स्प्रैटली आइलैंड, जहां फिलीपींस और चीन के बीच समुद्री क्षेत्र पर दावे को लेकर विवाद है, के सेकेंड थॉमस शोल (जलमग्न चट्टान) के आसपास दोनों देशों के बीच मौजूदा खींचतान ने एक बार फिर आसियान को मुश्किल हालात में डाल दिया है. फिलीपींस और चीन के बीच इस तरह का संघर्ष हाल के समय में अक्सर हो रहा है. उदाहरण के लिए, अक्टूबर 2023 में चीन और फिलीपींस के कोस्ट गार्ड के जहाजों के बीच टक्कर और दिसंबर 2023 में फिलीपींस के द्वारा चीन पर ये आरोप लगाना कि उसने उसकी नाव पर पानी की बौछार की है. इनमें से एक नाव पर फिलीपींस के सेना प्रमुख भी सवार थे. फिलीपींस ने चीन पर अपनी नावों को टक्कर मारने का भी आरोप लगाया जिसमें इंजन को काफी नुकसान हुआ. आसियान 2002 से चीन के साथ कोड ऑफ कंडक्ट (COC या आचार संहिता) को लेकर बातचीत के लिए जूझ रहा है और विवादित समुद्र में फिलीपींस और चीन के बीच हाल की ये घटनाएं आसियान के लिए बड़ी चुनौती पेश करती हैं.
आसियान की अपनी अध्यक्षता के दौरान इंडोनेशिया के विदेश मंत्री ने जुलाई 2023 में ये दावा भी किया था कि आसियान और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) साउथ चाइना सी में कोड ऑफ कंडक्ट को लेकर बातचीत तेज़ करने के लिए गाइडलाइन पर सहमत हो गए हैं.
हाल के दिनों में आसियान के उपाय
दोनों देशों के बीच कई बार संघर्ष को देखते हुए आसियान के विदेश मंत्रियों ने 30 दिसंबर 2023 को “दक्षिण-पूर्व एशिया में समुद्री क्षेत्र में स्थिरता को बरकरार रखने और बढ़ावा देने” पर एक बयान जारी किया. बयान में ये ज़िक्र किया गया कि कैसे “साउथ चाइना सी (दक्षिण चीन सागर) में हाल की घटनाएं क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता को कमज़ोर कर सकती हैं.” इसमें आगे दोहराया गया है कि “उन गतिविधियों को लेकर आत्मसंयम बरता जाए जो विवादों को जटिल बनाएंगी या उन्हें बढ़ावा देंगी और शांति एवं स्थिरता को प्रभावित करेंगी, ऐसी कार्रवाई से परहेज किया जाए जो हालात को और मुश्किल बना सकती हैं और अंतर्राष्ट्रीय नियम, ख़ास तौर पर UNCLOS (यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी यानी समुद्री कानन को लेकर संयुक्त राष्ट्र समझौता), के अनुसार विवादों का शांतिपूर्ण निपटारा किया जाए”. ये आसियान की तरफ से जारी पहला बयान था और साउथ चाइना सी के मुद्दे पर आसियान के सदस्य देशों के बीच राय में अंतर को देखते हुए इसे एक सकारात्मक कदम के तौर पर देखा जा सकता है. आसियान की अपनी अध्यक्षता के दौरान इंडोनेशिया के विदेश मंत्री ने जुलाई 2023 में ये दावा भी किया था कि आसियान और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) साउथ चाइना सी में कोड ऑफ कंडक्ट को लेकर बातचीत तेज़ करने के लिए गाइडलाइन पर सहमत हो गए हैं. इस गाइडलाइन का मकसद बातचीत की प्रक्रिया को तेज़ करना है. हालांकि इस गाइडलाइन का ब्यौरा सार्वजनिक नहीं किया गया है.
एक स्थिर समुद्री व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए आसियान नौसैनिक अभ्यास, आसियान मैरीटाइम आउटलुक, विस्तारित आसियान मैरीटाइम फोरम की मेज़बानी और आसियान के विदेश मंत्रियों के बयान जैसी पहल ये दिखाती है.
