Author : Roshni Kapur

Published on May 31, 2022 Updated 16 Hours ago

श्रीलंका में बिगड़ता आर्थिक संकट, अब उस सरकार के ख़िलाफ राजनैतिक आंदोलन का रूप ले रहा हैं जिसने सन् 2020 के संसदीय चुनाव में बहुमत से विजय पायी थी.

#Sri Lanka: संकटग्रस्त श्रीलंका का घरेलू और क्षेत्रीय देशों के साथ संबंधों पर असर!

परिचय 

श्रीलंका एक बार फिर खबरों के मुख्यपृष्ठ पर हैं. ये देश,अपने बुनियादी वस्तुओं के भीषण संकट की वजह से बदतर आर्थिक संकट झेल रहा हैं, 13 घंटों की बिजली की कटौती, और आवश्यक वस्तुओं की ख़रीदी के लिए कई-कई घंटों तक लगी लोगों की कतार. बिजली की कमी की वजह से काफी सारे दुकानदारों ने संचालन बंद कर रखा है. श्रीलंकाई लोगों के लिए काम पर जाना या फिर जीविका कमा पाना असंभव हो गया है. जनता के बीच बढ़ती सार्वजनिक अशान्ति की प्रतिक्रिया स्वरूप गोटाबाया राजापकक्षा सरकार ने देश के भीतर इमर्जेंसी की घोषणा कर दी है – सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध और कर्फ्य़ू – दोनों पर से प्रतिबंध अब हटा दी गई हैं. 

जनता के बीच बढ़ती सार्वजनिक अशान्ति की प्रतिक्रिया स्वरूप गोटाबाया राजापकक्षा सरकार ने देश के भीतर इमर्जेंसी की घोषणा कर दी है – सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध और कर्फ्य़ू – दोनों पर से प्रतिबंध अब हटा दी गई हैं. 

जबसे 41 संसद सदस्यों ने गठबंधन छोड़ा है, सरकार को अब किसी प्रकार से संसदीय बहुमत के फायदे प्राप्त नहीं हो रहे हैं. शासनरत गठबंधन की सरकार के ज्य़ादातर सदस्यों के सामूहिक दल-बदल की वजह से विधानमंडल में सरकार के अल्पमत में आ जाने की वजह से उनके लिए बिलों को पास करवा पाने में काफी मुश्किल हो रही है. गोटाबाया के ऊपर इस बात का काफी दबाव है कि वो सत्ता से उतर जाएं और एक अंतरिम सरकार बनाए जाने का प्रावधान करे, जो कि देश की बिगड़ती आर्थिक संकट को संभाल सके. विधानमंडल में सभी दलों के सहयोग से एक एकीकृत सरकार बनाने के लिये, गोटाबाया ने हाल ही में अपने मंत्रीमंडल को बर्ख़ास्त कर दिया है, लेकिन जिसे उनके विपक्षियों ने मानने से मना कर दिया है. उनका दावा है कि राजापक्षे देश के भीतर की दयनीय वित्तीय और आर्थिक संकट को सही तरह से संभाव पाने में असफ़ल रहे हैं. और ये सरकार अपनी विश्वसनीयता खो चुकी हैं.  

सरकार विरोधी लहर का प्रभाव 

गिरते आर्थिक संकट की वजह से गोटाबाया के भाग्य ने करवट बदल ली है, जहां सरकार के प्रति समर्थन में काफी उठापटक हुई है, ख़ासकर उस सरकार के प्रति जिसने सन् 2020 में अपार बहुमत से संसदीय चुनाव में जीत हासिल की थी.  ये एक ऐसी घटना थी जो इस आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (proportional representation system) के तहत मात्र एक बार घटी. शुरुआती महीनों में तो सरकार ने अपना “हनीमून” पीरियड ही मनाया, जहां कोविड-19 से संबंधित शुरूआती प्रतिक्रिया और सशक्त राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंडा ने जनता के साथ उनके रिश्ते को गुंजायमान रखा, क्योंकि जनता सरकार द्वारा उठाये गये क़दमों से प्रभावित रही.  

भारी भरकम टैक्स में कटौती और आर्थिक कुप्रबंधन से राज्य के राजस्व को भारी नुकसान हुआ है और इस वजह से रेटिंग एजेंसियों को कोलंबो की क्रेडिट रेटिंग को डिफ़ॉल्ट स्तरों के करीब लाने के उद्देश्य से उनमें गिरावट रजिस्टर करनी पड़ी जिसकी वजह से इस देश का विदेशी बाजार तक पहुँच निषेध हो गया है.

