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हिंद महासागर क्षेत्र का भविष्य एक दशक पहले की तुलना में अब कहीं ज़्यादा अस्थिर और अनिश्चित नज़र आ रहा है. इसे पहले की तुलना में कहीं अधिक अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समन्वित जुड़ाव की ज़रूरत होगी.
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यह लेख शृंखला रायसीना फाइल्स 2025 का हिस्सा है
साल 2023 के अंत में, अमेरिका ने मालदीव में अपना पहला दूतावास खोला. उसी वर्ष, ऑस्ट्रेलिया ने भी ऐसा ही किया, और वह हिंद महासागर के पूर्वोत्तर में स्थित इस द्वीपीय देश में एक छोटे, लेकिन बढ़ रहे उस कूटनीतिक समूह का हिस्सा बन गया, जिसमें ब्रिटेन, भारत, चीन, जापान और सऊदी अरब शामिल थे.
जैसे-जैसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक संघर्ष बढ़ता जा रहा है, आने वाले वर्षों में हिंद महासागर क्षेत्र कैसा दिखेगा, यह इस बात पर भी कुछ हद तक निर्भर करेगा कि उन छोटे द्वीपीय देशों के साथ कौन-कौन से मुल्क जुड़ते हैं और वे ऐसा कैसे करते हैं.
ऐसा करने की वज़ह आर्थिक नहीं थी. पर्यटन पर निर्भर मालदीव के अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया, दोनों के साथ मामूली आर्थिक संबंध हैं. आम लोगों के बीच भी नाममात्र का रिश्ता है. बल्कि, ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के प्रभाव को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं. इससे यह भी पता चलता है कि छोटे द्वीपीय देश- बड़ी वैश्विक ताकतों की तरह- इस क्षेत्र को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. जैसे-जैसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक संघर्ष बढ़ता जा रहा है, आने वाले वर्षों में हिंद महासागर क्षेत्र कैसा दिखेगा, यह इस बात पर भी कुछ हद तक निर्भर करेगा कि उन छोटे द्वीपीय देशों के साथ कौन-कौन से मुल्क जुड़ते हैं और वे ऐसा कैसे करते हैं.
हिंद महासागर असाधारण रूप से एक विविधतापूर्ण क्षेत्र है. दुनिया की एक तिहाई आबादी (2.7 अरब लोग) का यह घर है और यहां 23 देश स्थित हैं. इनमें भारत, इंडोनेशिया और फ्रांस जैसी वैश्विक अर्थव्यवस्था वाले राष्ट्रों से लेकर मॉरीशस और सेशेल्स जैसे द्वीपीय राष्ट्र भी शामिल हैं. यहां यमन और सोमालिया जैसे कमज़ोर देश भी हैं. यहां दुनिया के कुछ सबसे महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों के साथ-साथ तंग व ख़तरे वाले जलमार्ग भी हैं, जहां से दुनिया के एक तिहाई मालवाहक और दो तिहाई तेल जहाज़ गुज़रते हैं.[1] इस कारण यह क्षेत्र कई देशों के लिए महत्वपूर्ण बन जाता है, ख़ास तौर से चीन के लिए, जिसका 80 प्रतिशत तेल और LNG सिर्फ़ हिंद महासागर के एक संकीर्ण मार्ग- मलक्का जलडमरूमध्य से गुज़रकर आता है.[2]
