Published on Jul 21, 2022 Updated 29 Days ago

अपनी सत्ता बनाये रखने के लिए राष्ट्रपति गोटाबाया द्वारा तमाम हाथ-पैर मारने के बावजूद, देश उनको हटाने में सफल रहा और पुन: लोकतंत्रीकरण की ओर शुरुआती क़दम बढ़ाये.

#श्रीलंका का गंभीर संकट: निरंकुश शासन का अंत

ये लेख The Unfolding Crisis in Sri Lanka. सीरीज़ का हिस्सा है.


श्रीलंकाई राजनीति के इतिहास में 9 जुलाई एक बेहद अहम दिन था, जब प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के कार्यालय व आवास में घुस गये और उन्हें इस्तीफ़े का एलान करने पर मजबूर कर दिया.

क्यों ज़रूरी था राजपक्षे शासन का ख़त्म होना

बीते कुछ महीनों में आर्थिक संकट गहराने के बावजूद, श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने संकट के मूल मुद्दों से निपटने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय प्रदर्शनकारियों को दूर रखने के लिए सेना का इस्तेमाल करते हुए अपनी कुर्सी बचाये रखने का रास्ता चुना. यह तरीक़ा ख़तरनाक था और साफ़ तौर पर नाकामयाब हो गया, क्योंकि प्रदर्शनकारियों ने आख़िरकार राष्ट्रपति आवास व कार्यालय और प्रधानमंत्री के कार्यालय पर क़ब्जा कर लिया. राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने लिबरल डेमोक्रेट विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाकर मामले के झटपट हल की उम्मीद लगायी. गोटाबाया के मालदीव में शरण लेने के बाद विक्रमसिंघे अब राष्ट्रपति हैं.

बीते कुछ महीनों में आर्थिक संकट गहराने के बावजूद, श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने संकट के मूल मुद्दों से निपटने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय प्रदर्शनकारियों को दूर रखने के लिए सेना का इस्तेमाल करते हुए अपनी कुर्सी बचाये रखने का रास्ता चुना.

ईंधन और भोजन की क़िल्लत के चलते देश अचानक पूरी तरह थम गया था; सरकारी दफ़्तरों और स्कूलों के लिए दो हफ़्ते के शटडाउन का एलान किया गया. आर्थिक संकट ने कई सारी सामाजिक चिंताओं को जन्म दिया है और हिंसा को भड़काया है. तनाव बढ़ने पर कुछ हफ़्ते पहले श्रीलंका में एक फ्यूल स्टेशन पर हालात क़ाबू में करने के लिए सैनिकों ने हवा में गोलियां चलायीं. एक अन्य फ्यूल स्टेशन पर छह पुलिसकर्मी घायल हो गये. पिछले महीने प्रदर्शनकारियों ने 40 से ज़्यादा घरों को जला दिया. प्रदर्शन और भी ज़्यादा बुरा रूप ले रहे थे, लेकिन नवनियुक्त प्रधानमंत्री की ज़्यादा तवज्जो खाद्य संकट और बिगड़ती आर्थिक दशा का हल निकालने के बजाय सांसदों के घरों के पुनर्निर्माण पर थी. राजपक्षे परिवार के राजनीतिक रणनीतिकार, पूर्व वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे ने कैसीनो मालिक धम्मिका पेरेरा को अपनी संसदीय सीट देने का रास्ता बनाते हुए, अपने राजनीतिक पद से इस्तीफ़ा दे दिया. इस प्रकार यह दिखाता है कि विरोध प्रदर्शनों के बावजूद राजनीतिक पक्षपात जारी रहा. विमल वीरवंसा द्वारा यह कहते हुए एक कड़ी चेतावनी भी जारी की गयी कि अगर विरोध प्रदर्शन की मांगों को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो अगले हमले का निशाना देश का प्रभावशाली वर्ग होगा. गंभीर मानवीय संकट के चलते एक संभावित बड़े विद्रोह की संभावना की ओर इशारा करती एक चेतावनी इस प्रकार थी – ‘वे हर उस व्यक्ति पर हमला करेंगे जो विलासितापूर्ण वाहनों का इस्तेमाल कर रहे हैं और विलासितापूर्ण घरों में रह रहे हैं. अगर सरकार संकट के साथ खेल खेलना जारी रखती है, तो यही अटल भविष्य है.’ सेना के सबसे आगे होने, बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों की गिरफ़्तारी और मुख्य विपक्षी दलों द्वारा संसद के बहिष्कार को देखते हुए, श्रीलंका में संकट लगातार नियंत्रण से बाहर होता जा रहा है.

