Author : Sushant Sareen

Published on Oct 29, 2022 Updated 0 Hours ago

पाकिस्तान के चुनाव आयोग द्वारा बेहद लोकप्रिय पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को अयोग्य ठहराने के दूरगामी नतीजे होंगे, जो उनके मुल्क को भुगतने पड़ेंगे.

इमरान ख़ान को अयोग्य ठहराने की तकलीफ़ और त्रासदी

जिस बात की उम्मीद की जा रही थी वही हुआ. पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को देश की संसद या किसी भी विधानसभा का सदस्य होने के अयोग्य करार दे दिया. चुनाव आयोग ने ये आदेश भी दिया कि भ्रष्टाचार करने के लिए इमरान ख़ान के ऊपर क़ानूनी कार्रवाई भी की जानी चाहिए. इमरान ख़ान के समर्थकों को सबसे ज़्यादा तकलीफ़ तो इसी बात की है कि उन्हें देश की सियासत से जिस तकनीकी आधार पर बेदख़ल कर दिया गया है, वो मोटा-मोटी वही कारण है, जिसके चलते उनके सबसे बड़े सियासी दुश्मन नवाज़ शरीफ़ को राजनीतिक मैदान से बाहर किया गया था. नवाज़ शरीफ़ को बेहद बनावटी जुर्म का बहाना बनाकर सज़ा दी गई थी. उन्हें सियासी मैदान से इसलिए बेदख़ल कर दिया गया था कि उन्होंने अपनी आमदनी में उस तनख़्वाह की जानकारी नहीं दी, जो उन्हें कभी मिली ही नहीं. वहीं, इमरान ख़ान को इसलिए अयोग्य ठहराया गया है, क्योंकि उनके ख़िलाफ़ अपनी संपत्तियों और देनदारी की ग़लत जानकारी देने के पक्के सुबूत मिले थे.

इमरान ख़ान को चुनाव आयोग ने जिस मामले में अयोग्य ठहराया था, उसकी शिकायत तोशाखाना केस के तौर पर की गई थी. पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने इमरान ख़ान को ‘आयोग के सामने झूठी जानकारी देने और ग़लत बयान देने का दोषी’ पाया गया था. पाकिस्तान के चुनाव आयोग के मुताबिक़, इमरान ख़ान ने ‘आयोग को अपनी संपत्तियों और देनदारियों की जो जानकारियां दीं, उनमें से जान-बूझकर ख़ुद को मिले उन तोहफ़ों की जानकारी छुपाई गई… जिन्हें बेचकर उनको आमदनी हुई थी.’ इमरान ख़ान को ये तोहफ़े पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आज़म के तौर पर हासिल हुए थे और उन्होंने सरकारी तोशाख़ाने से ये तोहफ़े निजी इस्तेमाल के नाम पर लिए और फिर मुनाफ़े पर बेच दिए. इमरान ख़ान को कितने समय के लिए अयोग्य ठहराया गया है, ये बात अब तक नहीं पता है. इमरान ख़ान को पाकिस्तान के संविधान की जिस धारा 63 (1) (P) के तहत अयोग्य ठहराया गया है, उसमें सिर्फ़ यही कहा गया है कि, ‘ ‘जो भी क़ानून इस वक़्त लागू होता है’ उसके तहत फिलहाल के लिए’ अयोग्य ठहराया जाता है. चुनाव आयोग ने अपने फ़ैसले में ये भी कहा है कि 2017 के चुनाव क़ानून की धारा 190 (2) के तहत इमरान ख़ान के ऊपर अदालत में मुक़दमा भी चलाया जाना चाहिए.

इमरान ख़ान के समर्थकों को सबसे ज़्यादा तकलीफ़ तो इसी बात की है कि उन्हें देश की सियासत से जिस तकनीकी आधार पर बेदख़ल कर दिया गया है, वो मोटा-मोटी वही कारण है, जिसके चलते उनके सबसे बड़े सियासी दुश्मन नवाज़ शरीफ़ को राजनीतिक मैदान से बाहर किया गया था.

