Published on May 09, 2023 Updated 0 Hours ago

मौजूदा समय में पंप हाइड्रो स्टोरेज सेवा के लिए कोई बाज़ार नहीं है लेकिन भविष्य में इस तरह की सेवाओं के लिए ज़रूरत इस स्थिति तक बढ़ने की संभावना है जहां बाज़ार इसके लिए पैसे का भुगतान करने को तैयार होगा.

भारत में ग्रिड की स्थिरता को संभालने में हाइड्रोपावर की भूमिका

ये लेख व्यापक ऊर्जा निगरानी: भारत और विश्व सीरीज़ का हिस्सा है.


वास्तविक स्थिति

1947 में हाइड्रोपावर (जल शक्ति) क्षमता कुल बिजली उत्पादन क्षमता का लगभग 37 प्रतिशत थी जबकि उस वक़्त के कुल बिजली उत्पादन का 53 प्रतिशत से ज़्यादा थी. 60 के दशक के अंत में कोयले से पैदा होने वाली बिजली ने भारत में हाइड्रोपावर की जगह लेनी शुरू कर दी और क्षमता एवं उत्पादन- दोनों ही मामलों में हाइड्रोपावर का हिस्सा नाटकीय ढंग से गिर गया. 2022-23 में 46,850 मेगावाट के साथ हाइड्रोपावर का हिस्सा भारत में कुल बिजली उत्पादन की क्षमता में 11.3 प्रतिशत रहा जबकि कुल बिजली उत्पादन में 9.9 प्रतिशत. छोटे हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट (25 मेगावॉट से कम) की कुल स्थापित (इंस्टॉल) क्षमता 4,944 मेगावाट है जबकि पंप हाइड्रो स्टोरेज (PHS) की क्षमता 4,745 मेगावॉट थी जिसमें से 3,305 मेगावाट का इस्तेमाल 2022 में पंप्ड स्टोरेज मोड (एक प्रकार से हाइड्रोपावर के स्टोरेज का तरीक़ा) में किया गया.

वैश्विक तौर पर हाइड्रोपावर अभी तक रिन्यूएबल एनर्जी यानी नवीकरणीय ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है जो सभी रिन्यूएबल एनर्जी में से दो-तिहाई हिस्सा मुहैया कराती है. 2020 में वैश्विक स्तर पर कुल स्थापित बिजली उत्पादन की क्षमता में हाइड्रोपावर का हिस्सा लगभग 18 प्रतिशत था जबकि कुल उत्पादन में हाइड्रोपावर का हिस्सा क़रीब 17 प्रतिशत था.

 

वैश्विक तौर पर हाइड्रोपावर अभी तक रिन्यूएबल एनर्जी यानी नवीकरणीय ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है जो सभी रिन्यूएबल एनर्जी में से दो-तिहाई हिस्सा मुहैया कराती है. 2020 में वैश्विक स्तर पर कुल स्थापित बिजली उत्पादन की क्षमता में हाइड्रोपावर का हिस्सा लगभग 18 प्रतिशत था जबकि कुल उत्पादन में हाइड्रोपावर का हिस्सा क़रीब 17 प्रतिशत था. हाइड्रोपावर से प्रदूषण मुक्त बिजली के उत्पादन ने 2020 में रिकॉर्ड 4,500 टेरावॉट आवर (TWh) की क्षमता हासिल की लेकिन व्यापक स्तर पर सूखे की वजह से 2021 में ये गिरकर 4,327 TWh पर पहुंच गई. ऐतिहासिक तौर पर हाइड्रोपावर कोयला और प्राकृतिक गैस के बाद बिजली का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत थी और रिन्यूएबल एनर्जी के स्रोतों में इसका सबसे बड़ा योगदान था. परमाणु बिजली की तुलना में हाइड्रोपावर से बिजली का उत्पादन 55 प्रतिशत ज़्यादा था और पवन ऊर्जा एवं सौर ऊर्जा समेत सभी रिन्यूएबल एनर्जी के स्रोतों से पैदा होने वाली बिजली से ज़्यादा था. लेकिन पिछले कुछ वर्षों के दौरान हाइड्रोपावर के उत्पादन की क्षमता में सिर्फ़ 1 प्रतिशत के क़रीब की सालाना बढ़ोतरी दर्ज की गई है जो कि नेट ज़ीरो के लक्ष्य को पूरा करने के लिए ज़रूरी 3 प्रतिशत सालाना के औसत विकास दर से काफ़ी कम है.

