Author : Pratnashree Basu

Expert Speak Raisina Debates
Published on Aug 30, 2025 Updated 0 Hours ago

जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच युद्धपोत का सौदा सामरिक रूप से एक मील का पत्थर है. इससे ऑस्ट्रेलिया की नौसैनिक ताक़त बढ़ेगी और इसके साथ साथ दूसरे विश्व युद्ध के बाद से चले आ रहे जापान के युद्ध विरोधी रुख़ से सक्रिय सुरक्षा संबंध की तरफ़ बढ़ने का संकेत भी मिलेगा

जापान–ऑस्ट्रेलिया फ़्रिगेट समझौते का सामरिक प्रभाव

5 अगस्त 2025 को, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने 6.5 अरब डॉलर के एक ऐतिहासिक समझौते का ऐलान किया, जिसके तहत जापान अपने उन्नत मोगामी दर्जे के बहुउद्देश्यीय जंगी जहाज़ों की आपूर्ति रॉयल ऑस्ट्रेलियन नेवी को करेगा. इस सौदे के तहत पहले तीन युद्धपोत 2029 से जापान में निर्मित किए जाएंगे, जिसकी मुख्य ठेकेदार मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज (MHI) कंपनी होगी. सौदे के तहत बाक़ी के आठ जंगी जहाज़ों को पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के हेंडरसन में तैयार किया जाएगा. ये सौदा रणनीतिक रूप से ताक़त बढ़ाने वाला है, और दूसरे विश्व युद्ध के बाद से जापान ने अपनी युद्ध विरोधी नीति के तहत हथियारों की बिक्री पर स्वघोषित पाबंदी लगा रखी थी, उसमें 2014 में किए गए परिवर्तन के बाद हुआ सबसे अहम रक्षा सौदा है. इससे ये भी पता चलता है कि जापान अब दूसरे विश्व युद्ध के बाद से चली आ रही युद्ध विरोधी नीति की बंदिशों से आज़ाद होकर हिंद प्रशांत क्षेत्र में अब अधिक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार है.

 

ये नए युद्धपोत ऑस्ट्रेलिया की नौसेना की ताक़त में काफ़ी बढ़ोत्तरी करेंगे और वो अपने उत्तरी समुद्री क्षेत्र में अपनी शक्ति का बेहतर ढंग से प्रदर्शन करने के साथ साथ प्रशांत और हिंद महासागरों में व्यापार के अहम समुद्री मार्गों की सुरक्षा भी कर सकेगी. मोगामी क्लास के फ्रिगेट, ऑस्ट्रेलिया के पुराने पड़ रहे एनज़ैक दर्जे के जंगी जहाज़ों की जगह लेंगे और 2029-30 में नौसेना की सेवा में शामिल होंगे. जापान से मिलने वाले इन जहाज़ों के 2030 तक पूरी तरह सक्रिय भूमिका में आने की संभावना है. जापान निर्मित इन युद्धपोतों में मिसाइल लॉन्च करने के 32 सेल होंगे, जो एनज़ैक दर्जे के जंगी जहाज़ों के 16 से दोगुने हैं. इसके अलावा ये युद्धपोत दस हज़ार समुद्री मील तक का सफ़र तय कर सकेंगे. बेहद स्वचालित डिज़ाइन की वजह से इन जंगी जहाज़ों को चलाने के लिए केवल 90 कर्मचारियों की ज़रूरत पड़ेगी. मौजूदा फ्रिगेट्स की तुलना में मिसाइल की क्षमता चार गुना अधिक होने और ज़्यादा दूर तक तैनाती की क्षमता की वजह से ये नए युद्धपोत, अपनी घातकता, स्वचालन और संपूर्ण समुद्री युद्ध क्षमता के मामले में एक लंबी छलांग लगाने वाले हैं.

जापान के साथ इस सौदे से ऑस्ट्रेलिया को कुछ घरेलू लाभ भी होंगे. युद्धपोतों को स्थानीय स्तर पर तैयार करने के विकल्प से अगले दो दशकों के दौरान ऑस्ट्रेलिया के रक्षा क्षेत्र में उन्नत कौशल वाले लगभग दस हज़ार रोज़गार पैदा होंगे.

