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Published on Jan 03, 2022 Updated 0 Hours ago

अंतरिक्ष जिस तरह युद्ध का अगला मैदान बन रहा है, उसे देखते हुए बाह्य अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty) की तुरंत समीक्षा की ज़रूरत है.

अंतरिक्ष : लगातार बढ़ते सैन्यीकरण की चपेट में ‘ग्लोबल कॉमन’

5 नवंबर 2021 को, रूस (Russia) ने अपने पुराने सैटेलाइट्स में से एक को मार गिराकर एक Direct-Ascent Anti-Satellite (DA-ASAT) का परीक्षण किया. ASAT एक अंतरिक्ष हथियार (space weapon) है जो दुश्मन के सैटेलाइट्स को निशाना बनाने के लिए है. यह रणभूमि में दुश्मन की सैन्य संचालन क्षमता को पंगु बना देगा. इन हथियारों का इस्तेमाल सिविलियन सैटेलाइट्स को निशाना बनाने के लिए भी किया जा सकता है. आज के आधुनिक युग में इसके नतीजे प्रलयकारी होंगे. इस परीक्षण का एक गैरइरादतन लेकिन प्रत्याशित नतीजा था अंतरिक्ष में बड़ी मात्रा में मलबा पैदा होना, जिसने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों की ज़िंदगी तक ख़तरे में डाल दी. अमेरिका की अगुवाई में कई देशों ने इस परीक्षण की निंदा की और रूस की कार्रवाइयों को ‘सीधे-सीधे गैरज़िम्मेदाराना’ और ‘बाह्य अंतरिक्ष… के दीर्घकालिक टिकाऊपन (sustainability) के लिए’ ख़तरा बताया.

बाह्य अंतरिक्ष के उपयोग और अन्वेषण के नियमन के लिए, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1959 में आउटर स्पेस कमेटी गठित की, जिसने बाह्य अंतरिक्ष संधि (OST) का मसौदा तैयार किया. 

अभी तक केवल चीन, रूस, भारत, और अमेरिका ने ASAT हथियारों का सफल परीक्षण किया है, जबकि कई अन्य देश अपने ख़ुद के ASAT हथियार विकसित करने की प्रक्रिया में हैं. इन हथियारों के अलावा, दूसरी तरह के अंतरिक्ष हथियार पहले ही विकसित किये जा चुके हैं. इनमें दुश्मन के सैटेलाइट्स की ओर निशाना साधे लेजर हथियार, जैमर, प्लाज्मा अटैक, और ऑर्बिटल बैलिस्टिक मिसाइलें शामिल हैं. हक़ीक़त को ध्यान में रखते हुए बात करें, तो हम अभी अंतरिक्ष में हथियारों की दौड़ की शैशवावस्था में ही हैं.

बाह्य अंतरिक्ष पर सभी का हक़

यह बात हमेशा ख़याल में रहे कि बाह्य अंतरिक्ष (outer space) अंतरराष्ट्रीय क़ानून के द्वारा एक ‘ग्लोबल कॉमन’ (वैश्विक साझा) के रूप में वर्गीकृत है. पारंपरिक रूप से इसका अर्थ एक ऐसा क्षेत्र है, जहां के वैश्विक आर्थिक संसाधन किसी भी देश के राष्ट्रीय अधिकार-क्षेत्र के बाहर हैं और अंतरराष्ट्रीय क़ानून से विनियमित (regulate) होते हैं. इसके उदाहरणों में देशों के तटों से दूर स्थित समुद्र (high seas), अंटार्कटिका, और यहां तक कि साइबरस्पेस शामिल हैं.