इमरान ख़ान कितने वक़्त संसद या विधानसभा के सदस्य बनने के अयोग्य रहेंगे, इसका फ़ैसला तब होगा, जब उनके ऊपर सेशंस कोर्ट या फिर उससे ऊंची अदालत में मुक़दमा पूरा हो जाता है. अगर इमरान ख़ान दोषी पाए जाते हैं, तो न केवल उन्हें तीन साल तक क़ैद की सज़ा हो सकती है. बल्कि उन्हें ताउम्र चुनाव न लड़ने लायक़ भी घोषित किया जा सकता है. क्योंकि, भ्रष्टाचार का मुजरिम पाए जाने के बाद वो सच्चे और ईमानदार (सादिक़ और अमीन) इंसान नहीं रह जाएंगे. इमरान ख़ान ने चुनाव आयोग के इस फ़ैसले को इस्लामाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी. मगर उन्हें अदालत से राहत नहीं मिल पाई. इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने इमरान ख़ान को अयोग्य ठहराए जाने के चुनाव आयोग के फ़ैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. हालांकि, हाई कोर्ट ने ये ज़रूर कहा कि इमरान ख़ान आगे चुनाव लड़ सकते हैं.

पाकिस्तान के चुनाव आयोग का फ़ैसला

हालांकि, पाकिस्तान की अदालतें अब तक इमरान ख़ान के साथ मुरव्वत बरतती आई हैं. उनकी कई खुली ग़ैर-क़ानूनी हरकतों की अनदेखी करके, पाकिस्तान की अदालतों ने इमरान को रियायतें दी हैं. मिसाल के तौर पर एक जज को धमकाने के मामले में उन्हें आरोपों से बरी कर दिया गया था. ऐसे में उम्मीदें यही हैं कि आगे चलकर इमरान ख़ान को तोशाख़ाना मामले में भी राहत मिल जाए और चुनाव आयोग द्वारा अयोग्य ठहराए जाने के फ़ैसले पर कोर्ट से रोक लग जाए. इस दौरान कोर्ट में मुक़दमा चलता रहेगा और इमरान ख़ान अदालत की चक्की पीसते रहेंगे और उनके सिर पर तलवार लटकती रहेगी. इसी बीच कई अन्य गंभीर मामलों- जिसमें विदेश से फंड हासिल करने का केस भी है और जिसमें पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने इमरान ख़ान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी को प्रतिबंधित फंड हासिल करने और उस रक़म को दूसरी जगह बेज़ा इस्तेमाल करने का दोषी भी पाया है- में अभी अदालत में कार्रवाई चल रही है और ऐसे मामलों में न सिर्फ़ इमरान ख़ान बल्कि पाकिस्तान की हुकूमत चला चुकी तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी को भी क़रारा झटका झेलना पड़ सकता है.

सियासी तौर पर जहां, इमरान ख़ान के विरोधी उनको मिली पाकिस्तान के चुनाव आयोग से मिली सज़ा को इस तरह देख रहे हैं कि इस फ़ैसले से भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ इमरान की मुहिम की हवा निकल गई है. इमरान ख़ान जिस तरह बाक़ी नेताओं को भ्रष्ट और द को पाक-दामन बता रहे थे, वो ग़लत साबित हुआ है; हालांकि, इमरान ख़ान को जिन पक्के सुबूतों के आधार पर अयोग्य ठहराया गया है, उसकी अनदेखी करते हुए इमरान के समर्थकों की फौज और भी बढ़ सकती है. लोग इमरान ख़ान को ऐसे शहीद के तौर पर देखेंगे जो भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ रहा था और भ्रष्टाचारियों ने ही उनके ख़िलाफ़ साज़िश रचकर नीचा दिखाया. दूसरे शब्दों में कहें तो इमरान ख़ान को अवाम का जिस क़दर समर्थन मिल रहा है, उसको थोड़ा-बहुत नुक़सान ही होगा. या शायद इतना भी न हो. समस्या बस इतनी है कि पाकिस्तान में किसी सियासी नेता का करियर ख़त्म करने के रास्ते में उसकी लोकप्रियता कभी भी आड़े नहीं आई है.

अगर इमरान फिलहाल ख़ामोश रहने का विकल्प चुनते हैं, तो वो अदालतों में क़ानूनी लड़ाइयां लड़ने के साथ साथ अपनी सियासत बदस्तूर जारी रख सकते हैं. वो क़ानूनी लड़ाई जीतकर दोबारा पद हासिल करने लायक़ बन सकते हैं. लेकिन, इस विकल्प को अपनाने पर इमरान ख़ान को कुछ दिनों तक चुप बैठना होगा. उन्हें सत्ता में वापस आने के लिए अपनी बारी का इंतज़ार करना होगा.

