Author : Kabir Taneja

Published on Sep 17, 2020 Updated 0 Hours ago

दो प्रमुख वैश्विक समुद्री और भू-राजनीतिक संकरे रास्ते अनजाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे कि किस तरह चीन सीमा के मुद्दों पर बढ़ते दबाव और ‘वुल्फ़ वारियर किस्म की कूटनीति’ का इसका आक्रामक अंदाज़ विश्व स्तर पर काम करता है.

जलसंधियों में प्रभुत्व का संघर्ष: मलक्का से होर्मुज़ तक फैला है चीन का दख़ल

चीन का ईरान के साथ अरबों डॉलर का सौदा बीजिंग के विदेश और सैन्य मोर्चे पर विस्तारवादी अभियान को देखते हुए ख़तरे की घंटी के तौर पर सामने आया है. ऊपरी हिमालय के लद्दाख में भारत और चीन के बीच हालिया झड़पों, जिसमें 20 भारतीय सैनिकों (और चीनी सैनिकों की अज्ञात संख्या में मौत) की मौत हो गई, और दक्षिण चीन सागर में जहां दो अमेरिकी विमानवाहक गश्ती दल और नेविगेशन ऑपरेशन की स्वतंत्रता (फ़्रीडम ऑफ नेविगेशन ऑपरेशन, एफ़ओएनओपीएस) मिशन चल रहे हैं, एशिया तेज़ी से वैश्विक भू-राजनीतिक झंझावतों का केंद्र बन रहा है.

इन घटनाक्रमों के बीच, दो प्रमुख वैश्विक समुद्री और भू-राजनीतिक संकरे रास्ते अनजाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे कि किस तरह चीन सीमा के मुद्दों पर बढ़ते दबाव और ‘वुल्फ़ वारियर (सुरक्षा के लिए आक्रमण) किस्म की कूटनीति’ का इसका आक्रामक अंदाज़ विश्व स्तर पर काम करता है. प्रशांत महासागर क्षेत्र में इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर को जाने वाला मलक्का जलडमरूमध्य या जलसंधि और ओमान की खाड़ी व मध्य पूर्व में अरब सागर को जाने वाला होर्मुज़ जलडमरूमध्य हालात में बदलाव की जगह बनने जा रहे हैं, जिसकी बानगी दिखने भी लगी है.

प्रशांत महासागर क्षेत्र में इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर को जाने वाला मलक्का जलडमरूमध्य या जलसंधि और ओमान की खाड़ी व मध्य पूर्व में अरब सागर को जाने वाला होर्मुज़ जलडमरूमध्य हालात में बदलाव की जगह बनने जा रहे हैं, जिसकी बानगी दिखने भी लगी है.

प्रस्तावित चीन–ईरान सौदे से, जो क़रीब 400 अरब डॉलर का होने का अनुमान है, होर्मुज़ जलडमरूमध्य और इसके आसपास महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के विकास की उम्मीद है, जिस रास्ते से दुनिया का 20% तेल व्यापार होता है. अरब जगत से ईरान को अलग करने वाले समुद्र के संकरे रास्ते ने पिछले एक साल में कई संकटकालीन स्थितियों का सामना किया है, 2019 में टैंकर युद्धों की वापसी हुई जैसा कि 1980 के दशक में हुआ था, ईरानी नौकाओं ने तेल टैंकरों को परेशान करने की कोशिश की गई, संयुक्त राष्ट्र द्वारा वांक्षित तस्करी में लगे तेल टैंकरों को अग़वा कर लिया जा रहा था और फिर वे ईरान पहुंच जा रहे थे. शोधकर्ता एलिसा कैटालानो इवर्स और एरियन तबातबाई ने यह बात हाल ही में उज़ागर की है कि ईरानी सरकार की योजनाओं के अनुसार तेहरान मार्च 2021 तक अपने तेल निर्यात के लिए होर्मुज़ जलडमरूमध्य पर निर्भरता पूरी तरह ख़त्म कर देना चाहता है. इवर्स और तबातबाई का इसे “गेम चेंजर” बताना ठीक ही है. क्योंकि अगर यह योजना अमल में आती है, जो संभावित रूप से चीनी पैसे से पूरी होगी, तो इससे होर्मुज़ जलडमरूमध्य का काफी हद तक सैन्यीकरण हो सकता है, और ईरान व अरब जगत दोनों को एक दूसरे के ख़िलाफ बेलगाम गतिविधियों और युद्ध के लिए खुला मैदान मिल जाएगा.

