टेक्नोलॉजी और डिजिटल संचार के नए तौर-तरीक़ों के विकास से ऐसा लग सकता है कि मानवता ने बातचीत और समझौते तक पहुंचने के साधनों को असरदार तरीके से आसान बना दिया है. हालांकि, जब हम पूरी तस्वीर को देखने के लिए एक कदम पीछे हटते हैं, तो यह साफ हो जाता है कि पिछले कुछ वर्षों में विश्व कूटनीति और संघर्ष को हल करने के मामले में किसी भी गंभीर प्रगति को याद कर पाना आसान नहीं है.
कूटनीति एक हद तक ट्विटर पर शिफ्ट हो गई है और दर्शकों को आकर्षित करने के मकसद के साथ मोनोलॉग (एकालाप) में बदल चुकी है, जिसमें दूसरे पक्ष के साथ सीधी बातचीत नहीं होती है. बल्कि विदेश विभाग के आधिकारिक एकाउंट पर धारदार शब्दों में हाज़िरजवाबी का मुकाबला होता है. ट्विटर डिप्लोमेसी की समस्या हमेशा तीसरे पक्ष की मौजूदगी है: दर्शक फ़ौरन अपना समर्थन या असंतोष प्रकट करते हैं. यह विदेश नीति को बहुत ज़्यादा घरेलू नीति पर निर्भर करता है, गैर-पेशेवर दर्शकों के लाइक्स और डिसलाइक्स पर बहुत ज़्यादा निर्भर बनाता है.
कूटनीति एक हद तक ट्विटर पर शिफ्ट हो गई है और दर्शकों को आकर्षित करने के मकसद के साथ मोनोलॉग (एकालाप) में बदल चुकी है, जिसमें दूसरे पक्ष के साथ सीधी बातचीत नहीं होती है. बल्कि विदेश विभाग के आधिकारिक एकाउंट पर धारदार शब्दों में हाज़िरजवाबी का मुकाबला होता है.
जैसा कि रूसी राजनयिक और विशेषज्ञ बताते हैं, हाल के वर्षों के दौरान कई गंभीर बातचीत के ट्रैक को स्थगित कर दिया गया और बैकस्टेज कम्युनिकेशन काफी सीमित हो गया है. कोविड-19 ने अतिरिक्त रूप से इस प्रक्रिया को बढ़ावा दिया क्योंकि अधिकांश अंतरराष्ट्रीय शिखर सम्मेलन और फ़ोरम को 2021 तक के लिए या उसके बाद के लिए भी रद्द या स्थगित कर दिया गया है. ज़ूम मीटिंग्स में आम बैकस्टेज डिप्लोमेसी के लिए मौक़ा नहीं मिलता है. हम जो देखते हैं वह यह है कि आपके पास जितने अधिक डिजिटल अवसर होते हैं, निजी बातचीत के लिए उतनी ही कम जगह होती है.
सूचना का प्रवाह “उबाऊ” आधिकारिक बयानों के लिए गंभीर प्रतिस्पर्धा और चुनौतियां पेश करता है. अगर आप ध्यान खींचना चाहते हैं, तो आपको भड़काऊ और मुखर होना पड़ेगा– यह सूचनात्मक समाज का ‘सामान्य’ तर्क है. यही वजह है कि सोशल मीडिया में अधिकारियों की गतिविधियां और राय बार-बार सीमा-रेखा को पार कर जाती हैं या अंतरराष्ट्रीय विवादों का कारण बनती हैं. दुर्भाग्य से, सूचनात्मक उपभोक्ता समाज सरकारों के बीच संबंधों में नकारात्मक और चौंकाने वाले घटनाक्रमों में ज़्यादा रुचि रखता है, और साथ ही साथ यह समाज राजनेताओं और राजनयिकों द्वारा आयोजित बैठकों, वार्ता और नए समझौतों के तटस्थ समाचारों के प्रति उदासीन है.
आज आम लोगों की नज़र में पारंपरिक कूटनीति सिर्फ समारोहों और खूबसूरत प्रोटोकॉल तस्वीरों की श्रृंखला की तरह है. वैश्विक संस्थानों की गिरावट निश्चित रूप से राजनयिक प्रथाओं को प्रभावित करती है और इस गिरावट का कारण सिर्फ़ सोशल मीडिया और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का विकास नहीं है. यह इतना ही आधुनिक राजनीतिक कुलीन वर्ग की गुणवत्ता, संरक्षित और अनिश्चित विश्व व्यवस्था में बदलाव और नई पीढ़ी में पाए जाने वाले नए मूल्यों से जुड़ा है. बेशक, संचार के आधुनिक साधनों के दौर में कूटनीति को भी बदलना होगा. सवाल है— इस बदलाव की सही दिशा क्या हो?
