एक अप्रैल 2022 को श्रीलंका की सरकार ने देश में आपातकाल लगा दिया था. देश में आर्थिक, खाने पीने और ऊर्जा का संकट अब इतना बढ़ गया है कि श्रीलंका एक भयंकर राजनीतिक उथल-पुथल का शिकार हो गया है. श्रीलंका काफ़ी समय से ऐसे हालात को टालने और ख़ुद को मुश्किल में फंसने से बचाने की कोशिश कर रहा था. इसके लिए श्रीलंका की सरकार, भारत और चीन के बीच संतुलन बनाते हुए दोनों ही देशों से अधिकतम आर्थिक मदद और फ़ायदे हासिल करने की कोशिश कर रही थी. लेकिन, आज श्रीलंका की अर्थव्यवस्था मुश्किलों के जिस दलदल में फंस चुकी है, उससे निकलने के लिए सिर्फ़ इतने भर से काम नहीं चलने वाला है. इसके अलावा, भारत और चीन के बीच संतुलन बनाने की इस कोशिश से संकट बस कुछ वक़्त के लिए टाला जा सकता है और इससे हर संबंधित पक्ष को फ़ायदे से ज़्यादा नुक़सान ही होगा.
श्रीलंका ने अपने विकास को अंतरराष्ट्रीय संप्रभु बॉन्ड (ISB) और अन्य देशों से उधार लेकर रफ़्तार दी है. श्रीलंका ने अक्सर उधार की ये रक़म ऊंची ब्याज दरों और समय समय पर भुगतान की शर्तों पर हासिल की है. कुल मिलाकर कहें तो इन सभी कारणों से, साल 2021 तक श्रीलंका पर क़रीब 35 अरब डॉलर के क़र्ज़ का बोझ लद चुका है.
श्रीलंका ऐसे हालात में कैसे पहुंचा?
श्रीलंका भले ही तरक़्क़ी करके मध्यम आमदनी वाले देश के दर्ज़े में पहुंच चुका हो. मगर वो न तो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित कर सका और न ही अपने निर्यात में विविधता लाकर ही अपनी आमदनी बढ़ा सका. असल में श्रीलंका ने अपने विकास को अंतरराष्ट्रीय संप्रभु बॉन्ड (ISB) और अन्य देशों से उधार लेकर रफ़्तार दी है. श्रीलंका ने अक्सर उधार की ये रक़म ऊंची ब्याज दरों और समय समय पर भुगतान की शर्तों पर हासिल की है. कुल मिलाकर कहें तो इन सभी कारणों से, साल 2021 तक श्रीलंका पर क़रीब 35 अरब डॉलर के क़र्ज़ का बोझ लद चुका है. इस संदर्भ में देखें, तो श्रीलंका को क़र्ज़ देने वाले देशों में धीरे-धीरे चीन ने पहला दर्ज़ा हासिल कर लिया था. (देखें सारणी 1).
क़र्ज़ देने वाले |
इंटरनेशनल सोवरेन बॉन्ड |
एशियाई विकास बैंक |
चीन (कुल कर्ज़) |
विश्व बैंक |
जापान |
भारत |
बचा हुआ क़र्ज़ |
36% |
15% |
20% |
10% |
9% |
2% |
सारणी 1: श्रीलंका को क़र्ज़ देने वाले और बचा हुआ क़र्ज़
स्रोत: द डिप्लोमैट
हालांकि, हाल के वर्षों में श्रीलंका द्वारा क़र्ज़ चुकाने की स्थिति लगातार बिगड़ती गई. इसके कई कारण थे. टैक्स से आमदनी घटना; पर्यटन क्षेत्र, आपूर्ति श्रृंखला और विदेश में रह रहे श्रीलंकाई नागरिकों द्वारा घर पैसे भेजने पर कोविड-19 महामारी का असर; और हां, बिना सोचे समझे ऑर्गेनिक खेती करने का फैसला. इससे महंगाई बढ़ी और श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार कम हो गया. हालांकि, उस पर क़र्ज़ वापस करने का बोझ बना रहा. घटते हुए विदेशी मुद्रा भंडार ने श्रीलंका के खाने-पीने के सामान, ईंधन और अन्य ज़रूरी आयात पर बुरा असर डाला है और इसी वजह से श्रीलंका एक साथ कई मुश्किलों का शिकार बन गया. हालात को और ख़राब बनाने वाली बात ये है कि श्रीलंका की सरकार द्वारा जारी किए गए बॉन्ड की अवधि साल 2030 तक हर साल पूरी होती रहेगी. इसका नतीजा ये हुआ है कि आज श्रीलंका के पास महज़ 2.3 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बचा है, जबकि उसे केवल इसी साल 7 अरब डॉलर का क़र्ज़ चुकाना है.