यह स्थिति भारत जैसे देशों के लिए विदेशी और घरेलू नीति पर महत्वपूर्ण चुनौती होगी, क्योंकि इसके प्रमुख तेल आपूर्तिकर्ता, जो इसकी आर्थिक गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण हैं, मध्य पूर्व में ही हैं. हिंद महासागर के दूसरी ओर मलक्का जलडमरूमध्य भी नए सिरे से सामरिक संघर्ष का केंद्र बन रहा है. भारत और अमेरिका के बीच तालमेल से अमेरिकी विमानवाहक समूह के यूएसएस निमित्ज़ और भारतीय नौसेना के युद्धपोतों ने अंडमान निकोबार द्वीपसमूह के बीच, मलक्का जलडमरूमध्य के मुहाने से कुछ सौ किलोमीटर की दूरी पर और मार्ग-अभ्यास (पैसेज एक्सरसाइज़) किया है, जो चीन द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग की मारक क्षमता में है. मलक्का, जो दक्षिण चीन सागर से जुड़ा है, 2016 में दक्षिण चीन सागर में आने वाले पूरे तेल का 90% हिस्सा, ज़्यादातर मध्य पूर्व और अफ्री़का के आपूर्तिकर्ताओं से, इसी रास्ते से आया था. अमेरिका–भारत अभ्यास के साथ, भारत, अमेरिका और जापान के बीच मालाबार नौसैनिक अभ्यास, जिसमें इस साल ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हो सकता है, का विस्तार एशिया की भू-राजनीति में एक नया आयाम जोड़ देगा और वर्षों से क्षेत्रीय दावों के प्रति चीन के दबा-छिपा दबंगई भरा तरीका, जो अब राजनीतिक इच्छाशक्ति और सैन्य शक्ति द्वारा समर्थित है, पर लगाम लगाने के प्रति बढ़ती भावना को उजागर करेगा.

मलक्का जलडमरूमध्य और होर्मुज़ जलडमरूमध्य दोनों ही एशिया में बन रहे नए हालात के केंद्र के नज़दीक व्यापार और ज्यादा स्पष्ट रूप से कहें तो ऊर्जा सुरक्षा ला सकते हैं, और इस क्षेत्र में अमेरिका के नए राजनीतिक और सामरिक हित, चीन पर सिर्फ रणनीतिक ही नहीं सामरिक लगाम लगाने वाले भी होंगे. हालांकि, इनमें से किसी भी ख़ाके पर अमल आसान नहीं होगा. मध्य पूर्व में, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे देशों के साथ बीजिंग के अच्छे संबंध हैं; दोनों चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के अनुबंध से जुड़े हैं, और ईरान में सैन्य किस्म का कोई रणनीतिक दख़ल उस क्षेत्र में भू-रणनीतिक संतुलन को भंग कर सकता है. दक्षिण पूर्व एशिया में, आसियान देश पहले से ही बीजिंग और वाशिंगटन डीसी के बीच खेले जा रहे संभावित शीत युद्ध 2.0 के समानांतर एक गुट-निरपेक्ष 2.0 की वक़ालत करके ख़ुद को किनारे रखना चाहते हैं.

मलक्का जलडमरूमध्य और होर्मुज़ जलडमरूमध्य दोनों ही एशिया में बन रहे नए हालात के केंद्र के नज़दीक व्यापार और ज्यादा स्पष्ट रूप से कहें तो ऊर्जा सुरक्षा ला सकते हैं, और इस क्षेत्र में अमेरिका के नए राजनीतिक और सामरिक हित, चीन पर सिर्फ रणनीतिक ही नहीं सामरिक लगाम लगाने वाले भी होंगे.

हालांकि, अरब सागर के देशों से भारत के साझीदार देशों जैसे फ्रांस, जापान और अमेरिका की बेहतर समझ बनाने की उम्मीद की जाएगी, जो अक्सर हिंद-प्रशांत गठजोड़ के विचार को लेकर अलग-अलग समझ रखते हैं. असल में, जब अरब ब्लॉक, ईरान और इज़रायल के बीच पश्चिम एशिया की पेचीदगियों से निपटने में उनकी नीतियों की बात आती है तो भारत और चीन दोनों ही एक जैसे दांव चलते हैं. यह उनके बीच रस्सी पर चलने जैसा है, और ख़्याल रखना होता है कि फिसल कर सत्ता के किसी भी केंद्र और उनके क्षेत्रीय एजेंडों के जाल में न फंस जाएं. हालांकि, जिस तरह ईरानी डील पेश की जा रही है, अगर वैसा होता है तो चीन का नाज़ुक संतुलन बुरी तरह प्रभावित होगा, और अरब जगत के साथ इसका निवेश भी इसकी स्थिति को बचाने में काम नहीं आएगा, तब अरब सागर गतिविधियों के लिहाज़ से काफ़ी जटिल जल निकाय बन जाएगा. ये घटनाएं मौजूदा भारतीय और पश्चिमी संवेदनाओं पर भी ज़रूर असर डालेंगी, क्योंकि जब हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र की रणनीतियों पर चर्चा की जाती है तो हिंद महासागर क्षेत्र के इस हिस्से का भी ज़िक्र आता है.

जिस तरह ईरानी डील पेश की जा रही है, अगर वैसा होता है तो चीन का नाज़ुक संतुलन बुरी तरह प्रभावित होगा, और अरब जगत के साथ इसका निवेश भी इसकी स्थिति को बचाने में काम नहीं आएगा, तब अरब सागर गतिविधियों के लिहाज़ से काफ़ी जटिल जल निकाय बन जाएगा.

एशियाई शक्ति संघर्ष एक दीर्घकालिक मुद्दा बनने जा रहा है, जिसका नई दिल्ली संभावित रूप से एक केंद्र बिंदु बन रहा है. हो सकता है कि भारत अतीत में ऐसा करता रहा हो, लेकिन लद्दाख संकट ने निश्चित रूप से चीन के प्रति इसकी पूरी सोच को नए तरीके से गढ़ा है. और एशिया में ये नई रणनीतियां महामंच पर होर्मुज़ से मलक्का तक, और उससे भी आगे तक दिखाई देंगे.

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