Author : Navdeep Suri

Published on Oct 31, 2022 Updated 0 Hours ago

अब्राहम समझौतों के बाद से इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात के आपसी संबंध हैरान कर देने वाली तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ रहे हैं.

इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात के मजबूत होते रिश्ते

अगस्त 2020 में संयुक्त अरब अमीरात (UAE), बहरीन और इज़राइल ने अब्राहम समझौते पर दस्तख़त किए थे. इस समझौते से इज़राइल के लिए खाड़ी के दो अहम देशों के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करने के नए दरवाज़े खुल गए थे. बहुत जल्द मोरक्को और सूडान ने भी इज़राइल के साथ कूटनीतिक रिश्ते बहाल कर लिए और जैसे ही इज़राइल और सऊदी अरब के रिश्तों की बर्फ़ पिघली, तो ये साफ़ हो गया कि कई अरब देश अब इज़राइल की सियासी वैधता को स्वीकार करने को राज़ी हो गए हैं.

हालांकि, संयुक्त अरब अमीरात का मामला कुछ ख़ास है. वैसे तो संयुक्त अरब अमीरात ने 2015 में ही इज़राइल को अबु धाबी शहर में अपना कूटनीतिक दफ़्तर खोलने की औपचारिक इजाज़त दे दी थी. लेकिन, इज़राइल के इस कूटनीतिक कार्यालय का काम, अंतरराष्ट्रीय नवीनीकरण योग्य ऊर्जा एजेंसी में इज़राइल की भागीदारी में मदद करने तक सीमित था. हालांकि, ट्रंप प्रशासन की कोशिशों के साथ साथ ख़ुद संयुक्त अरब अमीरात और इज़राइल को आपसी रिश्ते बेहतर बनाने के असीमित फ़ायदों के एहसास होने के चलते, दोनों देशों ने बहुत जल्द पूर्ण रूप से राजनयिक संबंध क़ायम कर लिए थे. दो साल से कुछ ही ज़्यादा वक़्त में इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात ने उस राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया है, जिसके ज़रिए वो तेज़ रफ़्तार और मज़बूत इरादों से आपसी रिश्तों के इस सफ़र को आगे बढ़ रहे हैं. दोनों देशों के रिश्तों में तेज़ी से आए इस बदलाव को देखकर पर्यवेक्षक भी हैरान रह गए हैं.

दो साल से कुछ ही ज़्यादा वक़्त में इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात ने उस राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया है, जिसके ज़रिए वो तेज़ रफ़्तार और मज़बूत इरादों से आपसी रिश्तों के इस सफ़र को आगे बढ़ रहे हैं. दोनों देशों के रिश्तों में तेज़ी से आए इस बदलाव को देखकर पर्यवेक्षक भी हैरान रह गए हैं

जब अब्राहम समझौते हुए तो उम्मीद के मुताबिक़ फिलिस्तीनी नागरिकों और फिलिस्तीनी प्रशासन ने एक कड़ा बयान जारी किया था और इन समझौतों को ‘फिलिस्तीनी जनता के अधिकारों के ऊपर एक तितरफ़ा हमला’ क़रार दिया था.इसके जवाब में संयुक्त अरब अमीरात ने कहा था कि वो फिलिस्तीन के संघर्ष का समर्थन करता रहेगा. वहीं, अमेरिका मेंउसके राजदूत यूसुफ अल ओतैयबा ने इस समस्या के दो राष्ट्रों के रूप में समाधान के प्रति अपना समर्थन दोहराया था. यूसुफ अल ओतैयबा ने ये तर्क भी दिया था कि चूंकि अब वो इज़राइल के साथ सीधे संवाद कर सकते हैं. इसलिए अब उनका देश फिलिस्तीनी राष्ट्र की मांग को अधिक मज़बूती से इज़राइल के सामने रख सकेगा और इसके लिए अधिक बेहतर प्रोत्साहनों, नीतिगत विकल्पों और कूटनीतिक रास्तों का सहारा ले सकेगा. वहीं, इज़राइल ने भी संयुक्त अरब अमीरात के इस बयान पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी. इज़राइल ने, पश्चिमी तट के कुछ हिस्सों पर अपना अधिकार होने का एलान टालने पर सहमति जताई थी और कहा था कि वो इस संघर्ष को ख़त्म करने के लिए सभी पक्षों के साथ पूरा सहयोग करेगा.

