Author : Shoba Suri

Published on Nov 02, 2022 Updated 0 Hours ago

जलवायु परिवर्तन से निपटने और एसडीजी हासिल करने में सर्कुलर इकोनॉमी एक केंद्रीय भूमिका निभाती है.

‘विकास के सतत् लक्ष्यों को हासिल करने के लिये ज़रूरी है टिकाऊ फूड वैल्यू चेन्स’

 ‘फार्म्स और फर्म्स की पूरी शृंखला और उनकी सिलसिलेवार समन्वित मूल्य-संवर्द्धन गतिविधियां जो इस ढंग से तयशुदा कच्चा कृषि माल पैदा करती हैं और उन्हें तयशुदा खाद्य उत्पादों (जिन्हें अंतिम उपभोक्ताओं को बेचा जाता है और इस्तेमाल के बाद निपटा दिया जाता है) में बदलती हैं, ताकि शुरू से अंत तक मुनाफ़ा हो, समाज को व्यापक रूप से फ़ायदा मिले, और प्राकृतिक संसाधनों का स्थायी क्षरण नहीं हो’… टिकाऊ फूड वैल्यू चेन की यह परिभाषा खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा दी गयी है.

खाद्य प्रणाली का टिकाऊपन यह सुनिश्चित करने पर निर्भर है कि उत्पादित और उपभोग किये जाने वाले खाद्य पदार्थों की बर्बादी को कम से कम किया जाए. यह न केवल पर्यावरण को गैर-टिकाऊ खाद्य प्रणालियों के असर से बचायेगा, बल्कि दुनिया भर के लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा को बढ़ायेगा.

दुनिया में खाद्य सुरक्षा एवं पोषण की स्थिति 2022’ के मुताबिक़, ‘ भूख, खाद्य असुरक्षा, और सभी तरह का कुपोषण ख़त्म करने के लिए टिकाऊ विकास लक्ष्य (एसडीजी) उद्देश्यों को लेकर दुनिया गलत दिशा में बढ़ रही है.’ महामारी के दौरान भूख में वृद्धि देखने को मिली. 82.8 करोड़ लोग इससे प्रभावित हुए, जो 2020 के मुक़ाबले 4.6 करोड़ और 2019 के मुक़ाबले 15 करोड़ अधिक थे. 2021 में खाद्य असुरक्षा ने तक़रीबन 92.4 करोड़ लोगों पर असर डाला, जो 2019 से लगभग 20.7 करोड़ अधिक है. संयुक्त बाल कुपोषण अनुमान 2021 के मुताबिक़, 14.9 करोड़ बच्चे ठीक से बढ़ नहीं रहे हैं, 4.5 करोड़ कमज़ोर हैं, और 3.9 करोड़ का वजन ज़रूरत से ज़्यादा है. यूक्रेन संघर्ष ने 9.5 करोड़ लोगों को अत्यधिक ग़रीबी में धकेल कर चुनौती को और गंभीर बना दिया है. कुपोषण ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों को अलग-अलग ढंग से प्रभावित किया है, जहां महामारी का प्रभाव अभी भी सामने आ रहा है. यह देखते हुए कि 2050 तक दुनिया की आबादी बढ़कर 9.7 अरब होने का अनुमान है, भूख पर काबू पाने और जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिए खाद्य सुरक्षा और टिकाऊपन (सस्टेनेबिलिटी) अपरिहार्य हैं. खाद्य प्रणाली का टिकाऊपन यह सुनिश्चित करने पर निर्भर है कि उत्पादित और उपभोग किये जाने वाले खाद्य पदार्थों की बर्बादी को कम से कम किया जाए. यह न केवल पर्यावरण को गैर-टिकाऊ खाद्य प्रणालियों के असर से बचायेगा, बल्कि दुनिया भर के लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा को बढ़ायेगा. 