जापान के साथ इस सौदे से ऑस्ट्रेलिया को कुछ घरेलू लाभ भी होंगे. युद्धपोतों को स्थानीय स्तर पर तैयार करने के विकल्प से अगले दो दशकों के दौरान ऑस्ट्रेलिया के रक्षा क्षेत्र में उन्नत कौशल वाले लगभग दस हज़ार रोज़गार पैदा होंगे. इससे अल्बानीज़ सरकार की नौसेना की युद्धक क्षमता बढ़ाने के लिए 37.8 अरब डॉलर के आवंटन की प्रतिबद्धता भी पूरी होगी. ये युद्धपोत हंटर क्लास के जंगी जहाज़ों के नौसेना में शामिल किए जाने में हो रही देरी से युद्ध क्षमता में आ रही कमी को पूरा करने के लिहाज से भी काफ़ी अहम होंगे, और इससे परिवर्तन के दौर में भी ऑस्ट्रेलियाई नौसेना की ताक़त में कमी नहीं आएगी. रणनीतिक रूप से दोनों देशों के इस सौदे से, अमेरिका और जापान के सुरक्षा ढांचे के बीच तालमेल भी बढ़ेगा, जिससे हिंद प्रशांत क्षेत्र के अहम सहयोगी देशों की नौसेनाओं के बीच आपसी तालमेल और संयुक्त रूप से अभियान चलाने की तैयारी भी बेहतर होगी.

 

जापान का युद्ध विरोधी लक्ष्मण रेखा पार करके सुरक्षा संबंध बढ़ाना

दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापान के रक्षा क्षेत्र पर लगी बंदिशों की जड़ें, उसके 1947 के संविधान की धारा 9 तक जाती हैं. इस धारा में युद्ध को एक संप्रभु अधिकार के तौर पर त्यागने की घोषणा की गई थी और जापान ने अपने ऊपर ‘जल, थल और वायुसेना और युद्ध लड़ने के अन्य संसाधनों’ को रखने पर प्रतिबंध लगाया हुआ था. बाद की सरकारों ने संविधान की इस धारा की व्याख्या, जापान की आत्मरक्षा के लिए बल (SDF) रखने के रूप में की थी, ताकि जापान अपनी हिफ़ाज़त कर सके. इसके अलावा, जापान ने अपनी गतिविधियों पर बेहद सख़्त प्रतिबंध लगा रखे थे. इन बंदिशों में हथियारों के निर्यात पर लगी लगभग पूर्ण पाबंदी भी शामिल थी, जिसे 1967 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ऐसाकु सातो के हथियार निर्यात के तीन सिद्धांतों के ज़रिए औपचारिक जामा पहना दिया गया था और फिर 1976 में इसका दायरा बढ़ाकर अमेरिका के साथ मानवीय अथवा तकनीक साझा करने की सीमित छूट के अलावा बाक़ी सभी देशों को रक्षा उपकरणों की बिक्री पर पाबंदी लगा दी गई थी. इस वजह से जापान रक्षा के वैश्विक व्यापार से अलग थलग पड़ गया था और जापान के आत्मरक्षा बल भी खुलकर अंतरराष्ट्रीय मिशनों में हिस्सा नहीं ले पाते थे और जापान ने अपनी सेनाओं को दूसरे विश्व युद्ध के बाद के दौर की युद्ध विरोधी नीति के दायरे में सीमित कर रखा था.

 इस सुधार का मक़सद जापान के रक्षा औद्योगिक क्षेत्र को मज़बूती देना, सहयोगी देशों के साथ मिलकर अभियान चलाने की क्षमता बढ़ाना और इलाक़े के बिगड़ते माहौल में सुरक्षा सुनिश्चित करने में अधिक सक्रिय भूमिका निभाना शामिल था.

इसमें तब्दीली अप्रैल 2014 में उस वक़्त आई, जब प्रधानमंत्री शिंजो आबे की सरकार ने पुरानी रूप-रेखा की जगह रक्षा उपकरण और तकनीकों के आदान-प्रदान से जुड़े तीन नए सिद्धांत लागू किए. इस नई नीति से जापान को कुछ ख़ास परिस्थितियों में हथियार और संबंधित तकनीक का निर्यात करने की इजाज़त मिल गई. इसकी शर्तों में अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा में योगदान देना, साझीदार देशों के साथ सुरक्षा सहयोग बढ़ाना और तीसरे पक्ष को तकनीक ट्रांसफर करने पर सख़्त नियंत्रण सुनिश्चित करना शामिल था. इस सुधार का मक़सद जापान के रक्षा औद्योगिक क्षेत्र को मज़बूती देना, सहयोगी देशों के साथ मिलकर अभियान चलाने की क्षमता बढ़ाना और इलाक़े के बिगड़ते माहौल में सुरक्षा सुनिश्चित करने में अधिक सक्रिय भूमिका निभाना शामिल था. इस नीति को लागू करने के पीछे चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति और उत्तर कोरिया से मिसाइलों का बढ़ता ख़तरा था. 2014 की नीति ने उन देशों को रक्षा उपकरण निर्यात करने पर कुछ ख़ास शर्तें लगाई गई थीं, जिनके साथ जापान का सुरक्षा सहयोग का समझौता था. फिर भी ये तब्दीली पहले के दशकों में हथियारों की बिक्री पर लगी पूर्ण पाबंदी से एक निर्याणक निजात का संकेत थी. इसी वजह से 2025 में ऑस्ट्रेलिया के साथ जंगी जहाज़ों की बिक्री के  सौदे का रास्ता खुल सका.

