Author : Ramanath Jha

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Published on Sep 14, 2024 Updated 0 Hours ago

एक तरफ जहां यह बिल, यूडीएमए के ज़रिए आपदा प्रबंधन को सुधारने और राष्ट्रीय एवं राज्य अधिकारियों को सुदृढ़ करने का लक्ष्य रख रही है, वहीं दूसरी ओर इसकी प्रभावशीलता पर प्रश्न उठ रहे है.

आपदा प्रबंधन संशोधन विधेयक 2024: शहरों की सुरक्षा के लिए नई पहल

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पिछले महीने 1 अगस्त 2024 को, भारत सरकार (GOI) ने लोकसभा में आपदा प्रबंधन (संशोधन) बिल (विधेयक) प्रस्तुत किया. विधेयक में उल्लेख किये गये, उद्देश्य एवं कारक, आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के संस्थागत तंत्र पर विशेष ध्यान देने और साथ ही उसके लागू किये जाने की प्रक्रिया पर सतत निगरानी पर ज़ोर देती है. इसी तरह से आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और उनसे संबंधित समितियों का गठन राष्ट्रीय, राज्य, और ज़िला स्तर पर किया गया था. उसके लगभग दो दशक के बाद, इस व्यवस्था की समीक्षा किए जाने की ज़रूरत महसूस की गई थी. राज्य सरकारों एवं अन्य हितधारकों के साथ पूर्व में आपदा की घटनाओं को मॉनिटर करने से संबंधिच प्रशासनिक अनुभवों को साझा करने के लिये ईएएम 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों पर चर्चा करने के लिए एक बैठक बुलाया गया था. 

इस अधिनियम का उद्देश्य राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अथॉरिटी (एनडीएमए) और राज्य आपदा प्रबंधन (एसडीएमए) के कार्यपद्धति को सुदृढ़ करना एवं आपदा योजना के लिए उनका सशक्तिकरण करने के साथ राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय आपदा डेटा बेस की स्थापना करना है.

इसपर की गयी समीक्षा के आधार पर, सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के चंद प्रावधानों में संशोधन करने का निर्णय लिया है. संशोधित विधेयक 2024, पदाधिकारियों एवं समितियों की भूमिका में और भी स्पष्टता एवं सम्मिलन  लाने एवं नेशनल क्राइसिस मैनेजमेंट कमेटी (राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कमेटी) एवं उच्च-स्तरीय कमेटी  को वैधानिक दर्जा प्रदान किए जाने की सिफारिश करता है. इस अधिनियम का उद्देश्य राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अथॉरिटी (एनडीएमए) और राज्य आपदा प्रबंधन (एसडीएमए) के कार्यपद्धति को सुदृढ़ करना एवं आपदा योजना के लिए उनका सशक्तिकरण करने के साथ राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय आपदा डेटा बेस की स्थापना करना है. ऐसी अपेक्षा है कि उक्त डेटा आधार में आपदा समीक्षा ब्योरा, वित्त-आवंटन, होने वाले खर्च, तैयारी एवं शमन योजना, जोख़िम के प्रकार एवं उसकी गंभीरता के आधार पर उनका पंजीकरण, एवं केंद्र में सरकार द्वारा नियोजित, नीति अनुसार अन्य प्रासंगिक मुद्दे भी शामिल किया जाने की उम्मीद है. इस बिल में, शहरी आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (यूडीएमए) के सौजन्य से शहरी आपदा संस्थानों के अतिरिक्त  परत लाए जाने की संभावना है. यूडीएमए अब राज्य की राजधानियों एवं उन बड़े शहरों के लिए कार्य करेंगे, जहां की नगर निगम एवं नगरपालिकाएं है. अंततः इस विधेयक में राज्य सरकारों द्वारा राज्य स्तरीय आपदा प्रतिक्रिया फोर्स के गठन की मांग की गई थी.  

संशोधन विधेयक 2024

संशोधन के उपरांत, राष्ट्रीय कार्यकारी कमेटी एवं राज्य कार्यकारी कमेटी अब राष्ट्रीय स्तर एवं राज्य स्तरीय आपदा योजनाएं नहीं बनायेंगी. एनडीएमए एवं एसडीएमए इन कार्यों का कार्यभार संभालेंगे. एनडीएमए इनके संचालन में सहायता करने के लिए किसी विशेषज्ञ और सलाहकार को नियुक्त कर सकते है. संशोधन विधेयक के तहत संभावित जलवायु परिवर्तन के खतरों पर भी विचार किए जा सकते हैं. यह इस बात पर बल देता है की “उभरती हुई आपदा जोख़िम” ऐसे आपदाओं के जोख़िमों की ओर इंगित करती है जो शायद कभी घटित नहीं हुई हो परंतु चरम जलवायु घटनाओं एवं अन्य कारकों के परिप्रेक्ष्य में संभवतः भविष्य में फिर भी घटित हो सकती है. ये बिल एनडीएमए को इस आपदा जोख़िम, साथ ही ताजी आपदाएं, जो की देश झेल सकती है, उसके संपूर्ण श्रृंखला का जायज़ा लेने का अधिकार देता है.    