हालांकि, इनकी चंद नीतियों की वजह से देश के भीतर की आर्थिक स्थिति और भी बदतर हो गई हैं. 2019 में, सरकार ने अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में मदद के उद्देश्य से नागरिकों से लिये जाने वाले कर (टैक्स) में भी कटौती की. एडवोकाटा इंस्टिट्यूट के चेयरमैन, मुर्तज़ा जाफ़रजी ने तर्क देते हुए कहा कि सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिए कर में कटौती द्वारा राजकोषीय प्रोत्साहन देने का ग़लत समाधान निकाला गया है. इस भारी भरकम टैक्स में कटौती और आर्थिक कुप्रबंधन से राज्य के राजस्व को भारी नुकसान हुआ है और इस वजह से रेटिंग एजेंसियों को कोलंबो की क्रेडिट रेटिंग को डिफ़ॉल्ट स्तरों के करीब लाने के उद्देश्य से उनमें गिरावट रजिस्टर करनी पड़ी जिसकी वजह से इस देश का विदेशी बाजार तक पहुँच निषेध हो गया है. इसकी वजह से, कोलंबो का विदेशी मुद्रा भंडार 2018 में अमेरिकी डॉलर 6.9 बिलियन से गिर कर 2022 में अमेरिकी डॉलर 2.2 बिलियन रह गई. विदेशी मुद्रा की गिरती कीमत ने सरकार के ईंधन और बाकी अन्य वस्तुओं के आयात को काफी प्रभावित किया और भारी बिजली कटौती करके उन संकट का सामना करने के लिए बाध्य किया जिस वजह से कीमतें एवं महंगाई बढ़ती गई.  

हालांकि,एक संभावित बेल आउट के लिए सरकार अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की ओर उन्मुख हो चुकी हैं, उन्होंने पहले, अंतरराष्ट्रीय संस्थानों को शामिल किए जाने के विपक्ष के इस कॉल का भी विरोध किया. उसके बजाय, उन्होंने प्रांतीय शक्तियों, जिनमें भारत और चीन भी शामिल हैं, करेंसी स्वाइप, ऋण, और राहत पैकेज के ज़रिए  द्विपक्षीय जुड़ाव को प्रोत्साहित किया है. हर्षा डी सिल्वा, जो कि प्रमुख विपक्षी दल समागी जन बालवेगया (एसजेबी) के सदस्य हैं, ने कहा कि विदेशी क़र्ज़ टिकाऊ नहीं है और सरकार की नीतियों जिनमें कर में कटौती एवं केमिकल खाद्य आदि के थोक विक्रय पर लगी पाबंदियों ने आर्थिक स्थिति को और भी बदतर कर दिया है. 

जनता अब किसी हद तक विरोधी दलों के साथ काम करना चाह रही जिन्हें उन्होंने दो साल पूर्व नकार दिया था. जब सिरिसेना सरकार 2019 में राष्ट्रपति के चुनाव में हार गई थी, उस वक्त़ विरोधी लहर अपने चरम पर थी. पिछली सिरिसेना-विक्रमसिंघे प्रशासन ने अर्थव्यवस्था को कुप्रबंधित कर दिया था और राष्ट्रीय सुरक्षा व राजनीतिक हवा को ताक पर रख दिया था. विगत सरकार को 2019 में हुए ईस्टर संडे अटैक को रोक पाने में अथवा उसके प्रभाव को कम कर पाने में मिली असफलता की वजह से ढेरों आलोचना का शिकार भी होना पड़ा था. जब राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने भूतपूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की सरकार बर्ख़ास्त कर दी थी, और 2018 में तत्काल चुनाव की घोषणा कर दी थी, उस वक्त़ भी देश संवैधानिक एवं राजनीतिक संकटों में उलझ गया था. 

घरेलू और क्षेत्रीय आशय

ऐसी अवधारणा है कि सरकार इस स्थिति की गंभीरता को समझ नहीं रही है और नीतियों का क्रियान्वयन हितधारकों या संबंधित स्टेकहोल्डर्स से किसी तरह की सलाह-मशविरा के बग़ैर अमल में लिए जा रहे हैं. आर्थिक और राजनीतिक मोर्चे पर आगे क्या होगा, इस को लेकर अनिश्चितता लगातार बनी हुई है. इमर्जेंसी लागू किए जाने की स्थिति में, सोशल मीडिया पर अंकुश, कर्फ्य़ू और गिरफ़्तारी, संभवतः आम जनता को अपनी हताशा व्यक्त करने से रोक सकेगा. लंबे समय के लिए ये बढ़ भी सकता है. गोटाबाया के संदर्भ में, #GoHomeGota, ने सीमाओं को पार करते हुए अन्य शहरों में बसे श्रीलंकाई प्रवासीयों को सरकार विरोधी प्रदर्शनों में शामिल होने के लिये प्रेरित किया है. 

