Author : Manoj Joshi

Published on Feb 21, 2022 Updated 0 Hours ago
अंतरिक्ष में होड़: वैश्विक अंतरिक्ष रणनीतियों की रूपरेखा और भारत की चिंताएं!

अंतरिक्ष, वैश्विक भूराजनीतिक प्रतिस्पर्धा का नया क्षेत्र है. पिछले महीने, दो महत्वपूर्ण राष्ट्रीय प्रकाशन आये हैं, जो इसकी रूपरेखा पेश करते हैं. ब्रिटेन अपनी पहली ‘रक्षा अंतरिक्ष रणनीति’ (डीएसएस) के साथ आया, और उसके कुछ दिन पहले, चीन ने ‘अंतरिक्ष पर श्वेतपत्र’ जारी किया. इसके पिछले महीने, दिसंबर 2021 में, अमेरिका ने अंतरिक्ष प्राथमिकता फ्रेमवर्क जारी किया था.

ब्रिटिश रक्षा अंतरिक्ष रणनीति का ‘Operationalising the Space Domain’ उपशीर्षक है और इसे देश की बड़ी  ‘राष्ट्रीय अंतरिक्ष रणनीति’ के एक घटक के रूप में देखा जाता है. इसे सितंबर 2021 में प्रकाशित किया गया था. डीएसएस का लक्ष्य अंतरिक्ष में ‘बढ़ते ख़तरों से निपटने’ तथा ‘सैन्य अभियानों के लिए ख़ुफ़िया सूचनाओं और वैश्विक नज़रदारी’ को ज़्यादा मज़बूती प्रदान करने के लिए ब्रिटिश योजना को तैयार करना है. जहां तक चीन की बात है, तो उसने अपना ‘श्वेतपत्र’ बिना किसी रक्षा संदर्भ के पेश किया है. यह श्वेतपत्र ‘उच्च गुणवत्ता के विकास के लिए, अंतरिक्ष विज्ञान, तकनीक, और व्‍यावहारिक उपयोग (अप्लीकेशन) को एकीकृत’ करने की ज़रूरत की बात करता है. लेकिन इस तथ्य को बयान करने से नहीं हिचकता कि यह ‘एक अंतरिक्ष शक्ति [बनने] की दिशा में एक नयी यात्रा’ की शुरुआत है.

एक साल पहले 2020 में, अमेरिका ने अपनी पहली ‘रक्षा अंतरिक्ष रणनीति’ जारी की, जो 2018 की ‘अंतरिक्ष के लिए राष्ट्रीय रणनीति’ से निकल कर सामने आयी.

एक साल पहले 2020 में, अमेरिका ने अपनी पहली ‘रक्षा अंतरिक्ष रणनीति’ जारी की, जो 2018 की ‘अंतरिक्ष के लिए राष्ट्रीय रणनीति’ से निकल कर सामने आयी. ब्रिटेन के लिए, यह मौजूदा नागरिक कार्यक्रम से सैन्य फ़ायदे तलाशने की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम है, जिसके लिए ब्रेग्जिट भी एक कारक बना. मार्च 2021 में प्रकाशित एक तरह के राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति दस्तावेज, इंटीग्रेटेड रिव्यू ने तो कम-से-कम ऐसा ही सुझाया. एक हफ़्ते बाद आये डिफेंस कमांड पेपर ‘Defence in a competitive age’ ने भी कुछ इसी तरह की बात कही.

ब्रिटिश डीएसएस देश के स्काईनेट कम्युनिकेशन सैटेलाइट के उन्नयन के लिए, 5 अरब ब्रिटिश पाउंड के मौजूदा बजट के अलावा 1.4 अरब ब्रिटिश पाउंड का निवेश करने की बात करता है. इस नये निवेश का एक हिस्सा उपग्रहों के लिए अधिक वैश्विक निगरानी और सेना के लिए ख़ुफ़िया सूचनाओं के लिए उपयोग   किया जायेगा, और 61 लाख ब्रिटिश पाउंड अंतरिक्ष से धरती पर डाटा पहुंचाने के लिए अत्याधुनिक लेजर संचार तकनीक के विकास पर ख़र्च होंगे. ब्रिटिश डीएसएस के मुताबिक़, यह इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, साइबर हमले, डायरेक्टेड एनर्जी वेपन, को-ऑर्बिटल सैटेलाइट, और सैटेलाइटों पर डायरेक्ट असेन्ट मिसाइलों के हमले जैसे अंतरिक्ष से उभरते ख़तरों के मद्देनज़र है. अपने डायरेक्ट-असेन्ट एंटी-सैटेलाइट कार्यक्रम, को-ऑर्बिटल एंटी-सैटेलाइट प्रणालियों के चलते चीन स्वाभाविक रूप से एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आता है. 