इज़राइल और अरब देश

ये सच है कि इज़राइल के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करने वाला, संयुक्त अरब अमीरात कोई पहला अरब देश नहीं है. सबसे पहले 1979 में मिस्र ने कैंप डेविड में इज़राइल के साथ शांति समझौते पर दस्तख़त करके इज़राइल के साथ रिश्ते सामान्य बनाए थे. हालांकि चार दशक बाद 2021 में भी दोनों देशों के बीच केवल 33 करोड़ डॉलर का व्यापार हो रहा था और इसमें भी दोनों देशों की सरकारों की बड़ी हिस्सेदारी थी. अभी हाल के दिनों तक मिस्र और इज़राइल के नेताओं का एक दूसरे के देश का दौरा करने की घटनाएं भी दुर्लभ ही थीं. हालांकि, 2021 में इज़राइल के पूर्व प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट ने ज़रूर मिस्र का दौरा किया था और उसके बाद दोनों देशों के कारोबारी और सुरक्षा से जुड़े प्रतिनिधि मंडलों ने एक दूसरे के यहां का दौरा किया था. इससे पता चलता है कि इज़राइल और मिस्र  नए संवाद के ज़रिए आपसी रिश्तों को आगे बढ़ाने के इच्छुक हैं. जबकि पहले, दोनों देशों के सुरक्षा बलों के बीच संपर्क केवल उस वक़्त होता था, जब ग़ज़ा पट्टी में इज़राइल और हमास के बीच संघर्ष शुरू हो जाता था. मिस्र द्वारा EMG और AGP पाइपलाइनों के ज़रिए इज़राइल से हर दिन लगभग 700 क्यूबिक फुट गैस का आयात करने के चलते दोनों देशों के रिश्तों में ऊर्जा का पहलू भी जुड़ गया है. हालांकि, इज़राइल और मिस्र के बीच सांस्कृतिक संबंध बेहतर होने की रफ़्तार बेहद धीमी है. इसकी वजह मिस्र के प्रमुख बुद्धिजीवियों और आम जनता द्वारा इसका खुलकर विरोध करना है.

2021 में इज़राइल के पूर्व प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट ने ज़रूर मिस्र का दौरा किया था और उसके बाद दोनों देशों के कारोबारी और सुरक्षा से जुड़े प्रतिनिधि मंडलों ने एक दूसरे के यहां का दौरा किया था. इससे पता चलता है कि इज़राइल और मिस्र  नए संवाद के ज़रिए आपसी रिश्तों को आगे बढ़ाने के इच्छुक हैं.

जॉर्डन और इज़राइल के रिश्तों में भी यही बात दोहराते देखी जा सकती है. हालांकि दोनों देशों ने 1994 में इज़राइल और जॉर्डन शांति समझौते पर दस्तख़त किए थे. लेकिन, दोनों के रिश्तों में ज़्यादा प्रगति नहीं देखी गई है. जॉर्डन और इज़राइल का एक दूसरे देश को निर्यात बहुत कम- यानी उनके कुल निर्यात का लगभग0.5 फ़ीसद और 1.5 प्रतिशत ही है. जॉर्डन को भय है कि इज़राइल, अपनी सीमा से लगने वाले जॉर्डन के इलाक़ों जैसे कि जॉर्डन घाटी और मृत सागर क्षेत्र को अपने में मिला सकता है. इसके अलावा जॉर्डन में फिलिस्तीनी शरणार्थियों की बड़ी तादाद होने के साथ साथ अल अक़्सा मस्जिद/ टेंपल माउंट में प्रार्थना करने को लेकर इज़राइल के सुरक्षा बलों और अरब अक़ीदतमंदों के बीच अक्सर होने वाली मुठभेड़ों और फिलिस्तीनी इलाक़ों पर इज़राइल के हमलों की जॉर्डन द्वारा सार्वजनिक रूप से निंदा करने जैसी कई बाधाएं हैं, जो दोनों देशों के रिश्ते सामान्य होने के आड़े आती हैं.

इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात की साझेदारी

मिस्र और जॉर्डन की तुलना में संयुक्त अरब अमीरात और इज़राइल के बीच सामान्य कूटनीतिक संबंध स्थापित होने के बाद से दोनों देशों के रिश्ते, उच्च स्तरीय दौरों, व्यापार, निवेश और तकनीकी समझौतों और यहां तक कि सांस्कृतिक संपर्कों के ज़रिए तेज़ी से आगे बढ़े हैं.

व्यापारिक संबंध

अब्राहम समझौतों पर दस्तख़त होने के एक साल के भीतर इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात के बीच व्यापार90 करोड़ डॉलर पहुंच गया था और 2022 की पहली तिमाही में ही द्विपक्षीय व्यापार ने 1.5 अरब डॉलर को पार कर लिया था. दोनों देशों ने जून 2022 में मुक्त व्यापार समझौते पर भी दस्तख़त किए हैं और लक्ष्य रखा है कि अगले पांच साल में आपसी व्यापार को 10 अरब डॉलर के स्तर तक ले जाएंगे.

2022 की पहली तिमाही में ही द्विपक्षीय व्यापार ने 1.5 अरब डॉलर को पार कर लिया था. दोनों देशों ने जून 2022 में मुक्त व्यापार समझौते पर भी दस्तख़त किए हैं और लक्ष्य रखा है कि अगले पांच साल में आपसी व्यापार को 10 अरब डॉलर के स्तर तक ले जाएंगे.

व्यापार के साथ साथ, संयुक्त अरब अमीरात, इज़राइल को अपने कारोबार और निवेश की प्रगति के लिए एक बड़े बाज़ार के तौर पर भी देखता है. इस बात को ध्यान में रखते हुए ही सितंबर 2020 में दोनों देशों ने बैंकिंग और वित्त से जुड़े पहले प्रोटोकॉल पर दस्तख़त किए थे, ताकि साझा निवेश को बढ़ावा दिया जा सके. दुबई इंटरनेशनल चैंबर ने भी तेल अवीव में अपना एक दफ़्तर खोलने के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, ताकि अमीरात और इज़राइल की कंपनियों को एक दूसरे के बाज़ारों में निवेश करने में मदद कर सकें. इस वक़्त एक हज़ार से ज़्यादा इज़राइली कंपनियां संयुक्त अरब अमीरात में कारोबार कर रही हैं. मार्च 2021 में संयुक्त अरब अमीरात ने इज़राइल में निवेश के लिए 10 अरब डॉलर के फंड का एलान किया था और सितंबर 2021 तक दोनों देश स्वास्थ्य सेवाओं, जल सुरक्षा, स्वच्छ ईंधन और कृषि तकनीक से लेकर अंतरिक्ष, ख़ुदरा कारोबार, संस्कृति और खेल जैसे कई क्षेत्रों से जुड़े 22 सहमति पत्रों पर दस्तख़त कर चुके थे. इसके बाद सबसे बड़ा कारोबारी ऊर्जा सौदा हुआ जब अबु धाबी की मुबादला पेट्रोलियम ने 1.1 अरब डॉलर रक़म से इज़राइल के समुद्री क्षेत्र में स्थित तमर प्राकृतिक गैस के कुओं में 22 प्रतिशत की हिस्सेदारी ख़रीदी थी. जल के क्षेत्र में भी दोनों देशों ने संयुक्त अरब अमीरात में एक साझा जल अनुसंधान संस्थान स्थापित किया है और कई अहम शहरों में पायलट प्रोजेक्ट भी शुरू किए हैं.