स्रोत: हाइड्रोपावर की बदलती भूमिका: IRENA 2023

चुनौतियां

ज़्यादा स्टोरेज वाले हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट कम कार्बन वाली बिजली का उत्पादन करते हैं लेकिन उनकी वजह से स्थानीय स्तर पर पर्यावरणीय और सामाजिक नुक़सान बड़े पैमाने पर होता है. इस तरह के प्रोजेक्ट हज़ारों लोगों को विस्थापित करते हैं, नदी के पर्यावरण को नुक़सान पहुंचाते हैं, बड़े पैमाने पर जंगल की कटाई करवाते हैं, जल के जीवों एवं ज़मीनी जैव विविधता को नुक़सान की शुरुआत करते हैं और नकारात्मक रूप से खाद्य प्रणाली, पानी की क्वालिटी एवं खेती को बदलते हैं. पर्यावरण और समाज को इन नुक़सानों के कारण उत्तरी अमेरिका और यूरोप में बांधों को हटाने की शुरुआत हुई जहां 70 के दशक तक बड़े-बड़े बांध का निर्माण होता था. अब उत्तरी अमेरिका और यूरोप में नये बांध के निर्माण से ज़्यादा उन्हें हटाया जा रहा है. यहां तक कि विकासशील देशों, जहां बांधों का निर्माण जारी है, में भी बांध के निर्माण की रफ़्तार कम हो रही है क्योंकि ज़रूरी जगहों पर बांध का निर्माण हो चुका है और रिन्यूएबल एनर्जी के दूसरे स्रोतों जैसे कि सौर एवं पवन ऊर्जा की तरफ़ ही नीतिगत स्तर पर ध्यान एवं निवेश जा रहा है

वैपर्यावरण से जुड़ी चिंताओं को लेकर व्यापक स्तर पर बेरुख़ी और नियामक (रेगुलेटरी) संस्थाओं की तरफ़ से विश्वसनीय निगरानी एवं नियमों के पालन की ग़ैर-मौजूदगी ने जोखिम को काफ़ी बढ़ा दिया है. लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को छोड़ देना चाहिए.

नाज़ुक हिमालयन पर्वतों, जहां भारत के ज़्यादातर नये हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट विकसित किए जा रहे हैं, में विनाशकारी बाढ़ और भूस्खलन (लैंडस्लाइड) ने हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट के लिए जोखिम का स्तर बढ़ा दिया है. कुछ घटनाएं जो इस चुनौती का उदाहरण पेश करती हैं, उनमें फरवरी 2021 की शुरुआत में उत्तराखंड के चमोली ज़िले में धौलीगंगा, ऋषि गंगा और अलकनंदा नदियों में आई अचानक बाढ़ शामिल हैं. इस घटना में 70 से ज़्यादा लोगों की जान चली गई और NTPC (नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन) की 520 मेगावाट क्षमता वाली तपोवन-विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना, उत्तराखंड जल विद्युत निगम की 13.5 मेगावाट क्षमता वाली ऋषि गंगा पनबिजली परियोजना, THDC (टिहरी हाइड्रोपावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन) की 444 मेगावाट क्षमता वाली पीपलकोटी परियोजना (जिसको विश्व बैंक की सहायता मिली है) और जयप्रकाश पावर वेंचर की 400 मेगावॉट क्षमता वाली विष्णुप्रयाग परियोजना को गंभीर नुक़सान हुआ. हालांकि इस आपदा के कारणों (ग्लेशियर दुर्घटना, बर्फीला तूफ़ान, लैंडस्लाइड) को लेकर सहमति नहीं है लेकिन इस बात को लेकर आम तौर पर सहमति है कि पर्याप्त समीक्षा और असर एवं आपदा की आशंका के मूल्यांकन के बिना पनबिजली परियोजनाओं, हाईवे, रेलवे लाइन और खनन समेत विकास की दूसरी परियोजनाओं को अंजाम देने की वजह से इतने बड़े पैमाने पर नुक़सान हुआ. पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं को लेकर व्यापक स्तर पर बेरुख़ी और नियामक (रेगुलेटरी) संस्थाओं की तरफ़ से विश्वसनीय निगरानी एवं नियमों के पालन की ग़ैर-मौजूदगी ने जोखिम को काफ़ी बढ़ा दिया है. लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को छोड़ देना चाहिए. भारत में हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट के ऐसे उदाहरण हैं जिन्होंने सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा किया है. सिक्किम में स्थित तीस्ता-V हाइड्रोपावर स्टेशन को 2019 में हाइड्रोपावर सस्टेनेबिलिटी में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अच्छी कार्यप्रणाली के उदाहरण के तौर पर दर्जा दिया गया है. NHPC (नेशनल हाइड्रोपावर कॉरपोरेशन) लिमिटेड के इस 510 मेगावॉट क्षमता वाले प्रोजेक्ट ने प्रदर्शन की सभी 20 श्रेणियों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छी कार्यप्रणाली के लक्ष्य को या तो पूरा किया है या उससे भी बेहतर प्रदर्शन किया है. भारत में हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट की योजनाओं के सतत यानी सस्टेनेबल (जो पर्यावरण को हानि नहीं पहुंचाए) होने के लिए सरकार और उद्योग को सिविल सोसायटी, ख़ास तौर पर जो लोग सीधे तौर पर प्रोजेक्ट से प्रभावित हैं, को शामिल करके पारदर्शिता को प्राथमिकता देनी चाहिए. रिसर्च से पता चलता है कि पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा और पनबिजली को शामिल करके तैयार मॉड्यूलर सॉल्यूशन वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत मुहैया कराते हैं जो पर्यावरणीय, सामाजिक और वित्तीय तौर पर आकर्षक हैं. इनस्ट्रीम टरबाइन पार्क (जो पानी के करंट को बिजली में तब्दील करते हैं) बांधों का एक अच्छा विकल्प हैं और ये काफ़ी कम लागत पर बिजली का उत्पादन करते हैं. बड़े, स्मार्टहाइड्रोपावर प्रोजेक्ट देश के आर्थिक फ़ायदों के अलावा स्थानीय और नदी के पास रहने वाले लोगों की आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक चिंताओं को ध्यान में रखकर विकसित किए जा सकते हैं. स्मार्ट प्रोजेक्ट में तकनीकी प्रावधान जल जीवों के जीवन और ज़मीनी इकोसिस्टम पर असर को कम कर सकते हैं. हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट का समर्थन करने के लिए भारत सरकार ने 25 मेगावाट से ऊपर की क्षमता वाली बड़ी परियोजनाओं को रिन्यूएबल एनर्जी की श्रेणी के तहत शामिल किया है और हाइड्रोपावर परचेज़ ऑब्लिगेशन (HPO) को ग़ैर-सोलर रिन्यूएबल परचेज़ ऑब्लिगेशन (RPO) के तहत अधिसूचित (नोटिफाई) किया है. परियोजना की सफलता के लिए प्रोजेक्ट के जीवनकाल को 40 साल तक बढ़ाने के बाद शुरू में कम और बाद में ज़्यादा टैरिफ के साथ टैरिफ संरचना में बदलाव, कर्ज़ चुकाने की मियाद बढ़ाकर 18 साल करना एवं 2 प्रतिशत टैरिफ में बढ़ोतरी की शुरुआत, सड़क एवं पुल जैसे मददगार बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए बजट में समर्थन और बाढ़ की रोकथाम के लिए बजट में प्रावधान की शुरुआत की गई है