ये संशोधन अधिनियम, आपदा प्रबंधन के बजाय आपदा जोख़िम न्यूनीकरण (डीआरआर) पर विशेष ध्यान केंद्रित करती है. इस उद्देश्य के लिये, ये एक परिभाषीय बदलाव या परिवर्तन लाती है. इसमें कहा गया है कि, ‘आपदा प्रबंधन’ की अभिव्यक्ति,आपदा जोख़िम न्यूनीकरण के साथ समाहित है, जिसका मतलब कि, किसी व्यवस्थागत प्रयास के विश्लेषण के ज़रिये आपदा जोख़िम के न्यूनीकरण’ का अभ्यास, कम लोगों की भेद्यता, संपत्ति, बुनियादी ढांचा, आर्थिक गतिविधि, पर्यावरणीय और प्राकृतिक संसाधनों एवं सुधरीकृत तैयारी, लचीलापन और किसी भी प्रकार की विपरीत अथवा प्रतिकूल परिस्थिति अथवा घटना के प्रबंधन एवं प्रतिक्रिया करने की क्षमता रखता है.  

विपक्ष ने इस संशोधन अधिनियम 2004 की संवैधानिकता पर सवाल खड़े किए हैं. इसने इस बात पर ध्यान केंद्रित किया है कि संविधान के समवर्ती सूची में संशोधन की ज़रूरत पड़ेगी ताकि आपदा प्रबंधन के मुद्दे को कवर करने की दिशा में उचित प्रविष्टि डाली जा सके. उन्होंने केंद्र पर ये आरोप भी लगाए कि वे राज्य सरकारों के कार्यक्षेत्र में भी दखल दे रहे हैं एवं कई विभिन्न प्राधिकरण बनाने के विधेयक की भी भर्त्सना कर रहे हैं, जिस वजह से कई तरह का भ्रम भी जन्म ले रहा है. 

विपक्ष ने इस संशोधन अधिनियम 2004 की संवैधानिकता पर सवाल खड़े किए हैं. इसने इस बात पर ध्यान केंद्रित किया है कि संविधान के समवर्ती सूची में संशोधन की ज़रूरत पड़ेगी ताकि आपदा प्रबंधन के मुद्दे को कवर करने की दिशा में उचित प्रविष्टि डाली जा सके.

जैसा की उपर कहा गया है, इस अधिनियम के कई उद्देश्य रहे है. हालांकि, बड़े शहरों के नज़रिये से देखें जाने पर, सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान राज्य सरकारों एवं साथ ही बड़े शहरी बस्तियों के लिए यूडीएमए का गठन है, जो कि कालांतर में आगे जाकर नगर निगम बन गए. ये संशोधन दिल्ली और चंडीगढ़ पर लागू नहीं किए जाएंगे. यूडीएमए के आवेदन से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को बाहर रखा जाना समझ में आता है, चूंकि उसे राष्ट्रीय राजधानी की हैसियत से विशेष रख़रखाव एवं देखभाल की ज़रूरत है. 

यूडीएमए का सृजन एक स्वागत योग्य कदम है. यह एनडीएमए के शहरी आपदाओं के पूर्व के अनुभवों, उनकी वजह से हुए विनाश के पैमाने एवं उनके द्वारा उत्पन्न जटिलताओं पर आधारित थी. दिलचस्प तौर पर, दो दशक पूर्व, एनडीएमए ने  शहरी आपदाओं की खूबियों और उनके परिणाम को ग्रामीण आपदाओं से अलग बिल्कुल नहीं माना. हालांकि, 2005 में मुंबई में आई बाढ़ ने फिर एनडीएमए को शहरी आपदा को लेकर कायम उनके दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने को बाध्य किया. उसने महसूस किया कि भारतीय आबादी काफी घनी है और महत्वपूर्ण कमर्शियल, औद्योगिक और सामाजिक ढांचों के साथ, ये आर्थिक गतिविधियों के केंद्र में है. इस प्रकार, किसी भी आपदा से उत्पन्न बाधाओं के काफी गंभीर चौतरफा प्रभाव पड़ने के संभावना थी. इस समझ ने फिर एनडीएमए को शहरी आपदा को गम्भीरतापूर्वक अलग नज़रिए से देखने एवं शमन केंद्रित दृष्टिकोण रवैया अपनाने को प्रेरित किया. 

संशोधन अधिनियम में यह सुनिश्चित किया गया है कि डीडीएमए एवं यूडीएमए, राष्ट्रीय एवं राज्य योजनाओं के आधार पर, क्रमश: ज़िला और शहरी आपदा प्रबंधन योजनाएं बनाएंगे, एवं इसके लिए राज्य प्राधिकरण की अनुमति अनिवार्य होगी.

