Author : Pratnashree Basu

Expert Speak Raisina Debates
Published on Oct 14, 2025 Updated 0 Hours ago

जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री साने ताकाइची को विरासत में एक खंडित पार्टी और एक कमज़ोर जनादेश मिलने वाला है. जापान इस वक्त आर्थिक मुश्किलों और क्षेत्रीय अनिश्चितताओं से जूझ रहा है.

ताकाइची का जापान: बदलाव से ज़्यादा निरंतरता की राजनीति

4 अक्टूबर, 2025 को साने ताकाइची लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) के नेतृत्व की दौड़ में जीत हासिल की. उन्होंने शिंजिरो कोइज़ुमी को हराया. ताकाइची को 185 वोट (54.25 प्रतिशत) और कोइज़ुमी 156 वोट (45.75 प्रतिशत) मिले. इस जीत के साथ ही ताकाइची एलडीपी का नेतृत्व करने वाली पहली महिला बनीं. ताकाइची की जीत का श्रेय आंशिक रूप से पार्टी के ज़मीनी स्तर के सदस्यों (प्रीफेक्चरल वोट) के बीच उनके मज़बूत प्रदर्शन और रूढ़िवादी गुटों के उनके एकीकरण को जाता है. दूसरी ओर, कोइज़ुमी को, हालांकि कई मामलों में अपने साथी राष्ट्रीय प्रतिनिधि सभा के सांसदों का समर्थन मिला, लेकिन इसके बावजूद वो, ताकाइची के पीछे एकजुट हुए संस्थागत और गुटीय नेटवर्क पर पूरी तरह से काबू पाने में असमर्थ रहे.

दोनों सदनों में बहुमत ना होने के बावजूद एलडीपी संसद में सबसे बड़ी पार्टी बनी हुई है. ऐसे में ताकाइची का जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री बनना करीब तय है. बस शर्त ये है कि 15 अक्टूबर के आसपास होने वाले संसद के असाधारण सत्र में उनके नेतृत्व पर औपचारिक मुहर हो जाए. जापान के नेतृत्व की उनकी राह में कई बड़ी चुनौतियां हैं. उनके जनादेश की परीक्षा पार्टी में फिर से एकता स्थापित करने में, एलडीपी के अलावा दूसरी पार्टियों से विधायी सहयोग सुनिश्चित करने में होगी. इसके अलावा, राजकोषीय और विदेश नीति की दिशा पर बाज़ारों और जनता दोनों को आश्वस्त करने की उनकी क्षमता की भी परीक्षा होगी.

  • बहुमत न होते हुए भी एलडीपी सबसे बड़ी पार्टी है, इसलिए ताकाइची का जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री बनना लगभग तय है.
  • ताकाइची विदेश नीति और सुरक्षा में राष्ट्रवादी और रूढ़िवादी रुख़ के लिए जानी जाती हैं.

साने ताकाइची के सामने क्या चुनौतियां?

एलडीपी नेतृत्व के लिए इस चुनाव की नौबत आई शिगेरु इशिबा की वजह से, जिन्होंने सितंबर 2025 की शुरुआत में प्रधानमंत्री और एलडीपी के अध्यक्ष पद से अचानक इस्तीफा दे दिया था. एलडीपी का नेता बनने के लिए ये चुनाव काफी संघर्षपूर्ण और ऊंचे दांव वाला साबित हुआ था. यह चुनाव जापान की राजनीति की दिशा को नया आकार दे सकता है. जापान के लिए पिछले कुछ साल पार्टी के कमजोर होते प्रभुत्व, गहरे सार्वजनिक असंतोष और गंभीर भू-राजनीतिक चुनौतियों से भरे रहे हैं. इशिबा का इस्तीफ़ा इसी बढ़ते दबाव का नतीजा था: उनके नेतृत्व में, एलडीपी ने जापान के द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के इतिहास में पहली बार दोनों सदनों में अपना विधायी बहुमत खो दिया. चुनावी प्रतिक्रियाएं बहुत तीखी थी. जुलाई 2025 के उच्च सदन और उससे पहले के निचले सदन के चुनावी नतीजों के बाद सत्तारूढ़ गठबंधन ध्वस्त हो गया. इन चुनावों ने मुद्रास्फीति, अर्थव्यवस्था में आए ठहराव की धारणाओं, और मतदाताओं से कटती जा रही पार्टी के प्रति जनता में गहरे असंतोष को उजागर किया.

यह चुनाव जापान की राजनीति की दिशा को नया आकार दे सकता है. जापान के लिए पिछले कुछ साल पार्टी के कमजोर होते प्रभुत्व, गहरे सार्वजनिक असंतोष और गंभीर भू-राजनीतिक चुनौतियों से भरे रहे हैं.