पाकिस्तान के चुनाव आयोग का फ़ैसला इमरान को जिस मोर्चे पर चोट पहुंचाएगा, वो सत्ता की राजनीति है. इमरान ख़ान के विकल्प लगातार कम होते जा रहे हैं. वो मौक़े की नज़ाकत देखकर फिलहाल ख़ामोश रहने और अपनी लड़ाई आगे चलकर लड़ने का विकल्प आज़मा सकते हैं; या फिर वो सड़कों पर अपनी सियासी ताक़त दिखाकर मौजूदा हुकूमत से सत्ता छीन सकते हैं या फिर जल्द चुनाव कराने को मजबूर कर सकते हैं. अगर इमरान फिलहाल ख़ामोश रहने का विकल्प चुनते हैं, तो वो अदालतों में क़ानूनी लड़ाइयां लड़ने के साथ साथ अपनी सियासत बदस्तूर जारी रख सकते हैं. वो क़ानूनी लड़ाई जीतकर दोबारा पद हासिल करने लायक़ बन सकते हैं. लेकिन, इस विकल्प को अपनाने पर इमरान ख़ान को कुछ दिनों तक चुप बैठना होगा. उन्हें सत्ता में वापस आने के लिए अपनी बारी का इंतज़ार करना होगा. इस बात की उम्मीद कम ही है कि पाकिस्तान का फौजी तंत्र उन्हें दोबारा प्रधानमंत्री बनने की इजाज़त देगा. फिर चाहे चुनाव कभी भी कराए जाएं.

जनरलों की नाराज़गी मोल ले ली इमरान

अभी तो इमरान ख़ान एक चोटिल खिलाड़ी हैं. उन्होंने पाकिस्तानी फौजी तंत्र में दरार डालने की कोशिश करके जनरलों की नाराज़गी मोल ले ली है. इमरान ने फौजी जनरलों पर ग़द्दार होने, मुल्क से बेवफ़ाई करने और अपनी सरकार के ख़िलाफ़ साज़िश रचने जैसे गंभीर इल्ज़ाम लगाए हैं. सत्ता में रहने के दौरान इमरान ख़ान का घटिया रिकॉर्ड उन्हें वज़ीर-ए-आज़म की कुर्सी के बिल्कुल भी लायक़ नहीं बनाता, ख़ास तौर से तब और जब पाकिस्तान अपना अस्तित्व बचाने के संकट से जूझ रहा है. आतंकवाद का दानव एक बार फिर सिर उठा रहा है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था तबाही के कगार पर खड़ी है और अमेरिका, चीन और अरब देशों की वित्तीय और कूटनीतिक मदद के बग़ैर एक दिन भी नहीं बच सकती. पाकिस्तान के माली मददगार अब इमरान ख़ान को दोबारा सत्ता में नहीं देखना चाहते हैं. सियासी तौर पर पाकिस्तान बेहद बुरी तरह बंटा हुआ है. ऐसे में उसे एक ऐसे नेता की दरकार है जो ज़हरीली सियासत से मुल्क को बचा सके और जनता के जख़्मों पर मरहम लगा सके. और हां, पाकिस्तान को भारत के साथ अटके रिश्तों में दोबारा जान डालने की सख़्त ज़रूरत है. अगर इमरान ख़ान सत्ता में लौटते हैं तो ये मुमकिन नहीं होगा. एक मुल्क के तौर पर पाकिस्तान का अस्तित्व बचाने के लिए इमरान ख़ान को कुछ दिन सत्ता और सियासत से दूर ही रहना होगा. अगर वो ऐसा करने को राज़ी हो जाते हैं, तो इमरान ख़ान को कुछ रियायत मिल सकती है.

पाकिस्तान के माली मददगार अब इमरान ख़ान को दोबारा सत्ता में नहीं देखना चाहते हैं. सियासी तौर पर पाकिस्तान बेहद बुरी तरह बंटा हुआ है. ऐसे में उसे एक ऐसे नेता की दरकार है जो ज़हरीली सियासत से मुल्क को बचा सके और जनता के जख़्मों पर मरहम लगा सके. और हां, पाकिस्तान को भारत के साथ अटके रिश्तों में दोबारा जान डालने की सख़्त ज़रूरत है. अगर इमरान ख़ान सत्ता में लौटते हैं तो ये मुमकिन नहीं होगा.