बाह्य अंतरिक्ष के उपयोग और अन्वेषण के नियमन के लिए, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1959 में आउटर स्पेस कमेटी गठित की, जिसने बाह्य अंतरिक्ष संधि (OST) का मसौदा तैयार किया. इस संधि का मुख्य उद्देश्य बाह्य अंतरिक्ष को पूरी मानवजाति के लिए के लिए एक ग्लोबल कॉमन, या इसके शब्दों में कहें तो ‘पूरी मानवजाति का प्रांत’ (province of all mankind) बनाना था. यह संधि कहती है कि ‘चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों समेत बाह्य अंतरिक्ष- संप्रभुता की दावेदारी से, उपयोग या क़ब्जे के ज़रिये से, या किसी भी अन्य ज़रिये से- राष्ट्रीय विनियोग (national appropriation) के अधीन नहीं हो सकता’ और ‘खगोलीय पिंडों पर सैन्य अड्डों की स्थापना, सैन्य उपकरण लगाना और क़िलेबंदी करना, किसी भी तरह के हथियारों का परीक्षण और सैन्य प्रशिक्षण निषिद्ध होगा.’ आगे यह भी कहा गया है कि ‘राष्ट्र नाभिकीय हथियारों या सामूहिक विनाश के अन्य हथियारों को खगोलीय पिंडों पर या ऑर्बिट में स्थापित नहीं करेंगे या किसी अन्य तरीक़े से बाह्य अंतरिक्ष में उनकी तैनाती नहीं करेंगे.’ ग्लोबल कॉमन से जुड़ा सबसे अहम पहलू यहां यह है कि ‘शांतिपूर्ण अन्वेषण’ के लिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष का इस्तेमाल एक स्थापित दस्तूरी अंतरराष्ट्रीय क़ानून है.

ख़तरे में ग्लोबल कॉमन्स

जैसा कि हाल के घटनाक्रमों से दिखा है, लंबे समय से चला आ रहा यह अंतरराष्ट्रीय आदर्श इन दिनों अपना महत्व खो रहा है. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तो खुल्लमखुल्ला कह चुके हैं कि ‘अमेरिका [अंतरिक्ष को] ग्लोबल कॉमन के रूप में नहीं देखता’. अपने रुख पर आगे बढ़ते हुए, अमेरिका ने हाल ही में अंतरिक्ष के लिए एक ख़ास सैन्य कमान बनायी है, जिसे सीधे-सीधे स्पेस फोर्स के नाम से जाना जाता है. कहीं अमेरिकी आगे न निकल जाएं, इसे देखते हुए चीन और रूस दोनों ने अंतरिक्ष के लिए अपनी ख़ास सैन्य कमान स्थापित कर डाली थीं, जिन्हें क्रमश: स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स (Strategic Support Force) और एयरोस्पेस डिफेंस फोर्सेज (Aerospace Defence Forces) के नाम से जाना जाता है. यहां तक कि जिन देशों के पास अलग से अंतरिक्ष कमान (space command) नहीं है, वे भी अंतरिक्ष के सैन्य इस्तेमाल में भारी निवेश कर रहे हैं. ईरान साइबर हमले के ऐसे तरीक़े निकाल रहा है, जो सैटेलाइट सिस्टम में गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं. उत्तर कोरिया सैटेलाइट को और सैटेलाइट से ट्रांसमिट होने वाले रेडियो सिग्नल को जाम करने पर काम कर रहा है. दिन-ब-दिन अंतरिक्ष का और ज्यादा सैन्यीकरण हो रहा है. तथ्य यह है कि, इसे पहले ही युद्ध का अगला मैदान क़रार दिया जा चुका है.

ईरान साइबर हमले के ऐसे तरीक़े निकाल रहा है, जो सैटेलाइट सिस्टम में गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं. उत्तर कोरिया सैटेलाइट को और सैटेलाइट से ट्रांसमिट होने वाले रेडियो सिग्नल को जाम करने पर काम कर रहा है.

यहां सवाल उठता है, देश अंतरराष्ट्रीय संधियों की मौजूदगी में बिना कोई नतीजा भुगते आखिर कैसे अंतरिक्ष का लगातार सैन्यीकरण कर रहे हैं? इस सवाल का जवाब है, कमजोर और अस्पष्ट अंतरराष्ट्रीय क़ानून.

