25 मार्च 2020 वो तारीख़ थी जब कोविड-19 संक्रमण के बढ़ते मामलों के चलते भारत में दुनिया का सबसे लंबा लॉकडाउन लगाया गया. लेकिन 15 महीने और करीब 29 जून 2021 को 182,261,516 कोरोना संक्रमण के मामलों के बाद भारत आज दुनिया के सबसे बड़े कोरोना वैक्सीन के सप्लायर के रूप में उभर कर सामने आया है. एक ओर भारत जहां देश में बने कोरोना वैक्सीन को कम और मध्यम आय वाले मुल्कों (एलएमआईसी) को मुहैया करा कर अंतर्राष्ट्रीय जगत में प्रशंसा का पात्र बना हुआ है वहीं दूसरी ओर देश के अंदर वैक्सीन लगवाने को लेकर लोगों की दुविधा से पार पाना आसान नहीं लगता.
भारत में वैक्सीनेशन की मुहिम 16 जनवरी 2021 से शुरू हुई थी. तब पूरे देश में हेल्थकेयर वर्कर्स (एचीसीडब्ल्यू) अपने वैक्सीन की डोज़ लगवाने के लिए कतारों में खड़े दिखे थे. 26 जून 2021 तक देश में अब तक कोरोना वैक्सीन के 54.59 करोड़ डोज़ लगाए जा चुके हैं. और सरकार के मुताबिक वैक्सीनेशन की दूसरी मुहिम 1 मार्च से शुरू हो चुकी है जबकि वैक्सीन सरकारी और प्राइवेट सेंटरों पर उपलब्ध होंगे.
वैक्सीन की ज़रूरत
सरल भाषा में समझें तो बचाव उपचार से ज़्यादा कारगर होता है और ख़ासकर तब जब कोई भरोसेमंद उपचार सामने ना मिले तो यह कहावत सबसे ज़्यादा सही साबित होती है. कोविड–19 संक्रमण को लेकर जो सबसे बड़ी समस्या है वो यह है कि इसका कोई सटीक औषधीय और योजनाबद्ध उपचार अभी तक ईज़ाद नहीं किया जा सका है. इसके उपचार के लिए कई तरह की दवाईयों का इस्तेमाल और ट्रायल किया जा रहा है जिसमें कुछ दवाईयों को लेकर कुछ हद तक कामयाबी सामने आ रही है. नई तरह की दवाईयों को विकसित किया जा रहा है और इसका ट्रायल भी जारी है. ऐसे में एक वैक्सीन जो कोविड–19 संक्रमण को रोकने का दावा करता है वो इस महामारी पर अंकुश लगाने का प्रमुख हथियार बन सकता है ख़ासकर तब जबकि दूसरी लहर के दौरान कोरोना संक्रमण की दर काफी बढ़ी हुई थी.
संक्रमण से बचाव अकेले इस वैक्सीन का उद्देश्य नहीं है. इस वैक्सीन का दूसरा सबसे बड़ा मक़सद लोगों को गंभीर संक्रमण से बचाना भी है. इसकी बेहद कम संभावना है कि कोई शख्स़ वैक्सीन लेने के बाद कोरोना संक्रमित हो जाए.
संक्रमण से बचाव अकेले इस वैक्सीन का उद्देश्य नहीं है. इस वैक्सीन का दूसरा सबसे बड़ा मक़सद लोगों को गंभीर संक्रमण से बचाना भी है. इसकी बेहद कम संभावना है कि कोई शख्स़ वैक्सीन लेने के बाद कोरोना संक्रमित हो जाए. हालांकि, यह मुमकिन है क्योंकि हर एक व्यक्ति में संक्रमण को रोकने में वैक्सीन शायद कारगर ना हो. लेकिन यह ज़रूर है कि वैक्सीनेशन के बाद कोई शख्स़ अगर संक्रमित होता है तो ऐसे में संक्रमण का स्तर गंभीर नहीं होगा. इसका मतलब साफ़ है कि अस्पतालों में संक्रमित शख्स़ को नहीं जाना पड़ेगा, वेंटिलेटर सपोर्ट की ज़रूरत कम होगी,आईसीयू में भर्ती कराने की आवश्यकता कम पड़ेगी, कीमती दवाओं को ख़रीदने से लोग बचेंगे और इस पूरे प्रकरण के दौरान कम से कम लोगों की मौत होगी. इस तरह देखा जाए तो वैक्सीन इस बीमारी की वज़ह से स्वास्थ्य संबंधी इंफ्रास्ट्रक्चर और आबादी पर पैदा होने वाले दबाव को कम करता है. दो राय नहीं है कि जब संक्रमण का स्तर कम होगा तो इसका इलाज घर पर रहकर किया जा सकता है.