चीनी श्वेतपत्र के मुख्य बिंदू

चीन का श्वेतपत्र प्रकट तौर पर रक्षा के नहीं, बल्कि अंतरिक्ष के नागरिक उपयोग के बारे में है. लेकिन चीनी अंतरिक्ष कार्यक्रम ख़ुद ही रक्षा कार्यक्रम की एक शाखा है, और ‘चीन का राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रशासन’ (CNSA) ‘राष्ट्रीय रक्षा के वास्ते विज्ञान, तकनीक और उद्योग के लिए राजकीय प्रशासन’ (SASTIND) का हिस्सा है. इसके तहत दो मुख्य सरकारी उद्यम हैं- चाइना एयरोस्पेस साइंस एंड इंडस्ट्री कॉरपोरेशन (CASIC) और चाइना एयरोस्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी कॉरपोरेशन (CASC). ये सभी राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय की रिसर्च अकादमी संख्या 5 से जन्मे हैं. श्वेतपत्र के मुताबिक़, वर्ष 2016 से 2021 तक, चीन ने मुख्यत: लॉन्ग मार्च-5 रॉकेट का इस्तेमाल करते हुए 207 प्रक्षेपण अभियान पूरे किये हैं. अब, अगले पांच साल में, चीन की योजना ‘अंतरिक्ष में नयी पीढ़ी का मानवयुक्त कैरियर रॉकेट और हाई थ्रस्ट ठोस ईंधन आधारित कैरियर रॉकेट भेजने, और हैवी-लिफ्ट लॉन्च व्हीकल के अनुसंधान व विकास को तेज़ करने’ की है.

चीन का श्वेतपत्र प्रकट तौर पर रक्षा के नहीं, बल्कि अंतरिक्ष के नागरिक उपयोग के बारे में है. लेकिन चीनी अंतरिक्ष कार्यक्रम ख़ुद ही रक्षा कार्यक्रम की एक शाखा है, और ‘चीन का राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रशासन’ (CNSA) ‘राष्ट्रीय रक्षा के वास्ते विज्ञान, तकनीक और उद्योग के लिए राजकीय प्रशासन’ (SASTIND) का हिस्सा है.

पिछले साल की एक बड़ी उपलब्धि नये अंतरिक्ष स्टेशन के कोर मॉड्यूल, ‘तियान्हे’ का प्रक्षेपण और जून व अक्टूबर 2021 में तीन-तीन अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने वाले दो मिशन रहे. इस साल, अंतरिक्ष स्टेशन के दो अन्य मॉड्यूल भेजे जाने की संभावना है, जिनसे टी-आकार का स्टेशन साल के अंत तक निर्मित किया जाना है. 

इसके अलावा, श्वेतपत्र ने हाई-रेजोल्यूशन वाले अर्थ एंड ओशन ऑब्जर्वेशन और  मौसम विज्ञान संबंधी सैटेलाइटों, साथ ही साथ संचार व प्रसारण के लिए फिक्स्ड सैटेलाइट नेटवर्कों को लेकर चीनी गतिविधियों की बात की है. चीन अब पूरी दुनिया में सेवाएं देने के लिए अपनी 30 सैटेलाइट वाली बेईदू नेवीगेशन सैटेलाइट प्रणाली की पेशकश कर रहा है. 

श्वेतपत्र ने अंतरिक्ष दूरबीन, शुन्तियान (Xuntian) के एक नये मिशन को भी उजागर किया है, जिसे अंतरिक्ष स्टेशन की कक्षा में ही प्रक्षेपित किया जायेगा, और जो बाद में स्टेशन के साथ जाकर जुड़ जायेगा.

