Author : Manoj Joshi

Published on Jun 06, 2022 Updated 0 Hours ago

वैश्विक माहौल में विगत एक वर्ष में आए बदलाव के कारण बाइडन प्रशासन की नीतियों को बल मिला है, खासकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में.

चीन को लेकर अमेरिका के बाइडेन प्रशासन का दृष्टिकोण: एक आकलन

मई महीने के अंतिम गुरुवार 26 मई को को जॉर्ज वॉशिंगटन डी.सी. में अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने जॉर्ज वाशिंगटन युनिर्वसिटी में अपने संबोधन में बाइडेन प्रशासन की चीन को लेकर नीति का खुलासा किया. इस संबोधन में कहा गया कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बावजूद चीन ही अमेरिका के सामने प्रिंसिपल चैलेंजर (मुख्य चुनौती) बना हुआ है. ब्लिंकेन ने कहा, ‘चीन ही एकमात्र ऐसा देश है, जो इंटरनेशनल ऑर्डर (अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था) को बदलने का इरादा रखता है और जिसके पास इकॉनमिक (आर्थिक), डिप्लोमैटिक (कूटनीतिक), मिलिट्री (सैन्य) और टेक्नोलॉजिकल पॉवर (तकनीकी क्षमता) मौजूद है.’

अमेरिका इस बात का इंतज़ार नहीं कर सकता है कि चीन अपनी राह बदलेगा और न ही अमेरिका, चीन के बर्ताव में बदलाव ही ला सकता है. अमेरिका को ऐसी नीति ‘अपनानी होगी जो चीन के आसपास के कूटनीतिक माहौल को आकार दे सके’

उनकी टिप्पणी का सार यह है कि, अमेरिका इस बात का इंतज़ार नहीं कर सकता है कि चीन अपनी राह बदलेगा और न ही अमेरिका, चीन के बर्ताव में बदलाव ही ला सकता है. अमेरिका को ऐसी नीति ‘अपनानी होगी जो चीन के आसपास के कूटनीतिक माहौल को आकार दे सके’. दूसरे शब्दों में चीन को जियोस्ट्रैटेजिक (भू-रणनीतिक) और जियो-इकॉनमिक (भू-आर्थिक) क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा से बाहर करना होगा.  बाइडेन प्रशासन ने अभी चीन को लेकर अपनी नीति आधिकारिक रूप से उजागर नहीं की है. लेकिन द न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, ब्लिंकेन का संबोधन ‘बाइडेन प्रशासन की पिछले मार्च से जून तक चलने वाले ऑटम या पतझड़ के मौसम में पूर्ण हुई गोपनीय चीन नीति का एक छोटा और पब्लिक वर्ज़न या सार्वजनिक विवरण है.


पिछले वर्ष के शुरुआत में ही प्रशासन ने अपनी इंटरिम नेशनल सिक्यूरिटी स्ट्रैटेजिक गाइंडस जारी की थी, जिसमें चीन नीति के तीन मुख्य आधार स्तंभ थे: पहला, चीन से मुक़ाबला करने के लिए घरेलू आर्थिक और राजनीतिक ज़रूरत के नवीनीकरण (डोमेस्टिक इकॉनॉमिक एंड पॉलीटिकल नीड रिन्यूअल) की आवश्यकता. दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा यह कि साझा उद्देश्य के नाम पर अमेरिका के सहयोगी और साथियों को साथ लेना. और तीसरा ‘बिल्ड बैक बेटर’ यानी ‘निर्माण, समर्थन और बेहतर योजना’ के आधार पर एक प्रतिस्पर्धी दृष्टि की पेशकश, जिसमें अमेरिका के पास सामाजिक, ढांचागत और पर्यावरणीय कार्यक्रमों में निवेश के माध्यम से बदलाव लाने की क्षमता हो.

