Published on Oct 11, 2022 Updated 0 Hours ago

उपनिवेशवादी, भ्रष्ट और दूसरों की कमाई खाने वालों के ज़रिए देश पर जो इंस्पेक्टर राज थोपा गया है, उसके बुनियादी ढांचे को तोड़ना ही होगा.

डी-क्रिमिनलाइज़ेशन विधेयक (बिल) समृद्धि की बुलेट ट्रेन है!

अगर सरकार द्वारा प्रस्तावित, एक ‘व्यापक डिक्रिमिनलाइज़ेशन’ विधेयक, संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान क़ानून के तौर पर पारित होता है, तो ये 1991 के बाद देश का सबसे बड़ा सुधार होगा. वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने 30 सितंबर 2022 को एक भाषण में कहा था कि, इस प्रस्तावित क़ानून के तमाम मक़सदों में से एक, ‘कारोबारियों को तंग करना ख़त्म करने और उन पर नियम क़ायदों का पालन करने का बोझ कम करना है.’ इस वक़्त ये प्रस्तावित क़ानून संसद की संपत्ति है, और इस विधेयक को सार्वजनिक नहीं किया गया है, तो इसकी रूप-रेखा की जानकारी अभी नहीं है.

जब हम इस प्रस्तावित क़ानून को सरकार की भारत को वैश्विक और घरेलू पूंजी निवेश का केंद्र बनाने की नीयत से जोड़कर देखते हैं, तो ये एक ऐसा सुधार होगा, जिससे केंद्र सरकार के अधिकारियों द्वारा कारोबारियों का शोषण, भ्रष्टाचार और अवैध वसूली को ख़त्म होने की उम्मीद लगाई जा सकती है.

ये सुधार तो 1991 में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के औद्योगिक नीति पर जारी बयान का हिस्सा होना चाहिए था. 1991 की नीति ने या तो लाइसेंस- परमिट-कोटा राज को ख़त्म कर दिया या फिर इसका दायरा बहुत सीमित कर दिया था. हालांकि, इन सुधारों के बाद भी उद्मियों को इंस्पेक्टर राज के शिकंजे में फंसा हुआ छोड़ दिया गया था. तीन दशक बाद जाकर, हमें ये उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये प्रस्तावित क़ानून, देश में इंस्पेक्टर राज के ख़ात्मे का आग़ाज़ होगा, या कम से कम डिजिटल प्रशासन के ज़रिए इसे तार्किक बनाया जाएगा.

जब हम इस प्रस्तावित क़ानून को सरकार की भारत को वैश्विक और घरेलू पूंजी निवेश का केंद्र बनाने की नीयत से जोड़कर देखते हैं, तो ये एक ऐसा सुधार होगा, जिससे केंद्र सरकार के अधिकारियों द्वारा कारोबारियों का शोषण, भ्रष्टाचार और अवैध वसूली को ख़त्म होने की उम्मीद लगाई जा सकती है. जब कारोबार से जुड़े राज्यों के क़ानून में बदलाव करके अपराधी ठहराए जाने की व्यवस्था ख़त्म की जाएगी, तो राज्य सरकार के कर्मचारियों का भ्रष्टाचार भी ख़त्म हो जाएगा; राज्यों के कुछ क़ानून तो केंद्र सरकार के क़ानूनों में संशोधन के बाद ख़ुद ब ख़ुद राज्यों पर लागू हो जाएंगे. वहीं, कुछ क़ानूनों में राज्यों की सरकारों को बदलाव करना होगा.

अपराधी ठहराने की व्यवस्था को ख़त्म करने की परिचर्चा को समझने के लिए आपको ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन की एक रिपोर्ट पर नज़र डालनी चाहिए, जिसका नाम थ, ‘जेल्ड फॉर डूइंग बिज़नेस’:

  • देश में कारोबार से जुड़े 1536 नियम और क़ानून लागू हैं इनमें से आधे से ज़्यादा में जेल भेजने का प्रावधान   किया गया है. इन क़ानूनों के तहत कारोबारियों को कुल मिलाकर सरकार के 69,233 नियमों का पालन करना पड़ता है. इनमें से कम से कम चालीस प्रतिशत या 26,134 नियम-क़ायदे ऐसे हैं, जिन्हें तोड़ने पर किसी कारोबारी को जेल की सज़ा हो सकती है.
  • क़ैद की सज़ा के प्रावधान वाले 843 क़ानूनों में से 28.9 प्रतिशत या फिर 244 क़ानूनों को संसद ने लागू किया है; बाक़ी के क़ानून राज्यों की विधायिकाओं द्वारा पारित किए गए हैं.
  • जिन 26,134 नियमों का पालन न करने पर जेल की सज़ा की व्यवस्था है, इनमें से पांचवां हिस्सा या 5239 धाराएं, केंद्र सरकार के क़ानूनों का हिस्सा हैं.

