बांग्लादेश बहुत जल्दी नेपाल के साथ बिजली ख़रीदने का 25 साल का सौदा करने वाला है. इसके तहत नेपाल, बांग्लादेश को 40 मेगावाट बिजली का निर्यात करेगा. भौगोलिक परिस्थितियों की वजह से नेपाल और बांग्लादेश के बीच बिजली के इस कारोबार को, भारत के इलाक़ों से होकर गुज़रना होगा. इस व्यापारिक सौदे- जिसका मसौदा पहले ही तैयार किया जा चुका है- को नेपाल, बांग्लादेश और भारत के बीच होने वाला त्रिपक्षीय समझौता होते ही, औपचारिक रूप दे दिया जाएगा. ये अपने तरह का पहला समझौता होगा, जिसके तहत दक्षिणी एशिया के दो देश, भारत की पावर ग्रिड के ज़रिए बिजली का व्यापार करेंगे. समझौते से नेपाल और बांग्लादेश की लंबे समय से चली आ रही मांग पूरी होगी. इसे लागू करने से दक्षिण एशिया के छोटे देशों की बढ़ती मांग और उनकी अहमियत का संकेत मिलता है. इससे ये भी पता चलता है कि अपने पड़ोसी इलाक़ों में चीन की बढ़ती मौजूदगी से निपटने के लिए भारत ने, कनेक्टिविटी बढ़ाने के प्रयास तेज़ कर दिए हैं.
इस व्यापारिक सौदे- जिसका मसौदा पहले ही तैयार किया जा चुका है- को नेपाल, बांग्लादेश और भारत के बीच होने वाला त्रिपक्षीय समझौता होते ही, औपचारिक रूप दे दिया जाएगा. ये अपने तरह का पहला समझौता होगा, जिसके तहत दक्षिणी एशिया के दो देश, भारत की पावर ग्रिड के ज़रिए बिजली का व्यापार करेंगे.
घरेलू मजबूरियां
बांग्लादेश, भयंकर गर्मी में अपने यहां बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने की चुनौती से जूझ रहा है. बांग्लादेश के कई इलाक़े तो अक्सर 10 से 12 घंटे की बिजली कटौती का सामना कर रहे हैं. बिजली की इस क़िल्लत से बांग्लादेश में सिर्फ़ आम नागरिकों की ही नींद नहीं उड़ी है. बल्कि कारोबारी क्षेत्र और ख़ास तौर से विदेशी मुद्रा कमाने वाला बांग्लादेश का कपड़ा उद्योग भी काफ़ी नुक़सान उठा रहा है. इस समस्या की जड़ ये है कि बांग्लादेश पिछले साल से ही कोयले और प्राकृतिक गैस की आपूर्ति में कमी का सामना कर रहा है. इसके कई कारण हैं, जैसे कि प्राकृतिक संसाधनों की खोज के लिए सरकारी कंपनियों का इस्तेमाल न करना; बिजली उत्पादन को प्राकृतिक गैस पर बहुत अधिक निर्भर बनाना; रूस- यूक्रेन युद्ध की वजह से ईंधन की क़ीमतों में इज़ाफ़ा होना; रूस से कच्चे तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की वजह से यूरोपीय देशों में प्राकृतिक गैस का आयात और इसकी वजह से क़ीमतों में आया उछाल; ओपेक प्लस देशों द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती करना; बढ़ता तापमान; और अभी हाल ही में आया समुद्री चक्रवात, जिसकी वजह से बिजली की आपूर्ति में कटौती हो गई थी.
इसका नतीजा ये हुआ है कि बांग्लादेश में बिजली की भारी कटौती हो रही है. अक्टूबर 2022 में तो बिजली की भारी मांग की वजह से उसकी नेशनल पावर ग्रिड फेल हो गई थी, जिसकी वजह से क़रीब 14 करोड़ लोगों को बिजली की आपूर्ति ठप हो गई थी. कोयले की क़िल्लत की वजह से 5 जून 2023 को पेरा बिजलीघर की 1.32 गीगावाट बिजली बनाने वाली एक इकाई को बंद करना पड़ा था. जबकि, इस बिजलीघर की पहली यूनिट 25 मई को ही बंद की जा चुकी थी. 20 दिन तक बंद रहने के बाद, बिजलीघर की दोनों इकाइयों को जून के आख़िर में तब फिर से चालू किया गया, जब 41 हज़ार टन कोयले से लदा एक जहाज़ पेरा बंदरगाह पहुंच गया. इसीलिए, ये बात साफ़ हो जाती है कि बांग्लादेश अपने पड़ोसी देशों से बिजली आपूर्ति के समझौते क्यों करना चाहता है. इसके अलावा, चूंकि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना, आने वाले आम चुनावों में अपनी जीत के लिए विकास के वादे के भरोसे हैं, इसीलिए, उनके लिए अपने देश को ‘चमकदार भविष्य’ का भरोसा देना ज़रूरी है, इसलिए तो और भी क्योंकि विपक्षी दलों ने तो पहले ही बिजली के संकट को अपने चुनाव प्रचार का बड़ा मुद्दा बना लिया है.
