Author : Chaitanya Giri

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Published on Feb 12, 2025 Updated 0 Hours ago

आज जब यूरोप चारों तरफ़ से अपने अस्तित्व के लिए ख़तरा बन चुकी चुनौतियों से जूझ रहा है, तो उसके ऊपर अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी अपनी स्वायत्तता और बढ़त गंवाने का ख़तरा मंडरा रहा है.

अंतरिक्ष की भू-राजनीति: स्वायत्तता को लेकर यूरोप की बढ़ती मांग

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डॉनल्ड ट्रंप की भारी बहुमत के साथ अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर वापसी ने कई क्षेत्रों को हिलाकर रख दिया है, जिनमें दुनिया का अंतरिक्ष उद्योग भी शामिल है. डॉनल्ड ट्रंप के चुनाव अभियान के दौरान दिए गए बयानों और उनके कार्यकाल का दुनिया के अंतरिक्ष राजनीतिक मंज़र पर भी गहरा असर पड़ेगा. ये साया एलन मस्क का है. ट्रंप की तरह एलन मस्क ने भी यूरोप में समाजवादी विचारधारा वाली सरकारों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है. ख़ास तौर से ब्रिटेन, डेनमार्क और जर्मनी को. इसके साथ साथ ट्रंप और मस्क दोनों ने अपने पसंदीदा नेताओं के पक्ष में खुलकर बयानबाज़ी भी जारी रखी है. वामपंथ और दक्षिणपंथ के बीच ये टकराव कोई दिखावा या ऊपरी नहीं है. आने वाले समय में यूरोप और अमेरिका के बीच तकनीक़ी क्षेत्र में सहयोग घटने की आशंका साफ दिख रही है और ये बात यूरोप के दोनों पक्षों के नेता समझ रहे हैं.

 ट्रंप की तरह एलन मस्क ने भी यूरोप में समाजवादी विचारधारा वाली सरकारों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है. ख़ास तौर से ब्रिटेन, डेनमार्क और जर्मनी को. इसके साथ साथ ट्रंप और मस्क दोनों ने अपने पसंदीदा नेताओं के पक्ष में खुलकर बयानबाज़ी भी जारी रखी है. 

यूरोप राजनीतिक स्वायत्तता हासिल करने की कोशिश कर रहा है. इसकी ज़रूरत यूरोप को इसलिए समझ में आ गई है, क्योंकि वो अपने अस्तित्व के लिए ख़तरा कहे जा रहे संकटों का सामना कर रहा है. इन चुनौतियों में मूल निवासियों की प्रजनन दर में गिरावट का संकट, लगातार अवैध अप्रवासियों की बाढ़, एक नाज़ुक अर्थव्यवस्था की भविष्यवाणी, तकनीक़ी बढ़त में गिरावट, ऊर्जा की भारी क़ीमत और यूरोप की सांस्कृतिक पहचान बरक़रार रखने का संघर्ष शामिल हैं. यही नहीं, डॉनल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद से उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के सभी सदस्यों से कहा जा रहा है कि वो अपने देश का रक्षा व्यय बढ़ाकर अपनी GDP के पांच प्रतिशत तक ले जाएं. यूरोप को अंदाज़ा हो गया है कि इसके बाद से अपनी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उसे ख़ुद ही उठानी होगी. यूरोप के लिए शुभ संकेत इस तरह मिले कि ट्रंप की इस मांग के बाद यूरोप के रक्षा ठेकेदारों के शेयरों में भारी उछाल आया.

