Author : Ramanath Jha

Published on Aug 03, 2023 Updated 0 Hours ago
कैंट एरिया में बसे रिहायशी इलाकों का उन्मूलन: शहरी स्थानीय निकायों के लिए संदेश?

27 अप्रैल 2023 को रक्षा मंत्रालय ने हिमाचल प्रदेश में योल कैंटोनमेंट को खत्म करने के लिए एक अधिसूचना जारी की. इसके तहत, रक्षा मंत्रालय द्वारा, सेना के पूर्ण नियंत्रण वाली, सैन्य क्षेत्रों को अलग करके उन्हें ‘विशिष्ट सैन्य स्थान’ घोषित करने की एक समग्र योजना बनाई जाएगी. कैंटोनमेंट के क्षेत्र जो सैन्य स्थल से अलग कर दिए जाएंगे, उनका विलय, पड़ोसी शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) से कर दिया जाएगा. योल के साथ प्रारंभ की गई यह योजना, देश में सभी 62 कैंटोनमेंट्स पर लागू की जाएगी, जिनमें से 56 भारत की स्वतंत्रता से पहले स्थापित किए गए थे और छह 1947 के बाद. अजमेर, 1962 में घोषित आखिरी अधिसूचित कैंटोनमेंट थी.  

 हालांकि, ज़रूरी सुविधा मुहैय्या कराये जाने की विवशता के कारण, नागरिक जनसंख्या को कैंटोनमेंट्स/छावनी क्षेत्र में निवास करने की अनुमति मिलने लगी. वे छावनियों की आवश्यकताएं पूरी करने के लिए कई प्रकार की सहायक गतिविधियां प्रदान करते हैं.

62 कैंटोनमेंट्स देश भर में असामान्य रूप से फैले हुए हैं. सेना के उत्तरी कमांड के अंतर्गत केवल एक है; 4 पूर्वी कमांड, पश्चिमी कमांड में 13, दक्षिणी कमांड में 19, और 25 केंद्रीय कमांड के अंतर्गत स्थित हैं. इनके बारे में घोषणा की जा चुकी है कि ये ‘प्राचीन और औपनिवेशिक गुलामी के विरासत‘ के रूप है, जो ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा, प्लासी के युद्ध में जीत के बाद, भारत के कुछ हिस्सों पर शासन के `प्रतीक स्वरूप बनाए गए थे. जैसे-जैसे अंग्रेज़ों के नियंत्रण और शासन के क्षेत्र में विस्तार होता गया, वे और भी बहुत सारे सैन्य स्थान और कैंटोनमेंट्स बनाते गए. उनके इस स्थापना के पीछे के निहित प्राथमिक उद्देश्य, सैन्य टोलियों के निवास की व्यवस्था करना था. हालांकि, ज़रूरी सुविधा मुहैय्या कराये जाने की विवशता के कारण, नागरिक जनसंख्या को कैंटोनमेंट्स/छावनी क्षेत्र में निवास करने की अनुमति मिलने लगी. वे छावनियों की आवश्यकताएं पूरी करने के लिए कई प्रकार की सहायक गतिविधियां प्रदान करते हैं. समय के साथ, इनका भौतिक नक्शा स्पष्ट रूप से बंट गया, जिसमें एक तरह से एकीकृत होने के बावजूद मिलिटरी क्षेत्र, सिविल क्षेत्र और बाज़ार क्षेत्र में बंटे हुए थे. 

सिविल और कैंट एरिया में फर्क

सिविल क्षेत्रों को मुख्य सैन्य स्थानों से अलग करने का फैसला पारित करने के लिए कुछ समस्या सामने आ सकती है जिन्हें पार करना पड़ सकता है. कैंटोनमेंट्स को दो भागों में विभाजित करना, कई जगहों पर एक सरल प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन बाकी जगहों पर यह कठिन भी हो सकता है. सरल तरीके से विभाजित होने वाले वे स्थान हो सकते हैं जहां सिविल क्षेत्र और सैन्य स्थानों के बीच स्पष्ट अंतर किया गया हो. हालांकि, जहां ये क्षेत्र आपस में गुंथे हुए हैं, वहां इन प्रक्रियाओं में जटिलता आ सकती है और होनेवाले विभाजन को भी रोका जा सकता है. रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने दिल्ली और लखनऊ को दो ऐसे मुश्किल क्षेत्र के उदाहरण के रूप में चिन्हित किया था. 

सैन्य स्टेशनों के बिना यूएलबी में छावनियों को पूरी तरह से हटाने और उनके विलय के फायदे और नुकसान पर पहले भी बहस हुई है और इस तरह के कदम के विरोध और समर्थन दोनों में आवाज़ आयी है.