वहीं दूसरी ओर, पानी के पर्याप्त स्रोतों की वजह से नेपाल अपने यहां पानी से बनने वाली बिजली के निर्यात को बढ़ावा देना चाहता है. पनबिजली परियोजनाओं से बनी बिजली के निर्यात का ख़्वाब नेपाल, लंबे समय से पालता-पोसता आया है. लेकिन, कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे बाहरी झटकों की वजह से, नेपाल के लिए ये सपना पूरा करने की ज़रूरत और भी बढ़ गई है. इन झटकों के कारण नेपाल के घरेलू उत्पादन, पर्यटन उद्योग और विदेश में बसे नेपालियों द्वारा अपने देश भेजी जाने वाली रक़म में काफ़ी गिरावट आ गई है. जबकि महंगाई बढ़ गई है. इसकी वजह से पिछले छह दशक में पहली बार नेपाल आर्थिक मंदी का शिकार हो गया है और उसके विदेशी मुद्रा भंडार में भारी गिरावट आ गई है. इन हालात ने नेपाल की दो बुनियादी चुनौतियों को सामने ला खड़ा किया है: आयात पर उसकी निर्भरता और ख़र्च, और विदेशी मुद्रा अर्जित करने के सीमित स्रोत.
पानी के पर्याप्त स्रोतों की वजह से नेपाल अपने यहां पानी से बनने वाली बिजली के निर्यात को बढ़ावा देना चाहता है. पनबिजली परियोजनाओं से बनी बिजली के निर्यात का ख़्वाब नेपाल, लंबे समय से पालता-पोसता आया है.
इस मामले में बांग्लादेश की बढ़ती अर्थव्यवस्था और बिजली की मांग, नेपाल को अपनी पनबिजली का निर्यात करने का एक मौक़ा मुहैया करा रही है. नेपाल को उम्मीद है कि इस निर्यात से आयात का बोझ कम होगा और सरकार की डॉलर में आमदनी बढ़ जाएगी. राजनीतिक तौर पर बांग्लादेश के साथ कनेक्टिविटी से नेपाल के राजनेता, पनबिजली के निर्यात का पुराना ख़्वाब पूरा करने और नेपाल को चारों तरफ़ ज़मीन से घिरे देश से चारों तरफ़ ज़मीनी संपर्क वाला देश बनाने का दावा कर सकेंगे. इस सौदे से नेपाल के नेताओं को अपने यहां की उस राष्ट्रवादी मांग को भी जवाब देने का मौक़ा मिलेगा, जिसके तहत वो ये दावा कर सकेंगे कि एक छोटा देश होने के बावजूद, नेपाल ने ‘बड़े भाई’ भारत जैसे विशाल देश को रियायतें देने के लिए मजबूर कर दिया. नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड ने हाल ही में बयान दिया था कि वो कालापानी देने के बदले में भारत के संवेदनशील सिलीगुड़ी गलियारे से होकर बांग्लादेश को अपने उत्पाद निर्यात करने का रास्ता हासिल कर सकेंगे. इससे नेपाल के नेताओं द्वारा राष्ट्रवादी जज़्बात को बढ़ावा देने की बात और सही लगती है.
