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उपनिवेशवादी, भ्रष्ट और दूसरों की कमाई खाने वालों के ज़रिए देश पर जो इंस्पेक्टर राज थोपा गया है, उसके बुनियादी ढांचे को तोड़ना ही होगा.
अगर सरकार द्वारा प्रस्तावित, एक ‘व्यापक डिक्रिमिनलाइज़ेशन’ विधेयक, संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान क़ानून के तौर पर पारित होता है, तो ये 1991 के बाद देश का सबसे बड़ा सुधार होगा. वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने 30 सितंबर 2022 को एक भाषण में कहा था कि, इस प्रस्तावित क़ानून के तमाम मक़सदों में से एक, ‘कारोबारियों को तंग करना ख़त्म करने और उन पर नियम क़ायदों का पालन करने का बोझ कम करना है.’ इस वक़्त ये प्रस्तावित क़ानून संसद की संपत्ति है, और इस विधेयक को सार्वजनिक नहीं किया गया है, तो इसकी रूप-रेखा की जानकारी अभी नहीं है.
जब हम इस प्रस्तावित क़ानून को सरकार की भारत को वैश्विक और घरेलू पूंजी निवेश का केंद्र बनाने की नीयत से जोड़कर देखते हैं, तो ये एक ऐसा सुधार होगा, जिससे केंद्र सरकार के अधिकारियों द्वारा कारोबारियों का शोषण, भ्रष्टाचार और अवैध वसूली को ख़त्म होने की उम्मीद लगाई जा सकती है.
ये सुधार तो 1991 में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के औद्योगिक नीति पर जारी बयान का हिस्सा होना चाहिए था. 1991 की नीति ने या तो लाइसेंस- परमिट-कोटा राज को ख़त्म कर दिया या फिर इसका दायरा बहुत सीमित कर दिया था. हालांकि, इन सुधारों के बाद भी उद्मियों को इंस्पेक्टर राज के शिकंजे में फंसा हुआ छोड़ दिया गया था. तीन दशक बाद जाकर, हमें ये उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये प्रस्तावित क़ानून, देश में इंस्पेक्टर राज के ख़ात्मे का आग़ाज़ होगा, या कम से कम डिजिटल प्रशासन के ज़रिए इसे तार्किक बनाया जाएगा.
जब हम इस प्रस्तावित क़ानून को सरकार की भारत को वैश्विक और घरेलू पूंजी निवेश का केंद्र बनाने की नीयत से जोड़कर देखते हैं, तो ये एक ऐसा सुधार होगा, जिससे केंद्र सरकार के अधिकारियों द्वारा कारोबारियों का शोषण, भ्रष्टाचार और अवैध वसूली को ख़त्म होने की उम्मीद लगाई जा सकती है. जब कारोबार से जुड़े राज्यों के क़ानून में बदलाव करके अपराधी ठहराए जाने की व्यवस्था ख़त्म की जाएगी, तो राज्य सरकार के कर्मचारियों का भ्रष्टाचार भी ख़त्म हो जाएगा; राज्यों के कुछ क़ानून तो केंद्र सरकार के क़ानूनों में संशोधन के बाद ख़ुद ब ख़ुद राज्यों पर लागू हो जाएंगे. वहीं, कुछ क़ानूनों में राज्यों की सरकारों को बदलाव करना होगा.