इशिबा ने खुद संकेत दिया कि अमेरिका-जापान टैरिफ वार्ता का समापन उनके पद छोड़ने के लिए एक स्वाभाविक मोड़ था. व्यावहारिक रूप से देखें तो, उनके जाने से पार्टी को संसद के फिर से शुरू होने और नए प्रधानमंत्री के औपचारिक रूप से चुने जाने से पहले खुद को पुनर्गठित करने के लिए थोड़ी राहत मिली. ये इस बात का भी संकेत है कि नेतृत्व में बदलाव के पीछे विशुद्ध चुनावी दृष्टिकोण नहीं, बल्कि आंतरिक गतिशीलता थी. ताकाइची को एक कमज़ोर एलडीपी विरासत में मिलेगी. पार्टी की सार्वजनिक वैधता में कमी आई है, संसदीय बहुमत स्पष्ट नहीं है, और उसे कई गंभीर घरेलू और बाहरी चुनौतियों का सामना करना होगा.


किस आर्थिक दिशा में जा सकती हैं ताकाइची?

यह अनुमान लगाया जा रहा है कि ताकाइची भी अबेनॉमिक्स (जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजू आबे की आर्थिक नीतियां) जैसी विस्तारवादी राजकोषीय नीतियों पर वापस लौटेंगी. इसके तहत सरकारी खर्च, प्रोत्साहन, मुद्रास्फीति और विकास को बढ़ावा देने के प्रयासों पर ज़ोर दिया जाएगा. ताकाइची ने "ज़िम्मेदार विस्तारवादी राजकोषीय नीति" की बात की है, जिसमें बढ़ते खर्च को कर कटौती या परिवारों को नकद भुगतान के साथ जोड़ा जाएगा, खासकर जीवन यापन की बढ़ती लागत को कम करने के लिए. मौद्रिक नीति के मामले में, जहां एक ओर ताकाइची इस बात को स्वीकार करती दिख रही हैं कि बैंक ऑफ जापान (बीओजे) को ब्याज दरों पर तकनीकी नियंत्रण बनाए रखना चाहिए, वहीं दूसरी ओर उन्होंने संकेत दिया है कि उनके मुताबिक, समग्र दिशा तय करने में सरकार को अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए. उनके प्रोत्साहन-समर्थक रुख़ के कारण, ऐसा माना जा रहा है कि बैंक ऑफ जापान कम से कम निकट भविष्य में, आगे की ब्याज दरों में बढ़ोतरी में देरी करेगा. हालांकि, इसमें ज़ोखिम भी हैं. जापान पहले से ही भारी कर्ज़ में डूबा हुआ है. सार्वजनिक ऋण जीडीपी के 200 प्रतिशत से अधिक हो चुके हैं. ऐसे में प्रोत्साहन पैकेज और लंबी अवधि के बॉन्ड प्रतिफल से राजकोषीय स्थिरता पर असर पड़ सकता है. इसके अलावा, एलडीपी के पास संसद के दोनों सदनों में पूर्ण बहुमत ना होने के कारण, प्रमुख नीतिगत पहलों के लिए विपक्ष या गठबंधन सहयोगियों के साथ समझौता करना पड़ सकता है.

 ताकाइची ने "ज़िम्मेदार विस्तारवादी राजकोषीय नीति" की बात की है, जिसमें बढ़ते खर्च को कर कटौती या परिवारों को नकद भुगतान के साथ जोड़ा जाएगा, खासकर जीवन यापन की बढ़ती लागत को कम करने के लिए.

ताकाइची ने राष्ट्रीय महत्व वाले क्षेत्रों के लिए लक्षित सरकारी समर्थन के माध्यम से "संकट प्रबंधन निवेश" की बात की है. इसमें खाद्य, ऊर्जा और आर्थिक सुरक्षा सहित कुछ और महत्वपूर्ण क्षेत्र शामिल हैं. वो सेमीकंडक्टर, एआई, अंतरिक्ष और रक्षा-संबंधी औद्योगिक क्षमता को मज़बूत करने पर ज़ोर दे सकती हैं, मुद्रास्फीति, विशेष रूप से कमज़ोर येन के माध्यम से आयात-संचालित मुद्रास्फीति, से निपटने के उपाय भी उनके एजेंडे में प्रमुखता से शामिल हैं. उदाहरण के लिए, जनसंख्या में आ रही गिरावट के जवाब में, अस्थायी गैसोलीन टैक्स को कम करना और सामाजिक सुरक्षा (बुजुर्गों की देखभाल और चिकित्सा प्रणालियों सहित) में सुधार करना प्राथमिकताएं हैं. ताकाइची ने अमेरिका के साथ उस निवेश समझौते पर फिर से बातचीत करने की संभावना का भी संकेत दिया है जिसके तहत पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जापानी निर्यात पर दंडात्मक शुल्कों में ढील दी थी.