21वीं सदी की जटिल वैश्विक पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों को पूरा कर पाने में खाद्य प्रणालियां विफल हो रही हैं. ग़रीबी, कुपोषण, ज़मीन की उत्पादकता में गिरावट, पानी की कमी, सामाजिक गैरबराबरी तथा जलवायु परिवर्तन जैसे विभिन्न कारक खाद्य पदार्थों के उत्पादन, वितरण और उपभोग का तरीक़ा तय करते हैं. कृषि की उन्नत विधियां मानव और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं. संबंधित ग्रीन हाउस गैसों (जीएचजी) के उत्सर्जन के साथ वे मीठे पानी को प्रदूषित करती हैं, मिट्टी का उपजाऊपन कम करती हैं, और जैव-विविधता को नुक़सान पहुंचाती हैं. 2050 तक दुनिया की आबादी की पोषण संबंधी मांग पूरी करने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, खाद्य उत्पादन को 70 फ़ीसद तक बढ़ाना होगा. इस लक्ष्य को पूरा करना खाद्य प्रणालियों और खाद्य उत्पादन के पारिस्थितिकीय प्रभाव के संबंध में सवाल खड़े करता है. खाद्य प्रणालियां और खाद्य उत्पादन- ये दोनों ही मानव-जनित कार्बन फुटप्रिंट और पर्यावरणीय अवनति में बड़ी भूमिका निभाते हैं. एसडीजी के लक्ष्य 12 में भी इस पर ज़ोर दिया गया है, जो साफ़ कहता है, ‘टिकाऊ उपभोग और उत्पादन के पैटर्न सुनिश्चत करें’.

सामाजिक टिकाऊपन अच्छी ट्रेसबिलिटी पर निर्भर करता है, जिसका मूल्यांकन खाद्य सप्लाई चेन्स में, ख़ास तौर पर मैन्यूफैक्चरिंग चरणों के दौरान, एक कनेक्शन फैक्टर के रूप में किया जाता है. मैन्यूफैक्चरिंग के बिल्कुल शुरुआती चरण से ब्लॉकचेन, आरएफआईडी और बारकोड प्रणालियों जैसी तकनीकों का इस्तेमाल कर एक ट्रेसेबल सिस्टम हासिल किया जा सकता है.

टिकाऊ और समावेशी फूड वैल्यू चेन्स का आइडिया खाद्य सुरक्षा बेहतर करने की चुनौती से निपटता है. इसके लिए वह ग़रीबी और भूख को सीधे प्रभावित करने वाले तीन मोर्चों – आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक (नीचे चित्र देखें) – पर टिकाऊपन से जुड़े मुद्दों (जिनमें भोजन की उपलब्धता, उस तक पहुंच, उपभोग और बर्बादी शामिल हैं) का समाधान करता है.

फूड वैल्यू चेन के विकास में टिकाऊपन की अवधारणा

वैल्यू चेन का निर्माण

खाद्य उद्योग दुनिया भर में 1.1 अरब लोगों को रोज़गार देता है, जो वैश्विक रोज़गार के 31 फ़ीसद के बराबर है. व्यावहारिक रूप से इसका मतलब यह हुआ कि लगभग 30 से 50 करोड़ वेतनभोगी कामगार खाद्य उद्योग पर निर्भर हैं, जहां ज़्यादातर कार्य बल (वर्कफोर्स) विकासशील देशों से आता है. छोटी खेती वाले किसान न सिर्फ़ भोजन प्रदाता है, बल्कि कार्बन की जब्ती (carbon  sequestration) के ज़रिये जलवायु संबंधी सेवाएं मुहैया कराते हुए पारिस्थितिकी तंत्र के बेहद अहम कार्यों को भी संरक्षित करते हैं. एशिया-यूरोप एनवायर्नमेंट फोरम के मुताबिक़, जड़ लैंगिक भूमिकाओं से बचते हुए और सामाजिक जुड़ाव के ज़्यादा ऊंचे स्तरों का सृजन करते हुए, पारिवारिक किसानों में सामाजिक समता और समुदाय की भलाई को बढ़ावा देने की क्षमता है. पारिवारिक फार्म और छोटी खेती से रोजग़ार सृजन और आमदनी में वृद्धि भी होती है, जिससे ग़रीबी में कमी आती है, और भोजन की विविधता और संसाधनों के टिकाऊ इस्तेमाल में सुधार होता है. पारिवारिक खेती के ये फ़ायदे फूड वैल्यू चेन और भविष्य की खाद्य सुरक्षा को मज़बूत कर सकते हैं. 