भारत का नज़रिया
भारत के लिए कनेक्टिविटी बढ़ाने की ये ज़रूरत उसकी अर्थव्यवस्था के विस्तार, मूलभूत ढांचे में बढ़ोत्तरी और ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति का ही एक रूप है. यहां ये बात साफ़ कर देनी चाहिए कि आर्थिक हितों और ज़रूरतों ने पहले ही भारत को पनबिजली परियोजनाएं विकसित करने और इस क्षेत्र में बिजली के आपसी कारोबार को बढ़ावा देने को मजबूर किया है. लेकिन, हाल के वर्षों में भारत की आर्थिक आवश्यकताओं और चीन के ख़तरे ने उसके लिए दक्षिण एशियाई देशों की महत्ता, द्विपक्षीय ही नहीं पूरे क्षेत्र के लिहाज़ से और बढ़ा दी है. इसीलिए, भारत ने दूसरे देशों के साथ ख़ुद भी और अन्य देशों के बीच भी बिजली की कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने में काफ़ी दिलचस्पी दिखाई है. भारत से दक्षिण एशिया के बाक़ी देशों को बिजली आपूर्ति के नेटवर्क और पेट्रोलियम की पाइपलाइन में काफ़ी बढ़ोत्तरी देखी जा रही है. 2019 में भारत ने नेपाल तक पेट्रोलियम आपूर्ति की पाइपलाइन बिछाई थी जो दक्षिण एशिया में दो देशों के बीच पहली पाइपलाइन है, जिससे 28 लाख टन डीज़ल की आपूर्ति की जा रही है. मार्च 2023 में भारत और बांग्लादेश ने हर साल दस लाख टन डीज़ल की आपूर्ति के लिए पाइप लाइन बिछाने का काम शुरू किया था. इसी तरह जुलाई 2023 में श्रीलंका के साथ भी ऐसी ही पाइपलाइन कनेक्टिविटी स्थापित करने को लेकर चर्चा हुई थी.
भारत से दक्षिण एशिया के बाक़ी देशों को बिजली आपूर्ति के नेटवर्क और पेट्रोलियम की पाइपलाइन में काफ़ी बढ़ोत्तरी देखी जा रही है. 2019 में भारत ने नेपाल तक पेट्रोलियम आपूर्ति की पाइपलाइन बिछाई थी जो दक्षिण एशिया में दो देशों के बीच पहली पाइपलाइन है, जिससे 28 लाख टन डीज़ल की आपूर्ति की जा रही है.
इसके अलावा, भारत ने अपने पड़ोसियों के साथ बिजली आपूर्ति के समझौते भी किए हैं. दक्षिण एशिया में मांग और आपूर्ति के उभरते समीकरणों में अब भारत एक ऐसे अदृश्य हाथ के रूप में उभर रहा है, जो इस क्षेत्र में आर्थिक एकीकरण, व्यापार और कनेक्टिविटी को बढ़ावा दे रहा है. 2018 में भारत ने सीमा के आर पार बिजली के कारोबार से जुड़े अपने दिशा-निर्देशों (CBTI) में रियायतें दी थीं. इससे भारत के बिजली बाज़ार को दक्षिण एशिया के बिजली बाज़ार के तौर पर विकसित करने की राह खुली. ग्रिड की कनेक्टिविटी से बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और श्रीलंका जैसे देशों को भारतीय ग्रिड के ज़रिए बिजली ख़रीदने, बेचने और भारत के बिजली बाज़ार में हिस्सा लेने का मौक़ा मिला है. इसके साथ साथ, CBTI के दिशा-निर्देशों में संशोधन ने भारत के रास्ते दो देशों के बीच बिजली की आपूर्ति का रास्ता भी खोला है. इन दिशा-निर्देशों के तहत, नेपाल और बांग्लादेश के बीच हाल में हुआ बिजली के कारोबार का सौदा अपनी तरह का पहला समझौता होगा. बहुत जल्दी, श्रीलंका जैसे देश भी इस तरह की व्यवस्था का हिस्सा बन सकते हैं.
