जर्मनी से, जहां वह अपने कान के पर्दे से संबंधित एक सर्जरी और शरीर के बाएं हिस्से के सुन्न होने के इलाज के लिए गए हुए हैं, संसद के स्पीकर मोहम्मद ‘अन्नी’ नशीद ने मालदीव में आत्मघाती हमलों के उभरने के प्रति आगाह किया है. सत्तारूढ़ मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) की 16वीं वर्षगांठ के अवसर पर समर्थकों के साथ सोशल मीडिया पर बातचीत में नशीद ने कहा कि स्थिति को सुरक्षित बनाने के लिए ‘कई लोगों को अचानक गिरफ़्तार किया जाना चाहिए‘. उन्होंने कहा, “मैं राष्ट्रपति (इब्राहिम सोलिह जो एमडीपी का ही हिस्सा हैं) उन्हें यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि आपको इस काम को जल्द करना चाहिए, बिना इससे पीछे हटते हुए. मालदीव को बचाने के लिए आपको ऊपर उठने की ज़रूरत है.”
साल 2008 से 2012 के बीच राष्ट्रपति रहे नशीद ने कहा कि मालदीव के समाज में अभी भी कई आतंकवादी रह रहे हैं और अपनी तरह के दूसरे लोगों से उन्हें लगातार सुरक्षा भी मिल रही है. गिरफ़्तार आतंकवादियों को ज़मानत मिल रही थी और वे स्वतंत्र रूप से घूम रहे थे. ज़हिर है कि यह बात कहते हुए उनका इशारा दक्षिणी अड्डू शहर की एक अदालत की ओर था, जहां गिरफ़्तार किए गए सात में से पांच आतंकवादियों को कथित तौर पर सबूत के अभाव में ज़मानत दे दी गई थी.
साल 2008 से 2012 के बीच राष्ट्रपति रहे नशीद ने कहा कि मालदीव के समाज में अभी भी कई आतंकवादी रह रहे हैं और अपनी तरह के दूसरे लोगों से उन्हें लगातार सुरक्षा भी मिल रही है. गिरफ़्तार आतंकवादियों को ज़मानत मिल रही थी और वे स्वतंत्र रूप से घूम रहे थे.
बर्लिन में नशीद ने जर्मन संसद के अध्यक्ष वोल्फगैंग शाउबल से मुलाकात की. सोशल मीडिया चैट में अपने समर्थकों के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि देश में न्यायाधीशों को एक ‘बड़ा संदेश’ जाना चाहिए. राष्ट्रपति के रूप में, उन्होंने लगातार इस बात को लेकर उपहास किया था कि कई अयोग्य व्यक्तियों को भी न्यायाधीश बनाया गया है. पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल ग़यूम जिन्होंने साल 1978 से 2008 तक शासन किया, उनके 30 साल के शासनकाल के दौरान, देश में क़ानूनी कॉलेजों की अनुपस्थिति में, विशेषज्ञों और शरीयत की समझ रखने वाले और इस्लामी कानूनी संहिता के अनुसार चलने वाले कई न्यायाधीशों को शिक्षित वकीलों के साथ न्यायाधीश नियुक्त किया जा रहा था.
नशीद के न होने का नुक़सान
नशीद की सोशल मीडिया में उपस्थिति से पहले, छह मई को माले में हुए बम हमले के बाद, अपने उपचार के लिए जर्मनी की यात्रा करने से पहले, उनके समर्थकों ने लगातार इस बात की शिकायत की थी कि उनकी एक महीने की अनुपस्थिति में ही, राष्ट्र को कई तरह से भुगतना पड़ा है. पार्टी सांसद मोहम्मद राय ने एमडीपी संचालन समिति की एक बैठक में कहा कि, “मेरा मानना है कि राष्ट्र की प्रगति धीमी हो गई है. ऐसा इसलिए है क्योंकि नशीद देश के कई रोज़मर्रा कार्यक्रमों और फैसलों से जुड़े थे,”. नशीद से बात करने के बाद उन्होंने कहा कि जुलाई में नशीद के घर लौटने की उम्मीद है. उन्होंने नशीद पर लक्षित हमले की तुलना एमडीपी पर हमले के रूप में की, उन्होंने कहा कि “सत्तारूढ़ पार्टी एमडीपी को लगी चोटें, नागरिकों को लगी चोट के बराबर है”.