संतुलन के खेल में नए दांव:
इन चुनौतियों से निपटने और ख़ुद को और गर्त में जाने से बचाने के लिए श्रीलंका ने भारत और चीन के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की है, ताकि दोनों ही देशों से ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठा सके. इसके लिए पहले राजपक्षे सरकार ने भारत के हितों को चोट पहुंचाई और कुख्य़ात रूप से अपने देश को चीन की गोद में बिठा दिया. सिर्फ़ 2021 में ही श्रीलंका ने जापान और भारत के साथ कोलंबो के ईस्टर्न कंटेनर टर्मिनल की परियोजना को इकतरफ़ा क़दम उठाते हुए रद्द कर दिया; जाफ़ना प्रायद्वीप में चीन की एक कंपनी को ऊर्जा के कुछ प्रोजेक्ट के ठेके दिए. इसके अलावा श्रीलंका की सरकार ने कोलंबो पोर्ट सिटी इकॉनमिक कॉमर्शियल विधेयक भी संसद से पास कराया. चीन के तुष्टिकरण की इन कोशिशों से श्रीलंका को कुछ फ़ायदा हुआ. चीन ने श्रीलंका को करेंसी स्वैप, तय समय के लिए विदेशी मुद्रा में मदद और क़र्ज़ मुहैया कराए.
भारत ने रियायती दरों पर क़र्ज़ और करेंसी स्वैप की सुविधा इसलिए दी है, जिससे कि श्रीलंका फ़ौरी तौर पर मौजूदा संकट से निपट सके. वहीं, आधुनिकीकरण और निवेश के ज़रिए श्रीलंका को लंबी अवधि में अपनी अर्थव्यवस्था सुधारने में मदद मिलेगी.
हालांकि, जब रासायनिक खाद के मुद्दे पर श्रीलंका और चीन के बीच मतभेद बढ़े, तो राजपक्षे सरकार ने चीन के ख़िलाफ़ भारत से नज़दीकी बढ़ाने वाला दांव चलना शुरू कर दिया. इसके समानांतर भारत ने भी इसे श्रीलंका पर दोबारा अपना प्रभाव बढ़ाने के मौक़े के तौर पर देखा. श्रीलंका की गुज़ारिश पर जब भारत ने श्रीलंका को रासायनिक खाद मुहैया कराई तो इससे श्रीलंका की विदेश नीति में आया नया झुकाव और स्पष्ट हो गया. इसके बाद भारत ने श्रीलंका को चहुंमुखी आर्थिक और वित्तीय मदद देने का नज़रिया अपनाया. इसमें खाने पीने के सामान, ईंधन और दवाओं के आयात के लिए रियायती दरों पर क़र्ज़ मुहैया कराना; विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने के लिए श्रीलंका को करेंसी स्वैप की सुविधा उपलब्ध कराना; नवीनीकरण योग्य ऊर्जा में व्यापक नज़रिए से निवेश और बंदरगाहों, लॉजिस्टिक, मूलभूत ढांचे, कनेक्टिविटी और समुद्री सुरक्षा व्यवस्था का आधुनिकीकरण करना शामिल है.