छावनियों का सम्पूर्ण प्रशासन वर्तमान में ‘विचारित नगरपालिका’ होने वाले कैंटोनमेंट बोर्ड के हाथ में है. अधिनियम, 2006 के अनुसार, बोर्ड में चुने गए प्रतिनिधि और पदाधिकारी तथा कैंटोनमेंट द्वारा नामित सदस्य शामिल होते हैं. कैंटोनमेंट के स्टेशन कमांडर, बोर्ड के अध्यक्ष और भारतीय रक्षा भू-संपदा सेवा (आईडीईएस) या रक्षा भू-संपदा संगठन के कोई अधिकारी, बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और सदस्य-सचिव होते हैं. बोर्ड का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है और इसे उनके आकार और जनसंख्या के आधार पर चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है. श्रेणी I कैंटोनमेंट्स या छावनी, जिनकी जनसंख्या 50,000 से अधिक हो,  श्रेणी II की जनसंख्या 10,000 से 50,000 तक, श्रेणी III की जनसंख्या 2,500 से 10,000 तक होने पर और श्रेणी IV की जनसंख्या 2,500 से कम होने तक रखी गई है.  कैंटोनमेंट एक मिलिटरी स्थान से भिन्न होता है – जो केवल सैन्य कर्मियों के उपयोग और निवास के उद्देश्य से समर्पित होता है और संभवतः किसी कार्यपालिका के आदेश के तहत स्थापित किया जाता है. विपरीत, कैंटोनमेंट एक ऐसा क्षेत्र होता है जो सैन्य और सिविल जनसंख्याओं को एकसाथ शामिल करता है. हालांकि, व्यावहारिक रूप से, कुछ कैंटोनमेंट्स या छावनी क्षेत्र में नागरिक जनसंख्या की उपस्थिति भी महसूस की जाती रही है. जैसा यूएलबी करते है, उसी तरह से, कैंटोनमेंट बोर्ड सार्वजनिक स्वास्थ्य, जल की आपूर्ती, स्वच्छता, प्राथमिक शिक्षा, और सड़क व बिजली जैसे नागरिक कर्तव्यों का पालन करती है. 

सैन्य स्टेशनों के बिना यूएलबी में छावनियों को पूरी तरह से हटाने और उनके विलय के फायदे और नुकसान पर पहले भी बहस हुई है और इस तरह के कदम के विरोध और समर्थन दोनों में आवाज़ आयी है. यह लेख भारत सरकार (GOI) के फैसले के प्रति एक निष्पक्ष दृष्टिकोण का प्रयास करता है, लेकिन मुख्य रूप से संबंधित यूएलबी पर गिरावट से संबंधित है जो विलय किए गए क्षेत्रों को नियंत्रित करना होगा. 

सैन्य कमांडरों के लिए, नागरिक क्षेत्रों का भेदन, उन्हें नागरिक कार्यों के बोझ से राहत दिलाएगा और उन्हें स्थानीय नागरिक जनसंख्या को सीधे तौर पर प्रभावित करने वाले ग़ैर-सैन्य विषयों पर निर्णय लेने की ज़िम्मेदारियों से बचाएगा. इन मुद्दों के द्वारा पहले ही उनका काफी समय लिया जा चुका था, जिसके परिणाम-स्वरूप, उनका उनके यानी प्रशिक्षण और युद्ध प्रस्तुति जैसे प्राथमिक कर्तव्यों, से ध्यान हट चुका था. अनेक बार सेना के अधिकारियों को स्थानीय राजनीति में व्यस्त पाया गया था, जिसके लिए उनके पास न ही ज़रूरी पृष्टभूमि थी, और न ही कोई औपचारिक प्रशिक्षण का अनुभव था. यह भी महसूस किया गया था कि अगर सेना को नियंत्रण मिल जाता है तो वो सैनिक प्रशासन की तरह की सख्त़ी से सिविल एरिया का भी संचालन करने लगेगा. 

इनमें से कुछ कैंटोनमेंट्स पहाड़ी पर्यटक स्थल पर स्थित है, और आने वाले समय में उनकी रौनक खो भी जाएगी ऐसी संभावना है, परंतु यह भी सत्य है कि कई कैंटोनमेंट एरिया की अर्थव्यवस्था में विकास की राह में आ रही बाधाओं के कारण भी नुकसान हुआ है.

कैंटोनमेंट में निवास करने वाले नागरिकों के दृष्टिकोण से देखा जाए तो, उन्हें संपत्ति धारकों पर लगाए गए अत्यंत प्रतिबंधक नियमों से राहत मिलेगी, विशेष रूप से ग्रांट और लीज़ और निर्माण पर कठोर प्रतिबंध और संपत्ति के स्वामित्व और स्थानांतरण की प्रक्रिया के संबंध में. सिविल जनसंख्या को अब परेशानी वाले सड़क बंदी से भी राहत मिलेगी, जिनसे नागरिक आबादी को आवाजाही में बड़ी तकलीफ़ होती थी. सिविल आबादी को अब भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा प्रायोजित उन सोशल वेलफेयर योजनाओं के इस्तेमाल का अधिकार होगा, जो उस वक्त़ उनको प्राप्त नहीं होती थी जब वो कैन्टोनमेंट के अंग हुआ करते थे.चूंकि रक्षा मंत्रालय का एक गैर-योजना क्षेत्र में होने के कारण, विकास से जुड़ा फंड कैन्टोनमेंट तक नहीं पहुँच पाता था.    