इन आंकड़ों का क्या मतलब है और इनका असर क्या होता है?

  • भारत के 6.9 करोड़ उद्यमियों में से केवल दस लाख ही संगठित क्षेत्र की रोज़गार देने वाली कंपनियां हैं; इसका नतीजा ये हुआ है कि बचे हुए असंगठित उद्यमी संस्थागत क्षेत्रों से पूंजी, प्रतिभाएं या आपूर्ति श्रृंखलाओं तक पहुंच नहीं बना पाते हैं. नतीजा ये कि ये भारत के वसूली तंत्र के ढांचे का शिकार होते हैं. वसूली का ढांचा चलाने वाले ही ये सुनिश्चित करते हैं कि कारोबारी नियामक व्यवस्था के दायरे में आने से बचे रहें. हो सकता है कि छोटा धंधा बहुत कारगर न हो. मगर ये होता सुरक्षित है.
  • इससे छोटे कारोबारियों के प्रति व्यवस्था में ही पूर्वाग्रह पैदा हो जाता है. जब कोई कारोबार एक तय दायरे से आगे निकल जाता है, तो नियम क़ायदों का पालन करने की लागत कम हो जाती है; ऐसा होने तक कम से कम छोटे कारोबारियों, मालिक- प्रबंधकों के लिए नियमों का पालन करना, जोखिम से निपटने की रणनीति का हिस्सा हो जाता है, जो एक आर्थिक गतिविधि के बराबर होती है.

दम घोंटने वाली इस नियामक व्यवस्था का क्या किया जाए?

नियमों के जंजाल का ये कोलेस्ट्रॉल किसी हुकूमत के तीन अंगों- सरकार, विधायिका और न्यायपालिका से पैदा होता है, जो नियम क़ायदों, क़ानूनों, आदेशों ये व्यवस्थाओं के रोड़े खड़े करके विचारों, संगठन और पैसे के प्रवाह में बाधा डालते हैं और सबसे अहम बात ये कि ये सब मिलकर उद्म करने की भावना को नुक़सान पहुंचाते हैं. लेकिन, जहां तक नियमों का पालन न करने पर जेल भेजने से रियायत का सवाल है, तो कुछ सुझाव दिए जा सकते हैं:

  • एक व्यापक क़ानून बनाकर तमाम मंत्रालियों और विभागों के सभी नियम क़ायदों के पालन की व्यवस्था को सुधारा जाए. आज कारोबार करना आसान बनाने के लिए भारत में जो छोटे छोटे क़दम उठाए जा रहे हैं, जैसे कि क़ानूनी माप-परख के नियमों के पालन की ज़िम्मेदारी निदेशक से कार्यकारी पर डालने, को इस एक क़ानून के दायरे में लाया जाए.
  • कारोबारी क़ानूनों में जो आपराधिक धाराओं और सज़ा की व्यवस्था है, उनको लागू करने मे बहुत सावधानी बरती जाए. आपराधिक धारा को ही एकमात्र विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करने की व्यवस्था को पूरी तरह ख़त्म कर दिया जाए और उसके बजाय क़ैद करने और जेल भेजने से पहले उसके लिए ठोस वजह बताने की व्यवस्था लागू हो.
  • नियम क़ायदे मानने की प्रक्रिया, जैसे कि ग़लत फॉर्म भरने या ग़लत लेबल लगाने से जुड़े सारे मामलों में आपराधिक धाराओं को ख़त्म किया जाए.
  • आपराधिक धाराओं को लगाने की एक समयसीमा तय कर दी जाए. इसके लिए एक और क़ानून लाने की ज़रूरत हो.
  • नियम क़ायदों के पालन की सारी व्यवस्था को उसी तरह डिजिटल बनाया जाए, जैसे आयकर विभाग में किया गया है.
  • हर नियामक संस्था में काग़ज़ के इस्तेमाल को ख़त्म किया जाए और संस्था को ऑटोमैटिक बनाया जाए. इस काम के लिए केवल वेबसाइट बनाकर उस पर रिकॉर्ड को अपलोड करने से आगे की सोच अपनानी होगी. इससे ऑटोमैटिक रूप से अपलोड किए गए रिकॉर्ड को दुरुस्त कराने, कमियों को ठीक करने, फ़र्ज़ीवाड़े को पकड़ने और गड़बड़ियों के प्रति एलर्ट करने जैसे काम आसान हो जाएंगे.

