अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता में वापसी के बाद से तालिबान ने क्षेत्रीय कूटनीति में, विशेषकर मध्य एशिया में महत्वपूर्ण प्रगति की है. 20 जुलाई 2024 को तालिबान के अधिकारियों ने कज़ाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के प्रतिनिधियों से मुलाकात की. इस बैठक का मक़सद तुर्कमेनिस्तान से अफ़ग़ानिस्तान होते हुए पाकिस्तान तक जाने वाली एक नई रेलवे लाइन के निर्माण पर चर्चा करना था. तालिबान की सत्ता को लेकर दूसरे देशों में शुरू में संदेह और सावधानी का भाव था, लेकिन तालिबान ने रणनीतिक कूटनीति, आर्थिक गतिविधियों और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के माध्यम से मध्य एशिया के देशों के बीच महत्वपूर्ण पैठ बनाई है. इस बदलाव की मुख्य वज़ह आर्थिक समृद्धि, आपसी संपर्क बढ़ाना और क्षेत्रीय स्थिरता से होने वाले पारस्परिक हित हैं.
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध और मध्य-पूर्व के देशों में संघर्ष ने मध्य एशियाई देशों को इस बात पर मज़बूर किया है कि वो तालिबान के नेतृत्व वाले इस्लामिक अमीरात ऑफ अफ़ग़ानिस्तान (IEA) के प्रति एक सौहार्दपूर्ण दृष्टिकोण अपनाएं.
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध और मध्य-पूर्व के देशों में संघर्ष ने मध्य एशियाई देशों को इस बात पर मज़बूर किया है कि वो तालिबान के नेतृत्व वाले इस्लामिक अमीरात ऑफ अफ़ग़ानिस्तान (IEA) के प्रति एक सौहार्दपूर्ण दृष्टिकोण अपनाएं. अफ़ग़ानिस्तान के साथ 2,387 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करने वाले मध्य एशियाई देशों ने महसूस किया है कि अगर तालिबान शासन पर प्रतिबंध लगाया जाता है तो इससे संघर्ष की आशंका बढ़ेगी. इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज़्बेकिस्तान , इस्लामिक जिहाद यूनियन, जमात अंसारुल्लाह और अफ़ग़ानिस्तान में इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान प्रांत जैसे आतंकवादी समूहों के लगभग 3,000 लड़ाकों की सक्रिय मौजूदगी स्थिति को और जटिल बनाती है.
मध्य एशियाई देशों का दृष्टिकोण क्यों बदला?
हालांकि ताशकंद ने 1990 के दशक के अंत में तालिबान विरोधी संयुक्त मोर्चे (नॉर्दर्न अलायंस) का समर्थन किया था, लेकिन अब उज़्बेकिस्तान मध्य एशिया के उन पहले देशों में शामिल है, जिसने तालिबान के साथ सीधे संबंध स्थापित किए हैं. नीति में इस बदलाव के साथ दोनों देशों के बीच व्यापार में लगातार वृद्धि हुई है. 2024 के पहले छह महीनों में द्विपक्षीय व्यापार का आंकड़ा 461.4 मिलियन डॉलर से ज़्यादा हो गया है. दोनों देशों के बीच मोस्ट फेवर्ड नेशन के दर्जे को आपसी सहमति से लागू करने पर भी बातचीत चल रही है. मई 2024 में दोनों देशों ने उज़्बेकिस्तान को अफ़ग़ानिस्तान के माध्यम से पाकिस्तान से जोड़ने वाली 4.8 बिलियन डॉलर की ट्रांस-अफ़ग़ानिस्तान रेलवे परियोजना को पूरा करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया. अफ़ग़ानिस्तान की बिजली और रेलवे परियोजनाओं में निवेश में रुचि दिखाने के अलावा उज़्बेकिस्तान ने काबुल को 1,000 टन आवश्यक वस्तुओं की महत्वपूर्ण मानवीय सहायता भी मुहैया कराई.