छावनियों के खत्म होने पर चिंता

कुछ स्थानों में इस बारे में चिंताएं व्यक्त की गई हैं कि कैंटोनमेंट क्षेत्रों को यूएलबी में सम्मिलित करने से, संभवतः अनियंत्रित निर्माण और वाणिज्यीकरण में एक आकस्मिक वृद्धि होगी. इनमें से कुछ कैंटोनमेंट्स पहाड़ी पर्यटक स्थल पर स्थित है, और आने वाले समय में उनकी रौनक खो भी जाएगी ऐसी संभावना है, परंतु यह भी सत्य है कि कई कैंटोनमेंट एरिया की अर्थव्यवस्था में विकास की राह में आ रही बाधाओं के कारण भी नुकसान हुआ है. उदाहरण के लिये, 2011 की जनगणना ये पता चला कि पुणे कैंटोनमेंट ने 2001 से 2011 तक 8,000 से अधिक लोगों की आबादी खो दी थी. उसी तरह, औरंगाबाद कैंटोनमेंट ने इसी दौरान 1,121 व्यक्तियों की संख्या खो दी और दिल्ली कैंटोनमेंट ने भी इसी दौरान 14,566 व्यक्तियों की जनसंख्या खोयी. स्पष्ट है कि इन क्षेत्रों में शहरीकरण के विकास की प्रक्रिया को बेतरह बाधित किया गया था और कैंटोनमेंट के भीतर व्याप्त प्रतिबंधों की वजह से इन कैंट शहरों पर जनसंख्या और माहौल का दबाव बढ़ रहा था, जिनके अंदर वे खुद को घिरा हुआ पाते थे. 

सम्मिलित क्षेत्रों में संपत्ति धारकों को राहत मिलेगी, क्योंकि अब उनके ऊपर भी नगर निगम कानून लागू होगी. इसलिए, उन्हें अधिक निर्माण करने का अवसर मिलेगा और स्थानीय प्रक्रियाएं निर्णय लेने की गति को तेज़ी प्रदान करेंगी. एकीकरण या विलय संभवतः निर्माण और आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिबंध वाले नियमों को हटाने के लिए प्रेरित करेगा और इन क्षेत्रों में अधिक शहरीकरण को प्रोत्साहित करने के लिए एक प्रेरणात्मक गति प्रदान करेगा. इससे नगर निगम को कुछ राजस्व भी प्राप्त होगा, लेकिन इस प्रक्रिया में पर्यावरण पर भी कुछ प्रभाव पड़ सकता है. निर्माण को अनुमति देने के दौरान, नगर निगमों (यूएलबी) को ध्यान देने की आवश्यकता होगी कि निर्माण सैन्य कानून का पालन करे, जो रक्षा कार्यों के 1,000 गज के भीतर निर्माण को निषेध घोषित करता है. 

हालांकि, कैंटोनमेंट क्षेत्रों के नागरिक क्षेत्रों को यूएलबी में सम्मिलित करने का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि सामान्य रूप से नगर निगम अधिक आवश्यकता पूर्ण सेवा मानकों को पूरा करने में समर्थ नहीं होंगे. सिविल सेवाओं की गुणवत्ता में संभवतः सुधार नहीं ही होगी; न ही इन नागरिकों को बेहतर शासन भी मिलने की संभावना है. शहरें पहले ही अपने क्षेत्रों में इन सुविधाओं को पहुंचा पाने के लिए संघर्षरत है. उनके पास कर्मचारियों की कमी है; उनकी वित्तीय स्थिति अनिश्चित और क्षमताएं सीमित हैं. नए क्षेत्र अपर्याप्त राजस्व लाने वाले हैं और राज्य शहरों की मदद करने को लेकर उत्साही नहीं हैं. पुराने पंचायत सदस्य भी अपने राजनीतिक निर्वाचन क्षेत्र के हिस्सों का कोष, नए क्षेत्रों को देने के लिये तैयार नहीं होंगे. भविष्य के विलय ने एक और प्रमाण दिया है कि शहरों को अपने खुद के दम पर नहीं छोड़ा जा सकता है, और भारत सरकार और राज्यों को इन बढ़ते वित्त-विहीन शहरों को धन प्रदान करने के लिए आगे आने की ज़रूरत पड़ेगी. 

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