अपराधी ठहराने की व्यवस्था को ख़त्म करने की परिचर्चा को समझने के लिए आपको ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन की एक रिपोर्ट पर नज़र डालनी चाहिए, जिसका नाम थ, ‘जेल्ड फॉर डूइंग बिज़नेस’:
नियमों के जंजाल का ये कोलेस्ट्रॉल किसी हुकूमत के तीन अंगों- सरकार, विधायिका और न्यायपालिका से पैदा होता है, जो नियम क़ायदों, क़ानूनों, आदेशों ये व्यवस्थाओं के रोड़े खड़े करके विचारों, संगठन और पैसे के प्रवाह में बाधा डालते हैं और सबसे अहम बात ये कि ये सब मिलकर उद्म करने की भावना को नुक़सान पहुंचाते हैं. लेकिन, जहां तक नियमों का पालन न करने पर जेल भेजने से रियायत का सवाल है, तो कुछ सुझाव दिए जा सकते हैं:
इस तरह से नियम क़ायदों के पालन का बोझ कम करके सरकार बिल्कुल सही दिशा में बढ़ रही है, क्योंकि इससे शोषण कम होगा. इस विधेयक के क़ानून में तब्दील होने के बाद भी नियामक व्यवस्था में कोई नीतिगत कमी रह न जाए, इसलिए इस क़ानून को गंभीरता से अध्ययन करने, और गहरी परिचर्चा करने के बाद ही लागू किया जाना चाहिए. इसमें कोई दो राय नहीं कि इसका विरोध भी होगा. अब ये सरकार पर है कि वो विरोध के सुरों की अनदेखी करके और देश की बेहतरी के लिए ये उपाय अपनाए.
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश तीसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधारों के लिए तैयार हो रहा है. इनमें वो सुधार भी शामिल हैं, जो नियमों को सरल बनाएंगे और उनका पालन न करने पर क़ैद के प्रावधान से निजात दिलाएंगे. मौजूदा नियम क़ानूनों में से कुछ को बनाए रखा जाएगा. ज़्यादातर को या तो कम किया जाएगा या पूरी तरह से ख़त्म कर दिया जाएगा.
पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की अगुवाई में किए गए पहली पीढ़ी के आर्थिक सुधारों ने भारत की अर्थव्यवस्था की दशा-दिशा बदल दी थी. उस नीति से देश में लाइसेंस, परमिट, कोटा राज का ख़ात्मा हो गया था. ये एक ऐसी नीतिगत दीवार थी, जिसने देश की अर्थव्यवस्था की तरक़्क़ी को 44 बरस से रोक रखा था.
देश में दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधार छह प्रधानमंत्रियों के शासनकाल में हुए. इनमें नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी और एचडी देवेगौड़ा से लेकर, इंदर कुमार गुजराल, मनमोहन सिंह और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल शामिल हैं. 1991 से 2021 के दौरान सुधार के 69 बेहद अहम क़दम लागू किए गए. इनमें अर्थव्यवस्था को खोलने, आर्थिक प्रशासन को सेबी और सीसीआई जैसे संगठनों के हवाले करने से लेकर GST लागू करने तक के सुधार शामिल हैं.
अब प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश तीसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधारों के लिए तैयार हो रहा है. इनमें वो सुधार भी शामिल हैं, जो नियमों को सरल बनाएंगे और उनका पालन न करने पर क़ैद के प्रावधान से निजात दिलाएंगे. मौजूदा नियम क़ानूनों में से कुछ को बनाए रखा जाएगा. ज़्यादातर को या तो कम किया जाएगा या पूरी तरह से ख़त्म कर दिया जाएगा. इसके बाद जेल में डालने के बजाय वित्तीय जुर्माने की व्यवस्था को लागू किया जाएगा. उपनिवेशवादी, भ्रष्ट और वसूली वाली नीतियों के ढांचे से चलने वाले इंस्पेक्टर राज का ख़ात्मा होना ही चाहिए और नौकरियां, संपत्ति और बड़ी कंपनियों की स्थापना भी होनी चाहिए.
भारत जैसे उभरते हुए देश के लिए 21वीं सदी के मध्य तक 30 ख़रब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना बहुत ज़रूरी है. भारत को ऐसे तमाम नीतिगत क़दम उठाने चाहिए, जिससे ऐसा मकाम हासिल करना मुमकिन हो. प्रस्तावित डिक्रिमिनलाइज़ेशन विधेयक, समृद्धि के सफर पर ले जाने वाली ऐसी ही बुलेट ट्रेन है.
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Gautam Chikermane is Vice President at Observer Research Foundation, New Delhi. His areas of research are grand strategy, economics, and foreign policy. He speaks to ...
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