फिर भी, ऐतिहासिक रूप से इस क्षेत्र पर वैश्विक समुदायों का बहुत कम ध्यान गया है. हालांकि, 2023 के अंत में, लाल सागर में व्यापारिक जहाज़ों पर हूती विद्रोहियों द्वारा किए गए हमलों ने न सिर्फ़ हिंद महासागर के वैश्विक महत्व को प्रदर्शित किया, बल्कि इस क्षेत्र में बढ़ते भू-राजनीतिक मतभेदों को भी उजागर किया. तब से अब तक यहां 100 से अधिक हमले हो चुके हैं, जिस कारण ज़्यादातर जहाज़ दक्षिणी अफ्रीका के नज़दीक के महंगे रास्ते से गुज़रने के लिए मजबूर हैं. हालांकि, ईरानी, चीन और रूसी जहाज़ लाल सागर से बेरोकटोक आ-जा रहे हैं.[3]
हिंद महासागर में बाहरी खिलाड़ियों की बढ़ती यह मौजूदगी इस क्षेत्र में एक उल्लेखनीय बदलाव है. पहले, भारत और फ्रांस का यहां दबदबा था. हालांकि, 1960 के दशक के आख़िरी वर्षों से अमेरिका ने मध्य हिंद महासागर के डिएगो गार्सिया में एक सैन्य अड्डा बनाए रखा है[4], पर भारत लंबे समय से खुद को इस क्षेत्र में सुरक्षा मुहैया कराने वाला एक प्रमुख देश मानता रहा है.[5] अपनी 2015 की राष्ट्रीय समुद्री रणनीति में, नई दिल्ली ने पूरे हिंद महासागर (पूर्वी अफ्रीका से लेकर लोम्बोक जलडमरूमध्य तक) को अपने ‘हित का प्राथमिक क्षेत्र’ बताया है और पूरे क्षेत्र में लगभग 150 जहाज़ों व पनडुब्बियों की एक नौसेना तैनात की है.[6] इस बीच, फ्रांस, जो अपने रियूनियन और मायोटे क्षेत्र के कारण हिंद महासागर का एक राष्ट्र है, पश्चिमी हिंद महासागर में ख़ासा व्यस्त है. वह यहां सालाना क़रीब 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर की लगातार सहायता देता है और रियूनियन पर 2,000 सैन्य कर्मियों की मौजूदगी बनाए रखता है.[7]
पिछले डेढ़ दशक में, कई देशों ने कारोबारी अवसरों का लाभ उठाने, रणनीतिक समर्थन जुटाने और समुद्री संचार तक पहुंच बनाए रखने के लिए हिंद महासागर में अपनी भागीदारी बढ़ाई है. इनमें जापान (एक प्रमुख विकास भागीदार बनकर), तुर्किये (सोमालिया में एक बंदरगाह को आर्थिक मदद देकर और मालदीव, पाकिस्तान, श्रीलंका सहित तमाम देशों में अपने रक्षा उद्योग के लिए नए बाजार खोजकर)[8] और सऊदी अरब व संयुक्त अरब अमीरात (दोनों देश सहायता और व्यापार पर ध्यान देकर, साथ ही कोमोरोस व मालदीव जैसे इस्लामी देशों के साथ संबंध बनाकर) ख़ास तौर पर सक्रिय हैं.[9] अमेरिका भी अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है और उसने 2023 में मालदीव में नई शुरुआत करने के साथ सेशेल्स में भी अपना दूतावास फिर से खोला है[10]. उसने 2024 में कांग्रेस (अमेरिकी संसद) में एक विधेयक- हिंद महासागर क्षेत्र रणनीतिक समीक्षा अधिनियम भी पेश किया, जो अमेरिकी हितों की पड़ताल करने और महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में द्वीपीय देशों की पहचान करने पर ज़ोर देता है.[11]
पिछले डेढ़ दशक में, कई देशों ने कारोबारी अवसरों का लाभ उठाने, रणनीतिक समर्थन जुटाने और समुद्री संचार तक पहुंच बनाए रखने के लिए हिंद महासागर में अपनी भागीदारी बढ़ाई है
रूस भी यहां मौजूद है. उसने 2020 में सूडान में एक बंदरगाह बनाया और यूक्रेन युद्ध के लिए समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहा है. कुछ विश्लेषकों ने इस क्षेत्र में फ्रांस-विरोधी भावना के रूप में रूस का समर्थन भी देखा है.[12] मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कुख्यात हथियार विक्रेता विक्टर बाउट (अब रूसी क्षेत्रीय विधायिका का सदस्य) 2024 के अंत में हूती विद्रोहियों के साथ हथियारों की आपूर्ति के लिए सौदेबाजी कर रहा था, हालांकि क्रेमलिन ने ऐसी रिपोर्ट का खंडन किया था.[13]
