शहरी नियोजन के कार्य में टेक्नोलॉजी ने हमेशा अपनी एक उल्लेखनीय भूमिका निभाई है. हाल के दशकों में डिजिटलीकरण, सॉफ्टवेयर और कंप्यूटर की सहायता से डिजाइन बनाए जाने के माध्यम से प्रौद्योगिकी ने शहरी नियोजन के क्षेत्र में अपने महत्व को बेहतर तरीक़े से प्रदर्शित किया है.
शहरी नियोजन में टेक्नोलॉजी का उपयोग कोई नई बात नहीं है, यह हमेशा से ही होता आया है. सिंधु घाटी सभ्यता (3300 से 1300 ईसा पूर्व) में शहरों के निर्माण के लिए सर्वेक्षण और मैपिंग के साधनों का इस्तेमाल किया जाता था और इसके माध्यम से सड़कों को बनाने के दौरान ग्रिड सिस्टम के साथ सुनियोजित जल निकासी के लिए समुचित इंतज़ाम किए गए थे. यह दर्शाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान भी शहरी नियोजन में प्रौद्योगिकी की प्रभावशाली भूमिका थी. पूरे मानव इतिहास पर नज़र डालें, तो समय के साथ-साथ प्रौद्योगिकी की भूमिका में भी परिवर्तन आता रहा है. औद्योगिक क्रांति आने के बाद के कालखंड में टेक्नोलॉजी की भूमिका का महत्व काफ़ी बढ़ गया है. ज़ाहिर है कि औद्योगिक क्रांति के बाद जब से शहरों को केंद्र में रखने वाली आर्थिक गतिविधियां (मुख्य रूप से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में) बढ़ने लगीं, तब से शहरी विस्तार के लिए प्रौद्योगिकी बेहद महत्वपूर्ण हो गई है.
औद्योगिक क्रांति आने के बाद के कालखंड में टेक्नोलॉजी की भूमिका का महत्व काफ़ी बढ़ गया है. ज़ाहिर है कि औद्योगिक क्रांति के बाद जब से शहरों को केंद्र में रखने वाली आर्थिक गतिविधियां (मुख्य रूप से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में) बढ़ने लगीं, तब से शहरी विस्तार के लिए प्रौद्योगिकी बेहद महत्वपूर्ण हो गई है.
मौज़ूदा समय की बात करें तो शहरों के विस्तारीकरण से जुड़ी नीतियों एवं नियोजन में बिग डेटा का यानी वो डेटा, जिसमें विविधिता होती है, साथ ही जो बढ़ी मात्रा में एवं बहुत तेज़ी के साथ आता है, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का महत्व बेहद अहम हो गया है. वैश्विक स्तर पर स्मार्ट सिटीज बनाने के लिए जो व्यापक अभियान चलाया जा रहा है, उसने भी भविष्य के शहरों की रूपरेखा तैयार करने में टेक्नोलॉजी की भूमिका को और बढ़ा दिया है. उदाहरण के तौर पर भारत में वर्ष 2014 में स्मार्ट सिटी मिशन (SCM) योजना शुरू की गई थी. इस योजना का मकसद देश में 21वीं सदी के शहरीकरण की चुनौतियों का सामना करने के लिए वर्तमान और आगामी शहरों की पूरी योजना तैयार करना था. भारत में बनाए जा रहे स्मार्ट सिटीज की कई खूबियां हैं, जैसे कि सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT), नॉलेज और रचनात्मकता,बेहतर कनेक्टिविटी, बिग डेटा और ओपन डेटा, व्यापार एवं उद्यमशीलता, सोशल कैपिटल, स्मार्ट कम्युनिटी और इकोलॉजिकल स्थिरता. स्मार्ट सिटीज की इन विशेषताओं ने खूब सुर्खियां बटोरी हैं.
हाल-फिलहाल में हुए शोध ने सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता, सामुदायिक समाधान और जीवन की गुणवत्ता में सुधार की संभावनाओं का मूल्यांकन करके शहरी नियोजन में प्रौद्योगिकी के उपयोग से जुड़े सवालों की विस्तृत जांच-परख की है. इस संदर्भ में, टेक्नोलॉजी कंपनी गूगल द्वारा अगस्त 2022 में लॉन्च किए गए ‘ओपन बिल्डिंग’ (OB) नाम के एप्लिकेशन के बारे में विस्तार से समझना ज़रूरी हो जाता है.