नशीद, आत्मघाती हमलों के बारे में अपनी आशंकाओं को सार्वजनिक रूप से ज़ाहिर करें या नहीं इस पर राय विभाजित है. अपने इस बयान के ज़रिए उन्होंने मौजूदा राष्ट्रपति सोलिह को तेज़ी से काम करने के लिए ललकारा है. पार्टी के सूत्रों को लगता है कि दोनों नेताओं के बीच ‘सैद्धांतिक दरार’ बम विस्फोट के बाद से और गहराई है. कुछ लोगों का मानना है कि राष्ट्रपति सोलिह को खुला संदेश, नशीद द्वारा विस्फोट के बाद, आतंकवाद के ख़िलाफ़ जनता की राय और मन: स्थिति को टटोलने का एक तरीक़ा था और देश को, और ख़राब हालातों के लिए तैयार करने की एक कोशिश थी
सरकार को ‘औचक गिरफ़्तारियों’ का सहारा लेने की चुनौती देकर, नशीद उन लोगों को आगाह भी कर रहें हैं जिन के ख़िलाफ़ यह कार्रवाई होनी हैं. यह एक तरह से ‘छिपे हुए आतंकवादियों’ को चेतावनी के नोटिस जैसा है.
हालांकि, कई और लोगों को लगता है कि इस तरह के ‘संवेदनशील मामलों’ पर, नशीद के पास विशिष्ट जानकारी हो या नहीं, या फिर वह अपनी आशंकाओं के आधार पर यब बात कह रहे हों, केवल सरकार के शीर्ष लोगों के साथ चर्चा की जानी चाहिए थी. इस तरह, उनके सार्वजनिक बयानों से दहशत पैदा हो सकती हैं और ऐसा न कर के वह इस से बचा जा सकता है, वह भी कोविड-19 के इस दौर में जब हर तरफ भ्रम फैसा हुआ है और समाज का मनोबल टूटा हुआ है. सरकार को ‘औचक गिरफ़्तारियों’ का सहारा लेने की चुनौती देकर, नशीद उन लोगों को आगाह भी कर रहें हैं जिन के ख़िलाफ़ यह कार्रवाई होनी हैं. यह एक तरह से ‘छिपे हुए आतंकवादियों’ को चेतावनी के नोटिस जैसा है.
दलगत राजनीति और नेतृत्व संघर्षों की धारणाओं से परे जाकर, लोकतंत्र समर्थक तत्व जो एमडीपी के अंदर और बाहर दोनों तरफ हैं उन का दावा है कि नशीद के ‘आतंकवादियों की व्यापक गिरफ़्तारी’ के प्रस्ताव का बदले की राजनीतिक के लिए दुरुपयोग किया जा सकता है. जैसा कि वे बताते हैं कि पूर्व राष्ट्रपति ग़यूम और जेल में बंद पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के पीपीएम-पीएनसी गठबंधन ने नशीद के आह्वान के खिलाफ ‘लोकतंत्र को लेकर चिंता’ से जुड़ी आवाज़ उठाई है. जैसा कि याद होगा, आम तौर पर एमडीपी और विशेष रूप से नशीद ने सत्ता में रहते इन दो नेताओं को लगातार ‘निरंकुश’ कहा था.
महिलाओं का दमन
कोविड-19 की महामारी के बीच मीडिया में इस तरह की मौजूदगी, नशीद पर हमला और इन बातों को दोहराया जाना, व्यक्तिगत जीवन पर कट्टरपंथी धार्मिक विचारों का पुनरुद्धार है. मालदीव के मानवाधिकार आयोग (एचआरसीएम) ने एमडीपी सांसद हिनान हुसैन द्वारा प्रस्तावित ‘प्रगतिशील कानून’ में संशोधन का सुझाव देते हुए ‘घृणा आधारित अपराधों’ (hate crime) से जुड़े विधेयक के ख़िलाफ़ अभियान जारी रखा है. इससे पहले, इस्लामी मंत्रालय, जिस के विचार संसद की न्यायपालिका समिति द्वारा भी मांगे गए थे और जिसे समर्थकों ने एक ‘सोचे-समझे क़दम’ के रूप में देखा था, चाहता था कि इस मसौदे में, सभी तरह के घृणा से जुड़े अपराधों को शामिल किया जाए न केवल उन अपराधों को जो इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा लोगों को ‘काफ़िर’ या ‘बाहरी’ घोषित किए गए लोगों द्वारा किए गए हों.