संस्थानिक संदर्भ में, इसने बड़े शहरों में, स्वाभाविक तौर पर यूडीएमए की स्थापना किए जाने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया है. प्रभावपूर्ण तौर पर आपदा के संबंध में, नगर निगमों का प्रबंधन यूडीएमए द्वारा की जाएगी और उसके बाद ये ज़िला प्रबंधन प्राधिकरण का हिस्सा नहीं रहेंगे. इस कारण यूडीएमए का नेतृत्व नगर निगम आयुक्त चेयरमैन के तौर पर करेंगे. संशोधन अधिनियम, इस बात का संज्ञान लेते हुए की जहां भी जिला प्रशासन की उपस्थिति की आवश्यकता पड़ेगी, और वहां समन्वय की ज़रूरत होने की संभावना को देखते हुए, कलेक्टर को उपाध्यक्ष के तौर पर नियुक्त करता है. उदाहरण के लिए, कई राज्यों में आग, परिवहन, और जल सेवाएं राज्य के कार्यक्षेत्र के अधीन होती है, और देशभर में कानून-व्यवस्था तंत्र राज्य सरकारों एवं राज्य तंत्र मशीनरी द्वारा नियंत्रित की जाती है. प्रावधान के ये भी मायने लगते हैं कि आने वाले वर्षों में, यूडीएमए कई गुना बढ़ेंगे. आज, भारत भर में कुल 268 नगर निगमें है. समय के साथ-साथ, शहरीकरण की ये यात्रा कई बड़े-बड़े नगर परिषदों को नगर निगमों में बदल देगी, और उन सब के पास खुद के यूडीएमए होंगे. संशोधन अधिनियम में यह सुनिश्चित किया गया है कि डीडीएमए एवं यूडीएमए, राष्ट्रीय एवं राज्य योजनाओं के आधार पर, क्रमश: ज़िला और शहरी आपदा प्रबंधन योजनाएं बनाएंगे, एवं इसके लिए राज्य प्राधिकरण की अनुमति अनिवार्य होगी. इस उद्देश्य को हासिल करने के लिये, राज्य प्राधिकरण- योजनाओं की तैयारी के मकसद से उचित ‘दिशा निर्देशन जारी करेगी.    

आगे की राह 

इस मसले पर चिंतनीय ये है कि नगर निगमों के नियंत्रण वाली भौगोलिक क्षेत्रों के संबंध में विशाल आपदा प्रबंधन प्राप्त है, परंतु उन्हे न्यूनतम समग्र शक्तियों एवं संसाधनों द्वारा विफल किया जा सकता है. प्रशासनिक दुनिया में, वरिष्ठता काफी महत्वपूर्ण है. एक तरफ जहां बड़े मेगा शहरों में आमतौर पर इसका ध्यान रखा जाता है, वहीं म्युनिसिपल कमिश्नरों, जो कि बहुदा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) से चयन किये गये वरिष्ठअधिकारी होते है, कई छोटे शहरों में इस बात का ख्य़ाल नहीं रखा जाता है. इन छोटे ज़िलों में कई ज़िला कलेक्टर, इन नगरपालिका कमिश्नरों से काफी वरिष्ठ
होते हैं. नगर निगमों की संख्याओं में काफी तीव्रता से हो रही वृद्धि के साथ, कुछ राज्यों को विभिन्न शहरों में ज़रूरी आईएएस अफ़सरों की नियुक्ति में काफी परेशानी आएगी और फिर उन्हें राज्य सेवाओं से चुने गये अफसरों को यहां नियुक्त करना पड़ेगा. आपदा प्रबंधन में शामिल राज्य स्तरीय अफसरों को नियंत्रित करने में नगर निगम के कमिश्नर को जो दिक्कत आयेगी वो एक बहुत बड़ी बाधा साबित हो सकती है.  

नेतृत्व एवं समन्वय के मुद्दों से दो चार होते हुए, यूएलबी की ज़रूरी संसाधनों की तलाश की क्षमता और यूडीएमए के परिचालन और डीआरआर एवं आपदा प्रबंधन गतिविधियों का परिचालन काफी हद तक संदिग्ध साबित होगा.  डीआरआर की गतिविधियों को लागू करने के लिये खास करके ऐसे बुनियादी ढांचों की ज़रूरत पड़ेगी जो यूएलबी को लचीलापन प्रदान करेगी. दुर्भाग्यवश, ये संशोधन अधिनियम स्थानीय स्तर पर संसाधन की उपलब्धता के विषय में बिल्कुल भी बात नहीं करती है. हालांकि, इस बात की संभावना है कि राष्ट्रीय आपदा शमन कोश से कुछ धन ली जा सकती है. आने वाले समय में, इस संशोधन अधिनियम में समाहित नेक इरादों के बावजूद, ये कारक काम में आएंगे और इस व्यवस्था की कमज़ोरियों को उजागर करेंगे. 

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