Malak-Rawlikowska व अन्य के मुताबिक़, छोटे खाद्य आपूर्ति नेटवर्क उन छोटे व मझोले उत्पादकों के लिए अधिक टिकाऊ और सामाजिक रूप से व्यवहार्य हैं जिन्हें बड़ी, पारंपरिक फूड चेन्स तक पहुंचने में कठिनाई है. लिंग संतुलन में बढ़ावे को लंबी चेन्स (जहां वितरण में महिलाओं की भागीदारी पर काफ़ी पाबंदी है) के विपरीत लॉजिस्टिक गतिविधियों में महिलाओं के बढ़ते रोज़गार के नतीजे के बतौर भी देखा जाता है. यूरोपियन ऑर्गेनिक ऐक्शन प्लान (जो ‘फार्म टू फोर्क’ दृष्टिकोण पर निर्मित है) भी छोटी सप्लाई चेन्स और छोटे पैमाने की खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को बढ़ावा दे रहा है. वैल्यू चेन निर्मित करना एक सामाजिक प्रक्रिया भी है, जिसमें विभिन्न फर्म्स के भूमिका-निर्वाहकों को अपने हितों और संसाधनों को पूल (एकत्रित) करना चाहिए, क्योंकि अंतर-संगठनात्मक सहयोग खाद्य क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू है. सामाजिक टिकाऊपन अच्छी ट्रेसबिलिटी पर निर्भर करता है, जिसका मूल्यांकन खाद्य सप्लाई चेन्स में, ख़ास तौर पर मैन्यूफैक्चरिंग चरणों के दौरान, एक कनेक्शन फैक्टर के रूप में किया जाता है. मैन्यूफैक्चरिंग के बिल्कुल शुरुआती चरण से ब्लॉकचेन, आरएफआईडी और बारकोड प्रणालियों जैसी तकनीकों का इस्तेमाल कर एक ट्रेसेबल सिस्टम हासिल किया जा सकता है.

खाद्य उत्पादन पर्यावरण से सीधे जुड़ा है, और यह जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वॉर्मिंग, पानी की कमी एवं प्रदूषण, वनों की कटाई, वायु गुणवत्ता इत्यादि से सीधे प्रभावित होता है. बदले में, पर्यावरणीय टिकाऊपन वैल्यू चेन में मौजूद उन कर्ताओं पर निर्भर है जो खाद्य उत्पादन, वितरण और उपभोग प्रणाली के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए साथ मिलकर काम करते हैं.

प्रसंस्करण चरण के दौरान, सप्लाई चेन के हितधारकों के साथ सहयोग के अलावा सूचनाओं को साझा करना फूड सप्लाई चेन्स के टिकाऊपन के लिए महत्वपूर्ण है. फूड सप्लाई चेन्स के प्रसंस्करण चरण में भोजन के क्षय और बर्बादी में कमी लाने के लिए, सूचनाओं का बेहतर आदान-प्रदान मुहैया कराने में ‘इंडस्ट्री 4.0’ जैसे नये तकनीकी विकास फ़ायदेमंद हो सकते हैं. डिजिटल कृषि प्रणालियों (जैसी कि अफ्रीकी देशों में मिलती हैं) ने किसानों और वैल्यू चेन के दूसरे भूमिका-निर्वाहकों के लिए कृषि सेवाओं को लागू करने की गति तेज़ की है. इसके नतीजतन सूचना, विशेषज्ञता, वित्तीय सेवाओं, बाज़ार, खेती के औज़ारों तक पहुंच बेहतर हुई है. वैश्विक फूड सप्लाई चेन को मोटे तौर पर पांच चरणों में बांटा जा सकता है – कृषि उत्पादन, फसल कटाई के बाद उसे संभालना, प्रसंस्करण, वितरण, और उपभोग. वैश्विक महामारी ने खाद्य सुरक्षा और वैश्विक फूड सप्लाई चेन्स को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं, खेतिहर मजदूरों की कमी, भोजन तक सीमित पहुंच, परिवहन पर पाबंदी, उपभोक्ता मांगों में बदलाव, खाद्य व्यापार पर पाबंदियों इत्यादि ने व्यवधान पैदा किये हैं. एक अध्ययन यह इशारा करता है कि ख़राब प्रबंधन और सप्लाई चेन व्यवधान वे कारक हैं जो फूड सप्लाई चेन में भोजन के क्षय व बर्बादी के लिए ज़िम्मेदार हैं.