ताजा अध्ययन के मुताबिक़ प्राकृतिक संक्रमण से इम्युनिटी पांच से आठ महीने के लिए होती है. इसके बाद भी कोई शख्स़ फिर से संक्रमित हो सकता है जैसा कि रिपोर्ट में कुछ लोगों में फिर से संक्रमित होने के सबूत मिले हैं. हालांकि ऐसा भरोसा जताया जा रहा है कि वैक्सीनेशन के बाद शरीर में इम्युनिटी ज़्यादा दिनों तक रहती है. देश में वैक्सीनेशन की तेज रफ़्तार इस बात की गारंटी है कि लोगों में हर्ड इम्युनिटी विकसित होगी जिससे कोरोना महामारी के प्रसार और प्रभाव पर अंकुश लगाया जा सकेगा. COVID-19 के संक्रमण की रफ़्तार और इससे संबंधित मृत्यु दर और गंभीर आर्थिक प्रभावों को ध्यान में रखते हुए, प्राकृतिक संक्रमण के माध्यम से हर्ड–इम्युनिटी विकसित करना एक प्राप्त करने योग्य लक्ष्य कभी नहीं हो सकता है.
हर्ड इम्युनिटी आख़िर है क्या? बेहद सरल भाषा में समझाया जाए तो यह एक समुदाय या वर्ग के बीच वायरस के ख़िलाफ़ सामूहिक सुरक्षा का उपाय है.असल में वायरस तेज़ी से तब और फैलता है जब ज़्यादा से ज़्यादा लोगों में संक्रमण के लक्षण बढ़ने लगते हैं लेकिन जैसे ही ज़्यादा से ज़्यादा लोग इस वायरस के प्रति इम्युनिटी विकसित कर लेते हैं तब ऐसे समुदाय के बीच संक्रमण की रफ़्तार धीमी पड़ने लगती है.
नीचे दिए गए एनिमेशन के जरिए आप समझ सकते हैं कि कैसे संक्रमण (लाल) संवेदनशील आबादी (नीला) के बीच अपना पैर पसारता है और फिर जब ज़्यादा से ज़्यादा लोग वैक्सीन (हरा) ले लेते हैं तब संक्रमण की रफ़्तार कैसे धीमी हो जाती है.
वैक्सीनेशन दरअसल हमें बिना संक्रमित हुए हर्ड इम्युनिटी के स्तर तक पहुंचने में मदद करता है.
अब जबकि इस महामारी की उम्र लगभग डेढ़ साल हो रही है, फिर भी इसके थमने के कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिल रहे हैं. 25 जून 2021 तक पूरी दुनिया में कोरोना संक्रमण के 18.1 करोड़ से ज़्यादा मामले हो गए हैं जबकि 39.2 लाख से ज़्यादा लोगों की अब तक मौत हो चुकी है. ऐसे में ज़्यादा से ज़्यादा लोगों के वैक्सीनेशन से संक्रमण के मामलों में कमी आएगी और इस महामारी को स्थानीय समूह तक ही आसानी से रोक पाने में कामयाबी मिलेगी.
इसलिए वैक्सीनेशन ही इस महामारी को रोकने का एकमात्र ज़रिया है.वैक्सीन कैसे काम करता है? वैक्सीन में एसएआरएस–सीओवी-2 वायरस या फिर पूरा वायरस ही निष्क्रिय अवस्था में रहता है जो बीमारी नहीं पैदा कर सकता. और यह हमारे शरीर के अंदर इम्यून सिस्टम के लिए उत्तेजक का काम करता है, जिससे किसी भी गैरज़रूरी बाहर से वायरस के हमले की पहचान कर उससे लड़ा जा सके. वायरस के ख़िलाफ़ वैक्सीन लेने पर शरीर में हर बार इम्यून प्रतिक्रिया सक्रिय होती है. इस तरह के वैक्सीन का इंसानों पर लंबे समय तक ट्रायल चलता है और इसे कड़े सुरक्षा मानदंडों के तहत गुज़रना पड़ता है. इसके साथ ही शरीर के अंदर इम्यून प्रतिक्रिया को शुरू करने की इसकी क्षमता का भी आकलन किया जाता है. यही नहीं वैक्सीन लोगों में संक्रमण के स्तर को कम करने में कितना कारगर होता है इसकी भी जांच होती है तब कहीं जाकर इसे आम लोगों के लिए उपलब्ध कराया जाता है.
भारत में मौज़ूदा वक्त में जो वैक्सीन इस्तेमाल में लाया जा रहा है– कोविशील्ड और कोवैक्सीन – वो दो डोज़ वाले वैक्सीन हैं. इसका मतलब यह हुआ कि वैक्सीन के दोनों डोज़ चार सप्ताह के अंतराल के बाद लगाए जाएंगे. वैक्सीन के ये दोनों डोज़ ज़रूरी हैं. वैक्सीन का सिर्फ़ एक डोज़ शरीर में इम्यूनिटी पैदा नहीं करेगा.