ओपन बिल्डिंग एप्लीकेशन का निर्माण
ओपन बिल्डिंग एप्लिकेशन अफ्रीका, दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन देशों में बिल्डिंग फुटप्रिंट्स के निर्माण का एक ओपन डेटासेट है. साधारण शब्दों में कहें, तो यह एप्लीकेशन ओपन बिल्डिंग से जुड़ी जानकारी का एक संग्रह है, जिसमें बिल्डिंग के फुटप्रिंट्स (बिल्डिंग द्वारा कवर किया गया क्षेत्र) और ऊंचाई शामिल हैं. ज़ाहिर है कि बिल्डिंग फुटप्रिंट्स संग्रह का एक घोषित लक्ष्य, तमाम व्यावहारिक और वैज्ञानिक मकसदों को हासिल करना है. इसके घोषित लक्ष्यों में दावा किया गया है कि ओपन बिल्डिंग कई क्षेत्रों में लाभदायक सिद्ध होगा. जैसे कि यह जनसंख्या मैपिंग, यानी उस क्षेत्र विशेष में निवास करने वाली आबादी की जानकारी हासिल करने, लोगों की व्यवहारिक गतिविधियों की जानकारी हासिल करने, पर्यावरण विज्ञान, एड्रेसिंग सिस्टम और वैक्सीनेशन योजना सूचकों समेत तमाम दूसरे क्षेत्रों में उपयोगी साबित होगा. ओपन बिल्डिंग उन स्थानों के लिए विशेष तौर पर नीतियां बनाने और योजना तैयार करने के लिए एक उपयोगी साधन हो सिद्ध हो सकता है, जहां पर जनगणना और नगरपालिका सर्वेक्षण जैसे वैकल्पिक आंकड़ों के स्रोतों की मौज़ूदगी न के बराबर होती है.
ओपन बिल्डिंग उन स्थानों के लिए विशेष तौर पर नीतियां बनाने और योजना तैयार करने के लिए एक उपयोगी साधन हो सिद्ध हो सकता है, जहां पर जनगणना और नगरपालिका सर्वेक्षण जैसे वैकल्पिक आंकड़ों के स्रोतों की मौज़ूदगी न के बराबर होती है.
ओपन बिल्डिंग एप्लीकेशन के उपयोग की शुरुआत अफ्रीका में की गई थी, इसके लिए 50 cm सैटेलाइट इमेज का उपयोग किया गया था और यू-नेट मॉडल इस्तेमाल किया गया था. इसमें वास्तुकला, लॉस फंक्शन यानी एल्गोरिदम के ज़रिए आंक़ड़ों का मूल्यांकन करने की विधि, नियमितीकरण, पूर्व-प्रशिक्षण, सेल्फ-ट्रेनिंग और प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद की गतिविधियों के बारे में अध्ययन करना शामिल है, ज़ाहिर है कि ये सारी चीज़ें इंस्टेंस सेगमेंटेशन परफॉर्मेंस (instance segmentation performance), अर्थात एक फोटोग्राफ में अलग-अलग वस्तुओं को विभाजित करने के लिए कंप्यूटर विज़न को बढ़ाने का काम करती हैं. डीप लर्निंग मॉडल (deep learning model) की सहायता से इस प्रकार की जानकारी हाई-रिज़ॉल्यूशन सैटेलाइट इमेजरी से हासिल की जाती है. एक मिलियन इमेज का एक डेटासेट, जिसमें 1.75 मिलियन बिल्डिंग इंस्टेंस मैन्युअल तरीक़े से वर्गीकृत किया गया था, का उपयोग अफ्रीका के ओपन बिल्डिंग डेटासेट बनाने के लिए किया गया था, जिसमें 516 मिलियन बिल्डिंग फुटप्रिंट्स शामिल थे. OB के पहले डेटासेट (V1) में अफ्रीका, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के आंकड़े शामिल थे, जबकि दूसरे डेटासेट (V2) में लैटिन अमेरिका और कैरेबियन देशों के आंकड़े शामिल थे.
ओपन बिल्डिंग एप्लीकेशन का महत्व और प्रभावी नीतियां बनाने में उपयोग
शहरी विस्तार से जुड़ी नीतियों को बनाने में ओपन बिल्डिंग एप्लीकेशन एक प्रभावशाली टूल सिद्ध हो सकता है, ख़ास तौर पर ऐसे शहरों में जहां की आबादी बहुत ही घनी है और बेतहाशा इमारतें बनी हुई हैं. ज़ाहिर है कि ग्लोबल साउथ के देशों के लिए, जहां पर बहुत तेज़ी के साथ शहरीकरण हो रहा है, वहां नए-नए विकसित हो रहे शहरी इलाक़ों के बारे में आंकड़े नहीं मिल पाते हैं. आंकड़ों की कमी के चलते ऐसे इलाक़े शहरी नियोजन का हिस्सा नहीं बन पाते हैं और वहां सुनियोजित विकास एवं सरकारी योजनाएं नहीं पहुंच पाती हैं. अध्ययनों के ज़रिए पता चला है कि लैटिन अमेरिका, दक्षिण एशिया और ग्लोबल साउथ के दूसरे हिस्सों के कई शहरों में अक्सर देखने को मिलता है कि शहर से सटे बाहरी इलाक़ों में लोगों द्वारा खुद ही नया-नया निर्माण कर लिया जाता है, इस परिघटना को ही ऑटो-कंस्ट्रक्शन कहते हैं. उल्लेखनीय है कि शहर के बाहरी क्षेत्रों में होने वाले ऐसे विकास का सरकारी विभागों द्वारा संज्ञान नहीं लिया जाता है, ऐसे में ये नव विकसित क्षेत्र नीतिगत पहलों में नज़रंदाज़ हो जाते हैं.
