2023 में थाईलैंड में आयोजित हुई आम चुनाव देश के राजनीतिक परिदृश्य में काफी मायने रखता है, जहां मतदाताओं ने देश के भविष्य को बेहतर आकार देने के लिए अपने लोकतान्त्रिक अधिकारों का इस्तेमाल किया. बैंकॉक में, इस समय हर एक दिशा में उल्लास का माहौल है. लगभग एक दशक एक बाद, बुजुर्ग और युवाओं, दोनों ने ही, मूव फॉरवर्ड पार्टी (एमएफपी) पार्टी – जिसे युवाओं के नेतृत्व वाली पार्टी कहा जाता है उसको अपना वोट दिया है, जिन्होंने सबसे ज्य़ादा सीटें और कुल मत का एक बड़ा हिस्सा हासिल किया है.
23% संसदीय सीटों पर जीत प्राप्त करके, इनके काफी नज़दीक हैं लोकप्रिय फेऊ थाई पार्टी. 15 मई तक सारे वोटों की गिनती हो चुकी थी, और चुनाव आयोग के पोर्टल पर डाले गए शुरुआती परिणाम से ये साफ था कि 147 सीटों वाली निचले सदन में, एमएफपी को, ज्य़ादा सीटों के साथ, बहुमत मिलने के आसार है. कुल 147 सीटों में से, 112 सीटें सीधे तौर पर निर्वाचित होने वाली सीटें थीं और 35 सीटें पार्टियों को 100 सीटों के आनुपातिक आवंटन से दी जाने वाली सीटें थीं. फेऊ थाई पार्टी ने संसद में कुल 138 सीटें प्राप्त कीं, जिनमें से संसदीय क्षेत्रों में सीधे तौर पर निर्वाचित हुए और अतिरिक्त 27 सीट पार्टियों के आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था द्वारा अर्जित किए गए. इस आनुपातिक सीट काउंट ने फेऊ थाई पार्टी की स्थिति को राजनीतिक गलियारे में काफी महत्वपूर्ण बना दिया है.
थाईलैंड के जटिल राजनीतिक समीकरण और बहुत ज्य़ादा समावेशी और प्रतिनिधित्व वाले शासन की चाहत की वजह से, इस चुनाव को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी गंभीरता से लिया जा रहा था.
थाईलैंड में भांग को वैध किये जाने की वकालत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की वजह से, भूंमजाईथाई पार्टी को तीसरा स्थान प्राप्त हुआ है. मौजूद सत्तारूढ़ गठबंधन के सदस्य के तौर पर, भूंमजाईथाई पार्टी को संसद में लगभग 70 सीटों मिलने वाली थी. प्रधानमंत्री प्रयुत चान-ओ-चा के नेतृत्व वाली यूनाइटेड थाई नैशन पार्टी, जो सन 2014 में मिलिट्री तख्त़ा पलट के ज़रिए सत्ता पर आयी, उसने 36 सीटों के साथ पांचवा स्थान प्राप्त किया. प्रयूथ की पूर्व पार्टी पलंग प्रचारथ, ने लगभग 40 सीटों के साथ चौथा स्थान प्राप्त किया था.
थाईलैंड के जटिल राजनीतिक समीकरण और बहुत ज्य़ादा समावेशी और प्रतिनिधित्व वाले शासन की चाहत की वजह से, इस चुनाव को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी गंभीरता से लिया जा रहा था.
बदलाव के कारक
राजनीतिक सुधार की आकांक्षा ने, चुनाव का माहौल बना पाने में एक प्रमुख कारक की भूमिका अदा की. कई मतदाताओं ने प्रयुत चान – ओ – चा प्रशासन के खिलाफ़ अपनी असंतुष्टि व्यक्त की और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति आदर, पारदर्शिता और ज्य़ादा जवाबदेही की मांग की. उन्होंने संवैधानिक फेरबदल, भ्रष्टाचार से निपटारा, सामाजिक-आर्थिक असमानता, और मानवाधिकारों का संरक्षण जैसे क्षेत्रों में सुधार की मांग की. चुनाव में प्रगतिशील मूव फॉरवर्ड पार्टी (एमएफपी) एक प्रमुख शक्ति के तौर पर उभर कर सामने आयी. युवा राजनेताओं की पीढ़ी के नेतृत्व में, एमएफपी, साहसिक सुधार, के साथ-साथ राजतंत्र की पुनःव्याख्या, सैन्य प्रभुत्व में कमी, संविधान को दुबारा लिखे जाने, और उसके नाम के बदले जाने की मांग करता है. पार्टी द्वारा इन मुद्दों पर दिए जा रहे ज़ोर, से कई युवा मतदाता सहमत हैं, जो देश में बदलाव और विकास का काफी बेसब्री से सपना देख रहे हैं.