सूचनात्मक उपभोक्ता समाज सरकारों के बीच संबंधों में नकारात्मक और चौंकाने वाले घटनाक्रमों में ज़्यादा रुचि रखता है, और साथ ही साथ यह समाज राजनेताओं और राजनयिकों द्वारा आयोजित बैठकों, वार्ता और नए समझौतों के तटस्थ समाचारों के प्रति उदासीन है.
आधिकारिक कूटनीति भी अधिक पारदर्शी और कम गुप्त होती जा रही है. ज़्यादा लोकतांत्रिक और खुलापन एक सकारात्मक प्रवृत्ति है, है ना? लेकिन व्यावहारिक रूप से यह हमेशा मददगार नहीं होती है क्योंकि तनावपूर्ण और दर्दनाक समस्याएं बातचीत में ज़्यादा पारदर्शिता नेटवर्क से जुड़े समाज के मौजूदा दबावों के चलते दम तोड़ देती है. कुलीन कूटनीति की प्रभावशीलता और जन भावना के महत्व के बारे में हमेशा दुविधा रहती है, लेकिन अगर दुश्मनी और बदले की भावना से प्रेरित हो तो जन भावना अप्रभावी हो सकता है.
कोविड-19: दुनिया का बदल जाना
ज़रूरी सोशल डिस्टेंसिंग और व्यक्तिगत मेलजोल को कम करने के मामले में उस स्थिति का सामना करना पड़ा जहां राजनयिकों को अपनी सभी बैठकें ऑनलाइन आयोजित करने के लिए सहमत होना पड़ा. टेक्निकल रुकावटें, अधिकारियों की डिजिटल अशिक्षा और साफ़ आवाज़ नहीं आना अकेली समस्या नहीं थी. ऑनलाइन सम्मेलन गर्मजोशी से वंचित हैं जो व्यक्तिगत बातचीत में पैदा होती है. न कोई बॉडी लैंग्वेज, न कोई हाव-भाव, न गले लगाना और न ही हाथ मिलाना. आप अपने मनोभाव को साझा नहीं कर सकते और यह भी पढ़ने की कोशिश नहीं कर सकते हैं कि दूसरा पक्ष असल में आप और आपके सुझावों के बारे में क्या सोचता है. यही वजह है कि कई वार्ताएं और बैठकें कोविड काल के बाद अनिश्चित समय के लिए स्थगित कर दी गईं.
अंतरराष्ट्रीय फ़ोरम और सम्मेलन जो राजनयिकों, राजनेताओं और विशेषज्ञों के लिए बहुत स्वाभाविक हैं, अपनी स्थिति को व्यक्त करने के लिए सिर्फ नई जानकारी और अवसर देने से कुछ ज़्यादा हैं. वे संपर्क बनाने, नई योजनाएं, नई मुलाकातें, एक दूसरे को समझने, और अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में प्रक्रियाओं की गहरी समझ का मौका देते हैं.
बात जब ऑनलाइन बैठकों की आती है, तो सरकारों को यह भी सोचना होता है कि ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म किससे जुड़े हैं. क्या वे सुरक्षित हैं? वे निजी डेटा के साथ क्या करते हैं? क्या वे प्राइवेसी रखते हैं? क्या अपने देश की बातचीत के लिए विदेशी प्लेटफार्म्स का इस्तेमाल करना सुरक्षित है? क्या आपकी बातचीत किसी बाहरी पक्ष को नहीं बता दी जाएगी? हैकर्स द्वारा ज़ूम एकाउंट का विवरण बिक्री के लिए रखना या लीक हुई निजी बातचीत से आधुनिक तकनीकों का जोखिम और बेलगाम व्यवस्था की तैयारी की पोल खुल जाती है.
क्या ऐसी स्थिति में बातचीत निजी रह सकती है? हर देश ऑनलाइन बातचीत के लिए अपने ख़ुद के सॉफ़्टवेयर विकसित करने में सक्षम नहीं है. इसके अलावा, डिजिटल कूटनीति को लेकर अभी तक कोई अंतरराष्ट्रीय समझौता और संधि नहीं हैं. नई ऑनलाइन हकीकतों में कूटनीति पर नियम तय करने का समय आ गया है. सरकारें और क्षेत्रीय एकीकृत परियोजनाएं पहले से ही अपनी डिजिटल रणनीतियों को विस्तार दे रही हैं, लेकिन किसी वैश्विक नियंत्रण के बिना यह देशों के बीच नए संघर्ष और टकराव का कारण बन सकता है.
