Published on Jul 31, 2023 Updated 0 Hours ago

इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत की मिसाइल नीति में बदलाव आ रहा है. लेकिन, अभी ये देखना बाक़ी है कि क्या परमाणु क्षमताओं वाली उसकी बैलिस्टिक मिसाइलें, उसके पारंपरिक डेटरेंस को आगे बढ़ाने के लिए हैं?

अग्नि प्राइम मिसाइल: क्या भारत की ‘मिसाइल नीति’ में बदलाव आ रहा है?

7 जून 2023 को भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने अग्नि प्राइम मिसाइल का सफल परीक्षण किया. हथियारों के ज़ख़ीरे में शामिल किए जाने से पहले किए गए इस मिसाइल परीक्षण की निगरानी, भारत की स्ट्रैटेजिक फ़ोर्स कमान ने की थी. अग्नि प्राइम मिसाइल ठोस ईंधन और सड़क के रास्ते ले जाई जा सकने वाली मध्यम रेंज (1200 से 2000 किलोमीटर) की मिसाइल है. भारत के इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल कार्यक्रम के ख़त्म होने से के बाद ये देश की पहली नई पीढ़ी की मिसाइलों में से एक है. ये भारत की अब तक की सबसे सटीक निशाना लगाने वाली मिसाइल है. अगर हम सिर्फ़ रेंज की बात करें, तो अग्नि प्राइम कोई नई छलांग नहीं है. क्योंकि अग्नि 5 पहले ही पांच हज़ार किलोमीटर से भी ज़्यादा दूर तक वार कर पाने में सक्षम है. हालांकि, जिस तरह अग्नि प्राइम के सटीक निशाना लगाने में सक्षम होने और इसकी नई पीढ़ी की क्षमताओं का दावा किया जा रहा है, इससे भारत पर नज़र रखने वाले विदेशी पर्यवेक्षकों की ये आशंका बढ़ गई है कि अब भारत परमाणु क्षमता के दम पर काउंटर फोर्स बनाने (युद्ध के दौरान दुश्मन के परमाणु ठिकानों पर सटीक निशाना लगाने) की दिशा में आगे बढ़ रहा है. हालांकि, ऐसी आशंकाओं को दूसरे जानकारों ने फ़ौरन ही ख़ारिज कर दिया है. इसमें परमाणु नीति का लंबा तजुर्बा रखने वाले विशेषज्ञ एश्ले टेलिस भी शामिल हैं. उन्होंने कहा कि अगर सिर्फ़ मिसाइलों के सटीक निशाना लगा सकने की क्षमता के आधार पर ये निष्कर्ष निकाला जा रहा है, तब तो ये और भी ग़लत है. मिसाल के तौर पर अमेरिका की काउंटर फ़ोर्स भूमिका के लिए समर्पित बैलिस्टिक मिसाइलें जैसे कि मिनटमैन II या फिर ट्राइडेंट D5 की सटीक निशाना लगाने की क्षमता तो इससे भी कम है, जितना दावा DRDO नई अग्नि प्राइम मिसाइल के बारे में कर रहा है. दूसरे विशेषज्ञों का मानना है कि दक्षिणी एशिया की घनी आबादी वाले केंद्रों और उनके सैन्य ठिकानों के क़रीब स्थित होने की वजह से न्यूक्लियर काउंटर फ़ोर्स की अवधारणा का कोई ख़ास मतलब है नहीं. इससे भी बड़ी बात ये कि अधिक सटीक निशाना लगाने की क्षमता और मिसाइलों के कैनिस्टराइज़ेशन- यानी परमाणु हथियार को मिसाइल के साथ ही लगाना- केवल अग्नि प्राइम मिसाइल तक सीमित नहीं है. क्योंकि अग्नि 5 मिसाइल भी कैनिस्टराइज़्ड है जिसकी निशाना लगाने की क्षमता बेहद सटीक (सिंगल डिजिट में होने) का दावा किया जाता है.

भारत ने चेतावनी दी थी कि अगर पाकिस्तान, उसके बंधक बनाए गए पायलट को बिना शर्त नहीं छोड़ता है, तो वो छह से 12 मिसाइलें पाकिस्तान पर दाग़ने को तैयार है. 2020 में चीन और भारत के बीच सीमा पर झड़पों के बाद भारत ने अपनी कई पारंपरिक मिसाइलों को वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के बेहद क़रीब तैनात किया है.