 

हिंद प्रशांत के प्रतिरोधी नेटवर्कों को मज़बूती देना

ऑस्ट्रेलिया के साथ ये सौदा, जापान के लिए एक ऐतिहासिक लम्हा है. हथियारों के निर्यात पर लगे प्रतिबंध हटने के बाद से ये रक्षा निर्यात की सबसे बड़ी डील है. इससे जापान के रक्षा उद्योग की हैसियत में अहम तब्दीली आने और उसके उन्नत रक्षा उपकरणों के आपूर्तिकर्ता के तौर पर उभरने का संकेत मिलता है. ये समझौता, अमेरिका के साथ गठबंधन से इतर भी जापान के सुरक्षा संबंधों को गहराई देता है और ऐसे वक़्त में ऑस्ट्रेलिया के साथ सामरिक संबंधों में नज़दीकी लाने वाला है, जब इलाक़े के शक्ति संतुलन में परिवर्तन हो रहा है. यही नहीं मित्सुबिशी (MHI) को दूसरे देश के लिए हथियार बनाने और ऑस्ट्रेलिया में आंशिक उत्पादन की इजाज़त देकर, जापान अपने रक्षा निर्यात को बढ़ाने की संभावनाओं का भी परीक्षण कर रहा है, जिससे वो लॉजिस्टिक और कामगारों की चुनौतियों से उबर सके और हथियारों के वैश्विक बाज़ार में अपनी स्थिति को और मज़बूती प्रदान कर सकें.

ऑस्ट्रेलिया की बात करें, तो इस सौदे से उसके नौसैनिक बेड़े के आधुनिकीकरण में तेज़ी आएगी, सुदूर समुद्री क्षेत्रों तक पहुंच बढ़ेगी और औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिलेगा. वहीं, जापान के लिए ये सौदा युद्धविरोधी संयम से हटकर सक्रिय रक्षा कूटनीति और औद्योगिक संबंधों का संकेत है.

हिंद प्रशांत के व्यापक परिदृश्य में देखें, तो ये सौदा आपस में जुड़े हुए एक प्रतिरोधक ढांचे को और मज़बूती देने का काम भी करता है, और ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग की त्रिपक्षीय रूपरेखा (AUKUS) के पूरक का काम करता है; इसके अलावा अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और फिलीपींस के बीच सीमित बहुपक्षीय गठबंधन SQUAD के साथ साथ ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका के चतुर्भुजीय गठजोड़ (QUAD) को भी इससे ताक़त मिलेगी और तीनों आपस में मिलकर सुरक्षा के क्षेत्र में तालमेल बढ़ा सकेंगे. आज जब चीन की नौसैनिक आक्रामकता, समुद्री नियमों की सीमा को चुनौती दे रहे हैं, तो ऑस्ट्रेलिया की बढ़ी हुई नौसैनिक शक्ति और हथियारों के निर्यात में जापान के फिर से दाख़िल दोने से हिंद प्रशांत क्षेत्र के प्रतिरोधी नेटवर्क में नए समीकरण बनने के संकेत मिलते हैं. उत्पादन को दोनों देशों के बीच बांटने का ये मॉडल, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच औद्योगिक एकीकरण की गहराई बढ़ने का भी संकेत देता है, जिससे आगे चलकर आपूर्ति श्रृंखलाओं के क्षेत्र में भी जहाज़ निर्माण की अन्य शक्तियों के बीच सहयोग या फिर प्रतिद्वंदिता की संभावनाएं भी पैदा होंगी. प्रतीकात्मक रूप से जापान से ऑस्ट्रेलिया को जंगी जहाज़ों की बिक्री इस बात का स्पष्ट संकेत देती है कि जापान क्षेत्र की सुरक्षा में ‘समान विचारधारा वाले’ अन्य देशों के साथ क्षेत्रीय सुरक्षा में सहयोग बढ़ाने को तैयार है.

ऑस्ट्रेलिया की बात करें, तो इस सौदे से उसके नौसैनिक बेड़े के आधुनिकीकरण में तेज़ी आएगी, सुदूर समुद्री क्षेत्रों तक पहुंच बढ़ेगी और औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिलेगा. वहीं, जापान के लिए ये सौदा युद्धविरोधी संयम से हटकर सक्रिय रक्षा कूटनीति और औद्योगिक संबंधों का संकेत है. हिंद प्रशांत के लिए ये सौदा सुरक्षा के एक उभरते इको-सिस्टम की गवाही देता है, जहां देशों के बीच मिलकर अभियान चलाने, तालमेल से नौसैनिक शक्ति का इस्तेमाल करने और सामरिक प्रबंधन का संकेत है, ताकि संशोधनवादी ताक़तों की चुनौती का अधिक मज़बूती से मुक़ाबला किया जा सके.

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