इस क्षेत्र में मौजूद सभी देशों में चीन ही वह देश है, जिसने यहां सबसे ज़्यादा ध्यान लगाया है. उसने यह अपने व्यापक संपर्क और बंदरगाह, संचार व सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में काम करके किया. संपर्क की बात करें, तो चीन किसी भी अन्य देशों से काफी आगे है. हिंद महासागर के हर देश में उसके दूतावास हैं, यहां तक कि द्वीपीय देशों में भी (ऐसा करने वाला वह अकेला राष्ट्र है), साथ ही हिंद महासागर रिम एसोसिएशन सहित यहां के सभी क्षेत्रीय संगठनों में वह या तो सदस्य है या पर्यवेक्षक. वह इस क्षेत्र के कमोबेश सभी देशों का महत्वपूर्ण आर्थिक साझेदार भी है. इसी तरह, बंदरगाह और संचार से जुड़े बुनियादी ढांचे में निवेश करके उसने भविष्य की किसी सुरक्षा ज़रूरत के लिए मज़बूत नींव रखी है. इसने 2016 में जिबूती में एक सैन्य अड्डा बनाया, जो किसी भी समय हिंद महासागर में घूमने वाले लगभग तीन से आठ चीनी युद्धपोतों को मदद पहुंचाता है. साथ ही, हिंद महासागर रिम के आसपास उसने 17 बंदरगाहों में निवेश किया है या उसे बनाया है, जिनमें पाकिस्तान का ग्वादर और श्रीलंका का हंबनटोटा तो सबसे प्रसिद्ध है, लेकिन जिबूती, मेडागास्कर, केन्या व तंजानिया में भी इसे छोटे-छोटे बंदरगाह बनाए हैं.[14] हुआवेई के माध्यम से, उसने सेशेल्स, कोमोरोस, मालदीव, श्रीलंका और अन्य देशों को समुद्र के अंदर पनडुब्बी संचार केबल उपलब्ध कराए हैं, जिस कारण सूचनाओं तक इसकी व्यापक पहुंच बन जाती है.
हुआवेई के माध्यम से, उसने सेशेल्स, कोमोरोस, मालदीव, श्रीलंका और अन्य देशों को समुद्र के अंदर पनडुब्बी संचार केबल उपलब्ध कराए हैं, जिस कारण सूचनाओं तक इसकी व्यापक पहुंच बन जाती है.
हाल के दिनों में, चीन के निगरानी वाले जहाज़ों ने हिंद महासागर में समुद्री मानचित्र संबंधी अभ्यास बढ़ा दिए हैं, जिनमें सबसे विवादास्पद बंगाल की खाड़ी है, जहां भारतीय परमाणु पनडुब्बियां मौजूद हैं.[15] इसके अलावा, वह इस क्षेत्र के आसपास के देशों के साथ सुरक्षा सहयोग बढ़ाने की कोशिश भी कर रहा है. मालदीव के साथ अपने हालिया सुरक्षा समझौते से लेकर मार्च 2024 में ‘द्विपक्षीय सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देने के लिए’ श्रीलंका में एक सैन्य प्रतिनिधिमंडल भेजने और मई, 2024 में बांग्लादेश के साथ अपने पहले द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास तक इसके कई उदाहरण गिनाए जा सकते हैं.[16]
यह तो तय है कि हिंद महासागर में सुरक्षा देने वाले देश के रूप में भारत की पदवी चीन नहीं छीन सका है, फिर भी जिस तरह से बीजिंग लगातार यहां सक्रिय है, उसने नई दिल्ली और अन्य देशों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है, क्योंकि इससे इस क्षेत्र का रणनीतिक संतुलन प्रभावित होता है.
हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की मज़बूत उपस्थिति के बारे में जितनी चिंता ज़ाहिर की जाती रही है, हिंद महासागर के छोटे द्वीपीय देशों की सोच व ज़रूरतों पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता. जबकि, उनके विचार और विकल्प क्षेत्र के विकास के लिए बहुत मायने रखते हैं.
सबसे पहले, द्वीपीय देशों को अपनी आर्थिक मुश्किलों से निपटने, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचने और विशाल विशेष आर्थिक क्षेत्र के कारण साझेदारी की आवश्यकता है. उदाहरण के लिए, मॉरीशस (जिसकी आबादी 12 लाख है) के हिस्से में क़रीब 13 लाख वर्ग किलोमीटर महासागर है, जबकि भारत इसका क़रीब दोगुना, यानी 24 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की निगरानी करता है, लेकिन उसके पास मॉरीशस की तुलना में काफी ज़्यादा मानव और आर्थिक संसाधन हैं. लिहाज़ा, ऐसे मामलों में छोटे द्वीपीय देशों के लिए सबसे अच्छा विकल्प मदद मांगना है.
हालांकि, छोटे देश हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठे हैं. उनका भी आपस में संबंध है, विशेष तौर पर किसके साथ काम करने और किसको क्या देने (ख़ासकर बंदरगाह और आने-जाने की सुविधा) को लेकर वे संजीदा हैं. हालांकि यह सुविधा समान रूप से सभी द्वीपीय देशों को नहीं मिली है. कुछ देशों के पास दूसरों की तुलना में अधिक विकल्प हैं. उदाहरण के लिए, मॉरीशस तुलनात्मक रूप से अधिक विकसित है और उसका भारत व कई अन्य देशों के साथ गहरा रिश्ता है. जबकि, कोमोरोस के पास बहुत कम विकल्प हैं, जिसने 1975 में आज़ादी मिलने के बाद लगभग 20 सफल व विफल तख्तापलट देखे हैं, और वहां मौजूदा राष्ट्रपति पर अपने बेटे को राष्ट्रपति पद के लिए तैयार करने के आरोप हैं. इस द्वीपीय देश के लिए, चीन सबसे बड़ा कर्ज़दाता और मददगार है.[17]
दूसरी बात, जैसे-जैसे भू-राजनीतिक संघर्ष बढ़ता जाएगा, वैसे-वैसे छोटे देशों की गुटनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्धता भी बढ़ती जाएगी. हालांकि, गुटनिरपेक्षता को जिस तरह पेश किया जाता है, वह हमेशा बड़े देशों को पसंद नहीं आता. इसलिए, हिंद महासागर क्षेत्र के कुछ देशों ने यूक्रेन पर संयुक्त राष्ट्र (UN) के मतदान से खुद को अलग रखा, क्योंकि उनके मुताबिक, यह एक भू-राजनीतिक जंग है, जिसमें उन्हें दख़ल नहीं देना चाहिए. [18] [19]
इससे, छोटे देशों की सरकारें भी अपनी चिंतित आबादी के दबाव में आ जाती हैं, क्योंकि वहां के लोग अपने देश के सुरक्षा संबंधी फ़ैसलों को ‘एक पक्षीय’ मानने लगते हैं. जब सेशेल्स ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्ज़ियन (लाल सागर में हूती विद्रोहियों से निपटने का एक बहुराष्ट्रीय प्रयास) में शामिल हुआ, तो उसकी सरकार को आम लोगों की आलोचना झेलनी पड़ी, क्योंकि सेशेल्स की जनता ने इसे ‘मध्य-पूर्व का मसला’ माना.[20] इसी तरह, मॉरीशस सरकार द्वारा भारत को अगलेगा द्वीप पर एक सैन्य सुविधा बनाने की अनुमति देने संबंधी फ़ैसले का भी खूब विरोध हुआ, क्योंकि यह माना गया कि इससे एक बड़ी शक्ति को मॉरीशस के संप्रभु क्षेत्र तक दख़ल मिल जाएगा.[21]
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर इस तरह के संबंध को प्रभावशाली बनाना है, तो इसमें द्वीपीय देशों को भी शामिल करना होगा और उन मुद्दों का समाधान निकालना होगा, जो उनके लिए सबसे ज़्यादा मायने रखते हैं.