 
विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में, ताकाइची अपने ज़्यादा राष्ट्रवादी और रूढ़िवादी रुख़ के लिए जानी जाती हैं. इसलिए उनसे रक्षा खर्च बढ़ाने और संवैधानिक सुधारों पर ज़्यादा ज़ोर देने की उम्मीद है, खासकर जापान की सैन्य भूमिका के संदर्भ में. इस साल की शुरुआत में, उन्होंने ताइवान के साथ एक "अर्ध-सुरक्षा गठबंधन" बनाने का प्रस्ताव भी रखा था, जो उनके आक्रामक रुख़ को दर्शाता है. उन्होंने मज़बूत आर्थिक सुरक्षा उपायों और विदेशी निवेश और इमिग्रेशन पर सख़्त नियमन की इच्छा जताई है. हालांकि, इन मुद्दों पर उनकी हालिया टिप्पणियों के अनुसार, वो स्पष्ट रूप से इसे लेकर बहिष्कारकारी नहीं है, बल्कि उनकी नीतियां जन सरोकार और राष्ट्रीय जरूरतों के इर्द-गिर्द केंद्रित है.

जापान की राजनीति में ताकाइची का उत्थान प्रतीकात्मक रूप से ऐतिहासिक है, क्योंकि वो देश की पहली महिला एलडीपी नेता और शायद पहली महिला प्रधानमंत्री हैं, लेकिन यह उनके गहरे रूढ़िवादी विचारों के बिल्कुल विपरीत है. ताकाइची ने महिलाओं को शादी के बाद अपना पहला नाम रखने की अनुमति देने वाले सुधारों का लगातार विरोध किया है. उन्होंने परिवार में महिला मुखिया की धारणा को खारिज किया है. वो लैंगिक मुद्दों और पारिवारिक भूमिकाओं के पारंपरिक विचारों का समर्थन करती हैं. नारीवादी सफलता का प्रतिनिधित्व करने से कहीं दूर, उनका उदय जापान की रूढ़िवादी स्थापना का नेतृत्व करने वाली एक महिला के विरोधाभास दिखाता है, क्योंकि वो लैंगिक समानता और सामाजिक उदारीकरण के प्रमुख पहलुओं का विरोध कर रही हैं.

 
सामाजिक सुधारों पर ताकाइची का रूख़ क्या है?

आने वाले महीनों में, कई ऐसे संकेत मिलेंगे, जो ये बताएंगे कि साने ताकाइची के कार्यकाल में जापान किस दिशा में जाएगा. उनका पहला बजट सबसे ज़्यादा प्रभावशाली होगा, जिसका आकार और क्षेत्रीय प्राथमिकताएँ ये दर्शाएंगी कि क्या वो सामाजिक कल्याण पर खर्च के बजाय रक्षा विस्तार और औद्योगिक नीति (एआई, सेमीकंडक्टर, हरित तकनीक) को प्राथमिकता देंगी, जैसा कि कई लोगों को उम्मीद है, क्योंकि वो संकट प्रबंधन निवेश पर ज़ोर दे रही हैं. उनके मंत्रिमंडल का गठन भी उतना ही महत्वपूर्ण होगा, जिससे ये पता चलेगा कि क्या वो उदारवादियों को शामिल करके एलडीपी में गुटीय संघर्ष को संतुलित करना चाहती हैं या इसके बजाय रूढ़िवादियों और आबे के वफादारों के बीच अपना आधार मज़बूत करना चाहती हैं. इसी से संवैधानिक सुधारों के प्रति उनके दृष्टिकोण और उनके राजनीतिक फैसलों की परीक्षा होगी. सवाल ये भी है कि क्या वो जापान के शांतिवादी संविधान में संशोधनों को आक्रामक रूप से आगे बढ़ाएंगी, जो लंबे समय से रूढ़िवादी लक्ष्य रहा है. ऐसा भी हो सकता है कि वो अपने इस लक्ष्य पर आगे बढ़ने से पहले जनता और गठबंधन के समर्थन का आकलन करने के लिए अपनी बयानबाजी को संयमित करें.

 वो जापान की दिशा को सफलतापूर्वक नया आकार दे पाएंगे या नहीं, ये इस बात पर निर्भर करता है कि वो इन आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से कितने बेहतर तरीके से निपटती हैं.

ताकाइची के सामने फिलहाल बहुत ज़्यादा बदलाव करने की गुंजाइश नहीं है. उन्हें कमज़ोर विधायी नियंत्रण, वित्तीय बाज़ार की संवेदनशीलता और सार्वजनिक वैधता और विदेशी मामलों में कूटनीतिक के बीच संतुलन बनाकर चलना है. वो जापान की दिशा को सफलतापूर्वक नया आकार दे पाएंगे या नहीं, ये इस बात पर निर्भर करता है कि वो इन आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से कितने बेहतर तरीके से निपटती हैं.


प्रतांश्री बसु ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

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