इन बयानों और घटनाक्रमों के बावजूद फिलीपींस और चीन के बीच टकराव बढ़ते ही जा रहे हैं. कोस्ट गार्ड के जहाजों के बीच सबसे ताज़ा संघर्ष इसका उदाहरण है. फिलीपींस के कोस्ट गार्ड के प्रवक्ता ने चीनी पक्ष पर आरोप लगाया कि वो “ख़तरनाक युद्ध अभ्यास कर रहा है और सेकेंड थॉमस शोल तक उसके सप्लाई मिशन की सुरक्षा में जा रहे फिलीपींस के कोस्ट गार्ड के जहाज को रोक रहा है.” इसलिए सवाल ये उठता है कि क्या ये उपाय और आसियान की प्रक्रिया किसी भी ढंग से मौजूदा संकट से निपटने में आसियान की मदद कर सकती है. वैसे आसियान के विदेश मंत्रियों का बयान बहस को कम करने के मामले में सीधी दिशा में उठाया गया एक कदम है. म्यांमार संकट और साउथ चाइना सी संकट जैसे मुद्दों का समाधान नहीं करने की वजह से आसियान की एकता को लेकर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं लेकिन इस मामले में कम-से-कम आसियान का बयान दिखाता है कि उसने अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धांत को बनाए रखने के मामले में अंतत: एक सामूहिक रवैया अपनाया है. वास्तव में ये बयान किसी देश की तरफ से उठाए गए कदम को लेकर उसकी आलोचना नहीं करता है बल्कि ये तथ्य कि विवादित समुद्र में फिलीपींस और चीन के बीच संघर्ष बढ़ने के बाद इस तरह का बयान जारी किया गया, ये दिखाता है कि साउथ चाइना सी में चीन के आक्रामक युद्ध अभ्यास की तरफ इशारा किया गया है. लेकिन आसियान को अभी और काम करने की आवश्यकता है और इसके साथ-साथ ये स्वीकार भी करना होगा कि आसियान की प्रक्रियाओं और व्यवस्थाओं की कुछ सीमाएं हैं.
पुराने तरीके बनाम नई सोच
चीन की आक्रामक घुसपैठ का निशाना बने दावेदार देशों को अपने हितों की रक्षा के लिए नए उपायों या वैकल्पिक रणनीतियों की खोज के लिए छूट देने की ज़रूरत है और इन ‘नए उपायों और वैकल्पिक रणनीतियों’ को हमेशा आसियान के रास्ते में रुकावट या आसियान के घटते ताकत के रूप में नहीं देखना चाहिए.
भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया, जो कि आसियान के डायलॉग पार्टनर होने के साथ-साथ ईस्ट एशिया समिट (EAS) के हिस्से भी हैं, को आसियान के नेतृत्व वाली एक और व्यवस्था को बढ़ावा देना चाहिए ताकि कुछ दावेदार देशों के साथ द्विपक्षीय स्तर पर काम करने के अलावा इन मंचों पर भी एक अधिक ठोस भूमिका निभा सकें.
जब साउथ चाइना सी के मुद्दे पर एक साझा रवैया अपनाने की बात आती है तो आसियान के लिए सबसे बड़ा अड़ंगा ये है कि गैर-दावेदार देश, जिनका चीन के साथ अच्छे संबंध हैं, चीन के ख़िलाफ़ गंभीर रुख नहीं अख्तियार करना चाहते हैं क्योंकि ये उनके हितों में किसी भी तरह से बाधा नहीं डालता है. आसियान के पूर्व अध्यक्ष इंडोनेशिया ने नटूना सी में चीन के अधिक आक्रामक रवैये की वजह से अपनी बढ़ती चिंताओं को देखते हुए और आसियान की अतीत की प्रतिष्ठा बहाल करने में मदद के उद्देश्य- इंडोनेशिया ने ख़ुद को आसियान के भीतर हमेशा अव्वल देश के रूप में देखा है- इससे उसे अधिक एकजुट बनाने के लक्ष्य के लिए भी अपनी अध्यक्षता के दौरान समुद्री सुरक्षा के मुद्दे पर बहुत ज़्यादा ध्यान दिया है. एक स्थिर समुद्री व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए आसियान नौसैनिक अभ्यास, आसियान मैरीटाइम आउटलुक, विस्तारित आसियान मैरीटाइम फोरम की मेज़बानी और आसियान के विदेश मंत्रियों के बयान जैसी पहल ये दिखाती है. ये देखते हुए कि आसियान की अध्यक्षता फिलहाल लाओस, जो कि एक गैर-दावेदार देश है, के पास है, ऐसे में आसियान के लिए ये अधिक समझदारी होगी कि वो वैकल्पिक रणनीतियों को आजमाने और उसे आगे बढ़ाने की छूट दावेदार देशों को मुहैया कराए जो COC को लेकर जल्दी बातचीत ख़त्म होने में मदद कर सकती है और जब बात अधिक ताकतवर चीन के साथ निपटने की आती है तो शक्ति संतुलन बनाए रखने में भी मदद करती है.
