Author : Don McLain Gill

Published on Apr 14, 2023 Updated 0 Hours ago

एशिया में लोकतंत्र का एक मिला-जुला रूप दिखता है लेकिन थाईलैंड अभी भी एक "कमज़ोर लोकतंत्र" है.

थाईलैंड में राजनीतिक-आर्थिक सुधार की ओर एक कठिन रास्ता

20 मार्च को थाईलैंड की संसद को भंग कर दिया गया और इसके साथ ही 14 मई को चुनाव की दिशा तय हो गई. थाईलैंड में संसद भंग होने के 45 से 60 दिनों (क़रीब दो महीने) के भीतर चुनाव कराना ज़रूरी है. वर्तमान समय में थाईलैंड नागरिकों के विरोध प्रदर्शनों का सामना कर रहा है क्योंकि लोग मौजूदा प्रधानमंत्री प्रयुत चान--चा के अर्ध-सैन्य नेतृत्व को समाप्त करने की मांग कर रहे हैं. प्रधानमंत्री पद के लिए मुक़ाबले में खड़ी सबसे रहस्यमय राजनीतिक उम्मीदवार पेटोंगटार्न शिनावात्रा हैं जो पूर्व प्रधानमंत्री थाकसिन शिनावात्रा की बेटी और थाईलैंड की पहली महिला प्रधानमंत्री यिंगलक चिनावाट की भतीजी हैं. इन दोनों पूर्व प्रधानमंत्रियों को क्रमश: 2006 और 2014 में सैन्य विद्रोह के दौरान सत्ता से बेदखल कर दिया गया था. इस तरह की व्यवस्था को देखते हुए थाईलैंड की राष्ट्रीय राजनीति के भविष्य के संदर्भ में काफ़ी कुछ दांव पर लगा हुआ है

राष्ट्रीय आर्थिक अस्थिरता के बीच आगे बढ़ती फ्यू थाई पार्टी

थाईलैंड की समकालीन घरेलू राजनीति की स्थिति जटिलताओं और चुनौतियों से भरी हुई है जो युवाओं की आवाज़ और निर्णय लेने की क्षमताओं को सीमित करती है. वास्तव में लोकतंत्र पर नज़र रखने वाले प्रमुख ट्रैकर्स जैसे कि इकोनॉमिस्ट की डेमोक्रेसी इंडेक्स 2022 ने दक्षिण-पूर्व एशिया के इस देश कोकमज़ोर लोकतंत्रकी सूची के निचले हिस्से वाले देशों में रखा है. थाईलैंड ने 1932 से लेकर अब तक कम-से-कम 12 सैन्य विद्रोहों को झेला है और यहां की विधायिका थाई सेना और राज घराने के वफ़ादारों के हितों के अनुसार बनी है. थाईलैंड पर असर डालने वाले कई महत्वपूर्ण मुद्दों में से अर्थशास्त्र के क्षेत्र को सबसे अहम के रूप में देखा जाता है. रहन-सहन की ऊंची लागत, नौकरी के अवसरों की सीमा, सीमित मज़दूरी, पारिवारिक कर्ज़ और एक लड़खड़ाती राष्ट्रीय विकास दर उन कुछ सामाजिक-आर्थिक दुविधाओं में से है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से थाईलैंड के लोगों को प्रभावित कर रही है. 

थाईलैंड पर असर डालने वाले कई महत्वपूर्ण मुद्दों में से अर्थशास्त्र के क्षेत्र को सबसे अहम के रूप में देखा जाता है. रहन-सहन की ऊंची लागत, नौकरी के अवसरों की सीमा, सीमित मज़दूरी, पारिवारिक कर्ज़ और एक लड़खड़ाती राष्ट्रीय विकास दर उन कुछ सामाजिक-आर्थिक दुविधाओं में से है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से थाईलैंड के लोगों को प्रभावित कर रही है.