इन बुरे हालातों में मुमकिन है कि संघर्षरत परिवार बढ़ती गरीबी और खाद्य पदार्थों की कमी से बचने के लिये, पड़ोसी देशों में शरण लेने को बाध्य/विवश  हो जायेंगे, कई नांवों सवार होकर बड़ी संख्या में श्रीलंकाई लोग बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश में भारत आ चुके हैं.

देश की निर्वाचन प्रणाली ने नए राजनीतिक नेताओं, पार्टियों और गठबंधनों को शामिल होने, गठबंधन बनाने और चुनाव लड़ने हेतु एक उचित स्थान प्रदान किया है. सत्तारूढ़ गठबंधन के कुछ पूर्व सदस्य, जिनमें सिरिसेना और एसजेबी धड़े के सदस्य जो एक अंतरिम सरकार बनाना चाहते हैं, ताकि वो आगामी स्नैप चुनाव से पहले इस अंतरिम सरकार के ज़रिए स्थानीय लोगों की आवश्यक ज़रूरतों को संबोधित कर सके, उनके बीच फिर से एक राजनीतिक गठबंधन कायम हो सकती है. कुछ प्रजातंत्रों के विपरीत जहां सदस्य सैद्धांतिक रूप से किसी पार्टी से जुड़े रहते हैं, श्रीलंका में बेहतर फ़ायदों के लिए राजनीतिज्ञों का एक पार्टी से दूसरी पार्टी में शामिल होना बेहद आम है. 

विरोधी और स्वतंत्र विधायक, संसद के शीघ्र विघटन का आह्वान एवं स्नैप चुनाव को रोकने के लिए, राष्ट्रपति के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव ला सकते हैं. आम जनता के दबाव एवं उनके कैबिनेट के सामूहिक इस्तीफ़ा के बावजूद गोटाबाया सत्ता में बने रहने के लिये अड़े हुए हैं. खोयी हुई प्रतिष्ठा को प्राप्त करने के पुनः प्रयास में, और मौजूदा आर्थिक संकट से निपटने के लिये, उन्होंने स्थानीय अर्थशास्त्रियों की एक टीम तैयार की है, जो उनका मार्गदर्शन कर सके और साथ ही बाहरी देनदारों की मदद हासिल करने में मददगार हो.  

हालांकि, श्रीलंका में  ऐसे उदाहरण कम ही मिलेंगे जब वर्तमान प्रशासन देश चलाने में असक्षम हो तो अंतरिम सरकारों या फिर मिलिट्री ने टेकओवर कर लिया हो. मिलिट्री की यहां कोई वरीयता नहीं होती है. हालांकि, साल 2001 में एकमात्र अपवाद के रूप में, चंद्रिका कुमारातुंगा के नेतृत्व में बनी सरकार जनथा विमुकथी पेरामुना (JVP) के साथ गठबंधन में जाने को बाध्य हुई थी, और एक साल तक के लिए एक कार्यवाहक सरकार बनाने की उनकी मांग को स्वीकारा था. फिर भी, एक अंतरिम सरकार, जिसमें राजापक्षे परिवार के कोई सदस्य मौजूद हो, जनता को शांत करने के लिए कोई आदर्श स्थिति नहीं होगी. गोटाबाया के लिए, इस विरोधी लहर और देश में व्याप्त अत्याधिक अस्थिर वातावरण के बीच अपना सत्र पूरा कर पाना असंभव होगा. विरोधी पक्ष अगर सत्ता में वापस आती है तो वो कार्यकारी राष्ट्रपति के अधीन शक्तियों पर पाबंदी लगाने के लिये 20वें संशोधन को रद्द कर सकती है और उन अधिकारों को अन्य संस्थानों में स्थानांतरित कर सकती हैं. वे इस बात को सुनिश्चित करेंगे कि निर्णय लेने के सारे अधिकार सिर्फ़ एक्ज़यूकिटिव ब्रांच तक केंद्रीकृत न हो. हफ़्ते दर हफ़्ते खराब होती आर्थिक स्थिती के बीच विरोधी दल लगातार जनता की नज़र के जांच के घेरे में रहेंगे. इन बुरे हालातों में मुमकिन है कि संघर्षरत परिवार बढ़ती गरीबी और खाद्य पदार्थों की कमी से बचने के लिये, पड़ोसी देशों में शरण लेने को बाध्य/विवश  हो जायेंगे, कई नांवों सवार होकर बड़ी संख्या में श्रीलंकाई लोग बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश में भारत आ चुके हैं. तमिलनाडु स्थित गुप्तचर अधिकारियों को ऐसी सूचना प्राप्त हुई है कि आने वाले हफ्तों में और भी शरणार्थियों के भारत आने की गुंजाइश हैं.  