टोक्यो में हुए क्वॉड शिखर सम्मेलन में बाइडेन की मौजूदगी में दो महत्वपूर्ण मित्र राष्ट्रों दक्षिण कोरिया और जापान, जिन्हें ट्रंप प्रशासन ने कभी महत्व नहीं दिया था, उनकी ओर अमेरिका की तरफ से हाथ बढ़ाने की पहल हुई.

26 मई के गुरुवार के संबोधन में ब्लिंकेन ने इस रणनीति का सार तीन सिद्धांतों ‘इन्वेस्ट, अलाइन, कंपीट’ यानी निवेश, संरेखन और स्पर्धा को ध्यान में रखकर ही पेश किया. ‘इन्वेस्ट’ नीति में डोमेस्टिक या घरेलू एवं विदेशी अंश आते हैं.  अमेरिका ने जून 2021 में ही जी-7 बैठक में बेल्ट एंड रोड पहल को चुनौती देने के लिए आर्थिक पहल बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (B3W) की पूर्व घोषणा कर दी थी. इस रणनीति में ‘अलाइन’ (संरेखित) वाले हिस्से में इस योजना पर अपने साथियों और सहयोगियों, मसलन जापान, आस्ट्रेलिया एवं अन्य जी 7 देशों का सहयोग लेकर काम करना शामिल था. लेकिन अमेरिका के लिए इसका मुख्य उद्देश्य अपने इंडो-पैसिफिक (भारत-प्रशांत महासागर) के सहयोगियों को एकजुट करना था.


जहां तक मिलिट्री से जुड़े अंश की बात है तो ब्लिंकेन ने कहा कि अमेरिका चीन को ‘अपने पेसिंग चैलेंज या आगे बढ़ने वाली चुनौती के रूप में देखेगा’ और यह सुनिश्चित करेगा कि ‘हमारी मिलिट्री उनसे आगे रहे’.  इंटीग्रेटेड डेटरेंस या एकीकृत प्रतिबंध की रणनीति में साथियों और सहयोगियों के साथ सभी क्षेत्रों में काम करना शामिल था.

उभरती बाइडेन नीति


एक वर्ष से थोड़े ज्य़ादा वक्त़ में बाइडेन प्रशासन ने क्वॉड के चार शिखर सम्मेलन (समिट) आयोजित किए हैं, जिसमें दो वर्चुअल (आभासी/ऑनलाइन) और दो प्रत्यक्ष शिखर सम्मेलन शामिल हैं. इनमें हाल ही में टोक्यो में आयोजित बैठक भी शामिल है. याद कीजिए कि जब 2017 में ट्रंप प्रशासन ने क्वॉड को पुनर्जीवित किया था तो उस वक्त़ उसमें केवल बातचीत होती थी. लेकिन अगले कुछ वर्षों में भारत और ऑस्ट्रेलिया को लेकर चीन के बर्ताव में आए बदलाव की वजह से दोनों देशों ने कड़ा रुख़ अपना लिया है. पहले यह दोनों ही देश इस मुद्दे को लेकर थोड़ा हिचकिचा रहे थे.


टोक्यो में हुए क्वॉड शिखर सम्मेलन में बाइडेन की मौजूदगी में दो महत्वपूर्ण मित्र राष्ट्रों दक्षिण कोरिया और जापान, जिन्हें ट्रंप प्रशासन ने कभी महत्व नहीं दिया था, उनकी ओर अमेरिका की तरफ से हाथ बढ़ाने की पहल हुई. ट्रंप का बार-बार उनसे ये मांग करना कि वे उन देशों में अमेरिकी सेना की मौजूदगी के ख़र्च में बढ़ोत्तरी करे, ने ये साबित किया था कि वे अपने ही मित्र राष्ट्रों को कम अथवा कमज़ोर कर के आंकते हैं. अपनी अलाइनमेंट स्ट्रैटेजी या रणनीति के हिस्से के रूप में बाइडेन प्रशासन अब आसियान समूह पर ज्य़ादा ध्यान दे रहा है.अक्तूबर 2021 में ब्रूनेई की अध्यक्षता में आयोजित वर्चुअल शिखर सम्मेलन में शामिल होने के बाद अमेरिका ने इस साझेदारी के इतिहास में पहली बार, इसी साल मई माह की शुरुआत में, वॉशिंगटन डीसी में एक विशेष शिखर सम्मेलन का आयोजन किया.