ग्रिड की स्थिरता में योगदान 

रिन्यूएबल एनर्जी के दूसरे स्रोतों जैसे कि पवन और सौर ऊर्जा के मुक़ाबले हाइड्रोपावर का सबसे बड़ा फ़ायदा ये है कि इसे किसी भी समय तेज़ी से भेजा जा सकता है. इससे बिजली कंपनियों को ये सुविधा मिलती है कि वो बिजली के डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम में लोड वैरिएशन को बैलेंस कर सकती हैं. भारत में हाइड्रोपावर की लोड सहन करने की क्षमता का सबसे अच्छा प्रदर्शन 5 अप्रैल 2020 को हुआ जब रात 9 बजे से 9 बजकर 9 मिनट तक 9 मिनट के लिए ज़्यादातर लोगों ने अपने घरों में बिजली की लाइट को बंद कर दिया और इसकी वजह से बिजली की मांग में 31 गीगावॉट (GW) की कमी आने के बावजूद देश की बिजली कंपनियों ने ग्रिड की स्थिरता को बहाल कर दिया. इसके बाद के समय में हाइड्रोपावर से बिजली के उत्पादन में 68 प्रतिशत की कमी आई और इसे ग्रिड की स्थिरता से समझौता किए बिना कम समय में बहाल कर दिया गया