भू-राजनीतिक दृष्टि से मध्य एशिया के एक और महत्वपूर्ण देश कज़ाकिस्तान ने भी तालिबान को प्रतिबंधित संगठनों की सूची से हटा दिया है. कज़ाकिस्तान ने अपने फैसले को ये कहते हुए सही ठहराया है कि अपने पड़ोसी के साथ व्यापार और आर्थिक सहयोग विकसित करने और तालिबान शासन को अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता में 'दीर्घकाल तक काबिज़ होता देखने' की वज़ह से ऐसा करना ज़रूरी था. अप्रैल 2024 में कज़ाकिस्तान के एक हाई-प्रोफाइल प्रतिनिधिमंडल ने व्यापार संबंधों को घनिष्ठ बनाने के लिए तीसरे कज़ाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान बिजनेस फोरम बैठक के लिए काबुल का दौरा किया. इसने संयुक्त परियोजनाओं के माध्यम से रासायनिक उद्योग, खनन और धातुकर्म क्षेत्रों में अफगानिस्तान के साथ सहयोग का प्रस्ताव रखा. कज़ाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच व्यापार के जो नए आंकड़े आए हैं, उसके मुताबिक इनका आपसी व्यापार 987.9 मिलियन डॉलर की रिकॉर्ड ऊंचाई तक पहुंच गया है, जिसके जल्दी ही 3 बिलियन डॉलर के पार जाने की उम्मीद है. कज़ाकिस्तान अपने पड़ोसी के साथ स्वस्थ संबंध मज़बूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है. हालांकि तालिबान को औपचारिक रूप से किसी भी देश ने अफ़ग़ानिस्तान की वैध सरकार के रूप में मान्यता नहीं दी है, लेकिन कज़ाकिस्तान समेत कई देशों ने अपने राजदूत काबुल भेजे हैं और तालिबान द्वारा नियुक्त राजदूतों का अपनी राजधानियों में स्वागत किया है.
अप्रैल 2024 में अफ़ग़ानिस्तान, कज़ाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के बीच एक अघोषित त्रिपक्षीय बैठक भी हुई. इस मीटिंग में एक नए रसद मार्ग पर चर्चा की गई, साथ ही क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने की रणनीतिक अहमियत पर भी ज़ोर दिया गया. इसके बाद अफ़ग़ानिस्तान और तुर्कमेनिस्तान ने 200 मिलियन डॉलर से ज़्यादा के 10 अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए. इनका मकसद दोनों देशों के बीच व्यापार, कनेक्टिविटी और आर्थिक संबंधों का विस्तार करना और अफ़ग़ानी अर्थव्यवस्था को क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं के साथ दोबारा एकीकृत करने में मदद करना था. तुर्कमेनिस्तान ने मौज़ूदा तालिबानी शासन के प्रति अपनी तटस्थता की नीति को उसी तरह बनाए रखा है, जैसा उसने 1990 के दशक में किया था. 15 जुलाई 2024 को तुर्कमेन राजदूत ने तुर्कमेनिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (TAPI) पाइपलाइन समेत दूसरी महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं पर चर्चा करने के लिये तालिबान के विदेश मंत्री से मुलाकात की. उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान के हेरात प्रांत में नुरुल जिहाद सबस्टेशन में ट्रांसपोर्ट और ट्रांज़िट कनेक्शन और एक संयुक्त बिजली परियोजना का विस्तार करने का भी पता लगाया. दोनों देशों के बीच विचाराधीन एक अन्य महत्वपूर्ण संयुक्त परियोजना तुर्कमेनिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान (TAP) बिजली ट्रांसमिशन प्रोजेक्ट है. इसका उद्देश्य तुर्कमेनिस्तान की बिजली को तोरगुंडी-हेरात और चमन-कंधार से पाकिस्तान के क्वेटा शहर तक पहुंचाना है. इस परियोजना की कुल लागत 1.6 बिलियन डॉलर से अधिक होने का अनुमान है, लेकिन इससे अफ़ग़ानिस्तान को कई फायदे होंगे. जैसे कि बिजली तक पहुंच, रोजगार सृजन और सालाना 100 मिलियन डॉलर के ट्रांज़िट अधिकार.
हालांकि ऐसा नहीं है कि अपने मध्य एशियाई पड़ोसियों के साथ तालिबान का तालमेल आसान रहा है. उदाहरण के लिए साल 2022 में तालिबान द्वारा उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में एक नई नहर के निर्माण ने तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान के निचले इलाकों में रहने वाले समुदायों को पानी से वंचित करने की धमकी दी. इसने इन देशों के बीच जारी शांति और तालमेल को करीब-करीब पटरी से उतार दिया.
दोनों देशों के बीच विचाराधीन एक अन्य महत्वपूर्ण संयुक्त परियोजना तुर्कमेनिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान (TAP) बिजली ट्रांसमिशन प्रोजेक्ट है. इसका उद्देश्य तुर्कमेनिस्तान की बिजली को तोरगुंडी-हेरात और चमन-कंधार से पाकिस्तान के क्वेटा शहर तक पहुंचाना है.
संबंधों में सुधार के लिए अफ़ग़ानिस्तान की तरफ से की जा कोशिशों के बावज़ूद ताज़िकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमाली रहमोन अपने तीन दशक लंबे शासन में उपजी आर्थिक कठिनाइयों और उदासीनता का सामना कर रहे हैं. घरेलू मोर्चे में सियासी फायदा लेने के लिए वो जातीय राष्ट्रवादी और पूरे ताज़िक क्षेत्र के रक्षक की भूमिका निभाने पर विश्वास करते हैं. फिर भी दिलचस्प बात ये है कि तालिबान ने इसे सुनिश्चित किया है कि अफ़ग़ानिस्तान को ताजिकिस्तान का मुख्य निर्यात यानी बिजली मिलती रहे. 2023 में ताज़िकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान को 1.6 बिलियन किलोवाट-घंटे बिजली की आपूर्ति की.