चंद्र अभियानों पर फोकस

चंद्र अभियानों पर बड़ा फोकस होगा, जिनका लक्ष्य अंतत: चंद्रमा पर अड्डा (लूनर बेस) स्थापित करना है. इसके अलावा, श्वेत्रपत्र के मुताबिक़, चीन ‘मंगल की सैंपलिंग और वहां से वापसी, जुपिटर प्रणाली के अन्वेषण इत्यादि पर अहम तकनीकी अनुसंधान पूरे’ करेगा, साथ ही साथ, सौर प्रणाली का अन्वेषण एक मिशन के ज़रिये शुरू करेगा जिसके तहत दो प्रोब सूरज के हेलियोस्फियर के किनारे में भेजे जायेंगे.

श्वेतपत्र एक सार्वजनिक दस्तावेज है और चीन ने अपने लक्ष्यों को अमेरिकी अंतरिक्ष प्राथमिकताओं के दस्तावेज के समान ही पेश करने की कोशिश की है, चाहे वह बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल और ‘सहयोग व साझा करने’ एवं अंतरराष्ट्रीय आदान-प्रदान की बात हो, या फिर ‘अंतरिक्ष तकनीक और उत्पादों के लिए वैश्विक सार्वजनिक सेवाओं का विस्तार करने’ की. इसने बाह्य अंतरिक्ष के इस्तेमाल पर संयुक्त राष्ट्र की संधि की ‘केंद्रीय भूमिका की हिफ़ाजत’ के द्वारा बाह्य अंतरिक्ष के वैश्विक गवर्नेंस और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की बात भी की है. 

अमेरिकी रणनीतिक दस्तावेज की नक़ल करते हुए, चीन ने अपनी नयी अंतरिक्ष परियोजनाओं में भागीदारी के लिए अपने निजी क्षेत्र को भी प्रोत्साहित किया है. 2018 में, सैटेलाइट निर्माण, लॉन्च व्हीकल, सैटेलाइट संचालन इत्यादि से जुड़े कोई 141 एयरोस्पेस उद्यम चीन में पंजीकृत रहे हैं.

अमेरिकी रणनीतिक दस्तावेज की नक़ल करते हुए, चीन ने अपनी नयी अंतरिक्ष परियोजनाओं में भागीदारी के लिए अपने निजी क्षेत्र को भी प्रोत्साहित किया है. 2018 में, सैटेलाइट निर्माण, लॉन्च व्हीकल, सैटेलाइट संचालन इत्यादि से जुड़े कोई 141 एयरोस्पेस उद्यम चीन में पंजीकृत रहे हैं.

ऑब्जर्वेशन, नेवीगेशन, कम्युनिकेशन सैटेलाइट जैसी कई अंतरिक्ष प्रणालियां दोहरे-उपयोग की हैं. इलेक्ट्रॉनिक ख़ुफ़िया सूचनाओं और टार्गेटिंग जैसे कामों के लिए समर्पित सैन्य सैटेलाइटों का ब्योरा शायद ही किसी देश द्वारा सार्वजनिक किया जाता है. लेकिन जो चीज़ दुनिया को चिंता में डालती है, वो कुछ नयी तकनीकें हैं जिन्हें चीन ने सूचीबद्ध किया है, जैसे कि ‘कक्षा के अंदर अंतरिक्षयान की सर्विसिंग एवं रखरखाव और अंतरिक्ष मलबे की सफ़ाई’. सभी अंतरिक्ष शक्तियों की तरह, चीन भी अंतरिक्ष मलबे से प्रभावित रहा है, और हाल ही में उसने शिकायत की कि उसके अंतरिक्ष स्टेशन को ईलॉन मस्क के स्टारलिंक सैटेलाइटों में से एक से बचने के लिए टक्कर टालने की क़वायद करनी पड़ी. लेकिन अंतरिक्ष मलबे में कमी लाने की तकनीकें ‘दोहरे उपयोग’ वाली हैं, जिनका नागरिक और सैन्य दोनों इस्तेमाल हो सकता है. दोबारा ईंधन भरने और मरम्मत के लिए किसी सैटेलाइट से मिलने या जुड़ने में सक्षम सैटेलाइट का इस्तेमाल दुश्मन के सैटेलाइट को अक्षम करने में भी हो सकता है. चीन ने बीते अक्टूबर महीने में जब ‘अंतरिक्ष मलबे में कमी लाने की तकनीक’ के परीक्षण के उद्देश्य से शिजियान 21 सैटेलाइट प्रक्षेपित किया, तो स्वाभाविक रूप से इस पर काफ़ी ध्यान दिया गया. सिक्योर वर्ल्ड फाउंडेशन के पास कई सारी फैक्ट-शीट हैं, जो चीन, भारत, रूस और अमेरिका जैसे देशों के एंटी-सैटेलाइट परीक्षणों, उपग्रहों से मिलन व उनके निकट जाने के अभियानों को सूचीबद्ध करते हैं. इन क्षेत्रों में चीनी गतिविधियां यहां सूचीबद्ध हैं.