बाइडेन को अमेरिकी कांग्रेस से अपने दो ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर्स के घरेलू बिल्ड बैक बैटर प्रोग्राम को मंज़ूरी दिलाने में सफलता नहीं मिली है. ऐसे में इसके बाहरी संस्करण या एक्सटर्नल वर्ज़न B3W पर सवालिया निशान लग गया है.

यह बात भी महत्वपूर्ण है कि, इसने ट्रंप प्रशासन के दौरान आसियान क्षेत्र के साथ किसी भी तरह के आर्थिक जुड़ाव में कमी की महत्वपूर्ण समस्या को बड़ी ही चालाकी और कुशलता से दूर करने की कोशिश की. क्वॉड शिखर सम्मेलन के पहले अमेरिका ने घोषणा की, कि जापान, भारत और 10 अन्य देशों ने अमेरिका की पहल वाली इंडो पैसिफिक इकॉनॉमिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) के साथ जुड़ने का फैसला लिया है.


आलोचक आईपीईएफ (IPEF) को लेकर आमतौर पर उदासीन रहे हैं. उनके अनुसार यह ज्य़ादा से ज्य़ादा अमेरिका का ‘एक विज़न, एक सिग्नल अथवा स्टेटमेंट ऑफ़ पर्पस या उद्देश्य का बयान मात्र है. इसके माध्यम से अमेरिका अपने द्वारा ही बनाये गये ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप समझौते से बाहर निकलने की वजह से उपजी समस्याओं से निपटने की कोशिश कर रहा है.


एक और योजना जो अब भी टेबल पर बनी हुई है, वह बिल्ड बैक बैटर वर्ल्ड प्लान है, जिसमें ब्लू डॉट नेटवर्क शामिल था. बाइडेन को अमेरिकी कांग्रेस से अपने दो ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर्स के घरेलू बिल्ड बैक बैटर प्रोग्राम को मंज़ूरी दिलाने में सफलता नहीं मिली है. ऐसे में इसके बाहरी संस्करण या एक्सटर्नल वर्ज़न B3W पर सवालिया निशान लग गया है. इस प्लान में कठिन भौतिक बुनियादी ढांचे को शामिल नहीं किया गया था, जो ‘क्लामेट, हेल्थ और हेल्थ सिक्योरिटी, डिजिटल टेक्नॉलजी, और जेंडर इक्विटी एंड इक्वॉलिटी (लिंग निष्पक्षता और समानता) पर ध्यान केंद्रित कर सके. इस योजना का उद्देश्य डेवलपमेंट फाइनेंस के माध्यम से अरबों डॉलर्स की निजी पूंजी को बढ़ावा देना है.


पृष्ठभूमि


काफी हद तक बाइडेन प्रशासन की नीतियां पूर्व  की ट्रंप प्रशासन की नीतियों पर ही आधारित  है, जिसमें चीन के साथ प्रतिस्पर्धा और टकराव शामिल था. ट्रेड वॉर के अलावा इसने ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ मिलकर ब्लू डॉट नेटवर्क की भी शुरुआत की, ताकि फाइनैंशियल ट्रांसपेरेंसी या वित्तीय पारदर्शिता और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देकर विदेश में निवेश के लिए  वित्तीय पूंजी जुटाया जा सके.