इसके परिणामस्वरूप मुक़ाबले में मौजूद दल जनता का समर्थन हासिल करने के लिए अपनी योजनाओं और अपने संभावित प्रशासन की रूपरेखा के बारे में ख़ूब छानबीन कर रहे है. उप प्रधानमंत्री प्रवित वोंगसुवान के नेतृत्व में सत्ताधारी पलंग प्रचारथ पार्टी (PPRP) ने राज्य कल्याण कार्ड के तहत मासिक भत्ता बढ़ाकर 700 बहत करने की अपनी प्रतिबद्धता को विशेष रूप से दर्शाया है जबकि प्रयुत के नेतृत्व में बनी नई पार्टी यूनाइटेड थाई नेशन पार्टी (UTNP) ने इससे भी ज़्यादा 1,000 बहत के भत्ते का ऐलान किया है. इस तरह के वादों के साथ निवर्तमान प्रधानमंत्री ने ये भी संकल्प लिया है कि सत्ता में फिर से वापसी करने पर वो एक मददगार और स्थिर राजनीतिक माहौल को आसान बनाएंगे. लेकिन हाल के दिनों में चुनाव से पूर्व हुए सर्वे के आधार पर प्रयुत के प्रति लोगों की राय अभी भी ख़राब बनी हुई है. इसके विपरीत उसी सर्वे के आधार पर पेटोंगटार्न को सबसे लोकप्रिय उम्मीदवार के तौर पर देखा जा रहा है

एक ताक़तवर राजनीतिक परिवार से आने वाली पेटोंग टार्न को थाईलैंड की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी फ्यू थाई के तीन में से एक उम्मीदवार के रूप में मनोनीत किया गया था. बहुत ज़्यादा राजनीतिक अनुभव की कमी के बावजूद पेटोंग टार्न लोगों का समर्थन हासिल करने में कामयाब रही हैं. इसकी वजह सिर्फ़ उनके पिता की विरासत है बल्कि इसका एक कारण उनके द्वारा ख़ुद को थाईलैंड की राजनीति में एक बेहद ज़रूरी सुधारवादी ताक़त के संकेत के रूप में पेश करने की क्षमता भी है. पेंटोगटार्न ने बीमार राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को फिर से ज़िंदा करने के लिए और थाईलैंड की युवा आबादी को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए अपने अभियान को जनवादी लोकतांत्रिक नीतियों के साथ जोड़ने का प्रयास किया है. इसके अनुसार फ्यू थाई ने स्नातक की डिग्री रखने वाले कामगारों को न्यूनतम 25,000 बहत का वेतन मुहैया कराने का वादा किया है. इसके अलावा, पार्टी ने अपनी उस योजना को ज़मीन पर उतारने का संकेत भी दिया है कि अगर मई के चुनाव में वो जीत हासिल करती है तो थाईलैंड की अर्थव्यवस्था के हालात को सुधारने के लिए 500 अरब बहत देगी

थाई राजनीति की वास्तविकता और फ्यू थाई के लिए चुनौतियां

हालांकि जनता के सामाजिक-आर्थिक बोझ को कम करने के लिए फ्यू थाई के द्वारा आगे बढ़ाई गई सरकार के नेतृत्व में इस तरह की महत्वपूर्ण नीतिगत योजनाओं के बावजूद ऐसे आर्थिक जनवादी वादों की बुनियाद अस्थायी समाधान की तरफ़ इशारा करते हैं जो कि कर्ज़ के बोझ से दबे नागरिकों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहन दिए बिना सीमित राहत प्रदान करेंगे. सरकार के नेतृत्व में मुहैया कराई जाने वाली मदद पर इस तरह की उल्लेखनीय निर्भरता और अधिक दीर्घकालीन सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का निर्माण कर सकती है क्योंकि इस बात की संभावना है कि देश के नेता जनता की भलाई के लिए प्रावधान करने के ख़िलाफ़ और प्रभावहीन बन सकते हैं. इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण बात ये है कि पेटोंग टार्न की उम्मीदवारी और फ्यू थाई की लोकप्रियता को लेकर सकारात्मक स्थिति के बावजूद थाईलैंड की घरेलू राजनीतिक प्रणाली की वास्तविकताएं उन व्यापक चुनौतियों को स्पष्ट करती हैं जो फ्यू थाई पार्टी की आसान जीत की राह में अड़चन डाल सकती है. शिनावात्रा परिवार से शासक वर्ग और सेना नफ़रत करती है. 2011 में जब यिंगलक प्रधानमंत्री के तौर पर निर्वाचित हुई थी तो उनके शासन के ख़िलाफ़ एक सामान्य आरोप ये था कि वो थाकसिन शिनावात्रा की महज़ एक कठपुतली हैं. पेटोंग टार्न की उम्मीदवारी को भी उसी तरह से देखा जा रहा है. इसके परिणामस्वरूप थाईलैंड में सेना समर्थक गठबंधन का प्रभाव मज़बूत बना हुआ है और उसे कमज़ोर नहीं समझा जाना चाहिए