इस बहस के बावजूद, भारत ने हाल के वर्षों में दिखाया है कि वो पाकिस्तान और चीन दोनों को अपनी हद में रखने के लिए पारंपरिक हथियारों के इस्तेमाल को ज़्यादा तरज़ीह देता है. 2019 में पाकिस्तान में उस वक़्त हड़कंप मच गया था, जब भारत ने चेतावनी दी थी कि अगर पाकिस्तान, उसके बंधक बनाए गए पायलट को बिना शर्त नहीं छोड़ता है, तो वो छह से 12 मिसाइलें पाकिस्तान पर दाग़ने को तैयार है. 2020 में चीन और भारत के बीच सीमा पर झड़पों के बाद भारत ने अपनी कई पारंपरिक मिसाइलों को वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के बेहद क़रीब तैनात किया है. इनमें ब्रह्मोस और निर्भय क्रूज़ मिसाइलें (आधिकारिक रूप से ये परमाणु क्षमता से लैस नहीं है) भी शामिल थीं. भारत अपनी पारंपरिक मिसाइलों की क्षमता को बढ़ाने के लिए टैक्टिकल क़्वासी बैलिस्टिक मिसाइल जैसे कि 150 से 500 किलोमीटर रेंज वाली प्रलय मिसाइलों को भी ज़ख़ीरे में शामिल करने की कोशिश कर रहा है. इससे भी बड़ी बात ये कि ये पारंपरिक मिसाइलें, अब भारत की तीनों सेनाओं की कमान- इंटीग्रेटेड रॉकेट फोर्स– की निगरानी में तैनात की जाने वाली हैं. भारत ये क़दम कम से कम चीन की सेना की अपनी रॉकेट फ़ोर्स की नक़ल में उठाने जा रहा है (हालांकि रॉकेट फोर्स के अंतर्गत परमाणु हथियार नहीं आएंगे. वो स्ट्रैटेजिक फोर्स कमान की निगरानी में ही रहेंगे). निश्चित रूप से मीडिया की ख़बरें पहले ही ये दिखा रही हैं कि भारत ने परमाणु क्षमता से दुश्मन को भयभीत रखने की शक्ति दिखा दी है और अब वो अपनी पारंपरिक शक्ति को और मज़बूत बनाने पर काम कर रहा है.

वैसे तो संसाधनों की क्षमता में ये सुधार निश्चित रूप से भारत की ‘मिसाइल नीति’ की दिशा में आ रहे निर्णायक बदलाव की दिशा में इंगित कर रहा है. लेकिन, एक अहम सवाल ये है कि क्या अग्नि प्राइम मिसाइल अपने आप में एक मील का पत्थर साबित होने वाली है. 2021 के बाद से अग्नि प्राइम के हर परीक्षण के बाद विशेषज्ञों ने लगभग हर बार इसके एंटी-शिप मिसाइल बैलिस्टिक मिसाइल (ASBM) के तौर पर इस्तेमाल करने की संभावना की तरफ़ इशारा किया है. इसकी वजह से चीन के विश्लेषक ख़ास तौर से भारत के ऐसे किसी भी दावे के जवाब में ये कहते हैं कि भारत के पास उसकी DF-21D बैलिस्टिक मिसाइल का कोई जवाब नहीं है, क्योंकि ये मिसाइल पूरी तरह से एंटी शिप हमलों की भूमिका के प्रति समर्पित है (कहा जाता है कि ये अपने तरह की ऐसी पहली मिसाइल है). हाल के वर्षों में चीन की मिसाइलों के विकास और हिंद महासागर में उसकी बढ़ती मौजूदगी को देखते हुए, इस बात की काफ़ी संभावना है कि भारत के मिसाइल विचार में तेज़ी से परिवर्तन आए. निश्चित रूप से ये भारत के ही हित में होगा कि वो समुद्र में दुश्मन को डराने की क्षमता (Deterrent) को एक ऐसी विश्वसनीय मिसाइल से लैस करे, जिसे ज़मीन से भी दाग़ा जा सकता है. इससे भारत के उस एंटी-शिप क्रूज़ मिसाइल के ज़ख़ीरे को ताक़त मिलेगी, जिसका परीक्षण भारत ने पहले ही शुरू कर दिया है और जिसका प्रमुख हथियार ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल है. इसके साथ साथ DRDO की ये ऐतिहासिक रूप से आदत रही है कि वो ‘प्रोजेक्ट फोल्डिंग’ यानी एक मिसाइल का तकनीकी क्षमता के लिए प्रदर्शन करने के फ़ौरन बाद दूसरी मिसाइल की लॉबिइंग शुरू कर देता है, जो अपग्रेड वाली होती है. हमने DRDO की इस आदत की एक मिसाल तब देखी थी, जब उसने अग्नि 5 परीक्षण के फ़ौरन बाद अग्नि 6 मिसाइल की मंज़ूरी मांगनी शुरू कर दी थी. चूंकि DRDO ने पहले ही 1500 किलोमीटर रेंज वाली एंटी शिप पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइल की डिज़ाइन मंज़ूरी के लिए सितंबर 2022 में भारत सरकार के सामने रख दी है. इसलिए, इस बात की काफ़ी संभावना है कि अग्नि प्राइम मिसाइल के परीक्षण की सफलता ने एक नई मिसाइल विकसित करने के DRDO के दावे को और मज़बूती दी है.