नई ऑनलाइन हकीकतों में कूटनीति पर नियम तय करने का समय आ गया है. सरकारें और क्षेत्रीय एकीकृत परियोजनाएं पहले से ही अपनी डिजिटल रणनीतियों को विस्तार दे रही हैं, लेकिन किसी वैश्विक नियंत्रण के बिना यह देशों के बीच नए संघर्ष और टकराव का कारण बन सकता है.
टेक्नोलॉजी अपने आप में विवाद का मुद्दा बन गई है. अमेरिका-चीन की टेक्नोलॉजी प्रतिस्पर्धा आने वाले समय में वैश्विक मामलों में विवाद का प्रतीक बन सकती है. इस प्रतिस्पर्धा का संभावित जोखिम यह है कि डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और एप्लीकेशन की लड़ाई न सिर्फ़ अमेरिका-चीन के द्विपक्षीय संबंध को अस्थिर कर सकती है, बल्कि पूरे अंतरराष्ट्रीय वातावरण को अस्थिर कर सकती है. आज डिजिटल क्षेत्र अन्य सभी राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों की तरह ही क्षेत्रीयकरण के अधीन है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए यहां तक कि वैकल्पिक संयुक्त प्लेटफॉर्म्स के उभरने (उदाहरण के लिए, अंतरराष्ट्रीय संगठनों के भीतर) और राजनयिक बैठक जैसी साधारण बात भी अब बहुत बड़ी बात लगती है. दुर्भाग्य से, हमारी बहुपक्षीय कूटनीति की आदत लगभग ख़त्म हो गई है. अगर इंटरनेट स्पेस को विनियमित करने पर सहमत होने का प्रयास नहीं किया जाता है, तो इंटरनेट भी क्षेत्रीयकरण का शिकार हो सकता है.
तेजी से टेक्नोलॉजी विकास, रोजमर्रा की जिंदगी के डिजिटलाइजेशन और फिर कोविड-19 वैश्विक महामारी द्वारा लाया गया बदलाव अभी भी पूरा नहीं हुआ है. आधिकारिक यात्राओं और आमने-सामने की बैठकों को बहाल कर दिया गया है, लेकिन एक सीमित रूप में और नए सैनिटरी औपचारिकताओं के साथ. यहां तक कि अगर हम जल्द ही कोरोनोवायरस महामारी को हरा देते हैं, तो भी डिजिटल क्षेत्र को संचालन के सख़्त नियमों की ज़रूरत होगी: ‘डिजिटल’ संघर्षों को कैसे हल किया जाए, गोपनीयता के साथ ऑनलाइन बातचीत कैसे की जा सकती है, हैकिंग का कैसे सामना करें, टेक्निकल ख़राबी को कैसे ठीक करें और इंटरनेट पर जुर्म करने वालों को कैसे खोजें और सज़ा दें? आख़िरकार वे मुजरिम कौन हैं?
यह भी आम हो गया है कि सरकार से इतर शक्तियां अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित करेंगी, और इंटरनेट तक पहुंच के साथ गैर-सरकारी संगठनों, राजनीतिक, व्यावसायिक व बुद्धिजीवी नेताओं के लिए विश्व राजनीति में शामिल होना और ज़्यादा आसान हो जाएगा– एकदम अपने घर से ही. कोरोनावायरस वैश्विक महामारी ने न सिर्फ़ सरकारों के संस्थानों पर निर्भरता बढ़ाई, बल्कि समाज की परिवर्तनकारी प्रक्रिया में और अधिक दख़लअंदाज़ी के लिए सिविल सोसायटी के एक्टिविस्ट और अन्य गैर-सरकारी शक्तियों को भी शामिल किया गया.
हालांकि, गैर-सरकारी शक्तियां आधिकारिक उच्च-स्तरीय कूटनीति का विकल्प नहीं हो सकती हैं. सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्षों में से एक यह है कि वास्तविक कूटनीति तब होती है जब राजनयिक न केवल सूचनात्मक प्रभाव और सार्वजनिक प्रशंसा को ध्यान में रखते हैं, बल्कि तब जब वे अपनी कोशिश के सबसे महत्वपूर्ण नतीजों के रूप में विश्व राजनीति में बातचीत और ठोस बदलावों का नतीजा देखते हैं. डिजिटल डिप्लोमैसी में डिप्लोमैसी की नकल बनाना बहुत आसान है, लेकिन यह डिप्लोमैसी नहीं है. यह इंटरनेट पर ध्यान खींच सकती है और लाइक्स बटोर सकती है, लेकिन यह आमतौर पर ऑफ़लाइन अर्थपूर्ण संबंधों को विकसित करने की दिशा में आगे नहीं बढ़ती है.
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