अगर विपक्षी दलों को चुनाव में जीत हासिल होती है तो, विरोधी दलों के लिए, एक टर्म में अर्थव्यवस्था को स्थिर कर पाना काफी काफी चुनौतीपूर्ण होगा. आर्थिक कुप्रबंधन, उपार्जित उधार, और लगातार आती सरकारों द्वारा ग़लत सलाह पर आधारित कर कटौती की वजह से, ये देश विगत कई वर्षों से आर्थिक मुशिक्लों के निर्माण की  प्रक्रिया में है. और तो और, अलग-अलग विचारधाराओं, और राजनैतिक उद्देश्यों से पूर्ण विभिन्न पार्टियों के बीच स्थापित ये नया गठबंधन, इतना भी आसान नहीं होगा. वे विदेशी कर्ज़, विकास नीति, विदेश नीति, और भू-राजनीति जैसे प्रमुख मुद्दों पर एक दूसरे से आँख से आँख मिला कर बात कर सकने में असमर्थ हैं. एक तरफ जहां कुछ सदस्य, अंतरराष्ट्रीय संस्थानों जैसे आईएमएफ, एवं अन्य के साथ एक बेहतर एवं अधिक जुड़ाव चाहेंगे, बाकी अन्य हमेशा ही प्रांतीय शक्तियों से संबंध जोड़ने के पक्ष में होंगे. 

प्रांतीय स्तर पर, कोलंबो में जारी ये आर्थिक संकट, नई दिल्ली के लिए एक अवसर पैदा कर रही है ताकि वो इस देश में ‘पड़ोसी सर्वप्रथम’ की नीति और सॉफ्ट पॉवर पॉलिसी अभियान के तहत अपनी पारंपरिक वर्चस्व को पुनःस्थापित कर सके. ये बीजिंग के इस प्रांत में बढ़ते दबदबे को पीछे धकेल पाने में भी मदद करेगा. 

अगर उन्होंने अपने किये वादों को पूरा नहीं किया तो श्रीलंकाई लोगों को विरोधियों को सत्ता से बाहर करने में ज़रा भी देर नहीं लगेगी. क्योंकि वर्तमान प्रशासन के लिए इस विरोधी लहर का सामना सत्र के मध्यान अथवा अंत में करना कोई नई बात नहीं है. जनता ने चुनाव का इस्तेमाल असक्षम नेताओं को हटाने और नए अथवा पूर्व नेताओं से रिप्लेस करने के लिये किया है. अस्थिरता के बावजूद, चुनाव व्यवस्था के प्रति उनका भरोसा अब भी कायम है और इन दशकों में बिल्कुल मज़बूत खड़ा है. 

प्रांतीय स्तर पर, कोलंबो में जारी ये आर्थिक संकट, नई दिल्ली के लिए एक अवसर पैदा कर रही है ताकि वो इस देश में ‘पड़ोसी सर्वप्रथम’ की नीति और सॉफ्ट पॉवर पॉलिसी अभियान के तहत अपनी पारंपरिक वर्चस्व को पुनःस्थापित कर सके. ये बीजिंग के इस प्रांत में बढ़ते दबदबे को पीछे धकेल पाने में भी मदद करेगा. ज़रूरी सामानों की सप्लाई मुहैया कराने, अनुदान सहायता, करेंसी स्वैप और तत्कालीन भविष्य में लाइन ऑफ़ क्रेडिट आदि मुहैया करते हुए, नई दिल्ली एक विश्वसनीय और परोपकारी साथी के तौर पर खुद को पेश कर पाएगा. लंबे समय में, वो क्षमता निर्माण, बुनियादी ढांचे के विकास, मानवीय सहयोग, और वित्तीय प्रबंधन में अपना ध्यान केंद्रित रख सकते हैं. 

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