ओपन बिल्डिंग एप्लीकेशन ऐसे में न केवल शहरों में नए बने इलाक़ों की ओर ध्यान आकर्षित कर सकता है, बल्कि सरकारी स्तर पर शहरी क्षेत्र की सीमा को नियंत्रित करने और मौज़ूदा नगर पालिकाओं के दायरे का विस्तार करने के लिए नीतियां बनाने हेतु प्रेरित भी कर सकता है. इसमें शहरी क्षेत्र के बाहरी इलाक़ों में निर्मित ऐसी नई बस्तियों को लेकर बनने वाली शहरी नीति में सभी के लिए बराबरी के अवसरों पर ध्यान केंद्रित करने की कुव्वत है. ज़ाहिर है कि ये कहीं न कहीं न्यायोचित एवं समावेशी शहरों के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकता है. उदाहरण के तौर पर ओपन बिल्डिंग की सहायता से भारत में प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) जैसी शहरी आवास नीतियों को शहरों और गांवों के पड़ोस में बने नए-नए इलाक़ों में भी लागू किया जा सकता है. इतना ही नहीं, ओपन बिल्डिंग एप्लीकेशन के मदद से विकास संबंधी नीतियों के कार्यान्वयन पर भी पूरी नज़र रखी जा सकती है, साथ ही ऐसा करके विकास कार्यों में भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगाई जा सकती है.
अध्ययनों के ज़रिए पता चला है कि लैटिन अमेरिका, दक्षिण एशिया और ग्लोबल साउथ के दूसरे हिस्सों के कई शहरों में अक्सर देखने को मिलता है कि शहर से सटे बाहरी इलाक़ों में लोगों द्वारा खुद ही नया-नया निर्माण कर लिया जाता है, इस परिघटना को ही ऑटो-कंस्ट्रक्शन कहते हैं.
विकासशील देशों में यह ओपन बिल्डिंग एप्लीकेशन शहरी प्रशासन और विकास से जुड़ी सरकारी एजेंसियों की कई तरह से मदद कर सकता है. जैसे कि यह शहरों में भविष्य से जुड़े विकास के लिए भूखंडों की पहचान कर सकता है, साथ ही शहरों में अनुमानित जनसंख्या वृद्धि के मुताबिक़ इंफ्रास्ट्रक्चर विकास से जुड़ी गतिविधयों के बारे में सही जानकारी उपलब्ध कराने में भी एजेंसियों की मदद कर सकता है. यदि हम भारत में कुछ नव निर्मित शहरों और सैटेलाइट टाउन का उदाहरण लेते हैं, जैसे कि नवी मुंबई (महाराष्ट्र), गुरुग्राम (हरियाणा) और न्यू टाउन, कोलकाता (पश्चिम बंगाल). इन सैटेलाइट टाउन और नव विकसित शहरों की विशेषता यहां बनी नवनिर्मित इमारतें हैं, जिनका निर्माण बहुत दूर-दूर किया गया है, अर्थात दो बिल्डिंग्स के बीच अच्छी-ख़ासी खाली ज़मीन छोड़ी गई है. इमारतों के निर्माण का यह तरीक़ा, कहीं न कहीं निवास करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे, यानी कि बाज़ार, परिवहन के साधन और दूसरे ज़रूरी संस्थानों के विकास में रुकावटें पैदा करता है. कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसी परिस्थितियों में रहने वालों को शहरी वातावरण का पूरा अनुभव नहीं मिल पाता है, जिसमें सुरक्षा, गतिशीलता और स्थिरिता से जुड़ा प्रभाव भी शामिल है. अगर ओपन बिल्डिंग एप्लीकेशन का समझदारी के साथ उपयोग किया जाता है, तो भारत में और दुनिया के दूसरे हिस्सों में भविष्य में विकसित होने वाले शहरों में इस तरह की प्रतिकूल परिस्थितियों से बचा जा सकता है. इसके अलावा, ओपन बिल्डिंग एप्लीकेशन का इस्तेमाल किसी भी संबंधित बिल्डिंग फुटप्रिंट के अनुरूप एक प्रभावी मल्टीमॉडल पब्लिक ट्रांसपोर्ट नेटवर्क विकसित करने के लिए भी किया जा सकता है. ऐसा होने से आख़िरकार शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर कम होगा, हवा की गुणवत्ता में सुधार होगा, साथ ही लोगों की ट्रांसपोर्ट के साधनों तक सुगम पहुंच होगी.