(अभी तक) दोहरा इस्तेमाल नहीं

हालांकि, अग्नि प्राइम की सटीक निशाना लगाने की क्षमता का हवाला देकर ये दावा करना जल्दबाज़ी होगा कि इसका दोहरा (पारंपरिक और परमाणु हमले के लिए) इस्तेमाल किया जा सकता है. दुश्मन को भयभीत रखने की क्षमता का असरदार होना दुश्मन के क्षमताओं के आकलन और घोषित इरादों पर निर्भर करता है. भारत ने परमाणु हमले को लेकर दुविधा की स्थिति छोड़कर 2003 में अपनी स्पष्ट नीति घोषित की थी. इस दस्तावेज़ का प्रमुख तत्व, दुश्मन के परमाणु हमला करने की सूरत में तबाही लाने वाला भयंकर पलटवार करने की नीति है, जो युद्ध के दौरान परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की संभावना को लगभग ख़त्म कर देती है. इस वक़्त भारत के सामरिक समुदाय के जो जानकार, चीन की रॉकेट फ़ोर्स से निपटने के लिए भारत की तैयारी बेहतर बनाने की वकालत कर रहे हैं, उन्होंने भी बैलिस्टिक मिसाइलों के दोहरे इस्तेमाल के पक्ष में तर्क देने से परहेज़ किया है. क्योंकि भारत ने पारंपरिक और परमाणु हथियारों के इस्तेमाल को लेकर दुविधा वाले संकेत बढ़ाने पर ज़ोर दिया है. ये जानकार सक्रियता से इस बात की मुख़ालफ़त करते हैं कि चीन की रॉकेट फ़ोर्स (PLARF) की तरह भारत भी एटमी और पारंपरिक क्षमताओं का घालमेल करे. इसीलिए, ये दावा करना जल्दबाज़ी होगा कि अग्नि प्राइम मिसाइल (क्षमता होने के बावजूद) बैलिस्टिक मिसाइलों को पारंपरिक युद्ध की भूमिका में तैनात किए जाने के भारत के इरादों का संकेत देती है. जबकि ये स्पष्ट है कि ये मिसाइल परमाणु हमले के लिए तैयार की गई है. अगर हम ये मान भी लें कि अग्नि प्राइम को एक पारंपरिक एंटी-शिप मिसाइल के तौर पर विकसित किया गया है. तो भी अग्नि मिसाइलों की परमाणु हमले करने की क्षमता को लेकर जो माहौल बनाया गया है, उससे भारत के रुख़ में थोड़ी दुविधा तो पैदा होगी. इसके बाद, पहले एटमी हमला न करने की नीति पर चलने वाले दुश्मन देश को अग्नि मिसाइल लॉन्च करने के कुछ मिनटों के भीतर ही ये फ़ैसला करना होगा कि ये परमाणु हमला होगा या पारंपरिक मिसाइल हमला.

इस बात की काफ़ी संभावना है कि अग्नि प्राइम मिसाइल के परीक्षण की सफलता ने एक नई मिसाइल विकसित करने के DRDO के दावे को और मज़बूती दी है.