भारत ने रियायती दरों पर क़र्ज़ और करेंसी स्वैप की सुविधा इसलिए दी है, जिससे कि श्रीलंका फ़ौरी तौर पर मौजूदा संकट से निपट सके. वहीं, आधुनिकीकरण और निवेश के ज़रिए श्रीलंका को लंबी अवधि में अपनी अर्थव्यवस्था सुधारने में मदद मिलेगी. निवेश और प्रोत्साहन के इन क़दमों के बदले में श्रीलंका ने भी भारत के हितों और निवेश को लेकर संवेदनशील नज़रिया अपनाना शुरू किया है. ये बात उस वक़्त बिल्कुल साफ़ हो गई, जब श्रीलंका की सरकार ने जाफ़ना में चीन की कंपनी को दिए गए ऊर्जा के प्रोजेक्ट का ठेका रद्द कर दिया और अडानी समूह के साथ वेस्ट कंटेनर टर्मिनल का सौदा कर लिया.
इस तरह से साल 2021 की शुरुआत से भारत ने श्रीलंका को 2.4 अरब डॉलर के रियायती क़र्ज़ और करेंसी स्वैप की सुविधा उपलब्ध कराई है. इसके अलावा भारत ने 1.5 अरब डॉलर की अतिरिक्त मदद की श्रीलंका की अपील भी मंज़ूर कर ली है. भारत ने त्रिंकोमाली में तेल टैंक फॉर्म विकसित करने के लिए एक नए सहमति पत्र पर भी दस्तख़त किए हैं और श्रीलंका को मदद देने पर आख़िरी मुहर के तौर पर भारत ने श्रीलंका के उत्तरी इलाक़ों में नवीनीकरण योग्य ऊर्जा की परियोजनाएं लगाने के ठेके हासिल किए हैं, और इस इलाक़े की कनेक्टिविटी बढ़ाने की कोशिश भी कर रहा है. भारत ने श्रीलंका को मुफ़्त में फ्लोटिंग डॉक सुविधा और डोर्नियर निगरानी विमान भी उपलब्ध कराने का प्रस्ताव रखा है. इसके साथ साथ उसके श्रीलंका के कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के लिए एक टीम भी भेजी है. इसके अलावा श्रीलंका ने भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड के सहयोग से एक समुद्री बचाव समन्वय केंद्र (MRCC) स्थापित करने पर भी सहमति जताई है. इस समझौते के साथ ही श्रीलंका में सात MRCC नौसैनिक केंद्र तैयार हो जाएंगे. इसमें से एक केंद्र हंबनतोता बंदरगाह पर भी है- ये ऐसा क़दम है जिससे चीन को परेशानी होगी और वो श्रीलंका पर और दबाव बनाने की कोशिश करेगा.
रासायनिक खाद को लेकर मतभेद के बाद, चीन के विदेश मंत्री ने श्रीलंका का दौरा किया था. हालांकि, श्रीलंका ने जब क़र्ज़ लौटाने में रियायत की गुज़ारिश की, तो उस दिशा में चीन ने कोई ठोस वादा नहीं किया.
इसके बाद भी, भारत द्वारा श्रीलंका की मदद की इस चौतरफ़ा कोशिश का दोनों ही देशों को फ़ायदा होगा. इससे मोटे तौर पर श्रीलंका को आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी और इससे भारत भी हिंद महासागर और दक्षिण एशिया में सुरक्षा देने वाले मज़बूत देश के तौर पर उभरेगा. हालांकि, भारत के नज़रिए के ठीक उलट, संकट के वक़्त चीन ने सीधे तौर पर श्रीलंका को वित्तीय और आर्थिक मदद उपलब्ध नहीं कराई है. इसका एक कारण श्रीलंका द्वारा अपनी विदेश नीति में चतुराई से संतुलन बनाना और भारत के प्रति बढ़ता झुकाव भी हो सकता है. वैसे तो रासायनिक खाद को लेकर मतभेद के बाद, चीन के विदेश मंत्री ने श्रीलंका का दौरा किया था. हालांकि, श्रीलंका ने जब क़र्ज़ लौटाने में रियायत की गुज़ारिश की, तो उस दिशा में चीन ने कोई ठोस वादा नहीं किया.