इसी तरह किर्गिस्तान के साथ तालिबान ने व्यापार और कनेक्टिविटी क्षमता का लाभ उठाकर संबंधों को सामान्य बनाए रखने में सफलता हासिल की है. वो भी तब जब किर्गिस्तान ने समय-समय पर अफ़ग़ानिस्तान में जातीय पामीर किर्गिज़ की स्थिति पर चिंता जताई है. जनवरी 2024 में किर्गिस्तान के वाणिज्य मंत्री ने अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री से मुलाकात की. इसका मक़सद व्यापार में वृद्धि के अवसरों, किर्गिस्तान के माध्यम से अफ़ग़ान व्यापारियों के लिए चीन के लिए एक ट्रांजिट रूट और मध्य एशिया-दक्षिण एशिया बिजली परियोजना (CASA-1000) के लिए समर्थन पर चर्चा करना था. ये रिन्यूएबल एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट दक्षिण एशिया में उच्च मांग वाले बिजली बाजारों में किर्गिस्तान और ताज़िकिस्तान समेत मध्य एशिया से 1,300 मेगावाट सरप्लस बिजली लाएगा.
बदलाव के कारण और इसके निहितार्थ
पहले की तुलना में तालिबान आज ज़्यादा मज़बूत स्थिति में है. इसकी वजह ये है कि वो अपने मध्य एशियाई पड़ोसी देशों के साथ आर्थिक सहयोग, व्यापार संबंधों और कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट के माध्यम से बेहतर तरीके से जुड़ा है. इनके बीच राजनयिक आदान-प्रदान भी है, जो इस बात को दिखाते हैं कि ये सभी देश क्षेत्रीय स्थिरता चाहते हैं. मध्य-पूर्व और यूक्रेन में नई भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और युद्ध ने तालिबान को एक ऐसा अवसर मुहैया कराया है, जहां वो राजनयिक अलगाव को पीछे छोड़कर एक बार फिर क्षेत्रीय और वैश्विक दोनों तरह के भागीदारों का ध्यान आकर्षित कर रहा है. उदाहरण के लिए 2024 के पहले छह महीनों में अफ़ग़ानिस्तान का विदेशी व्यापार 5 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जिसमें 700 मिलियन डॉलर का निर्यात था.
दोहा में अफ़ग़ानिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व वाले तीसरे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में तालिबानी प्रतिनिधिमंडल को अफगानिस्तान का एकमात्र प्रतिनिधित्व देना इस बदलाव का उदाहरण है. क्षेत्रीय और वैश्विक निकायों के साथ राजनयिक जुड़ाव में वृद्धि की वज़ह से तालिबान के रुख में कुछ सख्ती आई है.
ज़्यादातर देश अब इस वास्तविकता को स्वीकार कर चुके हैं कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान लंबे वक्त तक सत्ता में रहेगा. यही वज़ह है कि चीन, ईरान, रूस और मध्य एशियाई देशों के साथ तालिबान के संबंध निरंतर मज़बूत हुए हैं. इसने दूसरे देशों को भी इस हक़ीकत को स्वीकार करने पर मज़बूर कर दिया है. दोहा में अफ़ग़ानिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व वाले तीसरे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में तालिबानी प्रतिनिधिमंडल को अफगानिस्तान का एकमात्र प्रतिनिधित्व देना इस बदलाव का उदाहरण है. क्षेत्रीय और वैश्विक निकायों के साथ राजनयिक जुड़ाव में वृद्धि की वज़ह से तालिबान के रुख में कुछ सख्ती आई है. 30 जुलाई को तालिबान ने पिछली अफ़ग़ान सरकार के प्रति वफादारी का हवाला देते हुए पश्चिमी देशों में अपने दूतावासों के साथ कांसुलर संबंधों को ख़त्म कर दिया था.
हालांकि तालिबानी सरकार को आधिकारिक मान्यता मिलने में अभी वक्त लग सकता है, लेकिन इस शासन को अब पड़ोसी देशों और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक मान्यता प्राप्त सरकार के रूप काम करने की सुविधा मिल गई है. ये बढ़ती स्वीकृति वास्तविक और कानूनी मान्यता के बीच के अंतर को काफी धुंधला कर देती है, जो अफ़ग़ानिस्तान की वैश्विक स्थिति में बड़े बदलाव और इस पूरे क्षेत्र में तालिबान की बढ़ती स्वीकृति स्पष्ट दिखाती है.
अयाज़ वानी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में फेलो हैं.
अनीश पारनेकर ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं.
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