तीसरी बात, क्षेत्र के छोटे द्वीपीय देश चीन को ख़तरे के रूप में नहीं देखते, बल्कि कभी-कभी तो उसे एक बेहतर विकल्प मानते हैं.[22] इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण मालदीव है, जहां 2013 के बाद की सरकारें लगातार भारत-समर्थक और चीन-समर्थक राष्ट्रपतियों के बीच झूलती रही हैं.[23] भारत को भी इस पूरे क्षेत्र में व्यापक प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ रहा है. मालदीव और बांग्लादेश में क्रमशः 2023 और 2024 के चुनाव अभियान में कहीं-न-कहीं ‘इंडिया आउट’ की मानसिकता उभरकर सामने आई. उधर, श्रीलंका में भी इस तरह के विरोध-प्रदर्शन पहले हो चुके हैं.[24] सेशेल्स के असम्पशन द्वीप पर नौसैन्य अड्डा बनाने की भारत की कोशिशों को 2020 में सेशेल्स सरकार ने रोक दिया.[25] यहां तक कि मॉरीशस में भी, जहां 70 प्रतिशत आबादी भारतीय मूल की है, पूर्व प्रधानमंत्री प्रविंद जुगनॉथ को ‘भारत समर्थक’ होने के कारण कई वर्षों तक संसद में आलोचना झेलनी पड़ी.[26]
हिंद महासागर क्षेत्र का भविष्य एक दशक पहले की तुलना में अब कहीं ज़्यादा अस्थिर और अनिश्चित नज़र आ रहा है. इसे पहले की तुलना में कहीं अधिक अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समन्वित जुड़ाव की ज़रूरत होगी. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर इस तरह के संबंध को प्रभावशाली बनाना है, तो इसमें द्वीपीय देशों को भी शामिल करना होगा और उन मुद्दों का समाधान निकालना होगा, जो उनके लिए सबसे ज़्यादा मायने रखते हैं. इनमें जलवायु परिवर्तन, समुद्री क्षेत्र जागरूकता, क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण और मानव क्षमता का निर्माण शामिल है. चूंकि भारत, फ्रांस, जापान, अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े देश इस क्षेत्र में एक साथ काम करना चाहते हैं, इसलिए वे एकीकृत हिंद-प्रशांत रणनीति को आगे बढ़ाने पर विचार कर सकते हैं. ऐसा करने में, छोटे द्वीपीय देशों की आवाज़ को भी शामिल किया जाना आवश्यक होगा.
हालांकि, ऐसा करना आसान नहीं होगा. क्षेत्र की विविधता और कमज़ोर क्षेत्रीय संरचना के कारण हिंद महासागर क्षेत्र में सामूहिक रूप से काम करना मुश्किल होगा. फिर, प्रशांत द्वीप या दक्षिण पूर्व एशिया में जिस तरह का सहयोग है, उस तरह की सहयोग की जड़ें हिंद महासागर में नहीं हैं. मगर यदि निष्क्रिय बने रहें, तो इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है. हिंद महासागर में स्थिरता बनाए रखने के लिए निवेश करने वाले सभी देशों (क्षेत्र के भीतर और बाहर, दोनों तरह के देश) के लिए ज़रूरी है कि वे छोटे द्वीपीय देशों की बात सुनें, तभी वे यहां की पहेली सुलझा सकते हैं.
Endnotes
[1] Hon. Penny Wong, “Keynote Address to the 7th Indian Ocean Conference,” Perth, February 9, 2024, https://www.foreignminister.gov.au/minister/penny-wong/speech/keynote-address-7th-indianocean- conference
[2] Chen Aizhu and Meng Meng, “China Crude Oil Imports Shatter Record, Top U.S. Intake,” Reuters, April 12, 2017, https://www.reuters.com/article/china-economy-trade-crude-idUSL3N1HK1DG?rpc=401&.