चीन की भूमिका
भारत द्वारा अपने पड़ोसियों के साथ सहयोग और संपर्क बढ़ाने की एक वजह इस क्षेत्र में चीन की उपस्थिति भी है. 2021 में बांग्लादेश बैंक के आंकड़ों से पता चला था कि ‘चीन ने बांग्लादेश के ऊर्जा क्षेत्र में कुल 45 करोड़ डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया हुआ है और ये सारी रक़म जीवाश्म ईंधन पर आधारित बिजलीघरों में लगी हुई है.’ यही नहीं, बांग्लादेश पर बाहरी क़र्ज़ के कार्यकारी समूह ने बताया था कि इस समय चल रहे बांग्लादेश के दो कोयले वाले बिजलीघरों में भी चीन का पैसा लगा हुआ है. इन दोनों बिजलीघरों में कुल मिलाकर 1845 मेगावाट बिजली बनाई जाती है; 4460 मेगावाट बिजली उत्पादन करने वाले कोयले से चलने वाले पांच और बिजलीघरों में भी चीनी कंपनियों ने निवेश किया हुआ है. हालांकि, सितंबर 2021 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने घोषणा की थी कि, ‘चीन अन्य विकासशील देशों में हरित और कम कार्बन उत्सर्जन वाली बिजली बनाने को बढ़ावा देगा और अब वो विदेशों में कोयले से चलने वाले नए बिजलीघर बनाने में निवेश नहीं करेगा.’ इसके बाद भी बांग्लादेश अपने कुल बिजली उत्पादन का 42 प्रतिशत हिस्सा भारी ईंधन से ही बनाता है. ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि बिजली के दूसरे स्रोतों जैसे कि विदेश से बिजली आयात करने का विकल्प अपनाया जाए (इस समय बांग्लादेश अपनी कुल ज़रूरत की केवल पांच प्रतिशत बिजली बाहर से ख़रीदता है). इससे भारत द्वारा बिजली सेक्टर में निवेश के अवसर बढ़ जाते हैं.
आख़िरकार भारत ने चीन की जगह ले ली है और इनमें से चार परियोजनाएं बनाने में वो नेपाल की मदद कर रहा है. चूंकि अब चीन, नेपाल के साथ सीमा के आर-पार पावरग्रिड स्थापित करने के लिए काफ़ी तेज़ी से काम कर रहा है, इसीलिए भारत ने भी इस दिशा में तेज़ी दिखाई है.
वहीं दूसरी ओर, नेपाल के पनबिजली सेक्टर में चीन का निवेश नेपाल की उम्मीदों से बहुत कम रहा है. चीन ने नेपाल को पनबिजली परियोजनाएं लगाने में निवेश और मदद की है- जैसे कि मर्यिसांगडी और तामाकोशी की परियोजनाएं- लेकिन नेपाल को इस मामले में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. एक तो ये है कि भारत इकलौता देश है, जो नेपाल से बिजली का निर्यात करता है, और उसके CBTI के संशोधित दिशा-निर्देश, चीन की मदद से लगाए गए बिजलीघरों से पैदा बिजली को भारत की ग्रिड के रास्ते दूसरे पड़ोसी देशों को आपूर्ति करने से रोकते हैं. दूसरा, राजनीतिक स्थिरता के कारण चीन की कई कंपनियों ने नेपाल की परियोजनाओं से हाथ खींच लिए हैं. वहीं तकनीकी मुश्किलों और कम रिटर्न की वजह से भी नेपाल में BRI परियोजना के तहत बनाई जा रही पनबिजली परियोजनाओं में कोई प्रगति नहीं हो रही है, क्योंकि नेपाल, चीन से कारोबारी क़र्ज़ लेने का विरोध करता रहा है. आख़िरकार भारत ने चीन की जगह ले ली है और इनमें से चार परियोजनाएं बनाने में वो नेपाल की मदद कर रहा है. चूंकि अब चीन, नेपाल के साथ सीमा के आर-पार पावरग्रिड स्थापित करने के लिए काफ़ी तेज़ी से काम कर रहा है, इसीलिए भारत ने भी इस दिशा में तेज़ी दिखाई है. अब भारत, नेपाल को अपने व्यापारिक साझीदार (यानी बांग्लादेश) तक पहुंचने में मदद कर रहा है; इस क्षेत्र में अधिक आपसी निर्भरता और कनेक्टिविटी को बढ़ावा दे रहा है; अपने पड़ोसियों की मांग के प्रति अधिक संवेदनशीलता दिखा रहा है; और इस तरह, क्षेत्र में चीन की उपस्थिति और प्रभाव को सीमित करने की कोशिश कर रहा है.
इसीलिए, अब जबकि दक्षिण एशिया में प्रतिद्वंदिता बढ़ रही है, तो भारत कनेक्टिविटी के अपने प्रयासों के ज़रिए ‘शक्ति’ को नए सिरे से परिभाषित कर रहा है. ये बढ़ती घरेलू ज़रूरतों और दक्षिण एशियाई देशों की अहमियत का नतीजा है. कनेक्टिविटी को बढ़ाने में भारत की बढ़ती दिलचस्पी के पीछे चीन की उपस्थिति का जवाब देने का मक़सद भी शामिल है.
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