पंप्ड हाइड्रो स्टोरेज (PHS) पानी की संभावित ऊर्जा के रूप में बिजली को नीचे के एक जलाशय (रिज़र्वोयर) से पंप करके ऊपरी जलाशय में स्टोर करने की सुविधा देता है. जब बिजली की मांग ज़्यादा होती है तो इकट्ठा पानी को रिलीज़ करके बिजली का उत्पादन होता है. ये टरबाइन के ज़रिए उसी तरह से होता है जैसे कि पारंपरिक हाइड्रोपावर स्टेशन में. जब बिजली की मांग कम होती है तो ऊपरी जलाशय में पानी को फिर से पंप करने के लिए ग्रिड की कम लागत वाली बिजली का इस्तेमाल करके ऊपरी जलाशय को रिचार्ज किया जाता है. PHS प्रोजेक्ट पारंपरिक हाइड्रोइलेक्ट्रिक स्टेशन से इस मायने में अलग हैं कि वो निचले जलाशय से ऊपरी जलाशय तक पानी की पंपिंग के दौरान हुए हाइड्रोलिक और बिजली के नुक़सान की वजह से बिजली की खपत करते हैं. हालांकि ये प्लांट आम तौर पर बेहद सक्षम होते हैं और बिजली के सामान्य सिस्टम के भीतर लोड को बैलेंस करने में काफ़ी फ़ायदेमंद साबित हो सकते हैं. पंप स्टोरेज की सुविधा बिजली की मांग कम और ज़्यादा होने और महत्वपूर्ण ग्रिड सर्विस मुहैया कराने की वजह से बेहद किफ़ायती भी हो सकते हैं. वैश्विक स्तर पर लगभग 190 गीगावॉट PHS दुनिया की सबसे बड़ीवाटर बैटरीके तौर पर काम करता है जो वैश्विक ऊर्जा स्टोरेज की स्थापित क्षमता का 85 प्रतिशत से ज़्यादा है. ये ग्रिड स्थिरता में मदद करता है, सिस्टम की लागत को कम करता है और इस क्षेत्र में उत्सर्जन में भी कमी लाता है. भारत में आठ PHS प्लांट हैं जिनकी 2022 में कुल क्षमता 4,745 मेगावाट थी. लेकिन सिर्फ़ छह प्लांट, जिनकी कुल क्षमता लगभग 3,305 मेगावाट है, को पंपिंग मोड में चलाया जा रहा है. PHS प्रोजेक्ट के लिए भारत की महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं. 63 साइट को PHS प्रोजेक्ट के तौर पर निर्धारित किया गया है जिनकी कुल क्षमता 96,500 मेगावॉट बिजली उत्पादन की है. 2022 तक 5,280 मेगावॉट क्षमता की PHS परियोजनाएं निर्माण के अलग-अलग चरणों में हैं, 16,770 मेगावाट क्षमता की परियोजनाएं छानबीन के अलग-अलग चरणों में हैं और 8,855 मेगावॉट क्षमता की परियोजनाओं का शुरुआती अध्ययन चल रहा है. 2020 में सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (SECI) ने रिवर्स नीलामी पद्धति (रिवर्स ऑक्शन मेथड) के ज़रिए दुनिया की सबसे बड़ी रिन्यूएबल और एनर्जी स्टोरेज पावर परचेज़ के टेंडर को पूरा किया. ग्रीनको ग्रुप ने PHS के साथ सोलर पावर को जोड़ते हुए 6.12/किलोवाट आवर (kWh) के पीक टैरिफ रेट के साथ ये टेंडर हासिल किया.                                      

पंप्ड हाइड्रो स्टोरेज का अर्थशास्त्र

ऊर्जा को लेकर कोई भी समाधान बाज़ार के वास्तविक और प्रतिस्पर्धी दबावों के बाहर नहीं हो सकता है. हालांकि सही अर्थों में भारत में बिजली के लिए कोई बाज़ार मौजूद नहीं है मगर PHS लंबे समय में सफलता के लिए तकनीकी व्यावहारिकता और पर्यावरण से जुड़े लाभों पर भरोसा नहीं कर सकता है. PHS के लिए राजस्व का परंपरागत स्रोत आर्बिट्रेज है यानी जब क़ीमत ज़्यादा हो तो बेचना और जब क़ीमत कम हो तो स्टोरेज करना. लेकिन ये बिजली के बाज़ार में निश्चित स्तर के अनुमानित बदलाव और भविष्य में इस बदलाव के जारी रहने पर निर्भर करता है. PHS नेटवर्क सपोर्ट सेवाएं मुहैया कराता है. इनमें फ्रीक्वेंसी कंट्रोल, ऊर्जा की निष्क्रियता (इनर्शिया) और फॉल्ट लेवल कंट्रोल शामिल हैं. सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के ग़ैर-समकालिक (नॉन-सिंक्रोनस) उत्पादन की महत्वपूर्ण मात्रा के साथ ग्रिड में इसकी अहमियत बढ़ जाती है. फिलहाल इन नेटवर्क सपोर्ट सेवाओं के लिए कोई बाज़ार नहीं है लेकिन भविष्य में इन सेवाओं के लिए ज़रूरत उस सीमा तक बढ़ने की उम्मीद है जहां तक बाज़ार इसके लिए पैसा चुकाने को तैयार है.

स्रोत: हाइड्रोपावर की बदलती भूमिका: IRENA 2023

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Authors

Akhilesh Sati

Akhilesh Sati

Akhilesh Sati is a Programme Manager working under ORFs Energy Initiative for more than fifteen years. With Statistics as academic background his core area of ...

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Lydia Powell

Lydia Powell

Ms Powell has been with the ORF Centre for Resources Management for over eight years working on policy issues in Energy and Climate Change. Her ...

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Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar, Assistant Manager, Energy and Climate Change Content Development of the Energy News Monitor Energy and Climate Change. Member of the Energy News Monitor production ...

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