ये वैकल्पिक रणनीतियां क्या हैं?
सबसे पहले इस बात को स्वीकार करने की ज़रूरत है कि दक्षिण चीन सागर का मुद्दा केवल दावेदार देशों को प्रभावित नहीं करता है बल्कि अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत और दूसरे देशों पर भी असर डालता है जो एक स्वतंत्र, खुला और स्थिर इंडो-पैसिफिक सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहे हैं. इसलिए अगर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे आसियान के डायलॉग पार्टनर फिलीपींस और वियतनाम जैसे देशों के साथ मज़बूत रक्षा साझेदारी की दिशा में काम कर रहे हैं, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और अब जापान के साथ भी साझा गश्त कर रहे हैं, गश्त करने वाली नाव की सप्लाई के ज़रिए इन दावेदार देशों के क्षमता निर्माण की तरफ योगदान कर रहे हैं और दक्षिण चीन सागर में अवैध और आक्रामक कार्रवाई के लिए सार्वजनिक रूप से चीन की आलोचना कर रहे हैं (ऑस्ट्रेलिया और भारत- दोनों ने सेकेंड थॉमस शोल में चीन की कार्रवाई की निंदा करते हुए बयान जारी किए हैं) तो इसे इन देशों के द्वारा अपने हितों की रक्षा के लिए चुनी गई एक वैकल्पिक रणनीति के रूप में देखा जाना चाहिए. इन्हें आसियान के रास्ते या उसकी व्यवस्था में बाधा डालने और चीन के नैरेटिव को बढ़ावा देने में मदद के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए.
दूसरे हितधारकों जैसे कि भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया, जो कि आसियान के डायलॉग पार्टनर होने के साथ-साथ ईस्ट एशिया समिट (EAS) के हिस्से भी हैं, को आसियान के नेतृत्व वाली एक और व्यवस्था को बढ़ावा देना चाहिए ताकि कुछ दावेदार देशों के साथ द्विपक्षीय स्तर पर काम करने के अलावा इन मंचों पर भी एक अधिक ठोस भूमिका निभा सकें. एक तरीका ये हो सकता है कि EAS में साउथ चाइना सी के मुद्दे पर समुद्री संवाद (मैरीटाइम डायलॉग) शुरू किया जाए. वैसे तो साउथ चाइना सी में अभी तक पूरी तरह से संघर्ष शुरू नहीं हुआ है लेकिन अगर ऐसी स्थिति पैदा होती है तो समुद्री कानून को लागू करने को लेकर EAS के स्तर पर एक चर्चा करना भी सार्थक है. मौजूदा समय में चीन ने ऑस्ट्रेलिया के साथ एक समुद्री संवाद की मेज़बानी करने का प्रस्ताव दिया है. वो पहले ही नवंबर 2023 में अमेरिका के साथ समुद्री संवाद की मेज़बानी कर चुका है. इसलिए आसियान देशों के साथ-साथ उसके डायलॉग पार्टनर्स को भी EAS और आसियान डिफेंस मिनिस्टर्स मीटिंग प्लस जैसे मंचों पर बहुपक्षीय प्रारूप (मल्टीलेटरल फॉर्मेट) में इस तरह की बातचीत की मेज़बानी के लिए चीन को प्रोत्साहित करना चाहिए.
कोड ऑफ कंडक्ट (COC) को लेकर बातचीत दशकों से चल रही है और इस मामले में प्रगति अत्यंत धीमी रही है. इसलिए कुछ दावेदार देशों के द्वारा बाहरी किरदारों जैसे कि अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के साथ द्विपक्षीय स्तर के साथ-साथ बहुपक्षीय मंचों पर अपनाई गई वैकल्पिक व्यवस्थाओं या रणनीतियों के इस्तेमाल को ये पता लगाने के तौर पर देखा जाना चाहिए कि इससे COC को लेकर सोच-विचार की प्रक्रिया में मदद और तेज़ी मिलती है या नहीं. इसे आसियान की प्रक्रिया या आसियान की प्रतिष्ठा को कमज़ोर या खोखला करने के तरीके के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.
प्रेमेशा साहा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में फेलो हैं.
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