इस तरह से नियम क़ायदों के पालन का बोझ कम करके सरकार बिल्कुल सही दिशा में बढ़ रही है, क्योंकि इससे शोषण कम होगा. इस विधेयक के क़ानून में तब्दील होने के बाद भी नियामक व्यवस्था में कोई नीतिगत कमी रह न जाए, इसलिए इस क़ानून को गंभीरता से अध्ययन करने, और गहरी परिचर्चा करने के बाद ही लागू किया जाना चाहिए. इसमें कोई दो राय नहीं कि इसका विरोध भी होगा. अब ये सरकार पर है कि वो विरोध के सुरों की अनदेखी करके और देश की बेहतरी के लिए ये उपाय अपनाए.

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश तीसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधारों के लिए तैयार हो रहा है. इनमें वो सुधार भी शामिल हैं, जो नियमों को सरल बनाएंगे और उनका पालन न करने पर क़ैद के प्रावधान से निजात दिलाएंगे. मौजूदा नियम क़ानूनों में से कुछ को बनाए रखा जाएगा. ज़्यादातर को या तो कम किया जाएगा या पूरी तरह से ख़त्म कर दिया जाएगा.

पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की अगुवाई में किए गए पहली पीढ़ी के आर्थिक सुधारों ने भारत की अर्थव्यवस्था की दशा-दिशा बदल दी थी. उस नीति से देश में लाइसेंस, परमिट, कोटा राज का ख़ात्मा हो गया था. ये एक ऐसी नीतिगत दीवार थी, जिसने देश की अर्थव्यवस्था की तरक़्क़ी को 44 बरस से रोक रखा था.

देश में दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधार छह प्रधानमंत्रियों के शासनकाल में हुए. इनमें नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी और एचडी देवेगौड़ा से लेकर, इंदर कुमार गुजराल, मनमोहन सिंह और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल शामिल हैं. 1991 से 2021 के दौरान सुधार के 69 बेहद अहम क़दम लागू किए गए. इनमें अर्थव्यवस्था को खोलने, आर्थिक प्रशासन को सेबी और सीसीआई जैसे संगठनों के हवाले करने से लेकर GST लागू करने तक के सुधार शामिल हैं.

अब प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश तीसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधारों के लिए तैयार हो रहा है. इनमें वो सुधार भी शामिल हैं, जो नियमों को सरल बनाएंगे और उनका पालन न करने पर क़ैद के प्रावधान से निजात दिलाएंगे. मौजूदा नियम क़ानूनों में से कुछ को बनाए रखा जाएगा. ज़्यादातर को या तो कम किया जाएगा या पूरी तरह से ख़त्म कर दिया जाएगा. इसके बाद जेल में डालने के बजाय वित्तीय जुर्माने की व्यवस्था को लागू किया जाएगा. उपनिवेशवादी, भ्रष्ट और वसूली वाली नीतियों के ढांचे से चलने वाले इंस्पेक्टर राज का ख़ात्मा होना ही चाहिए और नौकरियां, संपत्ति और बड़ी कंपनियों की स्थापना भी होनी चाहिए.

भारत जैसे उभरते हुए देश के लिए 21वीं सदी के मध्य तक 30 ख़रब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना बहुत ज़रूरी है. भारत को ऐसे तमाम नीतिगत क़दम उठाने चाहिए, जिससे ऐसा मकाम हासिल करना मुमकिन हो. प्रस्तावित डिक्रिमिनलाइज़ेशन विधेयक, समृद्धि के सफर पर ले जाने वाली ऐसी ही बुलेट ट्रेन है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.

Author

Gautam Chikermane

Gautam Chikermane

Gautam Chikermane is a Vice President at ORF. His areas of research are economics, politics and foreign policy. A Jefferson Fellow (Fall 2001) at the East-West ...

Read More +

Contributor

Rishi Agrawal

Rishi Agrawal

Rishi Agrawal is co-founder and CEO at Avantis RegTech.

Read More +

Related Search Terms