प्रतिनिधिमंडलों के दौरे

कोविड-19 से जुड़ी पाबंदियों में ढील दिए जाने के बाद से संयुक्त अरब अमीरात और इज़राइल के बीच कई आधिकारिक और व्यापारिक दौरे हुए हैं. सितंबर 2022 में संयुक्त अरब अमीरात के एक प्रतिनिधिमंडल ने तेल अवीव स्टॉक एक्सचेंज और अबु धाबी ग्लोबल मार्केट द्वारा मिलकर आयोजिक किए गए साझा कारोबारी मंच में शिरकत की थी. इसके बाद दोनों देशों के बीच डेटा के संरक्षण, आविष्कारों और वित्तीय तकनीक से जुड़े तीन समझौतों पर दस्तख़त हुए थे. दिसंबर 2020 में इज़राइल का एक बड़ा प्रतिनिधिमंडल गिटेक्स टेक्नोलॉजी वीक (खाड़ी देशों में आविष्कारों की सबसे बड़ी नुमाइश) में हिस्सा लेने संयुक्त अरब अमीरात पहुंचा था. इसके अलावा इज़राइल फ्यूचर डिजिटल इकॉनमी सम्मेलन का भी उद्घाटन किया गया था, ताकि दोनों देश आविष्कार और तकनीक के क्षेत्र में अपनी गतिविधियां और बढ़ा सकें. इज़राइल का एक और प्रतिनिधिमंडल 2021 में दुबई में हुई साइबरटेक ग्लोबल कांफ्रेंस में वक्ताओं के तौर पर शिरकत करने आया था. इसमें इज़राइल की सेना और खुफिया एजेंसियों के अधिकारी और इज़राइल की प्रमुख साइबर कंपनियों के CEO शामिल थे. इज़राइल ने अपने पैवेलियन के ज़रिए दुबई एक्सपो में भी भारी-भरकम मौजूदगी दर्ज कराई थी.

आधिकारिक दौरों की बात करें तो इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात के बीच कम से कम 20 मंत्रिस्तरीय दौरे हो चुके हैं. इसमें पहला बड़ा दौरा तब हुआ, जब इज़राइल के राष्ट्रपति इसाक हरज़ोग, संयुक्त अरब अमीरात गए. उनके इस दौरे में सुरक्षा और आपसी संबंधों पर परिचर्चा शामिल थी. इसके बाद, इज़राइल के पूर्व विदेश मंत्री यैर लैपिड ने 2021 में अबु धाबी में इज़राइल के दूतावास और दुबई में उसके कॉन्सुलेट का उद्घाटन करने के लिए संयुक्त अरब अमीरात का दौरा किया. सबसे ताज़ा दौरा तो पूर्व प्रधानमंत्री नफ्टाली बेनेट का था, जब वो दोनों देशों के रिश्तों को नई धार देने केलिए जून 2022 में संयुक्त अरब अमीरात गए थे. संयुक्त अरब अमीरात की ओर से प्रतिनिधिमंडलों के दौरों के अलावा विदेश मंत्री शेख़ अब्दुल्लाह बिन ज़ायद अल नहयान ने अब्राहम समझौतों की दूसरी सालगिरह पर एक हफ़्ते के लिए इज़राइल का दौरा किया था.

सांस्कृतिक संबंध

इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात के रिश्तों में आई गर्मजोशी सांस्कृतिक और दोनों देशों के नागरिकों के एक दूसरे के यहां के दौरों के तौर पर भी दिख रही है. हर हफ़्ते 70 सीधी उड़ानें होने से दोनों देशों के बीच पर्यटकों, कारोबारी लोगों और छात्रों की आवाजाही में बड़ी आसानी हो रही है. ऐसा अनुमान लगाया गया है कि अब्राहम समझौतों के बाद से इज़राइल के लगभग साढ़े चार लाख पर्यटक, संयुक्त अरब अमीरात के दौरे पर आ चुके हैं. इससे भी बड़ी बात ये है कि अक्टूबर 2020 में दोनों देशों ने एक ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं जिससे दोनों देशों के नागरिक (घूमने फिरने और कारोबार के मक़सद से) बिना वीज़ा के भी आ सकते हैं. संयुक्त अरब अमीरात पहला अरब देश है, जिसे इज़राइल ने ये रियायत दी है. वहीं मज़हबी मोर्चे की बात करें तो अबु धाबी में अब्राहम परिवार के घर के उद्घाटन ने अपने नए यहूदी साझीदार के प्रति अरब देश की सहिष्णु नीति की अहमियत को ही दर्शाया है. इस कॉम्प्लेक्स में एक चर्च है, एक मस्जिद है तो एक यहूदी प्रार्थनाघर सिनेगॉग भी है. संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्री शेख़ अब्दुल्ला द्वारा इज़राइल के राष्ट्रीय होलोकॉस्ट म्यूज़ियम में श्रद्धांजलि अर्पित करना उस गर्मजोशी की मिसाल है, जिससे संयुक्त अरब अमीरात ने इज़राइल को गले से लगाया है.

इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात के रिश्तों में गर्मजोशी की कुछ और मिसालों के तौर पर यहूदी खाना बेचने वाली दुकानें खोलना और संयुक्त अरब अमीरात के यहूदी सामुदायिक केंद्र की स्थापना शामिल है. इसके अलावा कोशर सर्टिफिकेट देने के लिए अमीरात में एजेंसी स्थापित की गई है. सांस्कृतिक संबंधों को और मज़बूत बनाने के लिए 2021 में पहला इज़राइली सांस्कृतिक संस्थान, एजुकेशन हिब्रू इंस्टीट्यूट (EHI) भी खोला गया था.

इज़राइल- संयुक्त अरब अमीरात और भारत का उभरता त्रिकोण

भारत के नज़रिए से देखें, तो अब्राहम समझौतों ने ऐसे अवसरों के द्वार खोले हैं, जिससे उसे बहुत फ़ायदा हो सकता है. हाल ही में इज़राइल में भारत के राजदूने कहा था कि, ‘कुछ ख़ास तकनीकों में इज़राइल की ताक़त, भारत की विशाल अर्थव्यवस्था और मानव संसाधन की पूंजी और लॉजिस्टिक और निवेश के मामले में संयुक्त अरब अमीरात की क्षमताएं न केवल तीनों देशों के लिए पूरक का काम कर सकती हैं, बल्कि इससे पूरे इलाक़े का भला हो सकता है.’

पिछले साल तीनों देशों ने अपने पहले त्रिपक्षीय समझौते पर दस्तख़त किए थे, जब इज़राइल की कंपनी इकोप्पिया, संयुक्त अरब अमीरात की एक बड़ी परियोजना के लिए भारत में रोबोट से चलने वाली सौर ऊर्जा की सफाई तकनीक का उत्पादन करेगी. दूसरे अवसरों की संभावनाएं तलाशने के लिए दुबई स्थित भारतीय कारोबारी और पेशेवर परिषद ने इस साल की शुरुआत में एक बड़े इज़राइली प्रतिनिधिमंडल की मेज़बानी की थी; और सितंबर 2022 में भारत और संयुक्त अरब अमीरात के CII के एक कारोबारी प्रतिनिधिमंडल ने इज़राइल के एशिया चैंबर ऑफ कॉमर्स के प्रतिनिधियों से तेल अवीव में विचार विमर्श किया था, ताकि सब मिलकर खाद्य सुरक्षा, निर्माण, साइबर सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और वित्तीय तकनीक के क्षेत्र में सहयोग कर सकें. आगे चलकर इज़राइल के अधिकारियों का अनुमान है कि तीनों देशों के रिश्तों में बढ़ती मज़बूती के चलते उनके बीच आपसी व्यापार के 2030 तक 110 अरब डॉलर तक पहुंच पाने की पूरी संभावना है.

निष्कर्ष

दो साल पहले अब्राहम समझौतों पर दस्तख़त के चलते इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात की साझेदारी को जन्म दिया था, जिसने बड़ी तेज़ी से आगे प्रगति की है. व्यापार और निवेश की संभावनाएं तलाशने से लेकर आम जनता के बीच आपसी संपर्क बढ़ाने तक, दोनों देशों ने सहयोग के एक शादार नए युग की शुरुआत की है.

आगे चलकर इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात, आपसी रिश्तों की इस प्रगति का लाभ उठाकर साझा विचारोंवाले देशों जैसे भारत, अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर को भी इससे जोड़ सकते हैं. इसके लिए I2U2 पहल और नेगेव फोरम जैसे बहुपक्षीय मंचों का लाभ उठाया जा सकता है.

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