डेटा गवर्नेंस से जुड़े मुद्दे
ओपन डेटा मूवमेंट यानी सर्व सुलभ आंकड़ों की उपलब्धता की दिशा में ओपन बिल्डिंग एप्लीकेशन एवं ऐसी दूसरी प्रौद्योगिकियों को एक सही क़दम माना जा सकता है, जो कि संबंधित हितधारकों के लिए आंकड़ों को सुगम बनाती हैं. जब आंकड़े सभी के लिए उपलब्ध होते हैं, तो नागरिकों को बहुत सहूलियत होती है, क्योंकि वे ऐसे इलाक़ों में, जहां सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर, अर्थात शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवहन से संबंधित बुनियादी ढांचे की कमी है, उसकी मांग कर सकते हैं. इससे ज़ाहिर तौर पर शहरी नियोजन एवं विकास से जुड़ी नीतियां बनाने में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने में भी मदद मिलेगी.
ऐसे में जब ओपन बिल्डिंग एप्लीकेशन में शहरी विकास और विस्तार में आने वाली तमाम दिक़्क़तों का समाधान करने की क्षमता है, तब शहरी क्षेत्र के नियोजन में प्रौद्योगिकी के प्रतिकूल प्रभाव को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए. वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से शहरों को निजी वित्तीय एवं तकनीक़ी कैपिटल के लिए अधिक उत्तरदायी या जवाबदेह बनाने के मामले में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बदलाव देखा गया है, जो कि यूजर्स डेटा को संसाधित करने और मॉनेटाइजिंग के आधार पर डिजिटल प्लेटफार्मों के विस्तार पर निर्भर करता है.
भारत की बात करें, तो हाल के वर्षों में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर पर ख़ासा ज़ोर दिया गया है, जिसने निर्बाध रूप से सभी तक डिजिटल पहुंच को सुनिश्चित किया है.
कोविड-19 महामारी के प्रकोप के बाद से दुनिया भर में परिवहन, उपभोग एवं सर्विस के क्षेत्र में डिजिटल प्लेटफार्मों का प्रसार बहुत तीव्र हो गया है, ज़ाहिर है कि इसने डेटा नियंत्रण एवं आंकड़ों की सच्चाई व स्वामित्व को लेकर वाजिब सवाल उठाए हैं. भारत की बात करें, तो हाल के वर्षों में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर (स्मार्ट सिटी, यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस) पर ख़ासा ज़ोर दिया गया है, जिसने निर्बाध रूप से सभी तक डिजिटल पहुंच को सुनिश्चित किया है. भारत ने 2023 में डेटा संरक्षण विधेयक पास किया है, जिसका मकसद भारतीय नागरिकों के निजी आंकड़ों की रक्षा करना है. डेटा संरक्षण बिल में लोगों के व्यक्तिगत आंकड़ों पर उनके अधिकारों और निजी आंकड़ों के संबंध में संगठनों की जबावदेही पर ख़ासा बल दिया गया है.
हालांकि, आलोचकों द्वारा भारत के डेटा संरक्षण क़ानून की तमाम ख़ामियों की ओर इशारा किया गया है, जिसमें आकड़ों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी के मामले में सरकारी एवं निजी संस्थाओं को जवाबदेही में छूट दिए जाने की बात भी शामिल है. उल्लेखनीय है कि ओपन बिल्डिंग जैसे एप्लीकेशन का सार्थक उपयोग सुनिश्चित करना आवश्यक है और इसके लिए भारत द्वारा व्यक्तिगत आंकड़ों एवं संवेदनशील भौगोलिक जानकारी की सुरक्षा करते हुए, ऐसे मुद्दों का समाधान किया जाना ज़रूरी है. ज़ाहिर है कि अगर सिविल सोसाइटी के हितधारकों के साथ जुड़कर डेटा नियंत्रण पर व्यापक सहमति बनाई जाती है, तो निश्चित तौर पर समावेशी शहरी विकास एवं विस्तार के लिए ओपन बिल्डिंग जैसी प्रौद्योगिकियों का उपयोग लाभदायक सिद्ध होगा.
स्नेहाशीष मित्रा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के अर्बन स्टडीज में फेलो हैं.
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