अस्तित्व का संकट

नेटो को लगातार अटलांटिक से दूर-दराज के इलाक़ों में विस्तारित करने की कोशिशों का यूरोप को कोई लाभ नहीं हुआ है. रूस और यूक्रेन का युद्ध, यूरोप की अंतरिक्ष संबंधी महत्वाकांक्षाओं के लिए ख़तरे की घंटी बन गया. वैसे तो असल मक़सद रूस को ख़ारिज करना था. लेकिन,इसके चक्कर में यूरोप ने अपने वनवेब उपग्रहों के समूह के लॉन्च करने के आकर्षक ठेकों को रद्द कर दिया. इससे भारत और अमेरिका दोनों को फ़ायदा हुआ. यूरोप की अंतरिक्ष एजेंसी ने अपने एक्सोमार्स मिशन को टाल दिया, जिसको रूस के सोयुज़ रॉकेट के ज़रिए लॉन्च किया जाना था. रूस के साथ अंतरिक्ष क्षेत्र में हर तरह के सहयोग को बंद कर दिया गया. निश्चित रूप से इन क़दमों से रूस पर बुरा असर पड़ा. लेकिन, ख़ारिज करने की इस मुहिम से ज़्यादा नुक़सान यूरोप का और ख़ास तौर से फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन और नीदरलैंड्स को हुआ, क्योंकि यूरोप के अंतरिक्ष उद्योग की बड़ी-बड़ी कंपनियां इन्हीं यूरोपीय देशों में हैं. इन देशों में भी फ्रांस, इटली और जर्मनी के अंतरिक्ष के उद्योगों पर विशेष रूप से विपरीत असर हुआ है. क्योंकि 38 अरब डॉलर वाला यूरोप का अंतरिक्ष का कारोबारी बाज़ार, अमेरिका के 86 अरब डॉलर और एशिया के 45 अरब डॉलर के बाद तीसरे स्थान पर चला गया है. आज यूरोप के अंतरिक्ष उद्योग के सामने अपने अस्तित्व को बचाने का संकट मंडरा रहा है. आज यूरोप, अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपनी स्वायत्तता और मुक़ाबला करने की क्षमता बचाने की लड़ाई लड़ रहा है.

 मशहूर अंतरिक्ष यात्री थॉमस पेसक्वेट जैसे यूरोप पर ध्यान केंद्रित करने की वकालत करने वाले बहुत से लोग पिछले कई वर्षों से यूरोप की अंतरिक्ष क्षेत्र की स्वायत्तता के ख़तरे में पड़ने की चिंता जताते रहे हैं. ये चिंताएं वाजिब हैं. 

मशहूर अंतरिक्ष यात्री थॉमस पेसक्वेट जैसे यूरोप पर ध्यान केंद्रित करने की वकालत करने वाले बहुत से लोग पिछले कई वर्षों से यूरोप की अंतरिक्ष क्षेत्र की स्वायत्तता के ख़तरे में पड़ने की चिंता जताते रहे हैं. ये चिंताएं वाजिब हैं. क्योंकि यूरोप का अंतरिक्ष क्षेत्र के इकोसिस्टम की अमेरिका पर निर्भरता लगातार बढ़ती जा रही है और ये अमेरिका के हाथों अपनी बढ़त गंवाता जा रहा है. मई 2024 में यूरोपीय परिषद ने यूरोपीय संघ के 2021-27 के अंतरिक्ष कार्यक्रम में ‘परिषद के अंतरिक्ष क्षेत्र के माध्यम से यूरोप की प्रतिद्वंदिता को मज़बूती देने संबंधी निष्कर्षों’ को शामिल किया था. इसके पीछे इरादा यूरोप की अर्थव्यवस्था में नई जान डालना, उसकी ख़ुद को सुरक्षि बनाने की क्षमता बढ़ाना और मूल यूरोपीय संसाधनों, प्रतिभाओं की तकनीक़ी और वित्तीय प्रतिद्वंदिता की मज़बूती को सुनिश्चित करना था. हालांकि, ये जितना कहना आसान था, उतना ही करना मुश्किल था; यूरोप के लिए आगे की डगर बहुत कठिन है.

 

मौसम संबंधी उपग्रहों के एक प्रमुख कारोबारी संचालक EUMETSAT के पास इतना वक़्त नहीं था कि वो फ्रांस के एरियान-6 रॉकेट का विकास पूरा होने का इंतज़ार कर सके. इसलिए वो स्पेसएक्स के पास चला गया. इससे यूरोपीय संघ के भीतर वाजिब चिंताएं पैदा हुईं. यूरोपीय संसद के एक फ्रांसीसी सदस्य क्रिस्टॉफ ग्रुडलर ने कहा कि अगर यूरोप की अंतरिक्ष एजेंसियां उपग्रहों और अंतरिक्ष यानों के लॉन्च के लिए यूरोप को सख़्ती से प्राथमिकता नहीं देतीं, तो यूरोप को अंतरिक्ष क्षेत्र की हज़ारों नौकरियां और अपनी ‘सामरिक स्वायत्तता’ को गंवाने के लिए तैयार रहना चाहिए.