पहली और सबसे बड़ी बात, विभिन्न देश ‘शांतिपूर्ण उद्देश्यों’ वाक्यांश के अर्थ पर बंटे हुए हैं. रूस के मुताबिक़, इस वाक्यांश का अर्थ ‘असैन्य’ उद्देश्य है, जैसाकि असैन्यीकरण के संदर्भ में अंटार्कटिक संधि 1959 में इस्तेमाल किया गया है. इस व्याख्या के मुताबिक़, अंतरिक्ष में सभी सैन्य गतिविधियां अवैध होनी चाहिए. इसे असैन्य सिद्धांत कहा जाता है. दूसरी तरफ़, अमेरिका कहता है कि इसका अर्थ ‘गैर-आक्रामक’ है और इसी मुताबिक़, सभी सैन्य उद्देश्य तब तक क़ानूनी हैं जब तक कि वे यूएन चार्टर के अनुसार ‘गैर-आक्रामक’ बने रहते हैं. यूएन चार्टर ‘धमकी या बल प्रयोग’ का निषेध करता है. यह गैर-आक्रामक सिद्धांत कहलाता है. अंतरराष्ट्रीय आकाश एवं अंतरिक्ष क़ानून के दुनियाभर में विशेषज्ञ माने जाने वाले, दिवंगत प्रोफेसर बिन चेंग के अनुसार, यह तर्क देना कि इसका [बाह्य अंतरिक्ष संधि में शांतिपूर्ण शब्द का] मतलब ‘गैर-आक्रामक है, अतार्किक, अव्यावहारिक और यहां तक कि ऊटपटांग निष्कर्ष तक ले जाता है.’ अभी तक, इस व्याख्या पर दूसरे राष्ट्रों की ओर से कोई विरोध दर्ज नहीं कराया गया है, क्योंकि अमेरिका ने खगोलीय पिंडों पर ‘गैर-आक्रामक’ या सैन्य गतिविधियों को अंजाम देने के लिए अपनी व्याख्या को लागू करने की कोशिश नहीं की है. हालांकि, यह व्याख्या अमेरिका और दूसरे राष्ट्रों को अंतरराष्ट्रीय क़ानून के दायरे में रहते हुए अंतरिक्ष का और अधिक सैन्यीकरण करने की गुंजाइश छोड़ देती है.

दूसरी बात, अंतरिक्ष में हथियारों के इस्तेमाल के लिए बाह्य अंतरिक्ष संधि द्वारा निर्धारित बुनियादी सिद्धांत यह है कि ‘राष्ट्र नाभिकीय हथियारों या सामूहिक विनाश के अन्य हथियारों को खगोलीय पिंडों पर या ऑर्बिट में स्थापित नहीं करेंगे या किसी अन्य तरीक़े से बाह्य अंतरिक्ष में उनकी तैनाती नहीं करेंगे.’ यहां मुख्य बिंदु है, पहले सिद्धांत का सामूहिक विनाश के हथियारों और नाभिकीय हथियारों के निषेध से संबंधित होना. इसका मतलब हुआ कि अंतरिक्ष का अस्त्रीकरण करने की देशों की क्षमता बरकरार रहती है, और जब तक वे नाभिकीय हथियारों का इस्तेमाल नहीं करते, संधि की व्याख्या में लचीलेपन के चलते दूसरे सभी तरह के हथियारों का उपयोग सही ठहराया जा सकता है.

अंतरिक्ष को प्रभावशाली ढंग से शासित (govern) करने में एक और बाधा प्रवर्तन (enforcement) की है. अभी, कोई ऐसा संगठन नहीं है जो अंतरिक्ष के नियमन की शक्तियां रखता हो. बाह्य अंतरिक्ष संधि को ‘बाह्य अंतरिक्ष मामलों के संयुक्त राष्ट्र कार्यालय’ (UNOOSA) द्वारा लागू किया जाता है, जिसके पास अंतरिक्ष के प्रभावशाली नियमन के लिए क़ानूनी और ढांचागत क्षमता का अभाव है. बग़ैर एक प्रभावशाली प्रवर्तन एजेंसी के, अंतरिक्ष की क़िस्मत को देशों के विवेक के भरोसे छोड़ दिया जायेगा. और, देश अमूमन सहकारिता की जगह अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे.

अंतरिक्ष को कैसे बचाया जा सकता है?