हाल ही में, देश के रूढ़िवादी जमीयत सलाफ इस्लामी समूहों ने तर्क दिया है कि यह बिल वास्तव में ‘धर्मनिरपेक्षता’ का प्रचार कर रहा है. उनके तर्क एक दशक पहले नशीद के राष्ट्रपति पद के दिनों में लौटते हैं, जिसका अर्थ है कि राष्ट्र को अधिक से अधिक रूप से ग़ैर-इस्लामी बनाया जा रहा है, जिसके तहत सुन्नी इस्लामी राष्ट्र में अन्य धर्मों का पालन करने की स्वतंत्रता होगी, संवैधानिक रूप से भी और असल ज़िंदगी में भी. वैचारिक रूप से संबंधित लेकिन उससे भी अधिक ‘कट्टरपंथी’ एक सुझाव के मुताबिक, विवादास्पद इस्लामी विद्वान, डॉ मोहम्मद इयाज़ ने ‘महिला जननांग विकृति’ (female genital mutilation) का आह्वान करके एक नए विवाद को जन्म दिया है. यह सुझाव ऐसे समय में आया है जब एचआरसीएम ने इस बात को दर्ज किया है कि मालदीव की हर तीसरी महिला को ‘घरेलू हिंसा’ का सामना करना पड़ा है और यह एक ऐसे देश में हो रहा है जो आधुनिक सामाजिक दृष्टिकोण के साथ एक ‘उदारवादी इस्लामी राष्ट्र’ है.
एचआरसीएम ने इस बात को दर्ज किया है कि मालदीव की हर तीसरी महिला को ‘घरेलू हिंसा’ का सामना करना पड़ा है और यह एक ऐसे देश में हो रहा है जो आधुनिक सामाजिक दृष्टिकोण के साथ एक ‘उदारवादी इस्लामी राष्ट्र’ है.
इस्लामिक मामलों के मंत्री, डॉ अहमद ज़ाकिर, जो स्वयं एक विद्वान हैं, ने डॉ इयाज़ के ख़िलाफ़ उनके विवादास्पद ट्वीट्स में मौजूद कई मुद्दों पर, सांसदों सहित कई लोगों द्वारा की गई शिकायतों की जांच का आदेश दिया है, जिन में फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन (महिला जननांग विकृति) सबसे नया मुद्दा है. मई में, इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ मालदीव (IUM), जहां वह एक फैकल्टी के रूप में कार्यरत हैं, ने उन्हें एक अन्य विवादास्पद ट्वीट के लिए 15 दिनों के लिए निलंबित कर दिया था.
डॉ इयाज़ और अन्य रूढ़िवादी विद्वान अराजनीतिक होने का दावा करते हैं और लोगों पर इनकी बातों का असर होता है. यही वजह है कि इनकी सामाजिक-राजनीतिक बातों में मध्य-दक्षिण-मार्गी राजनीति को किनारे करने की क्षमता है, जिसे अब ‘राजनीतिक अधिकार’ समूह और चुनावी उम्मीदवारों के साथ पहचाना जाता है, जिसकी शुरुआत यामीन खेमे से होती है.
फिर भी, महिला जननांग विकृति जैसे मुद्दों में देश की महिला मतदाताओं को, जो एमडीपी का पारंपरिक समर्थन आधार है, पार्टी में वापस लाने की क्षमता पैदा की है. हालांकि साल 2023 के राष्ट्रपति चुनावों में मतदाताओं के रूख और रुझान की भविष्यवाणी करना अभी जल्दबाज़ी होगी, वह भी तब जब हाल के महीनों में उन्हें ‘नॉन-कमिटल सेंटर-स्पेस’ यानी बिना की झुकाव वाली राजनीतिक ज़मीन की ओर बढ़ते हुए देखा गया था, जिसका मुख्य कारण सोलिह सरकार के अधूरे चुनावी वादे थे और पार्टी के दोहरे नेतृत्व के बीच तक़रार का सिलसिला जारी रहना है.