 

बात वहीं पर नहीं ख़त्म होती. यूरोपीय संघ (EU) के सदस्य स्पेसएक्स द्वारा अंतरिक्ष से ब्रॉडबैंड की सेवाएं देने वाली स्टारलिंक को लेकर दुविधा में फंसे हैं. यूरोप के बहुत से देशों में स्टारलिंक कारोबारी तौर पर जनता के लिए उपलब्ध है. फिर भी, बहुत से यूरोपीय देशों के लिए सरकारी और सैन्य ज़रूरतों के लिए यूरोप के स्वदेशी और सुरक्षित उपग्रहों के समूह IRIS2 और स्टारलिंक की सेवाओं के बीच चुनाव करने की दुविधा के शिकार हैं. मसला ये है कि IRIS 2030 के दशक के शुरुआती वर्षों में जाकर काम करना शुरू करेगा और इस वक़्त ये परियोजना लागत बढ़ने की चुनौती का सामना कर रही है. यूरोपीय देशों की ये दुविधा दिखाती है कि अंतरिक्ष क्षेत्र में अपनी स्वायत्तता बरक़रार रखने के लिए EU के सदस्यों को मिलकर काम करना कितना मुश्किल हो रहा है. यूरोप की अंतरिक्ष क्षेत्र में स्वायत्तता बचाए रखने की मांग रूसी, चीनी या फिर भारत की बढ़ती ताक़त की वजह से नहीं है. इसका सीधा निशाना यूरोप की अमेरिका पर बढ़ती निर्भरता और उससे पीछे होते जाने पर है. अमेरिका से पिछड़ने का ये मसला यूरोपीय संघ या फिर यूरोपीय देशों की राष्ट्रीय परियोजनाओं तक सीमित नहीं है. बल्कि, ये अंतरिक्ष के कारोबारी इकोसिस्टम में भी दिख रहा है.

 प्राकृतिक आपदाओं या फिर भू-राजनीतिक घटनाओं के दौरान आर्कटिक, अटलांटिक और हिंद प्रशांत क्षेत्र में दूर-दराज के द्वीपों में स्थित अहम ठिकानों से लगातार संपर्क बनाए रखना एक ऐसा लक्ष्य है, जिसके पीछे अमेरिका और चीन दोनों ही पुरज़ोर ताक़त लगा रहे हैं.

केवल IRIS2 ही नहीं, बल्कि उपग्रहों का एक बड़ा समूह स्थापित करने के यूरोपीय प्रयास भी लड़खड़ा रहे हैं. ज़मीन और समुद्र दोनों पर कनेक्टिविटी की आख़िरी कड़ी तक पहुंचना सभी महाशक्तियों की लक्ष्य बन गया है. प्राकृतिक आपदाओं या फिर भू-राजनीतिक घटनाओं के दौरान आर्कटिक, अटलांटिक और हिंद प्रशांत क्षेत्र में दूर-दराज के द्वीपों में स्थित अहम ठिकानों से लगातार संपर्क बनाए रखना एक ऐसा लक्ष्य है, जिसके पीछे अमेरिका और चीन दोनों ही पुरज़ोर ताक़त लगा रहे हैं. 2024 में चीन ने क़ियानफान और गुओवांग उपग्रहों लॉन्च करने की शुरुआत की. ये दोनों परियोजनाएं उपग्रहों का अलग अलग समूह हैं. गुओवांग के तरह 13 हज़ार उपग्रह छोड़े जाने हैं, जबकि क़ियानफान के तहत 15 हज़ार उपग्रहों को अलग कक्षा में छोड़े जाने की योजना है. चीन का दावा है कि उसके ये दोनों उपग्रह समूह अमेरिका के स्टारलिंक समूह से मुक़ाबला करने के लिए तैयार किए गए हैं. स्टारलिंक के तहत 42 हज़ार सैटेलाइट लॉन्च किए जाने हैं.

 

सीमित होते विकल्प

अमेरिका और चीन के बीच धरती की निचली कक्षा के उपग्रह (LEOP) समूह लॉन्च करने की ये होड़ दो स्तरों की है. पहले स्तर में दोनों देश अपने नाम पर अंतरिक्ष में आवंटित पूरी जगह को अपने और अन्य देशों के उपग्रहों के ज़रिए भरने पर ज़ोर दे रहे हैं. दूसरे स्तर में निर्माण की ऐसी क्षमताएं विकसित करने पर ज़ोर दिया जा रहा है, जो इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन (ITU) की शर्त पूरी कर सके. ITU की शर्त के तहत उसके सामने अर्ज़ी लगाने के दो साल के भीतर उपग्रहों के समूह का दस प्रतिशत अंतरिक्ष में स्थापित करना होता है. जिसके बाद अगले पांच साल में 50 प्रतिशत और सात साल के भीतर सारे उपग्रह समूह लॉन्च करने होते हैं.