सर्कुलर इकॉनमी की भूमिका

फूड वैल्यू चेन में सामाजिक टिकाऊपन सुनिश्चित करने के लिए आर्थिक, पर्यावरणीय तथा सामाजिक पहलुओं की अंतर-संबद्धता की आवश्यकता है. आर्थिक टिकाऊपन एक ऐसी लाभकारी वैल्यू चेन को जन्म देता है जो मूल्य सृजित करती है और ग्रहण करती है. प्रक्रियाओं और उत्पादकता को बेहतर बनाकर बाज़ार संबंधी अवसरों के विस्तार के साथ-साथ एक आर्थिक रूपांतरण भी हासिल किया जा सकता है. बढ़ती आबादी के साथ, उपभोक्ताओं के रुझान, सामाजिक चलन, व्यवहार और जीवनशैली को समझने के लिए एक बहु-विषयक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, जिसमें आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय कारकों की अंतर-निर्भरता शामिल है. टिकाऊ शहरीकरण के वास्ते फूड इकोसिस्टम स्थापित करने की ख़ातिर, यह तरीक़ा बर्बादी घटाने, इकोलॉजिकल फुटप्रिंट कम करने, और कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए स्वीकार्य बदलावों के विकास में मदद करता है. दुर्भाग्य से, एक लीनियर सप्लाई चेन मॉडल में, दुनिया में उपजाये गये कुल खाद्य के लगभग 8 फ़ीसद का क्षय फार्म में ही हो जाता है, 14 फ़ीसद का क्षय फार्म के गेट और खुदरा क्षेत्र के बीच होता है, और 17 फ़ीसद की बर्बादी खुदरा दुकानों, खाद्य सेवा प्रदाताओं और घरों में होती है. इन सबका टिकाऊपन पर काफ़ी असर होता है. जलवायु परिवर्तन, जैव-विविधता के क्षय, भोजन की बर्बादी और प्रदूषण की चुनौतियों से निपटने में सर्कुलर इकोनॉमी भूमिका निभाती है और पूरी फूड सप्लाई चेन में टिकाऊपन हासिल करने के लिए यह बेहद अहम है. इससे भी बड़ी बात यह कि खाद्य उत्पादन पर्यावरण से सीधे जुड़ा है, और यह जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वॉर्मिंग, पानी की कमी एवं प्रदूषण, वनों की कटाई, वायु गुणवत्ता इत्यादि से सीधे प्रभावित होता है. बदले में, पर्यावरणीय टिकाऊपन वैल्यू चेन में मौजूद उन कर्ताओं पर निर्भर है जो खाद्य उत्पादन, वितरण और उपभोग प्रणाली के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए साथ मिलकर काम करते हैं.

फूड सप्लाई चेन के भीतर मौजूद गैरटिकाऊ (अनसस्टेनेबल) तौर-तरीक़ों के साथ ही भोजन की बर्बादी उन क्षेत्रों को उजागर करते हैं जहां टिकाऊ खाद्य आपूर्ति नेटवर्क हासिल करने के लिए अधिक ध्यान देने की ज़रूरत हो सकती है. कुछ याद रखने लायक बातों और सुझावों में संसाधन प्रबंधन, टिकाऊ प्रसंस्करण, फूड डिलीवरी के बेहतर तरीक़े, वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल करना, भोजन तैयार करने और उसके प्रसंस्करण में टिकाऊ तौर-तरीकों को शामिल करना, तथा लोगों के व्यवहार को प्रभावित करना और उपभोक्ताओं में भरोसा विकसित करना शामिल हैं. भूख ख़त्म करने, खाद्य सुरक्षा तक पहुंचने और एसडीजी हासिल करने के लिए एक ज़्यादा उत्पादक, समावेशी और पर्यावरणीय टिकाऊ खाद्य प्रणाली की ज़रूरत है.

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