हालांकि, वैक्सीनेशन का यह कतई मतलब नहीं है कि इससे तुरंत सुरक्षा मिल जाएगी. वैक्सीन लेने के बाद शरीर के अंदर इम्यून सिस्टम को वायरस के ख़िलाफ़ प्रतिरक्षा विकसित करने में कम से कम 10 से 14 दिनों का वक़्त ज़रूरी होता है. इसका अर्थ यह हुआ कि वैक्सीन लेने के तुरंत बाद कोई भी संक्रमित हो सकता है. लेकिन इसका यह भी कतई मतलब नहीं होता है कि वैक्सीन अपना काम नहीं कर रहा है.
इसलिए जब ख़बरों में ऐसा दावा किया जाता है कि– “पुरुष/महिला वैक्सीन के पहले डोज़ के बाद संक्रमित हुए, तब यहां पर यह समझने की ज़रूरत है कि यह बिल्कुल संभव है और इसमें चिंता करने जैसी कोई बात नहीं है. इसका यह मतलब नहीं हुआ कि वैक्सीन अप्रभावी है. इसका यह अर्थ हुआ कि शरीर के अंदर हमारा इम्यून सिस्टम वैक्सीन लेने के बाद एक सार्थक प्रतिक्रिया देने की ओर काम कर रहा है. यही वजह है कि वैक्सीन लेने के बाद भी मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग अनिवार्य होता है. वैक्सीनेशन के मौज़ूदा आंकड़ों के बावजूद मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना कोरोना संक्रमण की रफ़्तार को रोकने के लिए बेहद ज़रूरी है. इसमें दो राय नहीं कि मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग दोनों ही कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ प्रथम पंक्ति के हथियार हैं.
ज़्यादा अहम बात यह है कि वैक्सीन कोविड–19 के संक्रमण को पैदा नहीं करेगा क्योंकि संक्रमण करने में यह अक्षम है.
साइड इफेक्ट या फिर वैक्सीनेशन के बाद दुष्प्रभाव(एईएफआई)?
देश में वैक्सीन लगवाने को लेकर लोगों की झिझक का एक बड़ा कारण यह भी है कि वैक्सीनेशन के बाद इसके दुष्प्रभावों को लेकर लोगों के मन में डर का माहौल है.
जैसा कि किसी भी वैक्सीन के साथ होता है इसके कुछ हल्के फुल्के साइड इफ़ेक्ट देखे जा सकते हैं. हो सकता है कि कुछ लोगों में वैक्सीन लेने के बाद नीचे दिए गए लक्षण उभर कर सामने आ सकते हैं –
- सिर में दर्द
- इंजेक्शन की जगह दर्द
- थकान
- मांसपेशियों में दर्द
- बुखार
- ठंड लगना
- जोड़ों में दर्द
इस तरह के साइड इफ़ेक्ट सामान्य तौर पर कोई भी वैक्सीन लेने के बाद देखे जा सकते हैं जो खुद से ही ठीक भी हो जाते हैं.
जिन्हें एलर्जी की शिकायत रही है और जिन्हें एनाफाइलैक्टिक रिएक्शन होता है वो भी वैक्सीन लेने में काफी आशंकित रहते हैं. वैक्सीन निर्माताओं ने लोगों में एलर्जी/एनाफाइलैक्सीस के इतिहास की सूची बनाई है, जो वैक्सीन लेने के बाद नज़र आया है. हालांकि, हेल्थकेयर वर्कर्स जिन्हें इसी तरह की शिकायत थी वो वैक्सीन लेने के लिए आगे आये हैं, और उनमें वैक्सीन लेने के बेहद कम साइड इफ़ेक्ट देखने को मिले. वैक्सीनेशन की प्रक्रिया के मुताबिक़ जिन्हें वैक्सीन दिया जाता है उनपर इसका प्रभाव अगले 30 मिनट तक देखा जाता है जिससे कि वैक्सीनेशन के बाद अगर उनके शरीर में किसी भी तरह की आपातकालीन प्रतिक्रिया होती है तो उससे निपटा जा सके.
भारत में कोविशील्ड जिसे सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने बनाया है और कोवैक्सीन जिसका निर्माण भारत बायोटेक ने किया है उसे इस्तेमाल की इजाज़त दे दी गई है. कोविशील्ड और कोवैक्सीन दोनों ने ही वैक्सीन संबंधी तमाम जानकारी सार्वजनिक किया हुआ है जिससे कि कोई भी व्यक्ति वैक्सीन लेने से पहले अगर इस बारे में जानना चाहता है तो उसे वैक्सीन से संबंधित एक–एक जानकारी यहां से मिल सकती है.