 

फ्रांस, जो अटलांटिक और हिंद प्रशांत क्षेत्र में सबसे व्यापक विशेष आर्थिक क्षेत्र और कई द्वीपों के होने का दम भरता है, उसने भी ITU के सामने Sepahore-C के नाम से उपग्रहों के एक समूह को लॉन्च करने की अर्ज़ी दे रखी है, जिसके अंतर्गत 116,640 उपग्रह लॉन्च किए जाने हैं. हालांकि, अमेरिका और चीन की तरह उपग्रह छोड़ने की सक्रिय कार्ययोजना के उलट यूरोप की अंतरिक्ष एजेंसी की सैटेलाइट लॉन्च करने की क्षमता बहुत कम हो गई है. इस वक़्त वो अपने छोटे रॉकेट Vega-C पर निर्भर है. हालांकि, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का एरियान-6 रॉकेट कारोबारी लॉन्च के लिए लगभग तैयार है. लेकिन, उसको कम पैसे में लॉन्च करने की शोहरत अभी हासिल करनी है. अगली पीढ़ी का दोबारा इस्तेमाल हो सकने वाला रॉकेट एरियान नेक्स्ट अभी भी विकास के ही दौर से गुज़र रहा है.

 हालांकि, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का एरियान-6 रॉकेट कारोबारी लॉन्च के लिए लगभग तैयार है. लेकिन, उसको कम पैसे में लॉन्च करने की शोहरत अभी हासिल करनी है. अगली पीढ़ी का दोबारा इस्तेमाल हो सकने वाला रॉकेट एरियान नेक्स्ट अभी भी विकास के ही दौर से गुज़र रहा है.

अंतरिक्ष के क्षेत्र में वेंचर कैपिटल यानी जोख़िम लेने वाली पूंजी जुटाने के मामले में यूरोप, अमेरिका से बहुत पीछे है. अमेरिका में अंतरिक्ष के कारोबारी इकोसिस्टम ने 2023 में 6.8 अरब डॉलर की पूंजी जुटाई थी. वहीं, यूरोपीय इकोसिस्टम बहुत पीछे है और उसने केवल 1.4 अरब डॉलर का निवेश हासिल किया था. प्राथमिक चिंता इस बात की है कि यूरोप के विकल्प लगातार सीमित होते जा रहे हैं. क्योंकि ग़ैर अमेरिकी वेंचर कैपिटल के कोई दूसरे स्रोत उसकी स्टार्ट-अप कंपनियों के पास उपलब्ध नहीं हैं, ख़ास तौर से ऐसी तकनीकों में पैसे लगाने के लिए जो दिखावे से वास्तविक उपयोग की दिशा में बढ़ रही हैं.

 

चीन और अमेरिका के बीच अंतरिक्ष क्षेत्र में उपग्रह लॉन्च करने की जो होड़ मची है, उसने ये मान लिया है कि कम क्षमता वाले देश सैटेलाइट इंटरनेट को लेकर अपनी सामरिक स्वायत्तता की बलि चढ़ाने और इन देशों पर निर्भर होने के लिए तैयार हैं. जबकि इसे अब अहम मूलभूत ढांचा माना जा रहा है. शुरुआत में इस सोच को सफलता भी मिली थी. लेकिन, अब यूरोप में स्वायत्तता की बढ़ती मांग से यूरोपीय संघ के सदस्य देश एकजुट होंगे और अन्य देशों को भी अपनी स्वायत्तता पर विचार करने के लिए प्रेरित करेंगे. हो सकता है कि इससे यूरोपीय संघ और अमेरिका के रिश्तों में तनाव बढ़े. लेकिन, मस्क को साथ लेकर सत्ता में आए ट्रंप के दौर में वैसे भी ये रिश्ता लेन-देन वाला ही होने जा रहा है. ऐसा होना तय ही था और सत्ता के नए समीकरणों को देखते हुए अमेरिका और यूरोप दोनों के लिए ऐसा करना ही मुफ़ीद होगा.

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Chaitanya Giri

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Dr. Chaitanya Giri is a Fellow at ORF’s Centre for Security, Strategy and Technology. His work focuses on India’s space ecosystem and its interlinkages with ...

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