[3] “Yemen’s Houthis Release Crew of Seized Ship after Gaza Ceasefire Deal,” Al Jazeera, January 22, 2025, https://www.aljazeera.com/news/2025/1/22/yemens-houthis-release-crew-of-seized-ship-aftergaza- ceasefire-deal
[4] सैन्य अड्डा मॉरीशस और ब्रिटेन के बीच लंबे समय से चल रहे संप्रभुता संबंधी विवाद का विषय रहा है. 1965 में, जब शीतयुद्ध अपने शीर्ष पर था, ब्रिटेन ने मॉरीशस की आज़ादी से तीन साल पहले, अपने इस उपनिवेश से चागोस द्वीपसमूह को अलग कर दिया. ब्रिटेन ने उस द्वीपसमूह का नाम बदलकर ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र रख दिया, चागोस द्वीप वासियों को जबरन मॉरीशस व सेशेल्स भेज दिया गया, और पोलारिस परमाणु मिसाइलों पर4 करोड़ अमेरिकी डॉलर की छूट के बदले डिएगो गार्सिया द्वीप अमेरिका को पट्टे पर दे दिया गया. आने वाले वर्षों में डिएगो गार्सिया अमेरिका की एक महत्वपूर्ण संपत्ति बन गया, जो हिंद महासागर में ताक़त के प्रदर्शन के लिए ज़रूरी साबित हुआ और 9/11 हमले के बाद अफ़ग़ानिस्तान व इराक सहित मध्य-पूर्व में सैन्य गतिविधियों का एक मंच बन गया. 2024 के अंत में, ब्रिटेन और मॉरीशस की सरकारें चागोस द्वीपसमूह को मॉरीशस को वापस लौटाने के लिए एक समझौते पर ज़रूर पहुंची, जिसमें अगले 99 वर्षों के लिए डिएगो गार्सिया द्वीप पर मॉरीशस की संप्रभुता का उपयोग ब्रिटेन द्वारा करने पर सहमति बनी थी, मगर अमेरिकी चुनाव के बाद, ब्रिटेन ने घोषणा कर दी कि वह इस समझौते पर तब तक हस्ताक्षर नहीं करेगा, जब तक कि ट्रंप की नई सरकार इस पर विचार नहीं कर लेती.
[5] Kate O’Shaughnessy, “The UK Deal on Diego Garcia is Positive, But It Won’t Reverse Declining Support for the Rules-Based Order,” The Interpreter, October 8, 2024, https://www.lowyinstitute.org/the-interpreter/uk-deal-diego-garcia-positive-it-won-t-reversedeclining- support-rules-based-order; “UK stalls Chagos Islands Deal Until Trump Administration Can ‘Consider Detail’,” The Guardian, January 16, 2025, https://www.theguardian.com/world/2025/jan/15/uk-chagos-islands-handover-mauritius-donaldtrump- diego-garcia.
[6] Ministry of Defence, Government of India, “What Are the Current Force Levels of the Indian Navy?,” https://mod.gov.in/faqs/q-1-what-are-current-force-levels-indian-navy-what-are-ongoing-projectswhat- steps-are-being
[7] Hugh Piper and Kate O’Shaughnessy, “How Australia Can Work with France in the Western Indian Ocean,” The Strategist, July 12, 2023, https://www.aspistrategist.org.au/how-australia-can-work-with-france-in-the-western-indianocean/; “Development Cooperation Profiles,” Organisation for Economic Cooperation and Development, June 17, 2024, https://www.oecd.org/en/publications/2023/06/development-co-operation-profiles_17afa013/fullreport/ component-20.html#section-d1e14956-9f6d40b786
[8] Cheuk Yui Kwong, “Turkey’s Influence Grows Eastwards. That’s Welcome,” The Strategist, April 22, 2024, https://www.aspistrategist.org.au/turkeys-influence-grows-eastwards-thats-welcome/
[9] Darshana M. Baruah, Nitya Labh, and Jessica Greely, “Mapping the Indian Ocean Region,” Carnegie Endowment, June 15, 2023, https://carnegieendowment.org/research/2023/06/mapping-the-indian-ocean-region?lang=en
[10] सेशेल्स में अमेरिकी दूतावास 1996 में बंद हो गया, साथ ही अमेरिकी वायु सेना उपग्रह नियंत्रण नेटवर्क ट्रैकिंग स्टेशन को भी बंद कर दिया गया. यह स्टेशन दुनिया के नौ ट्रैकिंग स्टेशनों में से एक था और राष्ट्रीय विमानन व अंतरिक्ष शटल संचालन में मदद करता था. अगले 27 वर्षों तक, अमेरिका ने मॉरीशस के अपने दूतावास के माध्यम से सेशेल्स के काम किए.