एमएफपी के नेता श्री पीटा लिम्जारोएनरत के अनुसार, बहुत जल्द एक गठबंधन तैयार होने वाला था. ये गठबंधन, 309 संसद सदस्यों के साथ, नई स्थापित दल समेत पाँच पूर्व विरोधी दलों को एक साथ लाने वाला था. प्रधानमंत्री का पद प्राप्त करने की अभिलाषा के साथ, ऐसी संभावना थी कि, पीटा नई सरकार का गठन कर पाएंगे. पारदर्शिता लाने और चुनावी कैंपेनों के दौरान किए गये वादों को पूरा करने की नीयत के साथ, शामिल सभी दल, आपस में सहमति पूर्वक समझौते का एक मसौदा (मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग– एमओयू) तैयार करना चाहते थे. ये समझौता – न केवल उनके बीच, बल्कि आबादी की काफी बड़ी संख्या के मध्य, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु, एक ज़रिया का कार्य करती.
आगे की अनिश्चितता से पार पाना
थाईलैंड की संसद और संविधान थाईलैंड शासन की दिशा तय करने और राजनीतिक गलियारे को परिभाषित करने में उल्लेखनीय भूमिका अदा करती है. सन् 2017 में अपनाए गए, वर्तमान संविधान में, थाई संसद की बनावट और संरचना में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए. इस संविधान के अंतर्गत, थाईलैंड एक द्वी-सदनीय प्रणाली के तहत काम करता है जिसमें प्रतिनिधि सभा और सीनेट शामिल है .
प्रतिनिधियों का सदन 500 सीटों से बना है, जिसमें सदस्यों को मिश्रित-सदस्य आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के माध्यम से चुना जाता है. इन सीटों में से, 350 सीटें, निर्वाचन क्षेत्र आधारित मतदान द्वारा तय की गई है, जबकि शेष बची हुई 150 सीटों का वितरण, पार्टी सूची आनुपातिक प्रतिनिधित्व आधार पर की गई है. प्रतिनिधि सभा अपने पास प्रमुख संसदीय शक्ति रखती है और कानून पारित करने और सरकारी नीतियों की जांच के लिए ज़िम्मेदार है.
हालांकि, थाई पार्लियामेंट में सीनेट की भूमिका काफी अहम है, चूंकि यह प्रतिनिधि सभा की शक्ति पर नियंत्रण के रूप में कार्य करता है. सीनेट उन 250 सदस्यों से बनती है, जिन्हें सीधे सीधे जनता द्वारा नहीं चुना जाता है. इसके बजाय, उन्हें विभिन्न संस्था और संस्थानों द्वारा चुना जाता है जिसमें मिलिट्री, न्यायपालिका, और व्यावसायिक निकायों को भी शामिल किया जाता है. यह संरचना बहस और आलोचना का विषय रही है, क्योंकि इसे सेना के लिए राजनीतिक प्रक्रिया पर प्रभाव डालने के लिए एक अवसर के रूप में देखा गया है.
थाईलैंड की संसद और संविधान थाईलैंड शासन की दिशा तय करने और राजनीतिक गलियारे को परिभाषित करने में उल्लेखनीय भूमिका अदा करती है.
थाई संसद में सीनेटरों की बहाली में मिलिट्री की भूमिका विशेष तौर पर दृष्टव्य है. 2017 का संविधान, जिसे सैन्य शासन के दौरान ड्राफ्ट किया गया था, नियुक्ति प्रक्रिया पर सेना का महत्वपूर्ण प्रभाव प्रदान करता है. जूनटा द्वारा नियुक्त नेशनल काउंसिल फॉर पीस एंड ऑर्डर (एनसीपीओ), जिसने 2014-2019 के दौरान थाईलैंड पर राज किया, ने सीनेटर्स की एक संख्या का चुनाव किया. आलोचकों ने प्रतिनधि शासन के लोकतान्त्रिक सिद्धांत की इस तरह से की गई दमन का विरोध किया, उन्होंने नियुक्ति प्रक्रिया की निष्पक्षता और ईमानदारी पर सवाल खड़े कर इसको लेकर चिंता भी जतायी.
हालांकि जुलाई 2019 में नए मंत्रिमंडल के उद्घाटन के बाद एनसीपीओ को आधिकारिक रूप से बंद कर दिया गया था, लेकिन इसकी विवेकाधीन शक्तियों को आंतरिक सुरक्षा संचालन कमान को सौंप दिया गया था, जिसकी अध्यक्षता वर्तमान में प्रधानमंत्री कर रहे हैं.