संयोग से, महिला जननांग विकृति के मुद्दे पर विवाद छेड़ने से कुछ दिन पहले, इस्लामिक अध्ययन में पीएचडी रखने वाले डॉ. इयाज़ ने कोविड-19 के लॉकडाउन का उल्लंघन करते हुए अपनी निगरानी में मस्जिदों में शुक्रवार की नमाज़ का आह्वान किया था. इस के बाद दो अन्य मस्जिदों ने ऐसा किया, जिसे लेकर लोगों में आक्रोश भरा है और यह बात कही गई है कि जहां एक ओर आम लोगों को लॉकडाउन उल्लंघन के लिए दंडित किया जा रहा है वहीं डॉ इयाज़ जैसे लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही.
मंत्री ज़हीर ने कहा कि सरकार ने अभी तक सार्वजनिक प्रार्थना सभाओं पर निर्णय नहीं लिया है. अपनी ओर से, पूर्व इस्लामी मंत्री, डॉ मोहम्मद शाहीम अली सईद ने, हालांकि, अधिकारियों से ग्रेटर माले क्षेत्र में जल्द से जल्द सामूहिक प्रार्थना सभाएं फिर से शुरू करने का आग्रह किया है. डॉ शमीम, जो मालदीव के इस्लामिक विश्वविद्यालय (आईयूएम) के चांसलर भी थे, साल 2018 के दोबारा हुए चुनावों में राष्ट्रपति यामीन के साथी थे. वह दोनों ही यह चुनाव हार गए थे.
‘भारत को प्राथमिकता’ लेकिन…
इस बीच, संसद में, सत्ताधारी दल के एक सदस्य ने सोलिह सरकार की ‘इंडिया फर्स्ट’ नीति पर फिर से ज़ोर दिया है. सिविल सेवा आयोग से अलग, पूर्व राजनयिकों के साथ मिलकर एक अलग विदेश सेवा स्थापित करने से जुड़े विधेयक पर बहस में भाग लेते हुए, सांसद इब्राहिम ‘मावोता’ शरीफ ने कहा कि “हमारे लोग ‘इंडिया फर्स्ट’ नीति के बारे में चिंतित हैं, लेकिन यह आवश्यक है. मालदीव का भौगोलिक गठन राष्ट्र को भौतिक रूप से उस जगह से बहुत दूर तक विस्तारित होने की अनुमति नहीं देता है, जहां वह स्थित है. मालदीव के सबसे क़रीबी देशों में से एक के रूप में, जो इस क्षेत्र में भी सबसे मज़बूत भी है, भारत-मालदीव को राष्ट्रीय सुरक्षा दे सकता है. इस के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए भी भारत सरकार के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे जाने चाहिए”. हालांकि, ‘इंडिया फर्स्ट’ नीति का मतलब यह नहीं है कि मालदीव को अन्य देशों के साथ घनिष्ठ राजनयिक संबंध छोड़ देने चाहिए. उन्होंने कहा, “हमें चीन, कनाडा, अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र और राष्ट्रमंडल के साथ अच्छे राजनयिक संबंध बनाए रखने चाहिए”. उन्होंने कहा कि मालदीव एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व बनाए रख पाया है, क्योंकि उसके पूर्वजों और पिछले प्रशासन ने उपयोगी रूप से, सभी देशों के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए रखे हैं.
इस से अलग लेकिन भारत से संबंधित एक विकास में, योजना मंत्री मोहम्मद असलम ने कहा कि प्रतिष्ठित थिला-मेल-ब्रिज-लिंक परियोजना को लगभग दस दिनों में आवंटित किया जाएगा. वह राष्ट्रपति सोलिह के पहले के वादे पर स्पष्टता ज़ाहिर कर रहे, जिस के मुताबिक जून के अंत तक निर्माण से जुड़े ठेकेदार पर निर्णय लिया जाना था. जैसा कि याद होगा, भारत ने इस परियोजना के लिए प्रति 400-मीटर अमेरिकी डॉलर, कम-ब्याज क्रेडिट और प्रति 100-मीटर अमेरिकी डॉलर का अनुदान दिया है, जो देश में सबसे लंबा समुद्री पुल होगा और जो तीन द्वीपों को जोड़ता है. माना जा रहा है कि इस से राजधानी माले में भीड़भाड़ कम करने में मदद मिलेगी, जहां आवास की समस्या लंबे समय से एक गंभीर सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक-चुनावी मुद्दा है.
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