनेशन टीम की तैनाती कर रहे हैं ताकि दूर-दराज़ के लोगों को वैक्सीन लगाई जा सके. इसमें सफलता भी मिली है.
इसके साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकारों को समझ की लड़ाई में जीत हासिल करने के लिए अब ज़िला स्तर के चैंपियन पर ध्यान देना चाहिए और टीकाकरण अभियान को उन क्षेत्रों में ले जाना चाहिए जहां तक पहुंचना सबसे मुश्किल है. साथ ही उन लोगों को टीका लगाना चाहिए जिन्हें झिझक है. इनमें से कई लोग ऐसे भी हो सकते हैं जिन्हें उम्र या दूसरी बीमारियों से ग्रस्त होने की वजह से कोविड-19 होने की आशंका काफ़ी ज़्यादा है. ऐसे में ये पहल नैतिकता के हिसाब से भी अनिवार्य है. संक्षेप में कहें तो देश भर में पहली डोज़ लेने वालों की संख्या कम होती जा रही है जिसकी वजह पहुंच से जुड़े मुद्दे या वैक्सीन को लेकर झिझक हो सकती है. भारत को ज़िला स्तर पर अभियान तेज़ करने की ज़रूरत है. टीकाकरण अभियान के शुरुआती चरणों में तकनीक का काफ़ी ज़्यादा इस्तेमाल किया गया था लेकिन अभियान के आख़िर में तकनीक के साथ समुदायों और शख़्सियतों का इस्तेमाल करने की ज़रूरत है. कई देश लोगों को मनाने या उन्हें प्रेरणा देने वाले तरीक़ों की खोज कर रहे हैं जहां रोज़ग़ार देने वालों और यात्रियों पर ध्यान दिया जा रहा है. उदाहरण के लिए कनाडा वैक्सीन नहीं लेने वाले सरकारी कर्मचारियों को बिना वेतन की छुट्टी पर भेजने की योजना बना रहा है. साथ ही कनाडा ने हवाई, ट्रेन और जहाज़ के यात्रियों के लिए कोविड-19 वैक्सीन लेना ज़रूरी कर दिया है.
महामारी के दौरान दूसरे देशों के मुक़ाबले भारत के लोगों में वैक्सीन लगवाने की इच्छा रखने वाले लोगों का अनुपात सबसे ज़्यादा में से रहा है. इसी वजह से भारत में एक स्मार्ट कम्युनिकेशन अभियान वो काम कर सकता है जो दूसरे कई देशों में वैक्सीन की अनिवार्यता जैसी शर्त करने में नाकाम रही है. 100 करोड़ से ज़्यादा वैक्सीन डोज़ लगाने और टेस्ट, टीकाकरण और कोविड-19 के मामलों पर निगरानी रखने के लिए एक मज़बूत सूचना आधार के साथ वैक्सीन के असर या वैक्सीन की सुरक्षा को लेकर अभी भी शक रखने वाले लोगों को टीकाकरण के लिए तैयार करना मुश्किल नहीं होना चाहिए. लोकप्रिय हस्तियां, राजनीतिक एवं धार्मिक नेता और सिविल सोसायटी संगठनों को सक्रिय रूप से हिस्सेदार बनाना चाहिए ताकि ज़िले के स्तर पर प्रमाण आधारित संदेश पहुंचाया जा सके, ख़ास तौर पर उन क्षेत्रों में जहां वैक्सीन लेने वालों की संख्या कम है. पिछले कुछ दिनों के दौरान वैक्सीनेशन अभियान की रफ़्तार में जो गिरावट हमने देखी, उसके मद्देनज़र भारत के लिए ऐसी स्थिति में पहुंचना आसान होगा जहां 31 दिसंबर के लक्ष्य को पूरा करने के लिए वैक्सीन डोज़ तो मौजूद होगी लेकिन मांग में कमी लक्ष्य को पूरा नहीं करने देगी.
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