उपरोक्त सवाल का जवाब बिल्कुल आसान लग सकता है, जो यह होगा कि एक नयी स्पष्ट और विस्तृत संधि लायी जाए, जिसमें हथियारों पर नियंत्रण और असैन्यीकरण के लिए ख़ास प्रावधान किया जाए. हालांकि, यह इतना आसान नहीं है. चीन और रूस की ओर यह प्रयास किया जा चुका है. अंतरिक्ष का और सैन्यीकरण रोकने की एक कोशिश के तहत दोनों देशों ने 2008 में निरस्त्रीकरण पर हुए सम्मेलन (Conference on Disarmament) के लिए एक मसौदा संधि पेश की, जिसका नाम था- Prevention of the Placement of Weapons in Outer Space and of the Threat or Use of Force against Outer Space Objects (PPWT). PPWT यह परिभाषित करती है कि कौन-सी चीज़ हथियारों को ‘अंतरिक्ष हथियार’ बनाती हैं. यह ‘नुकसान पहुंचाने के इरादे’ को भी परिभाषित करती है. इन परिभाषाओं से सैन्य और असैन्य तकनीक में फ़र्क़ किया जा सकेगा, क्योंकि अधिकतर सिविलियन सैटेलाइट्स का सैन्य इस्तेमाल संभव है. यह संधि अंतरिक्ष के सैन्यीकरण को प्रभावशाली ढंग से शासित करने की मनोकामनाओं का सही जवाब हो सकती है. 2014 में, दोनों देशों द्वारा PPWT का संशोधित मसौदा जमा किया गया, लेकिन 2008 की तरह ही, अमेरिका ने इसे यह कह कर ख़ारिज कर दिया कि चूंकि अभी अंतरिक्ष में हथियारों की कोई होड़ नहीं है, इसलिए हथियारों पर नियंत्रण की संधि की कोई ज़रूरत नहीं है. चूंकि अमेरिका की अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी (space technology) पर निर्भरता पहले के किसी भी वक्त के मुकाबले आज अधिक है, इसलिए वह इस तरह की संधि के लिए जल्दी तैयार होने नहीं जा रहा.

भविष्य में कोई भी संशोधित संधि केवल एक अल्पकालिक समाधान होने जा रही है, क्योंकि यह मुद्दा इतना जटिल है कि महज़ एक संधि से हल नहीं हो सकता. अंतरिक्ष को प्रभावी ढंग से शासित करने और ग्लोबल कॉमन की इसकी हैसियत बहाल करने के लिए, एक ग्लोबल गवर्नेन्स सिस्टम बनाया जा सकता है जो सभी सदस्य राष्ट्रों की अंतरिक्ष गतिविधियों की निगरानी कर सकता है. इस गवर्नेंस सिस्टम को धरती की कक्षा (orbit) को ग्लोबल कॉमन मानने की वैश्विक समझ के आधार पर स्थापित किया जा सकता है, जिसमें एक केंद्रीकृत जवाबदेही प्रणाली होगी जिससे प्रभावी प्रवर्तन हो सकेगा. यह न सिर्फ़ अंतरिक्ष के असैन्यीकरण में मदद करेगा, बल्कि अंतरिक्ष में बढ़ते मलबे, बेकार हो चुके सैटेलाइट्स जैसे मुद्दों से निपटने में मदद करेगा, और अंतरिक्ष अन्वेषण को भी बढ़ावा देगा. यह मुंगेरीलाल के हसीन सपने जैसा लग सकता है, लेकिन इतिहास यह दिखा चुका है कि दूसरे ग्लोबल कॉमन्स को प्रबंधित करने के लिए देश वास्तव में साथ आ सकते हैं. Convention on Long-Range Transboundary Air Pollution और उसके बाद आये प्रोटोकॉल इसके बड़े उदाहरण हैं.

निष्कर्ष

पूरी मानवजाति के कल्याण के लिए, यह ज़रूरी है कि अंतरिक्ष को लेकर ग्लोबल कॉमन की धारणा को बहाल किया जाए. इस महान अज्ञात की खोज अबाधित रहे, यह सुनिश्चित करने की दिशा में एक सशक्त प्रवर्तन निकाय के साथ मजबूत अंतरराष्ट्रीय समझौते बस शुरुआती कदम ही हो सकते हैं. मानव के इस धरती के परे बढ़ने की दिशा में एक ग्लोबल गवर्नेंस सिस्टम ही अगला तार्किक कदम है. कोई राष्ट्र अंतरिक्ष में अपनी कार्रवाइयों को कैसे परिचालित करता है, इसका असर इस ग्रह के सभी देशों पर पड़ता है. इसलिए, एक केंद्रीय नियंत्रित गवर्नेंस सिस्टम आज के वक्त की ज़रूरत है, जो अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए एक ज़िम्मेदार व सुरक्षित पारिस्थितिकी (ecosystem) और हमारी भावी पीढ़ियों के लिए एक शांतिपूर्ण अंतरिक्ष तक निर्बाध पहुंच सुनिश्चित करता हो.

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