अगर फ्यू थाई पार्टी चुनाव से पहले के सर्वे में बढ़त बनाए रखती है तो उसकी जीत केवल निचले सदन के मतों पर बल्कि सेना के द्वारा मनोनीत 250 सीनेटर के मतदान के नतीजों पर भी निर्भर करेगी. इस तरह जीत तब हासिल होगी जब फ्यू थाई और उसके गठबंधन को सरकार बनाने के लिए कुल सीटों में से 75 प्रतिशत पर विजय मिलेगी और सेना की मनोनीत सीटों से ये गठबंधन आगे बढ़ेगा. संसदीय व्यवस्था में ये बदलाव थाईलैंड के 2017 के संविधान का नतीजा है जिसके तहत अगली संसद के आयोजित होने से पांच साल तक के लिए संभावित प्रधानमंत्री को चुनने के संबंध में सीनेट को महत्वपूर्ण शक्तियां दी गईं. दिलचस्प बात ये है कि प्रयुत की अगुवाई वाली राष्ट्रीय शांति एवं व्यवस्था परिषद (NCPO) के साथ समन्वय करके प्रवित की अध्यक्षता में एक 10 सदस्यों की समिति ने सीनेट के ज़्यादातर सदस्यों को चुना

थाईलैंड की राष्ट्रीय राजनीति की उथल-पुथल वाली गतिशीलता फ्यू थाई के लिए काफ़ी हद तक सेना समर्थक गठबंधन के द्वारा प्रभावित राजनीतिक व्यवस्था की यथास्थिति को तोड़ने में एक चुनौती के रूप में काम करती है.

इसके अलावा, उस दुर्लभ परिदृश्य में जब सेना समर्थक गठबंधन पर फ्यू थाई ज़बरदस्त जीत हासिल करती है तो उसे सावधानीपूर्वक आगे बढ़ना होगा क्योंकि और अधिक अस्थिरता की आशंका है, विशेष रूप से पेटोंगटार्न के प्रधानमंत्री के रूप में चुने जाने पर. ISEAS-यूसोफ़ इशाक इंस्टीट्यूट के थाईलैंड स्टडीज़ प्रोग्राम के विज़िटिंग फेलो डॉ. नपोन जतुश्रीपितक के अनुसार सेना समर्थक गठबंधन को फ़ायदा पहुंचाने के लिए चुनाव से पहले या चुनाव के बाद पार्टी में टूट की संभावना बनी हुई है. इसी संदर्भ में फ्यू थाई की जीत और शासन व्यवस्था में उसका प्रभाव काफ़ी हद तक सीनेट को संतुलित करने के लिए बड़े अंतर से जीत की उसकी क्षमता पर निर्भर करेगा. इसलिए भविष्य के राजनीतिक परिदृश्य की अनिश्चितता के अलावा इस तरह की महत्वपूर्ण अस्थिर चीज़ों का मेल फ्यू थाई पार्टी के लिए आने वाले समय में चुनौतीपूर्ण काम और थाईलैंड में विचारणीय लोकतांत्रिक, राजनीतिक एवं आर्थिक सुधार का नेतृत्व करने की उसकी इच्छा को स्पष्ट करता है

निष्कर्ष

थाईलैंड की राष्ट्रीय राजनीति की उथल-पुथल वाली गतिशीलता फ्यू थाई के लिए काफ़ी हद तक सेना समर्थक गठबंधन के द्वारा प्रभावित राजनीतिक व्यवस्था की यथास्थिति को तोड़ने में एक चुनौती के रूप में काम करती है. वैसे तो पेटोंगटार्न के नामांकन को जनता के द्वारा एक सकारात्मक और स्वागत योग्य घटनाक्रम के रूप में देखा जा रहा है, वहीं उनकी जीत की संभावना यथास्थिति वाली व्यवस्था के फ़ायदे के लिए मौजूदा निर्विवाद राजनीतिक तत्वों की श्रृंखला पर निर्भर करेगी. इसलिए जहां राजनीतिक-आर्थिक सुधार महत्वपूर्ण है वहीं इस बात की संभावना कम है कि सेना के प्रभाव को काफ़ी हद तक कम किए बिना विपक्ष के द्वारा इस तरह के बदलावों को अचानक किया जा सकता है

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