[11] Nilanthi Samaranayake, “Connecting West and East: Indian Ocean Security and the US Indo-Pacific Strategy,” Asia Pacific Bulletin, October 18, 2024, https://www.eastwestcenter.org/publications/connecting-west-and-east-indian-ocean-security-andus- indo-pacific-strategy; Ryan Adeline, “Seychelles: Indian Ocean Security and the US Indo-Pacific Strategy,” East West Center, October 18, 2024, https://www.eastwestcenter.org/publications/seychelles-indian-ocean-security-and-us-indo-pacificstrategy.
[12] Baruah, Labh, and Greely, “Mapping the Indian Ocean Region”; Elisabeth Braw, “Russia’s Most Infamous Arms Dealer is Backing Maritime Terror,” Foreign Policy, October 22, 2024, https://foreignpolicy.com/2024/10/22/russia-arms-dealer-viktor-bout-houthis-red-sea-yemen/; Dani Madrid-Morales, Herman Wasserman, Saifuddin Ahmed, “Chinese and Russian Disinformation Flourishes in Some African Countries – Anti-US Sentiment Helps it Take Hold,” The Conversation, September 4, 2024, https://theconversation.com/chinese-and-russian-disinformation-flourishes-in-some-africancountries- anti-us-sentiment-helps-it-take-hold-238101; “Mapping a Surge of Disinformation in Africa,” Africa Centre for Strategic Studies, March 13, 2024, https://africacenter.org/spotlight/mapping-a-surge-of-disinformation-in-africa/; Frederic Grare, “Russia, Azerbaijan Exploit New Caledonian Strife Against France; China Stays Mum,” The Strategist, June 12, 2024, https://www.aspistrategist.org.au/russia-azerbaijan-exploit-new-caledonian-strife-against-francechina- stays-mum/
[13] “Baku Hosts Conference on “Réunion’s Independence: View on France’s Colonial Legacy and Path to Sovereignty”,” Azerbaijan State News Agency, January 21, 2025, https://azertag.az/en/xeber/baku_hosts_conference_on_reunion_039s_independence_view_on_ france_039s_colonial_legacy_and_path_to_sovereignty-3381679
[14] Benjamin Reilly and Peter Dean, “Indian Ocean Security Means More Will Be Asked of US Allies,” East West Bulletin, February 22, 2024, https://www.eastwestcenter.org/publications/indian-ocean-security-means-more-will-be-asked-usallies; Saeeduddin Faridi, “China’s Ports in the Indian Ocean,” Gateway House, August 19, 2021, https://www.gatewayhouse.in/chinas-ports-in-the-indian-ocean-region/.
[15] Kate O’Shaughnessy, “China’s Western Indian Ocean Step Up,” Australian Outlook, October 16, 2023, https://www.internationalaffairs.org.au/australianoutlook/chinas-western-indian-ocean-step-up/; David Brewster, “Mapping the Oceans is the New Front in the Battle for Influence in the Indian Ocean,” The Interpreter, March 27, 2024, https://www.lowyinstitute.org/the-interpreter/mapping-oceans-new-front-battle-influence-indianocean.