अमेरिका,चीन और रूस के बीच प्रतिस्पर्धा

फ़िलहाल, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों में अमेरिका  वर्ल्ड लीडर है. यह इस तथ्य से भी रेखांकित होता है कि उसने अंतरिक्ष में जेम्स वेब टेलीस्कोप को स्थापित किया है, जो कि अपने पूर्ववर्ती हबल से 100 गुना ज़्यादा ताक़तवर है. लेकिन बीते सालों में, उसने नये लॉन्च व्हीकल, अंतरिक्ष स्टेशन के विकास, और गहरे अंतरिक्ष पर फोकस के मामले में अपना महत्वपूर्ण आधार खो दिया है.. अब, वह स्पेस एक्स और ब्लू ओरिजिन जैसी निजी क्षेत्र की कंपनियों और दर्जनों छोटे ऑपरेटरों की मदद से ज़ोरदार वापसी कर रहा है. White House Space Priorities दस्तावेज इसे लेकर स्पष्ट हैं कि ‘एक दमदार अंतरिक्ष कार्यक्रम हमारे गठबंधन और साझेदारियों के विस्तार तथा सैन्य ताक़त को मज़बूती देने में हमें सक्षम बनाता है.’

अमेरिका ने स्पेशल फोर्स की स्थापना की और उसके अगले साल, वह रक्षा अंतरिक्ष रणनीति के साथ आया जो उल्लेख करती है कि ‘अंतरिक्ष अब एक अलग युद्धक्षेत्र है’ जिसका लक्ष्य ‘महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा वाले जटिल सुरक्षा वातावरण में प्रतिस्पर्धा करना, दूसरों को हमला करने से डराना और जीतना’ होगा.

यह दस्तावेज़ एक योजना की रूपरेखा तैयार करता है जो चंद्रमा, मंगल, और उससे परे के नवीकृत अन्वेषण अभियानों को देखेगा. यह कहता है कि यह देश के अंतरिक्ष संबंधी अहम बुनियादी ढांचों को सुदृढ़ करेगा और ‘स्पेस और काउंटर-स्पेस के ख़तरों के बढ़ते दायरे और पैमाने’ के ख़िलाफ़ खुद की रक्षा करेगा. इसके एक अंग के रूप में, यह राष्ट्रीय सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपनी नयी वाणिज्यिक क्षमताओं और सेवाओं का लाभ उठायेगा.

दिसंबर 2019 में, अमेरिका ने स्पेशल फोर्स की स्थापना की और उसके अगले साल, वह रक्षा अंतरिक्ष रणनीति के साथ आया जो उल्लेख करती है कि ‘अंतरिक्ष अब एक अलग युद्धक्षेत्र है’ जिसका लक्ष्य ‘महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा वाले जटिल सुरक्षा वातावरण में प्रतिस्पर्धा करना, दूसरों को हमला करने से डराना और जीतना’ होगा.