अमेरिका की दिसंबर 2017 की नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रैटेजी ने चीन के साथ बातचीत से टकराव की अमेरिकी नीति को गति ही प्रदान की है. मई 2020 में ट्रंप प्रशासन के दृष्टिकोण को ‘यूनाइटेड स्टेट्स स्ट्रैटेजिक अप्रोच टू द पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’  के शीर्षक  से छपे एक डॉक्यूमेंट में  शामिल कर छापा  गया . यह दस्तावेज़ पहले से उपलब्ध एनएसएस पर आधारित था, जिसमें कहा गया था कि चीन और अमेरिका केविशिष्ट और डाइवज़िर्ग इंटरेस्ट्स (अलग-अलग हितों) ने दोनों देशों को उनकी प्रणालियों के बीच दीर्घकालीन रणनीतिक प्रतिस्पर्धा की राह पर डाल दिया है.


इस वक्त़ अमेरिका की चीन को लेकर नीति तीन स्तरों पर काम कर रही है. पहला, संतुलित व्यापार को साधने के लिए चीनी उत्पादों पर दंडात्मक टैरिफ़ या शुल्क लगाना. दूसरा चीनी कंपनियों, निवेशकों एवं उत्पादकों कोध्यान में रखकर अमेरिकी हाईटेक को बचाने के लिए निर्यात नियंत्रण व्यवस्था (export control regimes) लागू करना. इस रणनीति का तीसरा चरण आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे हाईटेक सेक्टर  में अमेरिकी कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मकता को बनाए रखना था.


अमेरिका ने  चीन के साथ संबंध तोड़ने के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं की री-शोरिंग और नियर-शोरिंग की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है. नवंबर 2019 में अमेरिका ने जापान और आस्ट्रेलिया के साथ मिलकर ब्लू डॉट नेटवर्क की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य ढांचागत विकास योजनाओं का आकलन और सर्टिफिकेशन करना था, ताकि वित्तीय पारदर्शिता और पर्यावरणीय स्थिरता के मानकों को पूरा किया जा सके. इसका उद्देश्य विकासशील देशों में बुनियादी ढांचे के लिए 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर्स जुटाना था ताकि वे देश अपने ‘क्लाईमेट, हेल्थ, डिजिटल टेक्नॉलजी  और जेंडर इक्विटी एंड इक्वॉलिटी  केलक्ष्य को हासिल कर सकें.

वर्ष 2020 में जब चीन के साथ अमेरिका की कटुता बढ़ने लगी तो अमेरिकी प्रशासन ने कंपनियों और सामाजिक संगठनों का इकॉनमिक  प्रॉसपेरिटी नेटवर्क खड़ा करना तय किया, जिसका डिजिटल बिज़नेस, एनर्जी एंड इंडस्ट्रियल स्टैंडर्ड तथा शिक्षा पर साझा उद्देश्य हो. इस नेटवर्क में शामिल होने के लिए जिन देशों को  टारेगट किया गया उनमें भारत प्रमुख था. नेटवर्क का उद्देश्य यह था कि वह कुछ हद तक उन अमेरिकी कंपनियों  को चीन का साथ छोड़कर, नेटवर्क में शामिल अन्य सदस्य देशों  के साथ साझेदारी के लिए तैयार कर सके.

वर्ष 2020 में जब चीन के साथ अमेरिका की कटुता बढ़ने लगी तो अमेरिकी प्रशासन ने कंपनियों और सामाजिक संगठनों का इकॉनमिक  प्रॉसपेरिटी नेटवर्क खड़ा करना तय किया, जिसका डिजिटल बिज़नेस, एनर्जी एंड इंडस्ट्रियल स्टैंडर्ड तथा शिक्षा पर साझा उद्देश्य हो.

इसके बावजूद ट्रंप की नीति में अस्पष्टता का पुट दिखाई देता था. जनवरी 2020 में टैरिफ़ (शुल्क) और टेक्नॉलजी के मुद्दे को हल करने के लिए चीन और अमेरिका ने फेज़1 डील पर सहमति बनाई ताकि बीजिंग, अमेरिका से आयात में बेतहाशा वृद्धि कर सके. दूसरे शब्दों में वह अमेरिका के साथ और भी एकीकृत हो सके. लेकिन कोविड-19 ने इस सहमति से जुड़ी संभावनाओं पर पानी फेर दिया.