[16] William Yang, “China, India Compete for Influence in Indian Ocean,” Voice of America, March 19, 2024, https://www.voanews.com/a/china-and-india-compete-for-influence-in-indian-ocean/7533717. html; Frederic Grare, “Hasina’s Downfall May Create New Opportunities in Bangladesh for China,” The Strategist, August 13, 2024, https://www.aspistrategist.org.au/hasinas-downfall-may-create-new-opportunities-in-bangladeshfor- china/.
[17] CIA World Factbook, “Comoros,” January 16, 2025, https://www.cia.gov/the-world-factbook/countries/ comoros/; Gloria Aradi, “Comoros President Azali Assoumani Wins Fourth Term in Disputed Poll,” BBC News, January 18, 2024, https://www.bbc.com/news/world-africa-68002934; Direction générale du Trésor, “La Chine, Premier Bailleur Bilatéral aux Comores,” chrome-extension://efaidnbmnnnibpcajpcglclefindmkaj/https:/www.tresor.economie.gouv.fr/ PagesInternationales/Pages/2d677a2f-f7a7-4236-9efd-c73c6207c6fa/files/73992267-e3eb-4442-9d67- 7777f2aed1ab.
[18] “UN Tells Russia to Leave Ukraine: How Did Countries Vote?,” Al Jazeera, February 24, 2023, https://www.aljazeera.com/news/2023/2/24/un-tells-russia-to-leave-ukraine-how-did-countriesvote.
[19] इन देशों में बांग्लादेश, दक्षिण अफ्रीका, इथियोपिया, श्रीलंका, पाकिस्तान और भारत शामिल हैं.
[20] Adeline, “Seychelles: Indian Ocean Security and the US Indo-Pacific Strategy”.
[21] Kate O’Shaughnessy, “India’s Battle Over Disinformation in the Indian Ocean,” The Strategist, May 3, 2023, https://www.aspistrategist.org.au/indias-battle-over-disinformation-in-the-indian-ocean/.
[22] Pia Dannhauer, “Australia’s Strategic Messaging Challenge in Southeast Asia,” Asialink, November 28, 2024, https://asialink.unimelb.edu.au/diplomacy/article/australias-strategic-messaging-challengesoutheast- asia/.
[23] Urmika Deb, “Maldives Walks a Diplomatic Tightrope with India,” The Strategist, January 31, 2024, https://www.aspistrategist.org.au/maldives-walks-a-diplomatic-tightrope-with-india/.
[24] Athaulla A. Rasheed, “Voters Back Maldives Change in Foreign Policy,” The Diplomat, April 26, 2024, https://thediplomat.com/2024/04/voters-back-maldives-change-in-foreign-policy/; Faiz Ahmad Taiyeb, “An ‘India Out’ Campaign Gathers Pace in Bangladeshi Social Media,” The Diplomat, March 15, 2024, https://thediplomat.com/2024/03/an-india-out-campaign-gathers-pace-in-bangladeshi-socialmedia/; “India Out” Kicks Off in Sri Lanka?,” Sri Lanka Guardian, May 3, 2024, https://slguardian.org/india-out-kicks-off-in-sri-lanka/; Ashok K. Behuria, “Visit of Sri Lankan President to India: Issues at Stake,” International Centre for Peace Studies, December 24, 2024, https://www.icpsnet.org/issuebrief/Visit-of-Sri-Lankan-President-to-India.
[25] Ashton Robinson, “Seychelles: Washington Comes Calling,” The Interpreter, September 18, 2023, https://www.lowyinstitute.org/the-interpreter/seychelles-washington-comes-calling.
[26] Kavina Ramparsad, “Pravind Jugnauth à Reza Uteem: “What have you got against India?,” Defi Media, July 19, 2022, https://defimedia.info/pravind-jugnauth-reza-uteem-what-have-you-got-against-india.
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Kate O’Shaughnessy is Research Director at the Perth USAsia Centre, and a former Australian diplomat. ...
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