श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया ने प्रधानमंत्री को अपने निरंकुश घर की साफ़-सफ़ाई और उसे लोकतंत्र से सजाने के लिए बतौर हाउस-कीपर चुना था. राजपक्षे का आधुनिक सत्तावादी शासन येल में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर स्टीवेन कोटकिन द्वारा चिह्नित किये गये सत्तावादी शासन के पांच आयामों के साथ बिल्कुल सटीक बैठता है. पहला, देश के 15 से ज़्यादा सेक्टरों में भारी सैन्यीकरण और सुरक्षा बलों के गुप्त अभियान तथा आतंकवाद-विरोधी क़ानून ‘आतंकवाद निरोधक अधिनियम’ (पीटीए) का बेरहमी से इस्तेमाल करते हुए कई गिरफ़्तारियों के साथ अवपीड़क तौर-तरीक़ों का इस्तेमाल. दूसरा, सरकार और जनता के बीच सामाजिक अनुबंध को बनाये रखने के लिए ज़रूरी राजस्व प्रवाह, जैविक खेती जैसी नीतियों की ओर अचानक मुड़ने से प्रभावित हुए. शासन को पता था कि उन्होंने सामाजिक अनुबंध को तोड़ा है और अपनी नीतिगत भूलों को तब तक स्वीकार नहीं किया जब तक कि सरकार नहीं गिर गयी. तीसरा, अल्पसंख्यक भूमि को ज़बरन अपने क़ब्ज़े में लेने, दाह संस्कार के लिए बाध्य करने, न्यायाधिकार से परे गिरफ़्तारियों, और कानून-व्यवस्था में टांग अड़ाने के ज़रिये ज़िंदगी के विभिन्न पहलुओं पर राज्य का नियंत्रण.

राजपक्षे परिवार के राजनीतिक रणनीतिकार, पूर्व वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे ने कैसीनो मालिक धम्मिका पेरेरा को अपनी संसदीय सीट देने का रास्ता बनाते हुए, अपने राजनीतिक पद से इस्तीफ़ा दे दिया. इस प्रकार यह दिखाता है कि विरोध प्रदर्शनों के बावजूद राजनीतिक पक्षपात जारी रहा.

राज्य ने जनता की ज़िंदगियों में अपनी काली छाया डाली; शासन के किसी विरोध या आलोचना को ख़ुशी से नहीं लिया और उन व्यक्तियों पर विपरीत प्रभाव डाला जिन्होंने अपना मतांतर प्रदर्शित करना चुना. चौथा, आंतरिक/बाह्य हस्तक्षेपों का आरोप लगाते हुए और इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरे के बतौर पेश करते हुए, शासन के राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने के वास्ते राष्ट्रवाद को हथियार में बदलने के लिए कहानियां और नैरेटिव बुने गये. नैरेटिव इस तरह से गढ़े गये कि यह प्रदर्शित हो कि राष्ट्रीय महानता ख़तरे में है और राजपक्षे उसकी रक्षा के लिए हैं. ये कहानियां दमदार थीं और इन्हें राजपक्षे-समर्थक निजी मीडिया संस्थानों का उपयोग करते हुए प्रभावशाली ढंग से प्रचारित किया गया. पांचवां, शासन ने चीन की ओर अपने झुकाव को जायज़ ठहराने के लिए एक नैरेटिव रचा जिसने श्रीलंकाई राज्य द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन पर सवाल उठाने वाले पश्चिम का राक्षसीकरण किया. नये नेतृत्व के पास एक भारी-भरकम कार्यभार विदेश नीति को पुन: संतुलित करने और पांचों आयामों को निष्क्रिय करने व देश को पुन: लोकतांत्रिक बनाने के लिए काम करने का होगा.

मुखौटे के रूप में लोकतंत्र

राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने ख़ुद को बचाने के लिए तीन रास्तों वाला राजनीतिक समझौता किया. उन्होंने रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री नियुक्त किया. दूसरा, उन्होंने नये प्रधानमंत्री के लिए अपनी (राजपक्षे की) पार्टी एसएलपीपी का समर्थन हासिल किया. और बदले में, उन्हें रानिल विक्रमसिंघे मिले जो उनका राजनीतिक रूप से बच पाना सुनिश्चित कर सकें. अंत:पार्टी राजनीति की आंतरिक राजनीतिक गतिकी की क़रीबी समझ रखने वाले, अनुभवी राजनेता विक्रमसिंघे ने ख़ुद को बचाने के वास्ते संसद और जनता का विश्वास जीतने के लिए तुरंत अभियान शुरू किया. नये प्रधानमंत्री ने गोटाबाया जैसे राष्ट्रपति की नियुक्ति के लिए पहले मीडिया को दोषी ठहराया; फिर उन्होंने यह स्पष्ट करते हुए एक नैतिक दुविधा को थोपा कि अगर प्रदर्शनकारी उनके और नये शासन के काम में व्यवधान डालेंगे, तो स्थिति केवल और ख़राब होगी. यह नैतिक दुविधा इस पूर्व चेतावनी को आगे बढ़ाने की सावधानीपूर्वक रची गयी रणनीति थी कि अगर सभी राजनीतिक पार्टियों और जनता ने उन्हें समर्थन नहीं दिया तो खाद्य सुरक्षा संकट से नहीं बचा जा सकेगा.