वैक्सीन बनाम नए वेरिएंट
वायरस ख़ासकर आरएनए वायरस हमेशा अपना रूप बदलते रहते हैं. यह केवल कुछ समय की बात थी कि सार्स–कोवी-2 वायरस ने खुद को बदल लिया.
ऐसे में यह जानना ज़रूरी है कि आखिर यह परिवर्तन होता क्या है और इसका प्रभाव क्या है ?
दरअसल, इस तरह की परिवर्तनशीलता वायरस को ट्रांसमिट करने और लोगों को आसानी से संक्रमित करने की इजाज़त देता है. यही नहीं वायरस के रूप बदलने का मतलब यह भी होता है कि यह इंसान के शरीर के अंदर इम्यून सिस्टम से लड़ाई में ज़ल्द ख़त्म और निष्क्रिय होने से इसे बचाता है. इसका मतलब यह हुआ कि वायरस के रूप बदलने से यह ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को संक्रमित कर सकता है, जैसा कि इंग्लैंड और ब्राज़ील में देखा गया. कोरोना वायरस के ऐसे नए वेरिएंट पहले इंग्लैंड, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में पैदा हुए जिसके बाद भारत समेत कई देशों में इसका दुष्प्रभाव देखा गया.
मौज़ूदा वैक्सीन के प्राथमिक अध्ययन से यह बात सामने आई है कि यह वैक्सीन नए वेरिएंट के ख़िलाफ़ कमतर प्रभावी हैं, जबकि पहले के वायरस के ख़िलाफ़ यह ज़्यादा असरदार हैं.
ये तमाम वायरस के नए वेरिएंट प्रयोगशाला में अलग–थलग किए जा चुके हैं और इन्हें सफ़लतापूर्वक कल्चर की प्रक्रिया से भी गुज़ारा जा चुका है. हालांकि, मौज़ूदा वैक्सीन के प्राथमिक अध्ययन से यह बात सामने आई है कि यह वैक्सीन नए वेरिएंट के ख़िलाफ़ कमतर प्रभावी हैं, जबकि पहले के वायरस के ख़िलाफ़ यह ज़्यादा असरदार हैं.
चार वैक्सीन निर्माताओं (फाइजर, मॉडर्ना,ऑक्सफोर्ड एजेड और भारत बायोटेक)के दस्तावेज़ों से साफ़ है कि ये वैक्सीन इंग्लैंड के B.1.1.7 वेरिएंट के ख़िलाफ़ कम असरदार है. हालांकि, दक्षिण अफ्रीका में पैदा होने वाले B.1.351 वेरिएंट को लेकर ज़्यादा चिंता है. क्योंकि इसके बारे में कहा जा रहा है कि यह शरीर के इम्यून सिस्टम को चकमा देकर अपना रूप परिवर्तित करने में सक्षम है, और जिसे लेकर मौज़ूदा वैक्सीन कम प्रभावी नज़र आता है. ‘इम्यून इस्केप‘ का मतलब यह हुआ कि इंसानी शरीर द्वारा जो इम्यून सिस्टम वायरस के ख़िलाफ़ विकसित किया जाता है उसे वायरस का यह नया वेरिएंट चकमा देने में कामयाब हो जाता है. सिर्फ़ यही नहीं शरीर के अंदर का इम्यून सिस्टम इसे मारने में नाकाम रहता है और नतीज़ा यह होता है कि वायरस के ऐसे नए वेरिएंट के ख़िलाफ़ मौज़ूदा वैक्सीन का प्रभाव कम हो जाता है.
हालांकि, वैक्सीन और नए वेरिएंट से संबंधित रिसर्च जैसे–जैसे सामने आएंगे वैसे–वैसे नई जानकारी हासिल हो सकेगी.
पिछले एक साल के दौरान कई तरह की भ्रामक जानकारी प्रचारित की गई. यहां तक कि सरकार और मेडिकल समुदाय को बदनाम करने के लिए कई तरह के फ़ेक न्यूज़ और साज़िश की नई–नई थ्योरी को सामने लाया गया. हालांकि, यह बेहद सामान्य बात है कि आम लोगों में कोविड–19 संक्रमण को लेकर चिंता हो लेकिन ऐसी आशंकाएं इस सच्चाई को कभी नहीं बदल सकती हैं कि कोविड–19 वायरस अपने नए–नए रूप में अभी भी दुनिया में मौज़ूद है और यह लंबे समय तक इंसानों के बीच रहने वाला है.
ऐसे में एक ही हथियार सबसे ज़्यादा कारगर है और वो है मास्क पहनना, लोगों से दूरी बनाए रखना और जल्द से जल्द वैक्सीन लगवाना.
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