वहीं दूसरी तरफ़, श्रीलंका को ये बात अच्छे से मालूम है कि वो चीन की पूरी तरह से अनदेखी नहीं कर सकता है क्योंकि चीन उसे सबसे ज़्यादा क़र्ज़ देने वाला देश है. इसीलिए, श्रीलंका ने चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत का प्रस्ताव रखकर उसे ख़ुश करने की कोशिश की है. साफ़ है कि जब दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर सातवें दौर की वार्ता ख़त्म हुआ, तब चीन ने कहा था कि वो श्रीलंका को उधार और रियायती दर पर क़र्ज़ के रूप में 2.5 अरब डॉलर की मदद देने पर विचार कर रहा है. अब चूंकि चीन के श्रीलंका के ऊपर काफ़ी एहसान हैं, तो चीन इस बात की पुरज़ोर कोशिश करेगा कि वो उत्तरी श्रीलंका में अपने निवेश का शिकंजा और बढ़ाए- ये ऐसा क़दम है, जिससे भारत के प्रभाव को सबसे ज़्यादा चुनौती मिलेगी.
विवाद को बढ़ावा देना:
इन हालात में आर्थिक संकट ने श्रीलंका को भारत और चीन के बीच होड़ का फ़ायदा उठाने और दोनों देशों के बीच संतुलन बनाने पर मजबूर कर दिया है. सच यही है कि भारत और चीन की इस होड़ से श्रीलंका को काफ़ी फ़ायदा हुआ है. उसे अच्छे और टिकाऊ सौदे हासिल हुआ हैं और आख़िरी वक़्त में मुश्किल से निकालने वाली मदद हासिल हुई है. इसके बावजूद, संतुलन बनाने की इस कोशिश ने भारत और चीन के बीच श्रीलंका में अपना प्रभाव क्षेत्र और निवेश बढ़ाने की होड़ को और बढ़ावा ही दिया है. इसी बात पर बल देने के लिए भारत ने हंबनतोता बंदरगाह और हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी निगरानी और बढ़ा दी है. वहीं चीन ने श्रीलंका के साथ मुक्त व्यापार समझौता करने और उत्तरी श्रीलंका में अपने कारोबारी हितों का विस्तार करने में दिलचस्पी बढ़ा दी है. ये बातें इस बात का इशारा हैं कि आगे चलकर श्रीलंका में भारत और चीन के बीच किस तरह से होड़ लगने वाली है, जहां पर किसी एक देश के निवेश के जवाब में दूसरा देश बराबरी का निवेश करके अपने हित साधने की कोशिश कर रहा है.
श्रीलंका के विपक्षी दलों ने भारत के साथ नवीनीकरण योग्य ऊर्जा क्षेत्र के प्रोजेक्ट और रक्षा सौदों पर पहले ही राजनीति शुरू कर दी है. इस मामले में चीन पर्दे के पीछे से खेलकर ख़ुद को महफ़ूज़ रखने की कोशिश कर रहा है.
इसी तरह, श्रीलंका का ये संकट भारत के लिए इस क्षेत्र पर दोबारा अपना प्रभाव बढ़ाने का मौक़ा लेकर आया है. लेकिन, भारत की इस आक्रामक रणनीति और दोबारा श्रीलंका से रिश्ते बेहतर करने की कोशिश से मालदीव की तरह श्रीलंका में भी ‘इंडिया आउट’ अभियान शुरू होने का डर है. श्रीलंका के विपक्षी दलों ने भारत के साथ नवीनीकरण योग्य ऊर्जा क्षेत्र के प्रोजेक्ट और रक्षा सौदों पर पहले ही राजनीति शुरू कर दी है. इस मामले में चीन पर्दे के पीछे से खेलकर ख़ुद को महफ़ूज़ रखने की कोशिश कर रहा है. और अगर ऐसा होता है और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक के साथ, सरकार की बातचीत बेनतीजा रहती है, तो श्रीलंका एक बार फिर उधार और संतुलन की नीति के भरोसे हो जाएगा. इससे संकट तो कुछ वक़्त के लिए टल जाएगा. भारत और चीन के बीच होड़ भी बढ़ेगी. मगर भारत और ख़ुद श्रीलंका को इसकी भारी घरेलू क़ीमत चुकानी पड़ सकती है.
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