हालांकि, अगर भारत की नई इंटीग्रेटेड रॉकेट फोर्स (IRF) को पारंपरिक हमला करने में सक्षम अग्नि प्राइम मिसाइल पर नियंत्रण हासिल हो जाए, और वहीं, परमाणु हमला कर सकने वाली अग्नि प्राइम पर स्ट्रैटेजिक फोर्स कमान का ही नियंत्रण बना रहे, तब ये दुविधा कम हो जाएगी. निश्चित रूप से ये भारत की ‘मिसाइल नीति’ में आया सबसे बड़ा परिवर्तन होगा, क्योंकि 2003 में स्ट्रैटेजिक कमान फोर्स (SFC) के गठन के बाद से अब तक किसी और कमान को अग्नि मिसाइल का नियंत्रण हासिल नहीं हो सका है. इसके अलावा, तीनों सेनाओं को थिएटर कमान में बांटने के प्रयासों के साथ साथ, इंटीग्रेटेड रॉकेट फोर्स (IRF) अभी भी परिकल्पना के स्तर पर ही है, और आम तौर पर इसके बारे में तभी बात होती है, जब वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन को जवाब देने की चर्चा होती है (सबसे पहले दिवंगत जनरल बिपिन रावत ने 2021 में इसका ज़िक्र किया था). इस परिचर्चा में इस बात से इनकार नहीं किया गया था कि इंटीग्रेटेड रॉकेट फोर्स, एंटी शिप बैलिस्टिक मिसाइल (ASBM) तैनात नहीं करेगी. हालांकि, कुल मिलाकर जो ऐतिहासिक अनुभव रहे हैं, उनके आधार पर भारत- जो हमेशा से बहुत सावधानी से क़दम उठाता रहा है- को ये स्पष्ट करना होगा कि अग्नि प्राइम के एंटी शिप या पारंपरिक स्वरूप का विकास इंटीग्रेटेड  रॉकेट फोर्स के लिए किया जा रहा है या नहीं. इससे भारत जैसे देश के लिए ये दुविधा और भी कम हो जाएगी, जो 1998 में ख़ुद को एटमी ताक़त घोषित करने के बाद से लेकर अब तक, पारंपरिक इस्तेमाल के लिए बैलिस्टिक मिसाइलों के विकास से परहेज़ करता रहा है.

अगर हम ये मान भी लें कि अग्नि प्राइम को एक पारंपरिक एंटी-शिप मिसाइल के तौर पर विकसित किया गया है. तो भी अग्नि मिसाइलों की परमाणु हमले करने की क्षमता को लेकर जो माहौल बनाया गया है, उससे भारत के रुख़ में थोड़ी दुविधा तो पैदा होगी.

इन बातों को देखते हुए, भारत अपनी इस अस्पष्टता से फ़ायदा उठाते हुए भविष्य में अग्नि को दोहरे इस्तेमाल वाली मिसाइल बनाने के अवसर को भुना सकता है. इससे भारत की एटमी नीति में भी सुधार होगा (हालांकि इसकी संभावना न के बराबर है). क्योंकि, देश अपनी घोषित नीतियों से बंधे नहीं होते हैं और वो अपनी क्षमताओं के विकास के साथ साथ सामरिक विचारों में भी बदलाव लाते हैं. इसीलिए, भारत की न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन में भी परिवर्तन संभव है. हालांकि, फिलहाल इस बात के ज़रा भी सबूत नहीं हैं कि इस बदलाव की शुरुआत अग्नि प्राइम से होने वाली है. अग्नि मिसाइल परिवार, भारत के परमाणु परीक्षण करने और ख़ुद को एटमी ताक़त घोषित करने से भी एक दशक पहले के दौर का है. और, अग्नि 5 जैसी मिसाइलों के हवाले से DRDO पहले ही खुलकर ये कहता रहा है कि ये बेहद सटीक निशाना लगाने में सक्षम हैं (इसका मतलब ये है कि भारत द्वारा सटीक निशाना लगा पाने में सक्षम मिसाइलें बनाने की शुरुआत अग्नि प्राइम से नहीं हुई थी). इसके साथ साथ, चाहे सोच-समझकर किया गया हो या इत्तिफ़ाक से हुआ हो, DRDO ख़ुद भी अग्नि प्राइम के ताज़ा परीक्षणों के बाद भी खुलकर इसकी पारंपरिक हमले करने की क्षमताओं के बारे में बोलने से परहेज़ करता रहा है. जबकि अग्नि 5 मिसाइल की पारंपरिक हथियार ले जाने की क्षमता के बारे में DRDO खुलकर जानकारी देता रहा है. निश्चित रूप से अग्नि प्राइम के पहले किए गए परीक्षण के बाद भी भारत के रक्षा मंत्री ने दोहराया था कि किस तरह भारत की मिसाइलें, उसकी भरोसेमंद डेटरेंस क्षमता को मज़बूत बनाती हैं. इससे पता चलता है कि भारत, परमाणु हमले को लेकर अपनी पारंपरिक सोच पर क़ायम है. इसीलिए, भले ही पारंपरिक हमले के मामले में भारत की मिसाइल क्षमता में बढ़ोतरी  हो रही है. लेकिन, अभी ये खुलकर नहीं दिखाई दे रहा है कि उसकी परमाणु हमला करने में सक्षम प्रमुख मिसाइलों को जानबूझकर  पारंपरिक हमले की क्षमताओं के साथ जोड़कर देखने की ज़रूरत है.

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