अमेरिकी डीएसएस चीन और रूस को ‘सबसे तात्कालिक और गंभीर ख़तरे’ के रूप में में काफ़ी स्पष्टवादी है, हालांकि यह उत्तर कोरिया और ईरान की भी बात करती है. यह कहती है कि अमेरिका की अंतरिक्ष पर निर्भरता को चीन और रूस जानते हैं और उससे निपटने के लिए उन्होंने ‘सिद्धांत, संगठन और क्षमताएं विकसित की हैं’. जहां तक ऐसी बात है, तो अमेरिका ‘अंतरिक्ष में अपनी श्रेष्ठता सुनिश्चित करने और देश के अहम हितों की सुरक्षा के लिए’ अपनी अंतरिक्ष शक्ति को विकसित करने के लिए दृढ़संकल्पित है.

भारत की चिंताएं

अंतरिक्ष से जुड़ी भारत की चिंताएं ब्रिटेन से बहुत अलग नहीं हैं, क्योंकि दोनों ही अंतरिक्ष के सैन्य इस्तेमाल के अखाड़े में कुछ देर से उतरे हैं. अंतरिक्ष गतिविधियों के मामले में नई दिल्ली की ठीकठाक पैठ है, लेकिन इस क्षेत्र में ब्रिटेन की सोच से भारत एक-दो सबक सीख सकता है. 2019 में, सरकार ने रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी और रक्षा अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की स्थापना की, लेकिन एक पूरी तरह तैयार अंतरिक्ष कमान स्थापित करने में हिचकिचा गयी है.  वर्तमान में, भारत के पास जीसैट सीरीज के कई सारे सैटेलाइट हैं, जो सेना के लिए सुरक्षित संचार मुहैया कराते हैं. इमेजरी सैटेलाइटों के अलावा, कई सारे सिंथेटिक इमेजरी सैटेलाइट भी हैं जो सिर्फ़ रक्षा उपयोग के लिए हैं. सैन्य उपयोग वाले कई नज़रदारी और संचार सैटेलाइटों का संचालन इसरो द्वारा किया जाता है. लेकिन ऐसे हालात हो सकते हैं, ख़ासकर युद्ध के दौरान, जब इन्हें सीधे सैन्य कमान के तहत होना चाहिए. 2019 में, भारत ने एक एकीकृत अंतरिक्ष युद्धाभ्यास करने का बड़ा कदम उठाया, जो अंतरिक्ष परिसंपत्तियों (सैटेलाइट इत्यादि) को सैन्य इस्तेमाल के लिए एकीकृत करने पर केंद्रित था. 

भारत के पास जीसैट सीरीज के कई सारे सैटेलाइट हैं, जो सेना के लिए सुरक्षित संचार मुहैया कराते हैं. इमेजरी सैटेलाइटों के अलावा, कई सारे सिंथेटिक इमेजरी सैटेलाइट भी हैं जो सिर्फ़ रक्षा उपयोग के लिए हैं.

रिपोर्ट्स बताती हैं कि भारत ऐसे कई क्षेत्रों में काम कर रहा है जो काउंटर-स्पेस डिफेंस से जुड़े हैं. 2019 में, भारत ने एक डायरेक्ट असेन्ट एंटी-सैटेलाइट टेस्ट किया, लेकिन वह डायरेक्टेड एनर्जी वेपन, को-ऑर्बिटल सैटेलाइट प्रणालियों जैसी काउंटर-स्पेस क्षमताओं के साथ ही साथ अपने सैटेलाइटों को इलेक्ट्रॉनिक और भौतिक हमलों से बचाने के अन्य साधनों पर भी काम कर रहा है.

लेकिन भारत को चीनी सैन्य तकनीकी क्षमता की चिंता करने की ज़रूरत है, जिसे अमेरिका से दो-दो हाथ करने के हिसाब से विकसित किया जा रहा है. टकराव की स्थिति में उसके पास हमारी अंतरिक्ष परिसंपत्तियों को लाचार कर देने की क्षमता हो सकती है. इसलिए, नयी दिल्ली को इस मामले में अपनी गतिविधियां शीघ्रता से तेज़ करने और अपनी क्षमताओं में वृद्धि के लिए अमेरिका जैसे मित्रों से मदद के लिए संपर्क करने की ज़रूरत है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.