प्रधानमंत्री द्वारा सुझाये गये फ़ौरी संविधान संशोधन किये गये. कार्यकारी राष्ट्रपतित्व की ओर शक्तियों को मोड़ने के लिए गोटाबाया राजपक्षे द्वारा 2020 में लाये गये 20वें संशोधन को, विक्रमसिंघे द्वारा 21वें संशोधन के ज़रिये पलटा गया और काफ़ी शक्तियों को प्रधानमंत्री को हस्तांतरित किया गया. हालांकि, सिविल सोसाइटी एक्टिविस्ट और अकादमिक हस्ती, डॉ जेहान पेरेरा के मुताबिक़, ‘21वां संशोधन राष्ट्रपति की शक्तियों में उतनी ज़्यादा कमी नहीं करता जैसा कि शुरू में सोचा गया था.’

राज्य ने जनता की ज़िंदगियों में अपनी काली छाया डाली; शासन के किसी विरोध या आलोचना को ख़ुशी से नहीं लिया और उन व्यक्तियों पर विपरीत प्रभाव डाला जिन्होंने अपना मतांतर प्रदर्शित करना चुना.

हालात स्थिर बनाने का एक समाधान राजनीतिक और आर्थिक संकट के दरम्यान संरचनात्मक समायोजन है. लेकिन, चिंता की बात यह है कि राजपक्षे और विक्रमसिंघे की अंदरूनी समझौतों की राजनीति मौजूदा संकट का कोई समाधान मुहैया नहीं कराती. प्राथमिक स्थिति अपरिवर्तित रहने के साथ विरोध प्रदर्शन, ‘गोटा गो होम’ के नारे के साथ, जारी रहे. राजपक्षे बंधुओं के साथ आंतरिक समझौते से अलग होने या उसका उल्लंघन करने की कठिनाई को साफ़ तौर पर समझते हुए, विक्रमसिंघे ने राजपक्षे परिवार के साथ खड़े होकर अपने राजनीतिक कैरियर को जोखिम में डाला है. राजपक्षे परिवार के कर्मों की गठरी बहुत भारी है : घोटाले, मानवाधिकार उल्लंघन जैसे सभी कामों का विक्रमसिंघे को बचाव करना पड़ा. संसद में राजनीतिक समर्थन जीतने के लिए, विक्रमसिंघे ने राजपक्षे के समर्थक रहे सांसदों पर भरोसा किया. विक्रमसिंघे तनी हुई सियासी रस्सी पर चल रहे हैं और अर्थव्यवस्था को संभालने तथा साथ ही साथ राष्ट्र को पुन: लोकतांत्रिक बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से त्वरित सहायता की ज़रूरत है. हालांकि, आईएमएफ अभी स्टाफ-स्तरीय समझौते तक ही पहुंचा है और वित्तपोषण समझौते के ज़मीन पर उतरने तक बहुत कुछ किया जाना है. आईएमएफ राहत कोष में अधिक देरी से जानें जायेंगी और जनाक्रोश बढ़ेगा.

नये प्रधानमंत्री ने गोटाबाया जैसे राष्ट्रपति की नियुक्ति के लिए पहले मीडिया को दोषी ठहराया; फिर उन्होंने यह स्पष्ट करते हुए एक नैतिक दुविधा को थोपा कि अगर प्रदर्शनकारी उनके और नये शासन के काम में व्यवधान डालेंगे, तो स्थिति केवल और ख़राब होगी.

संवैधानिक मुखौटे की आड़ में संरचनात्मक बदलावों के ज़रिये बेहतर शासन का भ्रम पैदा करने की एक कोशिश है. आर्थिक स्थिरता हासिल करने के लिए राजनीतिक स्थिरता की, और जनता व नीति-निर्माताओं के बीच अविश्वास की खाई पाटने के लिए प्रदर्शनकारियों की मांगों से सहमति जताने की इच्छा की तत्काल आवश्यकता है. विपक्ष के नेता साजिथ प्रेमदासा और अन्य विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने एलान किया है कि वे एक अंतरिम सर्वदलीय शासन को नेतृत्व देने के लिए तैयार हैं. देश को पुन: लोकतांत्रिक बनाने के लिए यह पहला क़दम हो सकता है. 

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