मगर, चूंकि इमरान ख़ान तो इमरान हैं इसलिए वो ज़बरदस्ती कुर्सी हासिल करने का फ़ैसला कर सकते हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि इमरान ख़ान को अवाम का काफ़ी समर्थन हासिल है. ये बात जुलाई और अभी पिछले हफ़्ते हुए उप-चुनावों के नतीजों से साफ़ ज़ाहिर है. इन चुनावों में इमरान ख़ान की पार्टी ने सात सीटों पर चुनाव लड़कर छह में जीत हासिल कर ली थी. इमरान ख़ान ख़ुद को ये यक़ीन दिला सकते हैं कि उनके पास इतनी ताक़त है कि वो मुल्क के बाक़ी सभी सियासी दलों और फौजी तंत्र की मिली-जुली ताक़त का अकेले न सिर्फ़ मुक़ाबला कर सकते हैं, बल्कि जीत भी सकते हैं. अप्रैल में सत्ता से बेदख़ल किए जाने के बाद से इमरान ख़ान फौज को इस तरह सीधी चुनौती दे रहे हैं, जैसे पाकिस्तान में उनसे पहले किसी सियासी लीडर ने नहीं दी. लेकिन पाकिस्तान की फ़ौज अपने ख़िलाफ़ इमरान की मुहिम के आगे लाचार नज़र आ रही है. वो न तो इमरान ख़ान का कुछ बिगाड़ सकी है और न ही उन्हें ख़ामोश करा सकती है. इमरान को लेकर ख़ुद पाकिस्तानी फ़ौज में दरारें पड़ने की चर्चाएं गर्म हैं. इमरान ख़ान तो ये दावा भी करते हैं कि जनरल भले उनके ख़िलाफ़ हों, जनरलों के परिवार तक उनके साथ हैं. पाकिस्तान की न्यायपालिका का झुकाव भी इमरान ख़ान की तरफ़ ही दिख रहा है. इमरान ख़ान की पार्टी ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह और पंजाब में सरकारें भी चला रही है. पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले जम्मू-कश्मीर और गिलगित बाल्टिस्तान पर भी इमरान ख़ान की पार्टी का ही राज है. सोने पर सुहागा ये है कि इमरान ख़ान के पास अंधभक्तों की ऐसी फ़ौज है, जो उनके एक इशारे पर सड़कों पर उतरने को हमेशा तैयार रहती है.

पाकिस्तान के पास विकल्प और इमरान

इमरान ख़ान इस बार पूरी ताक़त लगाकर अपने पूरे समर्थकों के साथ इस्लामाबाद के लिए ‘लॉन्ग मार्च’ कर सकते हैं, ताकि वो ऐसे हालात बना सकें कि सरकार और फ़ौज जल्द चुनाव कराने को राज़ी हो जाएं. अगर इमरान ख़ान अपने लिए यही सियासी विकल्प चुनते हैं, तो पाकिस्तान के पास तीन ही विकल्प बचेंगे: या तो सरकार इमरान ख़ान के दबाव के आगे घुटने टेक दे और मुल्क को तबाह हो जाने दे; या फिर पाकिस्तान की हुकूमत पूरी ताक़त से इमरान ख़ान के लॉन्ग मार्च को कुचलने पर आमादा हो जाए और न सिर्फ़ इमरान ख़ान को जेल में क़ैद कर दे बल्कि उनकी पार्टी को भी तहस-नहस कर दे; और अगर बाक़ी सभी दांव नाकाम हो जाते हैं, तो पाकिस्तान की सियासत के ब्रह्मास्त्र को आज़माया जाए और फ़ौज तख़्तापलट करके हुकूमत सीधे अपने हाथ में ले ले और पाकिस्तान की हालत दुरुस्त करने की कोशिश करे. इस आख़िरी विकल्प को पाकिस्तान में पहले भी कई बार आज़माया जा चुका है. लेकिन, इससे हालात ठीक होने के बजाय और बिगड़ ही गए हैं. लेकिन, शायद पाकिस्तान को पूरी तरह से तबाह होने से बचाने के लिए यही एकमात्र रास्ता बचा है. क्योंकि देश में सियासी अस्थिरता से पाकिस्तान की माली हालत लगातार बिगड़ रही है और वहां के हालात श्रीलंका जैसे बनने में बस कुछ ही वक़्त और बचा है.

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Sushant Sareen

Sushant Sareen

Sushant Sareen is Senior Fellow at Observer Research Foundation. His published works include: Balochistan: Forgotten War, Forsaken People (Monograph, 2017) Corridor Calculus: China-Pakistan Economic Corridor & China’s comprador   ...

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