संविधान में संशोधन और सैन्य प्रभाव को कम करने के प्रयासों को, रूढ़िवादी समूह विरोध किया गया. इसके अलावा वे लोग जो कि मिलिट्री समर्थित सत्ता के साथ गठबंधन में थे उन्होंने भी इसका प्रतिरोध किया. इन सब चुनौतियों के बावजूद, विरोधी दल और लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं द्वारा समावेशी और प्रतिनिधि राजनीतिक सिस्टम के लिए जरूरी संवैधानिक सुधार की मांग जारी है. नई गठबंधन की सरकार, इस बदलाव को प्राप्त कर पाएगी या नहीं ये देखना काफी महत्वपूर्ण होगा.
सकारात्मक पहल
प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के लिए ज़रूरी 376 मतों के लिए, सीनेट द्वारा गठित गठबंधन की संभावित अस्वीकृति के संबंध में किए गए प्रश्न पर, बोलते हुए प्रधानमंत्री लिम्जरोएनरत ने आशा जताते हुए किसी प्रकार की चिंताओं को खारिज किया. उन्होंने कहा कि सीनेट द्वारा इस जनादेश का किये जा रहे विरोध का पार्टी को कोई भी चिंता नहीं है, क्यों उन्हें इस बात का पूरा यक़ीन है कि जनता ने उन्हें संपूर्ण बहुमत दी है. पीटा के अनुसार, पार्टी को इस बात का पूरा भरोसा है कि सीनेट, जनता की इच्छा के साथ खुद को जोड़ना चाहेगी और उनके गठबंधन को अपना समर्थन प्रदान करेगी.
इसी तरह से, थाई क्रिमिनल कोड की सबसे विवादास्पद धारा 112 में संशोधन के मसले पर, जिसे लेसे – मजेस्टे’ के नाम से जाना जाता है, जिसमें ऐसे कोई भी व्यक्ति द्वारा देश के अपमान, अवमानना, या राजतंत्र के प्रति ख़तरा के लिए दोषी पाये जाने पर, बिना किसी पूर्व सूचना अथवा नोटिस के, 3-15 वर्षों तक के सश्रम कारावास का प्रावधान है, पीटा ने इस धारा में परिवर्तन किए जाने को लेकर जारी वार्ता के बारे में सूचित किया है.
विदेशी नीति के नज़रिये से देखा जाए तो, नवगठित सरकार में पीटा और श्रेथा जैसे शिक्षित और आदरणीय नेताओं का शामिल होना, थाईलैंड के लिये उल्लेखनीय परिवर्तन ला पाने में समर्थ होगी.
विदेशी नीति के नज़रिये से देखा जाए तो, नवगठित सरकार में पीटा और श्रेथा जैसे शिक्षित और आदरणीय नेताओं का शामिल होना, थाईलैंड के लिये उल्लेखनीय परिवर्तन ला पाने में समर्थ होगी. इन बदलावों से मानवाधिकार और जलवायु परिवर्तन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने में मदद मिलेगी, और थाईलैंड के भीतर व्याप्त ट्रांसनेशनल क्राइम नेटवर्क से निपटने में सहायक सिद्ध होगी. फेऊ थाई और एमएफपी आदि सभी ने मिलकर थाईलैंड के 5जी इंफ्रास्ट्रक्चर, सरकारी सेक्टरों में डिजिटल और टेक्नोलॉजी समावेश का अभियान तेज़ी से शुरू करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता, और डिजिटल इकॉनमी की मदद से लघु और मध्यम उद्यम के लाभान्वित होने को दोहराया है. इस बाबत ने एक तरफ जहां थाईलैंड ने चीन के हुआवेई टेक्नोलॉजी के साथ गठबंधन किया है, वहीं चुनावी नतीजे, और नेतृत्व में संभावित परिवर्तन ने अमेरिका और भारत के लिये इन संवेदनशील क्षेत्रों में थाईलैंड के साथ गठबंधन बनाकर, प्रांतीय डिजिटल फ्रेमवर्क और मानक के निर्माण में साझीदार बनने का नया अवसर तैयार किया है.
हालांकि, ये ध्यान देना काफी ज़रूरी है कि एक तरफ जहां नये चुने गए नेताओं के किए वादे और उनके मंतव्यों ने जहां संभावित विदेश नीति परिवर्तन के लिए एक मंच तैयार कर दिया है, वहीं इसका असल अमलीकरण और उसके परिणामों को देखा जाना अब भी बाकी हैं. जटिल अंतरराष्ट्रीय संबंध, कूटनीतिक विचार, और विभिन्न हितों का संतुलन, आने वाले वर्षों में थाईलैंड की विदेश नीति के मार्ग को दशा और दिशा प्रदान करेगी.
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