निष्कर्ष

 

वैश्विक माहौल में विगत एक वर्ष में काफी महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं. रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद यह आशंकाएं बढ़ने लगी हैं कि चीन भी ताइवान के साथ ऐसा ही कुछ कर सकता है. महत्वपूर्ण बात यह है कि एंटनी ब्लिंकेन ने अपने वॉशिंगटन के संबोधन में यह भी साफ़ किया है कि राष्ट्रपति की इस कथित ग़लती के बावजूद कि ताइवान पर चीन के किसी भी प्रकार के आक्रमण की स्थिति में अमेरिका ताइवान का बचाव करेगा, अमेरिकी नीति में बदलाव नहीं हुआ है. अन्य शब्दों में कहें तो अमेरिका  ताइवान के बचाव में प्रत्यक्ष तौर पर ख़ुद के मैदान में उतरने या न उतरने की बात साफ़ न कहने की अपनी पुरानी अस्पष्ट रणनीति की नीति को ही आगे भी जारी रखेगा.


रूस और चीन दोनों ने ही अपने संयुक्त सैन्य अभ्यासों को बढ़ाकर, इस बदलाव को रेखांकित भी किया है. क्वॉड शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों ने जापान के निकट ही हवाई अभ्यास भी किया था. हाल के वर्षों में चीनी-रूसी सेनाओं के बीच नॉर्थईस्ट एशियन रिजन   में किये जा रहे सहयोग में भी वृद्धि देखी गई है.

हालांकि, अमेरिका को यूके, जर्मनी, फ्रांस जैसे महत्वपूर्ण देशों वाले वेस्टर्न एलायंस या पश्चिमी गठबंधन के इस सख्त़ रवैये का भी लाभ मिला है, कि वे भी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपना सैन्य खर्च बढ़ाकर एक महत्वपूर्ण रोल अदा करेंगे.

चीन और रूस के बीच ‘नो लिमिट्स’ यानी असीमित गठजोड़ ने जापान को सार्वजनिक तौर पर यह कहने को मजबूर कर दिया है कि, वह ताइवान पर आक्रमण को अपनी सुरक्षा के लिए ख़तरे के रूप में देखेगा. इसी के परिणाम स्वरूप टोक्यो को  अपने रक्षा बजट को दोगुना करने का निर्णय लेना पड़ा है. इसके चलते अब जापान दुनिया में अमेरिका और चीन के बाद  रक्षा पर सबसे ज़्यादा ख़र्च करने वाला तीसरा देश हो जाएगा.

कुल मिलाकर यूएस अलाइनमेंट स्ट्रैटेजी सही काम कर रही है और यूक्रेन के घटनाक्रम ने इसे पुनर्जीवित कर दिया है. इकॉनमिक स्ट्रैटेजी पर सवालिया निशान लगा हुआ है. इसे ज्य़ादा से ज्य़ादा ‘वर्क इन प्रोग्रेस’ कहा जा सकता है. जहां तक स्पर्धा की बात है तो इसमें अमेरिका को शी-जिनपिंग की न समझ में आने वाली आर्थिक नीतियों से सहायता ही मिली है. जिनपिंग की नीतियों ने चीन की अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया है, लेकिन वर्तमान में  अमेरिका भी गोते लगा रही अर्थव्यवस्था का सामना कर रहा है.

अपनी टिप्पणी में ब्लिंकेन ने यह साफ़- साफ़  कहा है कि अमेरिकी नीति का उद्देश्य कभी भी चीन की अर्थव्यवस्था से ख़ुद को अलग करना नहीं था. अमेरिका, चीन से व्यापार और वहां उस वक्त़ तक निवेश करता रहेगा जब तक वह अमेरिकी सुरक्षा को नकारात्मक तौर पर प्रभावित नहीं करता. यदि बीजिंग ने अमेरिकी चिंताओं पर गंभीरता से विचार किया तो अमेरिका भी इसका सकारात्मक जवाब देगा.

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